अणु और मनु - भाग-19 Anil Sainger द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अणु और मनु - भाग-19

मैं बचपन से ही माँ-बाप के झगड़े देखता आ रहा था | जब बड़ा हुआ तो समझ में आने लगा कि वह लगभग हर रोज एक ही बात पर झगड़ते थे और वह था पैसा और सिर्फ पैसा | आठ साल की उम्र में मुझे यह तो समझ में आता था कि पैसा क्या होता है लेकिन यह समझ में नहीं आता था कि ये दोनों पैसे के लिए लड़ते क्यों हैं ? माँ हमेशा रोते हुए यही कहती थी कि मेरे माँ-बाप ने तो मेरी जिन्दगी ही बर्बाद कर दी तुम से शादी करा कर | पापा इस बात पर हमेशा गुस्से में कहा करते थे कि जब तुम्हें इतनी पैसे की भूख है तो छोड़ दे मुझे | मैं राजी हूँ तलाक देने के लिए | इस पर माँ और भी आग-बबूला हो जाती थी और जो भी सामान सामने पड़ा होता था गुस्से में फैंक दिया करती थी | उसका यह व्यवहार देख पापा कमरे का दरवाजा खोल बाहर निकल जाते थे | माँ कमरे से ही चिल्लाती रहती थी ‘जाओ अब अपनी माँ के पल्लू में जा कर बैठ जाओ | मेरी जिन्दगी इन माँ-बेटों ने नर्क बना कर रख दी है| उन दोनों की आपस में लड़ाई होती थी तो माँ अपना गुस्सा मुझ पर और दादी पर निकालती थी लेकिन पापा ने कभी ऐसा नहीं किया | उन्होंने हमेशा मुझे सिर्फ और सिर्फ प्यार ही दिया |

धीरे-धीरे मेरे माँ-बाप के झगड़े बंद हो गए | अब माँ खुश रहा करती थी | पापा जिस दिन भी घर देर से लुढ़कते हुए आते थे तो माँ को अपनी जेब से बहुत पैसे निकाल कर दिया करते थे | माँ नोटों को गिनने में मशगूल हो जाती थी और पापा वहीं बिस्तर पर लुढ़क कर सो जाते थे | माँ, पापा के बड़े प्यार से जूते उतार कर उन्हें ठीक से सुला दिया करती थी | अब वह हर समय ख़ुशी में गुनगुनाती घूमा करती थी | मुझे यह देख कर बहुत ही अच्छा लगता था | माँ-पापा मुझे कभी-कभी घुमाने भी ले जाया करते | पापा जब भी नशे में नहीं होते तो मुझे बाजार घुमाने ले जाया करते थे और महंगे से महंगे खिलौने भी ला कर दिया करते थे | हाँ दादी जो पहले बहुत खुश रहा करती थी | अब हर समय गुस्से में कुछ-कुछ बोलती रहती थी | मैं जब भी माँ से पूछा करता था कि दादी क्या बोलती रहती है तो माँ हँस कर कहती थी बेटा दादी बूढ़ी हो गई है इसलिए उनका दिमाग चल गया है | उनसे हम लोगों की ख़ुशी देखी नहीं जाती है | बोल बेटा तू खुश है न, देख मैं भी खुश रहती हूँ और अब मेरी लड़ाई भी तेरे पापा से नहीं होती है | जब मैं ‘हाँ’ में सिर हिलाता था तो माँ मुझे अपनी गोद में बिठा कर चूम कर कहती थी कि बोल ‘अब है न दादी का दिमाग खराब कि नहीं’ | मैं बिना सोचे-समझे ‘हाँ’ में सिर हिला दिया करता था | उस उम्र में मुझे क्या पता था कि कौन ठीक है और कौन गलत है | मुझे तो बस यही ठीक लगता था कि मेरे माँ-बाप में अब कोई लड़ाई नहीं होती और मुझे भी अच्छे से अच्छे खिलौने और घूमने के लिए बढ़िया-सी साईकिल मिल गई थी | गली के सब बच्चे मेरे आगे-पीछे घूमा करते थे | मेरे हिसाब से तो सब कुछ बहुत ही अच्छा चल रहा था |

मैं जब लगभग बारह साल का था तो एक रात पापा की तबियत खराब हो गई | जब उनका दर्द असहनीय हो गया तो माँ पास-पड़ोस की मदद से उन्हें हॉस्पिटल ले गई | वह काफी दिन तक हॉस्पिटल में रहे | हॉस्पिटल से आने के बाद वह कभी भी ज्यादा दिन तक ठीक नहीं रहते थे | कुछ-कुछ दिन के बाद उन्हें हॉस्पिटल ले जाना पड़ता था | दिनों-दिन वह कमज़ोर होते जा रहे थे | माँ भी अब पहले की तरह नहीं दिखती थी | हर समय उसका चेहरा मुरझाया रहता था | अब माँ और दादी की अक्सर कहा-सुनी हो जाया करती थी और दादी हर छोटी बात पर रोने लगती थी | उनकी कहा-सुनी में एक दिन मुझे मालूम हुआ कि पापा को पेट का कैंसर हो गया है और वह ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रह पाएंगे | दादी हर लड़ाई में कहा करती थी कि तेरे पैसे के मोह ने मेरे बेटे को खा लिया है | देख ले जो उसने कमाया था अब उसी की बिमारी पर लग रहा है | जिस दिन सब पैसा खत्म हो जाएगा तो देख लेना उस दिन वह भी नहीं रहेगा |

माँ इस बात पर दादी को कोसती हुई घर से बाहर निकल जाया करती थी | मैं रात-रात भर रोया करता था कि मेरे पापा एक दिन मर जाएंगे | तब मैं सोचा करता था कि मरने के बाद क्या होता है | क्या फिर पापा बोलेंगे नहीं या फिर घर में नहीं रहेंगे या फिर कहीं चले जाएंगे | मैं पापा को जाने ही नहीं दूंगा तो वह कैसे मरने जाएंगे | मैं भी तो बीमार होता हूँ फिर ठीक हो जाता हूँ तो फिर मेरे पापा भी एक दिन ठीक हो जाएंगे | मेरे मन में जो भी प्रश्न उठते थे उसका जवाब देने के लिए घर में किसी के पास टाइम नहीं था | इस उम्र तक मैं घर से बाहर सिर्फ अपने खिलौने और साइकिल गली के दोस्तों को दिखाने और उन पर रौब मारने के लिए निकला करता था | उन सब का मेरे आगे-पीछे घूमना और बार-बार मेरे से हाथ जोड़ कर कहना कि हमें भी दिखाना अच्छा लगा करता था | लेकिन अब जब घर में कोई भी मुझ पर ध्यान नहीं देता था तो धीरे-धीरे मैं घर से बाहर जाने लगा | कई बार घर से स्कूल जाने की बजाय दोस्तों के साथ ही घूमा करता | माँ-दादी के लड़ाई-झगड़े और पापा की ख़ामोशी के कारण ही मेरी दोस्ती बढ़ने लगी | धीरे-धीरे वह बच्चे जिन्हें गली के लोग अच्छा नहीं कहते थे मैं उनकी तरफ और वह मेरी तरफ बढ़ने लगे | उनकी दोस्ती और प्यार देख कर मुझे अंदर ही अंदर लगा करता था कि आखिर इन्हें लोग बुरा क्यों कहते हैं | मुझे तो उन में कोई बुराई नहीं दिखती थी |

उन से दोस्ती कर मुझे बहुत कुछ पता लगा | जैसे जुआ और नशा क्या होता है | लड़का-लड़की में क्या फर्क होता है | किसी लड़की से प्यार करने में कैसा लगता है आदि आदि | एक दिन मैं अपने इन्हीं दोस्तों के साथ खेल रहा था तभी एक दोस्त ने आकर बताया कि मेरे पापा को अभी-अभी हॉस्पिटल से घर लाये हैं | और वह मर गये हैं | यह सुन मैं भागा-भागा घर गया तो घर में चीख-पुकार मची थी | सारा मुहल्ला मेरे घर के बाहर खड़ा था | मैंने आज तक टीवी और फिल्मों में ही देखा था कि मरने वाले को सफेद चादर में लपेटा जाता है | लेकिन आज मैं अपनी आँखों के सामने अपने पापा को उसी चादर में लिपटा देख रहा था | मेरी माँ और दादी उन्हें लिपट कर रोये जा रहीं थीं | मैं भाग कर माँ के पास बैठ गया | माँ और दादी मुझे देख कर और जोर से रोने लगीं | मेरी आँखों से न चाहते हुए भी आँसू निकलने लगे | तुम्हें सुन कर हैरानी जरूर होगी लेकिन ये सच कि मैंने अभी तक की जिन्दगी में पहली बार किसी को मरते देखा था | वो....वो.... मेरे पापा को कुछ देर बाद ही श्मशान घाट ले गए | मेरे लाख चिल्लाने के बावजूद भी उन्होंने मेरे पापा को जला दिया | मैं टीवी और फिल्मों में किसी को मरता देख रोने लगता था लेकिन ये आज मेरे सामने और मेरे ही साथ हो गया | मैं उस रात सो नहीं सका | असल में कहो तो मैं कई रात सो नहीं सका | दिन में भी जब मैं आँखें बंद करता था तो वही कुछ मेरे सामने दौड़ने लगता था | आज भी कभी अकेला होता हूँ तो मेरी आँखों के सामने वही नजारा दिखने लगता.......”, सिसक-सिसक कर यह सब बोलने के बाद मोहित फूट-फूट कर रोने लगता है |

गौरव अपनी आँखें पोंछता हुआ फ़ोन की रिकॉर्डिंग को बंद कर देता है | गौरव रुंधे गले से बोला “हॉस्पिटल में भर्ती हुए चार दिन हो गये थे और उस दिन उसकी हालत काफी ठीक लग रही थी | तब मैंने मौका देख उसे कहा कि भाई तेरी ऐसी हालत कैसे हो गई | तो वह मुस्कुराते हुए बोला इसके लिए तुम्हें मेरे बचपन में जाना होगा | यह कह कर वह सीधा लेट गया और आँख बंद कर मुझे यह सब सुनाने लगा | मैंने चुपचाप फ़ोन पर उसकी यह सब बातें रिकॉर्ड कर लीं | इसके बाद वह जोर-जोर से रोने लगा | मैंने उसे शांत करने की काफी कोशिश की लेकिन वह रोता ही जा रहा.....” |

रीना यह सुन अपने आँसू पोंछते हुए बोली “वह कितने दिन हॉस्पिटल में रहा” |

“वह लगभग बीस दिन हॉस्पिटल रहा | वह मुझे मिलने से पहले लगभग दो हफ्ते लगातार कई तरह के नशा करता रहा | जिसकी वजह से लीवर पर असर हो गया था” |

“इतना ज्यादा उसने नशा क्यों किया”, कुणाल रुंधे गले से बोला |

“मरने का डर | अपने आप पर पछतावा ही उसे और गिराता चला गया” |

रीना अपने बाल संवारती हुई बोली “और भी रिकॉर्डिंग है क्या”?

“हाँ एक और रिकॉर्डिंग भी है | वह तो और भी मर्म स्पर्शी है | वह सुनने के बाद आप लोगों को लगेगा कि अपराध करने के बाद एक अपराधी कैसे अपने आप से लड़ता है” |

गौरव आगे बोल पाता इससे पहले ही कुणाल बोला “मोहित और अपराधी”?

“हाँ नशा और पैसे का नशा होना भी तो एक अपराध ही है” |

“ये क्या बात हुई | भाई अपुन की समझ से तो बाहर है” |

गौरव गंभीर भाव से बोला “भाई मैं उसी की जुबानी तुम्हें सुनाता हूँ | लेकिन पहले ये बताओ कि किसी को कुछ खाना या पीना है”|

रीना बोली “हाँ | लेकिन गौरव तुम बैठो मैं सब के लिए कुछ ले कर आती हूँ”, कह कर रीना बेड पर से उठ कर तेज क़दमों से कमरे से बाहर निकल जाती है |

*

मोहित एक लम्बी साँस लेकर बोलने लगा “भाई तू सही कह रहा है | जब पापा की मृत्यु हुई तो मैं उस समय नवीं कक्षा में पढ़ रहा था | एग्जाम में कुछ ही महीने बाकी थे | पापा के जाने के बाद का एक महिना कैसे गुजरा मैं और मेरा परिवार ही जानता है | वह एक महिना साल से कम नहीं था | कभी सुबह का नाश्ता तो कभी रात का खाना नहीं बनता था | दादी की आँखें लगभग हर समय ही नम रहती थीं | माँ कुछ भी बोलती नहीं थी या तो लेटी रहती थी या फिर शून्य में देखती रहती थी | माँ का ऐसा शांत स्वभाव मैंने पहले कभी नहीं देखा था | पापा की तेरहवीं के बाद से वह पापा के ऑफिस के चक्कर लगाने लगीं और मैंने स्कूल जाना शुरू कर दिया | लेकिन घर में आने के बाद वह आत्मा को तड़फा देने वाली शान्ति रात को भी कई बार नींद से जगा देती थी | रात में मैं जब भी डर कर उठता था तो ज्यादात्तर माँ को कमरे की खिड़की के पास ही खड़ा पाता था | हम तीनों रात को ठीक से सो नहीं पाते थे लेकिन कोई किसी को कुछ नहीं कहता था |

पापा के ऑफिस से पैसे मिले तो धीरे-धीरे सब कुछ समान्य होने लगा | कब एक साल बीत गया पता ही नहीं चला | माँ ने कभी पापा की कमी महसूस नहीं होने दी | मैं जब भी घर आता तो वह हमेशा मुझे गेट पर इन्तजार करते हुए ही मिलतीं | वह मेरे स्कूल से आने से लेकर सोने तक मेरे पास साए की तरह रहती थीं | मेरी दोस्ती जिन भी दोस्तों के साथ थी माँ के प्यार और दुलार के कारण छूट गई थी | मैं प्यार का भूखा था और माँ ने मुझे वह सब कुछ दिया जिसकी मुझे तलाश थी | सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था |

एक दिन जब मैं स्कूल से घर आया तो माँ ने खुश होते हुए बताया कि उनकी नौकरी लग गई है | अब वह भी पापा की तरह पुलिस में काम करेंगी | दादी भी काफी खुश थी | माँ खुश हो कर बोलीं ‘बेटा अब हमारे गरीबी के दिन बीत गये | अब मैं भी तुम्हें पापा की तरह नए से नए खिलौने ला कर दिया करुँगी’ | मैं यह बात सुन कर बहुत खुश था कि अब मैं फिर से अपने पास-पड़ोस और स्कूल के बच्चों पर रौब मार सकूंगा | माँ की नौकरी लगते ही फिर से सब कुछ बहुत तेजी से बदलने लगा था |

लगभग तीन साल की नौकरी के बाद माँ में धीरे-धीरे एक अजीब-सा बदलाव आने लगा था | उनका मेरे या घर के प्रति लगाव लगभग खत्म हो गया था | वह जब भी देर से घर आती तो कोई न कोई उन्हें गाड़ी से छोड़ कर जाया करता था | घर आने पर उनका व्यवहार मेरे और दादी के साथ बहुत अजीब होता था | ऐसा लगता था जैसे वह भी अब नशा करने लगीं थीं | लेकिन उनके पास से किसी भी तरह की कोई बदबू नहीं आती थी | वह छुट्टी वाले दिन भी घर पर नहीं रहती थीं | जब भी मैं या दादी पूछती तो यही कहती थीं कि उनकी ड्यूटी जिस जगह लगी है वहाँ बहुत काम है और आने-जाने का भी कोई समय नहीं है | माँ अपने में मस्त थी और दादी घर के काम में व्यस्त थी | एक बार मैं फिर से अकेला हो गया था | मैं जब भी घर में होता था तो ऐसे लगता था जैसे मैं किसी जेल में हूँ | जहाँ चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ सन्नाटा पसरा हुआ है | घर में मेरा दम घुटता था | धीरे-धीरे मेरा झुकाव उन्हीं दोस्तों की तरफ फिर से बढ़ने लगा | इस बार दोस्ती बहुत तेजी से और गहरी होती जा रही थी | तुम यह भी कह सकते हो कि मैं डूबता जा रहा था और बचाने वाला भी कोई आस-पास नहीं था |

मैं १२वीं कक्षा में पहुँच चुका था | उम्र बढ़ रही थी या यूँ कहो तो दोस्तों के कारण मुझे सब समझ में आने लगा था | माँ पैसे की चमक के कारण या फिर अकेलेपन के कारण भटकती जा रही थी | वह अब ड्रग्स भी लेने लगी थी | यह मुझे तब पता लगा जब एक दिन मैंने उनकी दराज से एक पुड़िया निकाली और अपने दोस्तों को दिखाई | उन में से एक ने बताया कि ये बहुत महंगी दवा है और इसमें बहुत जबर्दस्त नशा होता है | हम सब उसकी बात को मानने को तैयार नहीं थे तो उसी ने कहा कि चलो फिर आज तुम्हें इसका नशा दिखाता हूँ | हम सब ने मिलकर एक सुर में उसका ‘हाँ’ बोला | वह एक अलग ही तरह का नशा था | वह दारु के नशे से कहीं अलग था | ऐसा लग रहा था कि हम किसी और ही दुनिया में पहुँच गये हैं | हम दोस्तों ने उस दिन से उस दवा की खोजबीन शुरू की और खोजबीन करते-करते कब हम फिसलते हुए दलदल में फंसते चले गये उसका एहसास आज हो रहा है |

बचपन के दोस्त या स्कूल के, बिलकुल अलग होते हैं | स्कूल तक की गई मौज-मस्ती एक अलग ही तरह की होती है और वह जिन्दगी भर याद रहती है | लेकिन हमारी दोस्ती तो नशे का सामान और नशा करने के लिए जगह ढूंढने में ही निकल गई | मेरे साथ के सब दोस्त फ़ैल हो गये थे | स्कूल के लगभग सारे अध्यापकों को शक था कि मैं कोई नशा करता हूँ लेकिन कभी कोई पकड़ नहीं पाया | सब अध्यापक मुझे हमेशा समझाते रहते थे कि मेरा दिमाग बहुत अच्छा है इसलिए सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो | एक दिन तुम बहुत बड़े आदमी बन सकते हो | शुरू से ही होता आ रहा था कि मैं पढ़ाई कम करूँ या ज्यादा लेकिन नंबर हमेशा बहुत अच्छे ही आते थे | ऐसा ही १२वीं में भी हुआ | मैं स्कूल में पहले नंबर पर आया था | प्रिंसिपल साहिब ने अपने कमरे में बुला कर बोले ‘मोहित बेटा मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि तुम्हारे इतने अच्छे नंबर आयें हैं | बेटा हम सब को ये तो नहीं मालूम की तुम क्या करते हो लेकिन तुम जो कोई भी गलत काम कर रहे हो | उसे बेटा छोड़ दो | तुम्हारा दिमाग बहुत अच्छा है | इसे सही जगह लगाओ | बेटा मेरी राय में तो तुम्हें दिल्ली जा कर अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेना चाहिए | मेरे एक जानकार दिल्ली में रहते हैं | तुम वहाँ जा कर उनसे मिल लेना | उनका बेटा भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ता है वह तुम्हें सब समझा देगा’ | यह कह कर उन्होंने मुझे स्कूल की तरफ़ से और अपनी तरफ़ से कई तोहफ़े दिए | मैं ये सोच कर खुश नहीं था कि मेरे अच्छे नंबर आए हैं बल्कि इसलिए खुश था कि मैं दिल्ली में अकेला रह कर खूब मौज-मस्ती कर सकता हूँ |

स्कूल में पैसे और अक्ल की कमी की वजह से नशा कभी-कभार ही हो पाता था जोकि दिल्ली में आ कर बिना रोक-टोक के चलने लगा | माँ से जितना पैसा मांगो मिल जाता था इसलिए किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं थी | पता नहीं क्यों धीरे-धीरे मुझे भी माँ की तरह पैसा कमाने की सोच परेशान करने लगी | यहाँ से ही दलदल के ऐसे जंगल की शुरुआत हुई जो सिर्फ मौत पर ही खत्म होता है | मैंने पैसे कमाने के चक्कर में मर्डर को छोड़ कर सब तरह के काम किये | पैसे भी कमाए और उन पैसों से हर तरह की ऐश भी की |

दिल्ली तो फिर दिल्ली ही है | यहाँ की शान-शौकत और कॉलेज की चहल-पहल में कब पहला साल निकल गया पता ही नहीं लगा | दूसरे साल में जब तुम लोगों से मेरी दोस्ती हुई और धीरे-धीरे गहराने लगी तो कहीं दिल में हलचल होनी शुरू हुई | जिन्दगी में पहली बार एहसास हुआ कि अच्छे और सच्चे दोस्तों की दोस्ती कैसी होती है | सिम्मी से वह प्यार और दुलार मिला जिसकी तलाश मुझे बचपन से थी | गौरव भाई तू तो मेरे सपने में भी आकर मुझे समझाता था कि यह सब छोड़ दे |

तुम लोगों के साथ रहते-रहते मुझे अपने कर्मों पर गुस्सा आने लगा था | क्योंकि मैं जब भी अकेला होता था तो हमेशा मुझे महसूस होता था कि मैं तुम लोगों की दोस्ती के लायक नहीं हूँ | यहाँ से मेरे अंदर का मरा हुआ इंसान फिर से जिन्दा हो कर साँस लेने लगा था | मैं जितना तुम लोगों को कहता था कि मैं कोई गलत काम या नशा नहीं कर रहा हूँ उतना ही घर में अकेले होने पर अपने आप को कोसता था | कॉलेज के तीसरे साल में मेरे अंदर और बाहर की जद्दोजहद अपनी चरम सीमा पर थी |

एक तरफ तुम लोगों का मुझ से प्यार करना अच्छी बातें बताना और सिखाना | दूसरी तरफ सिम्मी का मुझ से आशिकी करना और उसके लिए अपना सब कुछ समर्पित करने पर उतारू रहना | तीसरी तरफ ड्रग्स के धंधे में अचानक सब कुछ बदलने लगा था | बॉस, काम करने वालों से लेकर माल लेने-देने का तरीका सब कुछ बदल रहा था | पैसा और भरोसा पहले से कहीं ज्यादा मिलने लगा था | यह सब मुझे नशे की ओर तेजी से ले जा रहे थे | रात को मुझे तुम सब का चेहरा और अपनी उकात दिखती थी | इससे बचने के लिए मैं रात को अक्सर ही नशा करने लगा | जिस दिन नहीं करता था उस दिन तुम सब की प्यारी-प्यारी बातें मुझे रात भर सोने नहीं देती थीं | मुझे महसूस होने लगा था कि मैं तुम लोगों से और सिम्मी से प्यार करने लगा हूँ लेकिन फिर दूसरे ही पल यह सोच आती थी कि मैं तुम लोगों के काबिल नहीं हूँ | अब जब मेरे पास सब कुछ तुम लोगों के रूप में था तो मैं ही भटकते हुए आगे निकलता जा रहा था |

आज महसूस हो रहा है कि जल्द पैसा कमाने का नशा किसी भी नशे से कम नहीं है | सब नशों से आपको छुटकारा मिल सकता है लेकिन इस नशे से छुटकारा नहीं मिलता | पैसे का नशा एक दिन वहाँ पहुँचा देता है जहाँ से कोई वापसी का रास्ता नहीं रह जाता | जब मौत आपको सामने दिखने लगती है तब आपको एहसास होता है कि इस नशे के चक्कर में आपने क्या खोया और पाया क्या वह पैसा जो आपके साथ नहीं जा सकता |

आज मुझे महसूस हो रहा है कि मैं घर से बाहर प्यार की खोज में निकला था | मुझे क्या मिला | प्यार घर से बाहर मिल ही नहीं सकता | अपने जो अपनों के लिए कर सकते हैं वो कोई और दूसरा कर ही नहीं सकता | लाख में कोई एक होगा जिसे सच्चे और अच्छे दोस्त मिलते हैं | बाकी सब को तो सिर्फ भटकाने वाले ही मिलते हैं | मैं यह भी मानता हूँ कि मैं ही भटकते हुए खोखले नशे को पहले-पहल प्यार समझा और फिर पैसे कमाने के नशे को प्यार समझ कर भटकता ही चला गया | आज......समझ में आया कि अगर मुझे माँ-बाप ने अपने लड़ाई-झगड़े से ऊपर उठ कर प्यार दिया होता तो शायद मैं जो आज हूँ वह न होता | मेरी माँ ने अपनी इच्छाओं से ऊपर उठ कर मुझे अपनाया होता हो शायद मैं भी तेरे जैसा होता | आज के माँ-बाप को अपने से या अपनी इच्छाओं से फुर्सत नहीं है तभी तो मेरे जैसे कितने ही मोहित नशे को अपना रहे हैं | वह अपने बच्चों को प्यार और उनकी भटकन में भी अगर उनका साथ दें तो कोई मोहित इस ओर नहीं आना........’,कह कर मोहित फूट-फूट कर रोने लगता है |

गौरव रिकॉर्डिंग बंद कर भर्राई आवाज में बोला “मोहित ने हमें कभी एहसास ही नहीं होने दिया कि वह प्यार और अपनेपन के लिए इस कद्र तड़फ रहा था | उसने कभी नहीं बताया कि वह भटक कर इस दलदल में फंस चुका है | मुझे अंदाजा तो था लेकिन वह इस गहराई तक धंस चुका है यह मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था” |

रीना अपने आँसू पोंछते हुए बोली “हाँ यह बात तो है | असल में तो मोहित को खुद ही पता नहीं लगा कि वह कहाँ पहुँच गया है | ये एहसास तो उसे तब हुआ जब सब दरवाजे बंद हो गये थे” | कुणाल यह सब सुनने के बाद नम आँखों से गौरव और रीना को देखते हुए सोच रहा था कि मेरे माँ-बाप का भी तो लगभग यही हाल है | यह तो ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि उसे ऐसे दोस्त नहीं मिले | वह भी तो प्यार की तलाश में हर किसी लड़की पर मोहित हो जाया करता था | वह एक प्यार के बोल सुनने को ही तो तरसता था | ये तो ईश्वर की कृपा है कि उसे कॉलेज में इतने अच्छे दोस्त मिले जो उसे हर कदम पर सही रास्ता दिखा दिया करते थे | वरना हो सकता है आज उसका भी मोहित जैसा ही हाल होता | रीना की आवाज सुन वह अपनी सोच से बाहर आता है |

“ये सब तो उसकी जुबानी सुना | लेकिन इसके बाद उसका क्या हुआ” |

गौरव लम्बी साँस लेते हुए बोला “होना क्या था | वही हुआ जो ऐसे भटके हुए इंसान का होता है | पुलिस और अप्पा की मदद से मोहित सरकारी गवाह बना गया | उसकी निशानदेही पर ही पुलिस ड्रग्स माफ़िया का न सिर्फ दिल्ली बल्कि दूसरे राज्यों से सफाया करने में सफल हो पाई | बहुत लोग इसमें लिप्त थे | बड़े-बड़े राजनेता, कुछ पुलिसकर्मी और कई नामी-गरामी लोग आज पुलिस के शिकंजे में हैं | पुलिस और सरकार के इतने बड़े कदम से आतंकवाद की कमर टूट गई है | उसे फिर से पनपने में अभी कुछ समय जरूर लगेगा | लेकिन फिर से ड्रग्स और आतंकवाद अपना सिर जरूर उठाएगा | और ऐसा तब तक होता रहेगा जब तक मोहित जैसे पैसे और प्यार के चक्कर में भटकते रहेंगे | मोहित की कहानी से यह तो साफ़ जाहिर होता है कि ऐसे धंधे सिर्फ तभी पनपते हैं जब हम पारिवारिक, समाजिक या धार्मिक टूटन के शिकार हो कर इनके शिकंजे में जा फंसते हैं” |

कुणाल धीमी आवाज में बोला “मोहित की बात सुन कर तो लगता है कि वह भी सिम्मी से प्यार करता था लेकिन अपनी कमी के कारण कह नहीं पाया | उधर तुम लोगों ने सिम्मी का तो हाल देख ही लिया है | वह बोलती नहीं है लेकिन वह भी अभी तक उसे भूल नहीं पाई है” |

“भाई मैंने उसे यह कह कर एयरपोर्ट पर बुलाया है कि मैं मुम्बई जा रहा हूँ” |

रीना खुश होते हुए बोली “गौरव ये तो तुमने बहुत अच्छा किया है | वह दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं | मोहित को अगर सिम्मी का साथ मिल गया तो वह आगे आने वाली जिन्दगी में फिर कभी नहीं भटकेगा” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “हाँ बस यही सोच कर झूठ बोला है | देखो वह आती है या नहीं” ?

कुणाल तेज आवाज में बोला “अरे कैसे नहीं आएगी | तुम देख लेना वह जरूर आएगी” |

गौरव उठते हुए बोला “अच्छी बात है | उसे आना ही चाहिए | खैर, चलो उठो समय हो गया है एयरपोर्ट चलने का” | गौरव की बात सुन कर रीना और कुणाल दोनों उठ कर खड़े हो जाते हैं |

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