लिखी हुई इबारत -2 Jyotsana Kapil द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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लिखी हुई इबारत -2

मिठाई



रात को सोने से पहले परेश ने घर के दरवाजों का निरीक्षण किया। आश्वस्त होकर अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ा ही था कि तभी सदा के नास्तिक बाबूजी को उसने चुपके से पूजाघर से निकलते देखा।

"बाबूजी, इतनी रात को ... ?"

उसकी उत्सुकता जाग गई,और उसका पुलिसिया मन शंकित हो उठा। वह चुपके से उनके पीछे चल पड़ा। वे दबे पाँव अपने कमरे में चले गए, फिर उन्होंने अपना छिपाया हुआ हाथ माँ के आगे कर दिया

" लो तुम्हारे लिये लड्डू लाया हूँ, खा लो। "

" ये कहाँ से लाए आप ?"

" पूजा घर से ।" उन्होंने निगाह चुराते हुए कहा।

" पर इस तरह ... "

" क्या करूँ, जानता नही क्या की तुम्हे बेसन के लड्डू कितने पसन्द हैं। परेश छोटा था तो हमेशा तुम अपने हिस्से का लड्डू उसे खिला दिया करती थीं। आज घर मे मिठाइयाँ भरी पड़ी हैं पर बेटे को ख्याल तक नही आया , की माँ को उसकी पसन्द की मिठाई खिला दे। "

" ऐसे मत सोचिए, उस पर जिम्मेदारियों का बोझ है, भूल गया होगा । " माँ ने उसका पक्ष लेते हुए कहा।

" तुम तो बस उसकी कमियाँ ही ढकती रहो , लो अब खा लो। "

" आप भी लीजिये न "

" नहीं, तुम खाओ, जीवनभर अपने हिस्से का दूसरों को ही देती आयीं। तुम्हे इस तरह तरसते नही देख सकता मैं ।" कहते हुए बाबूजी ने जबरन लड्डू उन्हें खिला दिया।

उसकी आँखें भर आयीं अपनी लापरवाही पर। माता पिता की भरपूर सेवा करने का उसका गुरुर चकनाचूर हो गया। घर में सौगात में आये मिठाई के डिब्बों का ढेर मानो उसे मुँह चिढ़ा रहा था। उसने लड्डू का डिब्बा उठाया और नम आँखें लिये माँ बाबूजी के कमरे की ओर चल दिया।



कब तक ?



उसकी सूनी नज़रें कोने में लगे जाले पर टिकी हुई थीं । तभी एक कीट उस जाले की ओर बढ़ता नज़र आया। वह ध्यान से उसे घूरे जा रही थी।

" अरे ! यहाँ बैठी क्या कर रही हो ? हॉस्पिटल नही जाना क्या ?" पति ने टोका तो जैसे वह जाग पड़ी।

" सुनिए , मेरा जी चाहता है की नौकरी छोड़ दूँ । बचपन से काम कर - कर के थक गई हूँ । शरीर टूट चला है । साथी डॉक्टरों की फ्लर्ट करने की कोशिश , मरीज और उनके तीमारदारों की भूखी निगाह , तो कभी हेय दृष्टि , अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया है । " आशिमा ने याचना भरी दृष्टि से पति को ताका।

" पागल हो गई हो क्या ? बढ़ते बच्चो के पढ़ाई के खर्चे, फ्लैट और गाड़ी की किस्तें । ये सब कैसे पूरे होंगे ? "

" मुझे बहुत बुरा लगता है जब डबल मीनिंग वाले मजाक करते हैं ये लोग। इन सबकी भूखी नज़रें जब अपने शरीर पर जमी देखती हूँ तो घिन आती है । "

" हद है आशिमा, अच्छी भली सरकारी नौकरी है। जिला अस्पताल में स्टाफ नर्स हो। अभी कितने साल बाकि हैं नौकरी को । तुम्हारे दिमाग में ये फ़ितूर आया कहाँ से ? थोड़ा बर्दाश्त करना भी सीखो । " झिड़कते स्वर में पति ने जवाब दिया।

" चलो उठो,आज मैं तुम्हे ड्रॉप करके आता हूँ " उन्होंने गाड़ी की चाभी उठाते हुए कहा। आशिमा की निगाह जाले की ओर गई तो देखा वह कीट जाले में फंसा फड़फड़ा रहा है और खूंखार दृष्टि जमाए एक मकड़ी उसकी ओर बढ़ रही है।

" नहीं " वह हौले से बुदबुदाई, फिर उसने आहिस्ता से जाला साफ करने वाला उठाया और उस जाले का अस्तित्व समाप्त कर दिया।