तीन औरतों का घर - 4 Rajni Gosain द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तीन औरतों का घर - 4

तीन औरतों का घर - भाग 4

दुनिया जहान की सारी दौलत साबिर के हाथों में थी! जब शफी ने हामिदा का खत साबिर के हाथ में पकड़ाया! कांपते हाथों से साबिर ने खत खोला!

खत भी जैसे हामिदा की लरजती आँखों ने लिखा हो! केवल एक लाइन ही लिखी थी लेकिन इश्क़े दास्ताँ पूरी कह दी हो!

साबिर

आपका पैगाम कबूल हैं!

तुम्हारे इन्तजार में

हामिदा

साबिर ने खत को चूम लिया! हामिदा का जवाब पढ़कर साबिर का दिल झूमने लगा था!

"भाईजान देखकर तो लग रहा हैं! जवाब ‘हाँ' में आया हैं! मेरे चिप्स....." शफी खुश होते हुए बोला! साबिर ने कुर्ते की जेब से सौ रूपए निकाले और शफी को पकड़ाते हुए बोला! "जा जी भरकर चिप्स कुरकुरे खा ले!" शफी ने पैसे पकडे और खुश होते हुए दुकान की और भागा!

शफी के जाते ही साबिर भी गीत गुनगुनाता हुए कपड़ों की कटिंग करने लगा! 'अम्मी को हामिदा के घर रिश्ते का पैगाम लेकर भेजने का समय आ गया हैं!' साबिर मन ही मन सोच रहा था!

साबिर का घर उसकी दुकान की ऊपरी मंजिल पर ही था! साबिर के अब्बु नहीं थे! परिवार के नाम पर उसकी अम्मी ही साथ में रहती थी! बड़ा भाई अपने बीवी बच्चों सहित शहर चला गया था! दो बहनो की शादी हो चुकी थी!

रात को खाने में आज अम्मी ने मटन बिरयानी बनाई! साबिर का खाने का मन नहीं कर रहा था! उसका दिल और दिमाग सिर्फ हामिदा और उसके निकाह के बारे में ही सोच रहा था! "क्यों रे, साबिर तेरी मनपसंद की बिरयानी बनायीं हैं और तू खा ही नहीं रहा?" साबिर को देखते हुए अम्मी बोली!

"अम्मी भूख नहीं हैं!"

"तेरी तबियत ठीक नहीं हैं क्या? जब से दुकान से आया हैं यूँ ही बुत बना बैठा हैं!"

"तबियत ठीक हैं, अम्मी बस एक बात हैं जो मैं आप से कहना चाहता हूँ!" हिम्मत करके साबिर बोला! वो ये बात भलीभांति जानता था उसकी अम्मी हामिदा की अम्मी और फूफी को बिलकुल पसंद नहीं करती!

"क्या बात हैं?"

"अम्मी, मैं हामिदा से निकाह करना चाहता हूँ! आप उसके घर मेरा रिश्ता लेकर जाओ!" साबिर एक ही सांस में सब कह गया!

"हामिदा कौन? वही जिसके आँगन में बड़ा सा नीम का पेड़ हैं और जिसकी अम्मी, फूफी पूरे मौहल्ले में अपनी लड़ाईयां और बदजुबानी के लिए जानी जाती हैं! किसी से सीधे मुँह बात तक नहीं करती! तुम्हें कोई और लड़की नहीं मिली! अरे, कोई अच्छा घर खानदान हो, तौर तरीका, तहजीब हो तो रिश्ते की बात भी करे! मैं तेरा रिश्ता हरगिज वहां नहीं करुँगी!" तमतमाते हुए अम्मी बोली!

"अम्मी वो लोग बहुत खुद्दार और तहजीब वाले हैं! वक्त की मार ने उन्हें जरूर बोल चाल में कठोर बना दिया हैं! बाकी उस घर में कोई ऐब नहीं हैं! मेरी दुकान में तो रोज ही उनका आना जाना होता हैं!"

" हाँ, आना जाना तो करेंगे ही, खाते पीते भले घर के लड़के को फसाना भी तो हैं! देख, साबिर तुझे निकाह करना हैं तो में तेरे लिए अच्छे घर की सुन्दर लड़की ढूंढ दूंगी!" अम्मी उसे समझाते हुए बोली!

"अम्मी मैं निकाह करूँगा तो सिर्फ हामिदा से, यह मेरा आखिरी फैसला हैं! अगर आप मेरा रिश्ता लेकर हामिदा के घर नहीं गई तो मैं खुद चला जाऊँगा!" दो टूक शब्दों में साबिर ने अपना फैसला सुना दिया!

बेटे की जिद के आगे आखिर अम्मी को झुकना ही पड़ा! बड़ा बेटा तो पहले ही परदेश में बस कर परदेशी हो गया था अब छोटे बेटे को भी वो खोना नहीं चाहती थी!

साबिर के लिए हामिदा का रिश्ता मांग तो लिया पर साबिर की अम्मी के मन में कड़वाहट अभी भी भरी थी! मन से वो बिलकुल नहीं चाहती थी! साबिर का निकाह हामिदा से हो! इसके उलट हामिदा के घर का माहौल बिल्कुल अलग था! उसकी अम्मी और फूफी को तनिक भी अनुमान नहीं था कि हामिदा के लिए साबिर के घर से रिश्ता आएगा! साबिर एक लायक लड़का था! फिर साबिर और हामिदा एक दूसरे को पसंद करते थे! हामिदा के इस रिश्ते से वो दोनों बहुत खुश थी!

आज हामिदा की सगाई हैं! हामिदा के घर रिश्तेदार आने लगे हैं! रिश्तेदारी ज्यादा नहीं थी बस दो चार ख़ास लोग ही थे जिन्हे बुलाया गया था! सुन्दर चमकीले गोटे से कढ़ा हुआ हामिदा का शादी का जोड़ा उसकी अम्मी और फूफी सबको ख़ुशी ख़ुशी दिखा रही थी! घर के आँगन में बड़े बड़े चूल्हे बनाकर उनपर पकवानो से भरे देग पतीले चढ़े थे! पूरा आँगन साबुत गर्म मसालों की खुशबु से महक रहा था! लड़के वाले हामिदा के घर पहुंच गए थे! मेहमानो का खुले दिल से स्वागत किया गया! पूरे रिश्तेदारों के बीच बस साबिर की अम्मी की ही आवाजे गूँज रही थी! अपने घर खानदान की बड़ाई और हामिदा के परिवार को कोसना! "अरे मेरे साबिर के लिए तो एक से एक रिश्ता आया था! माल मत्ता से लेकर दहेज़ में सारा घर का सामान दे रहे थे लेकिन साबिर को तो हामिदा पसंद आ गयी! अब जैसी अल्लाह की मर्जी साबिर इसी में खुश हैं तो कोई क्या कर सकता हैं! मेरे अरमान तो .....खैर छोडो अब क्या फायदा!" एक गहरी सांस छोड़ती हुई साबिर की अम्मी बोली!

साबिर की अम्मी का बार बार यूँ ताने उलहाने देना हामिदा की फूफी और अम्मी को कचोट गया! आखिर हामिदा की फूफी बोल पड़ी "इतना भी ना कोसो साबिर की अम्मी! हमारी चौखट पर तुम ही अपने लड़के का रिश्ता लेकर आयी थी! तुम्हारी चौखट पर हम नहीं आये थे!" हामिदा की फूफी की बात सुनकर साबिर की अम्मी भड़क गई!

"रिश्ता करने के लिए तुम्हारा ही खानदान रह गया था! साबिर ने मजबूर कर दिया! वर्ना मैं तो तुम्हारी चौखट पर थूकने भी नहीं आती! खाता पीता लड़का देखा और फंसा लिया"

हामिदा की फूफी यह बात सुनकर आप से बाहर हो गई ! "मुँह संभाल कर बात कर! हम भी कोई भूखे नहीं मर रहे!"

माचिस की तीली सी सुलगती बात आग का दरिया बन गई थी!

शोर सुनकर हामिदा भी कमरे से बाहर आ गई! साबिर भी जनानखाने में पहुँच चुका था! हामिदा की फूफी और साबिर की अम्मी में जूतम पैजार शुरू हो चुकी थी! सगाई का घर जंग का मैदान बन गया था! रिश्तेदारों ने किसी तरह बीच बचाव किया! साबिर को बिना सगाई किये घर वापस लौटना पड़ा!

क्रमश :