vida raat - 4 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

विदा रात(भाग 4 अन्तिम)

"यह इल्ज़ाम नही हकीकत है,"बरखा बोली,"तुमने धारीरिक कमी को दूर करने के लिए शराब का सहारा लिया।शराब तुम्हे पुरसार्थ प्रदान नही कर सकी।तब तुम मुझसे कतराने लगे।मुझ से दूर रहने का प्रयास करने लगे।मैं चाहतो तो उसी समय तलाक का निर्णय ले सकती थी।लेकिन ऐसा करना जल्दबाज़ी लगी।"
Shekhar
बरखा बोलते हुुुए रुकी। उसने देखा शेखर उसकी बाटे सुन रहा है।तब वह फिर बोली,"इसलिए तुमहारी नामर्दी का विश्वास होने पर भी मैने समझोता करने का प्रयास किया।तुुुम मुझसे दूूूर रहना चाहते थे लेकिन मै पास।मैैैने बेडरूम में पूरा सहयोग देन का प्रयास किया पर व्यर्थ।अब मैं तुुम्हारे साथ रहकर अपना जीवन तबाह नहीं करना चााहती।
शेखर समझता था,बरखा उसकी शारीरिक कमी के बारे में कुछ नही जानती।इसलिए उससे सत्य सुनकर ऐसा लगा।मानो उसे सरेआम नंगा कर दिया गया हो।बरखा ने तलाक देने का निर्णय कर लिया था।लेकिन पुरुष होने का अहम यह मानने के लिए तैयार नही था।औरत उसे त्याग दे।इसलिए वह बोला,"मात्र मेरी एक शारीरिक कमी के पीछे सारे ऐसो आराम क्यो ठुकरा रही हो।"
"औरत सिर्फ भौतिक सुख की ही भूखी नही होती।उसकी भी इच्छाये,शारीरिक ज़रूरत होती है।शादी सिर्फ मर्द औरत के साथ रहने का नाम नही है।शादी के बाद पत्नी के शरीर की भूख को शांत करना पति की ज़िम्मेदारी है,"बरखा बोली,"हर औरत की साध होती है,मातृत्व।माँ बनकर ही औरत पूर्णता प्राप्त करती है।पति अगर पत्नी की शारीरिक ज़रूरत को पूरा करने में सक्षम हो,तभी औरत की गोद भर्ती हैं।"
"मैं तुम्हारी बातो से सहमत हूँ।"शेखर ने बरखा की बात का समर्थन किया था।
"तो तुम मानते हो मेरी शारीरिक ज़रूरत पुरी नही कर सकते।"
बरखा की बात सुनकर शेखर बोला,"तलाक की जगह इस समस्या का हल ढूंढा जा सकता है।"
"और क्या हाल है?"
"तुम मेरी पत्नी रहते हुए अपनी शारीरिक इच्छा की पूर्ति के लिए पराये मर्द से संपर्क बना सकती हो।मुझे इस बात से कभी ऐतराज नही होगा।"
"तुमने मुझे क्या समझ रखा है।"शेखर का प्रस्ताव सुनकर वह उतेजित ही गई,"क्या मैं वेशया हूँ"?
"मेरी बात का गलत अर्थ लगा रही हो।मेरे कहने का यह मतलब नहीँ है।"
"फिर तुम कहना क्या चाहते हों?"
"मैं अपनी कमी जानता हूँ इसलिए ऐसा प्रस्ताव रखा है।अगर तुम मेरी पत्नी बनी रहो, तो मैं तुम्हे पराये मर्द से शारीरिक संबंध जोड़ने की छूट देने के लिये तैयार हूँ।"
"यह समझौता अगर मैं कर लूं,तो मेरे मे और वेशया में क्या अंतर रह जायेगा?सिर्फ इतना वह पेट की खातिर अपना तन बेचती है और में तन की प्यास बुझाने के लिए किसी की अंकशायिनी बनूँ,"बरखा बोली,"ऐसा करना अनैतिक है।अगर शारीरिक संबंध न हो,तो दुनिया दिखाने के लिए पति पत्नी बने रहना क्या उचित है?"
"मै अनैतिकता या ओचित्य की बात ही नही कर रहा।सिर्फ रास्ता सुझा रहा हूँ।"
"तुम्हारी पत्नी रहकर पर पुरुष का सहारा लेने का मतलब है।पाखंडी जीवन जीना।इस तरह के जीवन मे हमेशा भय बना रहता है।कंही किसी को अवैध संबंधों का किसी को पता तो नही चल गया।अगर किसी को पता चल गया तो लोग मुझे दोष देंगे।जिसकी वजह से मुझे मानसिक यातना पहुंचेगी झूठ के सहारे पाखंडी जीवन जीना मुझे पसंद नही,"शेखर के प्रस्ताव पर बरखा बोली,"मै सिर्फ एक कि होकर ही जीना चाहती हूँ।"
बरखा के दो टूक निर्णय को सुनकर उसके पास कहने के लिए कुछ नही रह गया था।
बैडरूम में मौन छा गया।

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