भदूकड़ा - 57 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भदूकड़ा - 57

कुंती ने पहले कभी ध्यान नहीं दिया था, लेकिन अब देख रही है कि हर आदमी उससे दूर भाग रहा है। भागता पहले भी होगा, लेकिन कुंती ने तब अपनी ताक़त के नशे में चूर थी। क्या बड़ा, क्या छोटा, सबको एक लाइन में लगाये रखती थी। अब जब ध्यान गया तो पता चल रहा है कि बच्चे, बड़े सब उसकी पहुंच से बहुत दूर हो गए हैं। उसके खुद के बच्चे ही कहाँ पास हैं अब? होंगे भी कैसे? जानकी के साथ उसने जो व्यवहार किया, जानकी भूलेगी कभी? किशोर को कितना प्रताड़ित किया और ये सारी प्रताड़नाएं देखता छोटू..... ! क्यों उसके नज़दीक आना चाहेगा कोई? उसने ऐसा किया क्या है आख़िर, किसी के भी लिए कि कोई पास आये...! एकमात्र सुमित्रा ही ऐसी है, जिसे उसने सबसे अधिक प्रताड़ित किया और जो अब भी उसे दिल से प्रेम करती है। उसकी तक़लीफ़ में दुखी होती है। क्या पता सुमित्रा भी दिखावा करती हो....! ऊंह..!! झटक देती है कुंती इस ख़याल मात्र को। डर लगता है उसे ऐसा सोचते हुए। ऐसा न हो कि सोची हुई बात ही किसी घड़ी में पड़ जाए और सच हो जाये....!
कुंती के पास भी अब स्मार्ट फोन है। किशोर और छोटू समय-समय पर उसकी तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट करते रहते हैं, मेरी माँ, मेरी प्यारी मां जैसे कैप्शन के साथ। पढ़ के अजब कड़वी सी मुस्कुराहट आती है कुंती के होंठों पर। किशोर ने तो फिर भी बहुत बर्दाश्त किया है उसे। शादी के बाद सालोंसाल रहा है उसके साथ और जानकी पर किये जा रहे उसके जुल्म देखता रहा है, सहता रहा है । उसके मन मे कुंती के प्रति प्यार और चिंता दोनों हैं लेकिन छोटू!! छोटू के साथ न तो कभी कुंती ने उतना क्रूर व्यवहार किया जितना किशोर के साथ, न ही वो शादी के बाद दस दिन भी रुका। ठीक दसवें दिन छोटू, अपने साथ बहू को ले गया था। कुंती के रवैये को वो जानता था शायद इसीलिए। लेकिन तस्वीरें ऐसे पोस्ट करता है जैसे उससे अधिक श्रवण कुमार तो कोई होगा ही नहीं। कुंती गाहे-बगाहे जब भी छोटू या किशोर के पास जाती है तो दोनों लड़के, पोते, बहुएं सब बातों से ज़्यादा फ़ोटो पर ध्यान लगाए रहते हैं। साथ चाय पी रहे तो फ़ोटो, खड़े हैं तो फ़ोटो। कुंती पूजा करे तो फ़ोटो, बच्चों के सिर पर हाथ फेरे तो फ़ोटो। पहले वो उठते -बैठते इन तस्वीरों की खिंचाई का राज़ नहीं समझ पाती थी। खुश होती थी कि बच्चे उसके आने से खुश हैं। वो तो अभी जब कुंती ग्वालियर गयी, तब अज्जू ने उसकी फेसबुक आईडी बना दी कि इसमें तुम सब रिश्तेदारों की तस्वीरें देख पाओगी। लगभग हर दूसरे दिन दोनों लड़को द्वारा "मेरी माँ" , "मां के साथ सुखद पल", "मां की छांव में" जैसे शीर्षकों के साथ पिछले कई सालों से खींची जा रही तस्वीरों का।प्रदर्शन देखा, तो उसे ये धड़ाधड़ फोटोग्राफी का राज़ समझ में आया।
अब कुंती का मन नहीं करता दोनों ही बेटों के पास जाने का। सुमित्रा जी की समझाइश के बाद तो उसने खुद को एकदम ही समेट लिया। अब लड़के भी खुश हैं और कुंती के मन में भी बेचैनी नहीं है। भूले भटके, कुंती उआँ सौतेली बेटियों को भी अब याद कर लेती है, जिनका बाल विवाह उसने 11-12 बरस की उमर में ही कर दिया था। घर में शांति बनाए रखने के हिमायती बड़े दादाजी ने विरोध तो किया, लेकिन फिर उन्हें भी लड़कियों की भलाई, यहां से चले जाने में ही दिखाई दी। सौतेली बेटियों में बड़ी सिया की शादी जहां तय हुई, वो लड़का उससे 8 साल बड़ा था और शादी के एक साल बाद ही नौकरी में आ गया था वो भी पुलिस की नौकरी। पुलिस महानिदेशक के पद से रिटायर हुआ तीन साल पहले।और छोटी मैथिली की शादी उससे 3 साल बड़े लड़के से हुई। बड़े दादाजी चुपचाप बेटियों की पढ़ाई करवाते रहे। नतीजतन छोटी मैथिली और दामाद दोनों ने लगभग साथ साथ ग्रैजुएशन किया और शिक्षा विभाग की नौकरी भी साथ ही पा गए। अब दोनों ही प्राचार्य के पद पर हैं। सिया भी प्राचार्य पद से रिटायर हुई पिछले साल। यानी दोनों बेटियां सम्पन्न परिवारों में हैं, और खुद भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं।