तीन औरतों का घर भाग - 5 Rajni Gosain द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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तीन औरतों का घर भाग - 5

तीन औरतों का घर भाग- 5

रात के दो पहर बीत चुके थे! दोनों घर में सन्नाटा पसरा था! हामिदा के घर से सभी रिश्तेदार जा चुके थे! सिर्फ मामू रुके थे! बरामदे में बैठी अम्मी फूफी और मामू के बीच गहन बातचीत चल रही थी!

"हामिदा के मामू तुमने पिछले दिनों एक रिश्ता भेजा था! लड़का कमाता खाता तो ठीक हैं! लेकिन सुना था पहली बीवी का इंतकाल हो गया! बाल बच्चो वाला हैं!"

"एक ही तो बच्ची हैं तीन एक साल की! उस लड़के की उम्र भी ज्यादा नहीं हैं! दिखने में इस साबिर से जरा भी कम नहीं हैं! मैंने तो देखभाल के ही रिश्ता भेजा था तुम लोगो ने ही हाँ न भरी थी! कहो तो फिर बात चलाऊँ!" हामिदा के मामू ने कहा!

"बात क्या चलानी हैं! हम सभी कल कासगंज चलते हैं! साबिर की अम्मी ने भरी बिरादरी में आज हमारी इज्जत उछाली हैं! हमें ऐसी वैसी औरत कहा हैं! हमारे पाक साफ़ दामन में दाग लगाने की कोशिश की हैं! और साबिर वो भी कुछ नहीं बोला! वो तो हमारी हामिदा को जानता हैं!" कहते हुए हामिदा की अम्मी की आँखे भर आई! दुपट्टे के कोने से हामिदा की अम्मी आँखों से गिरते गरम आंसुओं को पोछने लगी!

“दो दिन में हामिदा का निकाह कर दूंगी! साबिर की अम्मी समझती क्या हैं! हमारी हामिदा के लिए रिश्तों की कमी हैं!" हामिदा की फूफी बोली!

" वे लोग तो आज भी इस घर से रिश्ता जोड़ने के लिए तैयार हो जाएंगे!" मामू पान चबाते हुए बोले!

अंदर बावर्चीखाने में हामिदा चूल्हे के पास बैठी थी! दुःख तकलीफ में औरत का सबसे बड़ा साथी बावर्चीखाना ही होता हैं! जहाँ वह चूल्हे के जलते बुझते अंगारों के ताप के साथ चुपचाप बैठकर भीगी आँखों से अपने दुःख कम करने की कोशिश करती हैं! बरामदे से आती आवाजे हामिदा को भी सुनाई दे रही थी! उसकी आँखे रो रोकर सूज चुकी थी! आंसू भी सुख गए थे! हामिदा के जेहन में साबिर का ही ख्याल आ रहा था! तभी बावर्ची खाने की खिड़की से जो बाहर गली की तरफ खुलती थी किसी ने धीरे से पुकारा

"हामिदा"

हामिदा ने चौंक कर देखा वह खिड़की के पास गई तो देखा साबिर खड़ा था!

"तुम"

"हाँ, हामिदा चलो यहाँ से भाग चलते हैं! ये लोग अपने अपने गुमान में हमारा निकाह कभी नहीं होने देंगे! चलो वक्त बहुत कम हैं "

साबिर की बात सुनकर हामिदा एक दम बुत बनके खड़ी रही! बाहर बरामदे में अपनी अम्मी के कहे गए शब्द अभी भी हामिदा के कानो में गूँज रहे थे!

साबिर अपनी बात दोहराता रहा! हामिदा ने कोई जवाब नहीं दिया!

साबिर ने हामिदा के चेहरे की तरफ देखा बावर्चीखाने से आती लालटेन की पीली रोशनी में हामिदा का चेहरा बिल्कुल पत्थर लग रहा था!

आखिर हामिदा ने अपना जवाब सुना दिया "साबिर तुम सगाई के समय झगड़ा होने पर वापस क्यों चले गए! तुम कायर हो तुम पीठ दिखाकर चले गए! तुमने एक बार भी नहीं सोचा तुम्हारे इस तरह लौट जाने से मेरी कितनी बदनामी होगी! तुम तो मुझे चाहते थे! फिर ख़ामोशी से क्यों चले गए! मैं तुम्हारे साथ नहीं आउंगी!" कहते हुए हामिदा ने बावर्ची खाने की खिड़की बंद कर दी! साबिर कहता ही रह गया "हामिदा मेरी बात तो सुनो!

थके कदमो भारी मन से साबिर अपने घर की और लौट चला! उसके कानो में हामिदा के शब्द अभी भी गूंज रहे थे "तुम कायर हो तुम पीठ दिखाकर चले गए!"

अगली सुबह वे सभी लोग कासगंज चले गए! एक हफ्ते बाद हामिदा की अम्मी और फूफी कासगंज से वापस लौटे! हामिदा का निकाह हो गया था!

हामिदा के घर की पहचान अभी भी नीम का पेड़ हैं पर अब तीन औरतों की जगह मौहल्ले के लोग उस घर को दो बूढी औरतों का घर कहते हैं! साबिर की कपडे सिलने की दुकान अभी भी हैं! लेकिन किसी ने भी उस दिन के बाद से उसे हँसते हुए नहीं देखा! चार तह में मुड़ा हामिदा का खत वह रोज पढता हैं! फिरोजी रंग की हामिदा की चूड़ी अभी भी साबिर की दराज में रखी हैं! कभी शफी दुकान पर आता हैं तो साबिर न जाने क्या सोचकर उसे दस बीस रूपए चिप्स के लिए पकड़ा देता हैं! शफी भी चुपचाप पैसे पकड़ लेता हैं! लेकिन और दिनों की तरह वह पैसे लेकर ख़ुशी से दुकान की और नहीं भागता बल्कि थोड़ी देर तक वह साबिर की दुकान के आगे खड़ा रहता हैं! और मन ही मन न जाने क्या सोचता हैं!

क्रमश :