चांदनी की मां उसे खाली हाथ देख बोली " अरे तुम तो आइसक्रीम लेने गई थी। खाली हाथ ही आ गई और यह मुंह क्यों उतरा हुआ है तेरा!"
"बस कुछ नहीं मां, भीड़ ज्यादा थी वहां । वो आइसक्रीम नहीं मिली ना इसलिए मूड खराब हो गया। पता नहीं सभी लोगों को आइसक्रीम आज ही खानी थी क्या!
अरे इतनी बड़ी हो गई आइसक्रीम के लिए तेरी जीभ अभी भी उतने ही लप-लपाती है। कोई बात नहीं । अपना मूड सही कर और चल फेरों का समय हो गया।"
दोनों मां बेटी वहां पहुंच गई। उसकी मां तो बड़ी बूढ़ी औरतों के साथ बैठ शादी के गीत गाने लगी और वह अपनी सहेलियों के पास जाकर बैठ गई।
उसे देखते उसकी सहेली बोली "कहां थी अब तक और यह तेरा मुंह क्यों सूजा हुआ है । लगता है किसी ने छेड़ दिया है हमारी चांदनी को!"
"शामत आई है क्या किसी की, जो मुझे कुछ कह दे। "
अभी वह अपनी सहेलियों को बता रही थी कि उसकी नजर उसी आइसक्रीम वाले लड़के पर पड़ी। वह उसे ही देख रहा था। चांदनी को उसे देखते ही गुस्सा आ गया। उस लड़के ने दूर से ही माफी मांगने के अंदाज में अपने कान पकड़े।उसे अनदेखा कर चांदनी ने मुंह फेर लिया।
लेकिन मन उसका भी उधर ही अटका हुआ था। उसने कनखियों से देखा तो वह लड़का अभी भी उसकी ओर ही देख रहा था। हर बार उसे अपनी और देखते पा उसे झुंझलाहट होने लगी। यह तो पीछे ही पड़ गया है।
उसे बडबडाते देख उसकी सहेली बोली। "क्या हुआ क्यों अपने आप ही बोले जा रही है!"
"अरे देख ना ! कितनी देर से वह लड़का मेरी ओर ही देख रहा है। पागल हो गया है लगता!"
"पागल नहीं दीवाना हो गया है तेरा! " उसकी सहेली हंसते हुए बोली।
तभी वहां बैठी एक दो महिलाओं ने चांदनी से कहा 'बेटा जरा पानी वाले को कहो ,यहां पानी दे जाए।"
चांदनी वेटर को बुलाने गई तो वह लड़का भी उसके पीछे पीछे आ गया। उसे अपने पीछे आता देख एक बार तो चांदनी घबरा गई। फिर उसकी और आंखें दिखाते हुए बोली "क्या बात है! तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो ! वहां भी मैं जब से देख रही थी कि तुम मुझे ही घूर रहे थे। कहां की तमीज है यह !"
"जी आपको गलतफहमी हुई है। मैं आपको घूर नहीं रहा था। बस आपसे माफी मांगना चाहता था।"
"किस बात की माफी!"
"वो आइसक्रीम ! आप नाराज हो गई थी ना!"
"पहले तो बदतमीजी करो । फिर माफी का बहाना कर परेशान करो। खूब समझती हूं तुम जैसे लड़कों को मैं"
"आप गलत समझ रही हो! मैं वैसा लड़का नहीं हूं। मैं तो अपने दोस्त की गलती के लिए आपसे माफी मांगना चाहता हूं।" चांदनी का जवाब सुने बिना वह चला गया।
चांदनी को थोड़ा अपने आप पर भी गुस्सा आया। बिना सोचे समझे बेचारे को इतना डांट दिया।
वेटर को पानी के लिए बोल वो वापस आ गई।
अब उसकी नजरें बार-बार उसी लड़के को खोज रही थी लेकिन वह अब उसे कहीं नजर ना आया।
शादी की सभी रस्में निबटने के बाद विदाई की घड़ी आई। रश्मि व सभी परिजन उसे विदा करते हुए बहुत ही भावुक थे। रश्मि की मां के आंसू थम नहीं रहे थे । भाई व पिता के आंखों के कोर भी गीले हो गए थे।
वह भी तो रश्मि के गले मिल कितना रोई थी। लेकिन बरसों से चली आ रही रीत तो निभानी ही थी। सब ने अपनी लाडली को भावी सुखद जीवन के लिए खूब आशीर्वाद दे , अपने दिल को किसी तरह काबू में कर डोली में बिठा विदा किया।
विदाई के समय चांदनी को वह लड़का फिर नजर आया । इस बार उससे नजर मिलते ही ना जाने क्यों उसकी नजर अपने आप ही हया से झुक गई। उसने महसूस किया था कि उसकी नजरें उससे कुछ कहना चाहती है। लेकिन चाह कर भी दोनों एक दूसरे से कुछ कह ना पाए।
रश्मि की शादी को आज 4 दिन हो गए थे। रह-रहकर चांदनी को उस लड़के का ख्याल आ रहा था। जब से वह शादी से लौटी थी। खोई खोई सी रहने लगी थी। लगता था कि शरीर ही वापस आया है, मन तो उसके साथ ही चला गया। कितना भी अपने दिल को समझाने की कोशिश करती लेकिन खुद ही दिल के आगे हार जाती । पता नहीं वह भी मुझे याद करता होगा या मैं ही उसके लिए पागल हुए जा रही हूं। क्यों हरदम मुझे उसकी याद सताती है। थोड़ी ही देर में ऐसा मेरा उससे क्या रिश्ता बंध गया, कहीं मुझे उससे प्यार तो नहीं हो गया! क्या यही प्यार है!
वह अभी इसी उधेड़बुन में लगी थी कि उसकी मां उसके कमरे में आई और उसके सिर पर हाथ रखते हुए बोली " क्या बात है बिट्टू ! जब से तू शादी से आई है गुमसुम सी रहने लगी है। तबीयत ठीक है तेरी। किसी ने कुछ कहा है तो मुझे बता। हरदम चिड़िया की तरह चमकने वाली मेरी बिटिया रानी के चेहरे पर ऐसी चुप्पी हमें अच्छी नहीं लगती! तेरा भाई तो वैसे ही अपनी दुनिया में रहता है और तू भी ऐसे गुमसुम रहेगी तो कैसे काम चलेगा!"
"अरे मां आप परेशान मत हो। मैं ठीक हूं। तुझे तो पता है ना रश्मि मेरी बचपन की सहेली थी। अपना हर सुख-दुख साझा करते थे हम। अब किससे अपने मन की बात करूंगी। बस यही सोच सोच कर मन उदास हो रहा था। याद बहुत आ रही थी उसकी!"
"अरे बस इतनी सी बात! तू मुझे बना ले अपनी सहेली। वैसे भी कहते हैं मां और बेटी एक दूसरे की सबसे अच्छी सहेली होती है। एक दिन तू भी इस बात को समझ जाएगी और पगली बेटियों को तो एक न एक दिन दूसरे घर जाना ही होता है। आज रश्मि गई है कल तेरी बारी होगी। चाह कर भी मां बाप बेटियों को नहीं रख पाते!" कहते कहते चांदनी की मां का गला भर आया।
"मैं नहीं जाऊंगी आपको छोड़कर! आपके साथ ही रहूंगी आपकी सहेली बनकर। समझी!"
"ना मेरी बेटी ऐसा नहीं कहते। मेरा तो बड़ा सपना है कि तेरे लिए एक सुंदर सा राजकुमार मिले। जो मेरी बेटी को दुनिया के हर सुख दे। मेरी बेटी को रानी बनाकर रखें। बेटी की शादी हर मां बाप का एक सपना होती है। तू मेरा और अपने पापा का सपना पूरा नहीं करेगी क्या! बड़े अरमान थे उनके कि तुझे अपने हाथों से डोली में बिठा विदा करें। अब वो तो नहीं है इसलिए मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। पर देखना तेरे पापा को मैं शिकायत का मौका नहीं दूंगी। हीरे जैसा दामाद ढूंढूगी अपनी बेटी के लिए!"
"मां आप भी ना। कोई बात भी हो उसने मेरी शादी की बात जरूर डाल दोगी। जा रही हूं मैं दादी के पास।"
क्रमशः
सरोज ✍️