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पंचकन्या - भाग 1 - मानस

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यूँ तो सनातन धर्म में नारी सर्वत्र पूज्यनीय मानी जाती है। कहा जाता है कि यदि किसी यज्ञ को जोड़े में न किया जाय तो वो पूर्ण नहीं माना जाता चाहे वो यज्ञ स्वयं परमपिता ब्रम्हा जी करें। इसी कारण ब्रम्हा जी को ब्रम्हाणी के श्राप को भी भोगना पड़ा। ब्रम्हाणी के श्राप के कारण ही पुष्कर के अतिरिक्त ब्रम्हा जी का कोई मन्दिर भी नहीं है
एक बार ब्रह्मा जी संसार की सुख और शांति के लिये यज्ञ करना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने पुष्कर की भूमि को चुना।

जब ब्रह्मा जी यज्ञ करने के लिए पुष्कर पहुंचे तो किसी कारण वश उनकी पत्नी सावित्री(ब्रम्हाणी) जी वहां समय पर नहीं पहुंच पाई। यज्ञ को पूर्ण करने के लिए उनके साथ उनकी पत्नी का होना आवश्यक था। यज्ञ का शुभ मुहूर्त बीत रहा था इसलिए सावित्री जी के समय पर नहीं पहुंचने से उन्होंने पास खड़ी गाय के मुख से एक कन्या को उत्पन्न किया। जिसका नाम गायत्री रखा। ब्रह्मा जी ने गायत्री से विवाह कर इस यज्ञ को प्रारंभ कर दिया।
जब सावित्री वहां पहुंची और ब्रह्मा जी के साथ अपने स्थान पर किसी अन्य को देखकर क्रोधित हो गयीं। उन्होंने क्रोध में आकर ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया।

उनके श्राप के प्रभाव से ब्रह्मा जी के समस्त मंदिर नष्ट हो गये किन्तु यज्ञ के प्रभाव से पुष्कर के उस स्थान को कोई छति नही पहुंची जिस स्थान पर यज्ञ किया जा रहा था। सावित्री ने ये भी कहा कि यदि पुष्कर के अतिरिक्त अन्य स्थान पर ब्रह्मा जी का किसी ने मंदिर बनाया तो उसका सर्वनाश हो जाएगा। इसीलिए कोई ब्रह्मा जी का मंदिर बनाने के लिए सोचता भी नही।

कहा जाता है कि ब्रह्मा की के यज्ञ में विष्णु जी ने सहायता की थी इसलिये सावित्री ने विष्णु जी को भी श्राप दे दिया कि उन्हें भी अपनी पत्नी के वियोग को भोगना पड़ेगा।

रामायण के अनुसार भी अश्वमेघ यज्ञ को सम्पन्न करने के लिए राम जी ने सीता जी की स्वर्ण मूर्ति के साथ यज्ञ पूर्ण किया था।

अहिल्या तारा द्रौपदी, कुंती और मंदोदरी।
पंचकन्या महारत्ने महापातक नाशनम।

अर्थात, अहिल्या, तारा, द्रौपदी, कुंती और मंदोदरी का नित्य प्रति नाम लेने मात्र से महापाप से भी मुक्ति मिल जाती है। सनातन के अनुसार इन सभी महिलाओं ने 1 से अधिक पुरुषों के साथ प्रणय किया फिर भी परम पूज्यनीय मानी जाती हैं। ये सभी महिलाएं कन्याओं के रूप में ही मानी गई हैं क्योंकि इन्हें चिर कुमारी (कौमार्य) का वरदान प्राप्त था।

पंचकन्या में प्रथम हैं "अहिल्या"। इनके बारे में लगभग सभी जानते हैं कि गौतम ऋषि की पत्नी, उनके श्राप से ही पत्थर की शिला बन गयी थीं, जिनका उद्धार त्रेतायुग में राम ने किया था।

भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार ज्ञान में अनुपम अहिल्या स्वर्गिक रूप-गुणों से संपन्न थीं। अतुलनीय सौंदर्य और सरलता से परिपूर्ण अहिल्या ब्रम्हा जी की मानस पुत्री थीं। उनके जन्म के उपरांत ब्रम्हा जी ने कन्या रूप में उन्हें ऋषि गौतम को पालन करने हेतु सौंप दिया। कुछ वर्षों के पश्चात जब ऋषि गौतम अहिल्या को लेकर ब्रम्हा जी के पास पहुँचे.......#क्रमशः

................#मानस

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