#पंचकन्या_भाग_2........... #मानस
ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि की सुन्दरतम रचनाओं से तत्व लेकर (अहल्या) अहिल्या के अंगों में उनका समावेश करके एक युवती की रचना की जिससे एक अनुपम सुंदरी कन्या का निर्माण हुआ जिसे पोषण के लिए उन्होंने ऋषि गौतम को दे दिया। उसके युवती होने पर गौतम ऋषि निर्विकार भाव से उसे लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रम्हा जी से ही अहिल्या को वरदान मिला था कि वो सदैव सोलह वर्ष की युवती की तरह ही रहेगी। जब ब्रह्मा जी ने गौतम ऋषि से अहिल्या को भार्या के रूप में स्वीकार करने के लिये कहा तो गौतम ऋषि बोले-
“हे परमपिता! मैंने इसका पालन पोषण एक पिता की तरह किया है तो इसे अपनी भार्या के रूप में कैसे स्वीकार कर सकता हूँ?” सुनकर ब्रह्मा जी बोले-
“हे गौतम! अच्छा पति वही बन सकता है जो अपनी भार्या का पिता की तरह पोषण करे, साथी की तरह प्रेम करे तथा पुत्र की तरह अपनत्व रखे। अतः तुम ही इसके लिए सर्वोत्तम वर हो सकते हो।” देवराज इंद्र ने इसका विरोध किया तो ब्रह्मा जी ने एक युक्ति निकाली क्योंकि अनेक देवता, यक्ष, गन्धर्व, दैत्य आदि अहिल्या को भार्या-रूप में प्राप्त करना चाहते थे इसलिए ब्रह्मा जी ने सभी से कहा कि जो सबसे पहले पृथ्वी की दो बार परिक्रमा करके आयेगा, उसी को अहिल्या दी जायेगी। सब देवता आदि परिक्रमा के लिए चले गये।
देवराज इंद्र ने अपनी शक्तियों के प्रयोग से सबसे पहले पृथ्वी की दो बार परिक्रमा करके ब्रह्मा जी के समक्ष उपस्थित हो गये और अहिल्या को माँगा तो देव ऋषि नारद ने कहा-
“देवराज! इतनी भी क्या शीघ्रता है, पहले गौतम ऋषि को तो आ जाने दें।” जिसे सुनकर इंद्र बोले-
“परमपिता ब्रह्मा जी के कथनानुसार जो सबसे पहले पृथ्वी की दो परिक्रमा करेगा उसी को अहिल्या प्राप्त होगी और मैंने सबसे पहले पृथ्वी की दो परिक्रमा की हैं अतः अहिल्या मुझे प्राप्त होनी चाहिए।” इतने में वहाँ गौतम ऋषि भी आ गये जिन्हें देखते ही नारद जी बोले-
“गौतम ने देवराज इंद्र के पृथ्वी की दो परिक्रमा करने के पहले ही अर्धप्रसूता कामधेनु की दो प्रदक्षिणाएँ कीं। उसका महत्त्व सात द्वीपों से युक्त पृथ्वी की प्रदक्षिणा के समान ही माना जाता है अतः इस प्रतिस्पर्धा में गौतम ऋषि ही प्रथम हैं, इसे सुनकर ब्रह्मा जी ने अहिल्या से गौतम का विवाह कर दिया।
पतिव्रता अहिल्या अपने पति गौतम ऋषि के साथ ही तप किया करती थी। दोनों में अपार प्रेम और स्नेह था पर देवराज इंद्र अहिल्या के रूप तथा यौवन पर मंत्रमुग्ध थे। वो किसी भी प्रकार से उसे अपनाना चाहते थे। ब्रह्मा जी के निर्णय को मानकर उन्होंने स्वयं पर नियंत्रण रखा पर हमेशा ही इस अवसर की तलाश में रहते थे जिससे वो अहिल्या को अपना बना सकें।
देवी अहिल्या ही एक मात्र नारी हैं जो सतियों तथा पंचकन्याओं दोनों रूपों में पूज्यनीय मानी गई हैं। पंचकन्या वो पाँच नारिया है जिन्हें चिर कुमारी अथवा चिर कौमार्य का वर प्राप्त था तथा जो एक के अधिक पुरूषों के साथ संबंध स्थापित करने के बाद भी परम पूज्यनीय मानी गईं। अहिल्या, तारा, द्रौपदी, कुन्ती और मंदोदरी सिर्फ पाँच नारियों को ही हमेशा कन्या के रूप में ही माना गया है जबकि सतियाँ वो नारियाँ हैं जो अपने पति व्रत के कारण पूज्यनीय हुई जैसे सीता, सावित्री, अनुसुइया आदि। कुछ लोग कहते हैं कि कृष्ण की दूसरी पत्नि सदभामा को भी इंद्र की माँ ने चिर यौवन का वरदान दिया था परन्तु वो इन पंचकन्याओं में नहीं मानी जाती।
एक रात्रि को इंद्र ने मुर्गा बनकर बांग दी जिससे गौतम उठे और अपनी नित्य क्रिया एवं स्नान के लिए नदी की ओर जाने लगे तब उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र ने मुनिवेश में आकर अहिल्या से सम्भोग की इच्छा प्रकट की। अहिल्या यह जानकर कि इन्द्र स्वयं आए हैं और उसे चाहते हैं, इस अधम कार्य के लिए उद्यत हो गयी। जबकि कुछ विद्वानों का कहना है वो इंद्र को पहचान नहीं पाई थीं। जब गौतम ऋषि को आभास हुआ कि अभी भोर नहीं हुई तो वो वापस लौटकर आ गये और उन्होंने इन्द्र को अपने ही भेष में अहिल्या से सम्भोग करने के बाद वापस लौटकर जाते देख लिया। वो इंद्र को पहचान गये और उन्होंने श्राप दे दिया जिससे इन्द्र के अण्डकोश नष्ट हो गये तथा उनके शरीर में एक हजार योनियाँ बन गईं। उन्होने अहिल्या को भी श्राप दे दिया जिससे वो अपना शरीर त्याग, केवल हवा पीती हुई सब प्राणियों से अदृश्य होकर कई हजार वर्ष के लिए पत्थर शिला बनकर उसी आश्रम में राख के ढेर पर लेट गयी। गौतम ने कहा कि इस स्थिति से उसे मोक्ष तभी मिलेगा, जब दशरथ पुत्र राम यहाँ आकर उसका आतिथ्य ग्रहण करेंगे। इसके बाद गौतम स्वयं हिमालय के एक शिखर पर चले गये और तपस्या करने लगे।
इन्द्र ने स्वर्ग में पहुँचकर समस्त देवताओं को यह बात बतायी, साथ ही यह भी कहा कि ऐसा अधम काम करके गौतम को श्राप देने के लिए बाध्य कर, इन्द्र ने गौतम के तप को क्षीण कर दिया है। परन्तु स्वर्ग लोक के देवताओं तथा अपसराओं ने उनके शरीर पर उभरी ढेरों योनियों को देखकर उनका उपहास करना प्रारम्भ कर दिया जिससे दुखी होकर वो अज्ञात स्थान पर जाकर भगवान शिव की तपस्या करने लगे। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से खुश होकर उनके शरीर की एक हजार योनियों को आँखों में बदल दिया। तब से ही इंद्र को 1000 नेत्रों वाला भी कहा जाने लगा। क्योंकि इन्द्र का अण्डकोश भी नष्ट हो गया था इसलिए अतरू देवताओं ने मेष (भेड़ा) का अण्डकोश इन्द्र को प्रदान किया। तभी से इन्द्र को मेषवृण भी कहा जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि वृषहीन भेड़ा अर्पित करना फलदायी होता है।
इस कथा से कुछ मिलती जुलती कथा यूनानी मिथकों में भी प्राप्त होती है, जहाँ ज्यूस जो कि देवताओं का राजा है वोे एक तरह से इन्द्र के ही समान है, आलक्मीनी के पति का रूप धर कर छलपूर्वक उसके साथ संसर्ग करते हंै जिससे प्रसिद्ध कथापुरुष हर्क्युलिस का जन्म होता है। अहल्या की ही तरह इस ग्रीक कथा के दो वर्शन हैं जिनमें से एक के अनुसार अलक्मीनी ज्यूस के कपट को पहचानने के बावजूद उसके साथ संसर्ग करती है, जबकि दूसरे वर्शन के अनुसार वह निर्दोष है और प्रवंचना की शिकार है।
दोनों कथाओं में प्रमुख अंतर यह है कि अलक्मीनी के साथ संसर्ग द्वारा हरक्यूलीज जैसी संतान की उत्पत्ति के कारण से ज्यूस का कार्य न्यायोचित ठहराया जाता है और और अलक्मीनी पर भी कोई आरोप दुष्चरित्रा होने का नहीं लगता जबकि अहिल्या के कार्य को कामुक आचरण मानकर न केवल उसे इसके लिये गलत बताया गया बल्कि श्राप के रूप में सजा भी दी गई........#क्रमशः
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