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बर्तन इफेक्ट ...(व्यंग्य)

लेखक:-डॉ.सुनील गुलाबसिंग जाधव,

नांदेड़, भारत

मो.९४०५३८४६७

सूर्य देवता की लोरी सुनकर बाबूराव बिस्तर पर घड़ी की तरह गोल घूमते हुए निंद्रा रस का पान करते सुहाने सपनों के जश्न में डूबे हुए थे कि अचानक किसी वस्तु की धड़ाम-धड़ाम, टन-टन की आवाज गूंज उठी | बाबुराव इस ध्वनि के कारण स्वप्न लोक से हडबडाकर जाग गये थे | जागकर जब वास्तविक जगत में प्रवेश किया तो पाया कि बर्तन गिरने की आवाजे आ रही हैं | अबतक घड़ी की तरह घूम-घूम कर सोनेवाले बाबूराव उसी अवस्था में दौड़कर बर्तन के आवाज की दिशा में दौड़ पड़े | देखते है तो क्या, घर की एक सुशील स्त्री बर्तन पटक रही हैं | बाबूराव की भांति घर में रहने वाला प्रत्येक-जीव-जंतु सभी सभा के रूप में इकट्ठा हो गये | किसी को कुछ पता नहीं चल रहा था कि यह बर्तन क्यों पटक रही हैं | कुछ समय तक बर्तन पटकने का तांडव चलता रहा | इस तांडव को देखकर घर की चार दिवारी भय से काँप उठी थी | तांडव इतना तीव्र था कि उसने चार दिवारी को लांघकर आस-पड़ोस को भी चपेटे में ले लिया था|

उस दिन सुशिल पत्नी का सहनशील पति चुप-चाप नहाय-धोय कर, निगलने के लिए जो मिला उसे गटककर अपने काम पर चला गया था | घर में सभा चकित थी कि बर्तन तांडव का क्या राज हैं | सभा में घहन चर्चा हुई | तर्क-कुतर्क लगायें गये | आखिर कारण क्या हैं ? घंटो तक प्रयास करने के बाद पता चला कि सुशिल स्त्री ने कोई व्रत धारण किया हुआ था | उसका यह व्रत महीने और पन्द्रह दिन में बर्तन तांडव का था | किसी लम्बे बाल वाले बाबा ने कहा था कि महीने-पन्द्रह दिन में एक बार यदि घर की सुशिल स्त्री बर्तन तांडव करेगी तो घर में सुख और शान्ति बने रहेगी | लक्ष्मी-सरस्वती, गँगा-जमुना सारी देवी-देवतायें वहाँ पर निवास करेंगी | यही कारण था कि सुशिल स्त्री ने बर्तन तांडव किया था | जब सारे घर में पता चल गया कि क्या कारण था तब सभी के मुख से उसकी तारीफों के लम्बे-चौड़े पुल बाँधे गये | वह घर-परिवार के साथ आस-पड़ोस आदर्श स्त्री के रूप में जानी जाने लगी थी | हर घर में एक ही चर्चा हो रही थी कि स्त्री हो तो सुशिल स्त्री जैसी | आस-पड़ोस में सुशिल स्त्री की तारीफ सुनकर अन्य सुशिल स्त्रियों में इर्षा और द्वेष की भावना निर्माण हो गई थी | सभी ने तय कर लिया था कि एक दिन वे भी सुशिल स्त्री की तरह बर्तन तांडव करके दिखायेंगी और अपना मान-सम्मान बढ़ायेगी |

सूर्य देवता की लोरी वाला दूसरा दिन था कि अचानक किचन से बर्तन गिरने की आवाज आयी | यह बर्तन घर की दूसरी सुशिल स्त्री पटक रही थी | सभी लोग सजग हुए पर सभा में उसका रूपांतरण नहीं हो पाया | सब ने अनुमान लगा लिया था कि लगता हैं, इसने भी बर्तन तांडववाला व्रत धारण कर लिया हैं, इसीलिए बर्तन पटक रही हैं | घर में बर्तन पटकने और उससे उत्पन्न होनेवाली मधुर ध्वनि से सारा घर प्रसन्न चित्त था | इस प्रसन्नता में और एक सदस्य ने अपना अमूल्य योगदान दे दिया था | घर के छह वर्ष के बालक ने अपने हिसाब से बर्तन उठाकर पटक दिया था | जब एक बार उसने बर्तन उठाकर पटक दिया किन्तु किसी ने सुना नहीं और कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, किसी ने प्रशंसा के पुल नहीं बांधे और ना ही किसी ने शाबाशी दी | इसे देखकर उसने बर्तन तबतक पटका जबतक घर के प्रत्येक सदस्य को नहीं लगा झटका | जब सबने बालक के इस शांति वाले कार्य को देखा तो गर्व से घर के सभी सदस्यों का सीना चौड़ा हो गया | घर में उसकी तारीफे होने लगी | इसे देखकर अन्य तीसरी सुशिल स्त्री की गोद में लेटा एक साल का बालक अपने नन्ने हाथों में कटोरी पकड़ कर अपने बड़े भाई को मानों कह रहा था कि, “भैया, मैं भी बड़ा होकर बर्तन पटकूंगा | अपने घर में और दुनिया में खूब नाम कमाऊँगा |” घर में अब सब खुश थे | बच्चों से लेकर बढो तक सबने इस बर्तन तांडव का हिस्सा बनना हर्ष से स्वीकार कर लिया था | घर के पति लोग तो सबसे अधिक खुश थे | जब वे काम पर जाते उससे पहले रोज घर की अगल-अलग स्त्रियाँ बर्तन पटक कर उनमें उत्साह का संचार कर रही थी | सभी पति अपने आप को भाग्यवान समझ रहे थे कि उन्होंने इतनी सुशिल पत्नी को पाया हैं | उनका बर्तन पटकना प्रार्थना स्थल पर की जानेवाली प्रार्थना और आरती के समान महसूस कर रहे थे | जिससे विश्व में सुख और शान्ति बनी रहती हैं | पति खुश होकर अपनी पत्नियों के लिए रोज फूलों का गजरा लाना नहीं भूलते थे |

बाबूराव को खोजी विद्या का ज्ञान प्राप्त था | वे अपनी विद्या का प्रयोग समय-समय पर किया करते थे | वैसे इस खोजी विद्या का ज्ञान भारत में बहुत पहले हो चूका था | जिसने ईतिहास को बदलके रख दिया था | आज भी भारत के प्रत्येक घर को यह विद्या धरोहर के रूप में प्राप्त हैं | एक दिन उन्होंने अपनी खोजी विद्या के आधार पर बर्तन तांडव के एक रहस्य का पर्दा फाश कर दिया था | उन्होंने पटके जानेवाले एक-एक बर्तन को बड़ी गौर से देखा था | प्रत्येक बर्तन जगह-जगह से घायल हो चुके थे | वे बेचारे अपना दर्द मूक रूप में सहे जा रहे थे | बाबूराव ने जब बर्तनों को घुमा-फिरा कर देखा तो पता चला की प्रत्येक बर्तन पर एक ही नाम अंकित था | वह था, घर की बहुओं के सास का | सास को अपनी विवाह में वे बर्तन दहेज और उपहार स्वरूप मिले हुए थे | बाबूराव ने बहुओं के सास के सामने इस रहस्य का पर्दा-फाश करना ही था कि बहुओं की सास को गुस्सा चढ़ गया | उन्होंने तुरंत घर में सभा बुलाई | घर में बहु-बेटे, पोते-पोती, पति सभी जीव-जंतु शामिल हो चुकी थे | कुछ देर सभा शांत रही | फिर बहुओं की सास से आवाज फूटी | “ तुम सभी मेरी बहु हो | आजकल बर्तन तांडव का व्रत धारण किया यह अच्छी बात हैं किन्तु मैंने देखा कि जो बर्तन तुम लोग पटक रहे हो, वे सारे बर्तन मेरे हैं |” सभी गौर से सुन रहे थे | सभा में अंत में तय किया गया कि बर्तन तांडव से बहुओं के सास को कोई आपत्ति नहीं हैं किन्तु वे बर्तन तांडव में सास के बर्तन स्तमाल न करें | उन्हें यदि बर्तन स्तमाल करना हैं, तो अपने नामवाले बर्तन ही स्तमाल करें | दूसरी बात तय हुई कि बर्तन तांडव सार्वजनिक स्थान पर या किचन में ना किया जाये | बल्कि अपने ही रूम में अपने ही नाम वाले बर्तनों का प्रयोग किया जाये | आखिर ना नुकुर करते-करते सभी में इस बात को लेकर उपरी तौर पर सम्मति हो ही गई |

घर की सुशिल स्त्री ने बर्तन ताण्डव को लेकर एक किताब भी लिख दी थी | जिसका नाम था ‘बर्तन ताण्डव कैसे करें ?’ | यह पुस्तक आनेवाली पीढ़ी के सामने आदर्श थी | पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई कि उसे राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया | यही कारण था कि गली-मोहल्ले में बर्तन ताण्डव को लेकर पाठशाला होनी चाहिए की माँग जोर पकड़ने लगी थी | इसका नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में गली-मौहल्ले के चुगल चौपाल पर बर्तन ताण्डव को लेकर पाठशालाओं का शुभारम्भ बड़े धूम-धड़ाके के साथ किया गया | पाठशाला की मुख्य दो कक्षायें थी | एक पुरुषों के लिए और दूसरा महिलाओं के लिए | महिलाओं की पाठशाला दुपहर में घर के सारे काम निपटाकर चला करती थी | तो वहीं पुरुषों की पाठशाला रात में आरम्भ होती थी | जिसमें सूर्य देवता की लोरी सुनकर सोनेवाले बाबूराव के साथ गली के प्रत्येक छोटे-बड़े विभिन्न रंगों वाले बाबुराव ने अपना एडमिशन पक्का कर किया था | दोनों ही कक्षा में ख़ुशी का माहौल था | महिलाओं की कक्षाओं के दो हिस्से बने थे | एक सुशिल बहु-बेटियों के लिए तो दूसरा बहु-बेटियों की सुशिल माँ और सास के लिए | बहु-बेटियों की कक्षा में माँ और सास की तारीफों के सी-लिंक ब्रिज बनायें जाते थे | तो वहीं माँ और सास की कक्षा में अपनी बहु-बेटियों की स्तुति-कथा का पाठ हुआ करता था | लेकिन बर्तन ताण्डव का एक ही पाठ्यक्रम था | बर्तन ताण्डव के पाठ्यक्रम में बर्तन के प्रकार, बर्तन की जाति, बर्तन का वर्ग, बर्तन का रंग, बर्तन का रूप, बर्तन का स्तर को सिखाते हुए,यह भी सिखाया जाता कि उसे अपने हाथ में कैसे पकड़ा जाये और उसे कब, कहाँ, किस वक्त, किसके सामने पटकना चाहिए, जिससे बर्तन ताण्डव करनेवाले का नाम रौशन हो सकता हैं | यहाँ बर्तन, बर्तन पटकनेवाला, बर्तन पटकने का स्थान इसे लेकर कक्षाओं में छात्रों द्वारा कई प्रश्न उपस्थित किये जाते और समाधान ना मिलने पर माँ और सासवाली पाठशाला से सम्पर्क किया जाता था |

पुरुषों की पाठशाला में लोरिवाले बाबूराव के साथ गली-मुहल्ले के प्रत्येक बाबूराव ने विद्रोह कि मधुर बंसी बजादी थी | बाबूराव का कहना था कि, “ मैं बर्तन ताण्डव का विरोध नहीं करता किन्तु सिर्फ बर्तन पटकने पर मेरी आपत्ति है | मेरा कहना है कि बर्तन पटकने के साथ हमें थाली, प्लेट, कटोरी, पेन, पेन्सिल, किताब, जूता, पानी, फाइल, पेपर-वेट, लकड़ी-डंडा, पत्थर आदि हमें पसंद आनेवाली प्रत्येक वस्तु पटकने की अनुमति मिलनी चाहिए | हमें अपनी छोटी सोंच को बदलना होगा | और बड़ा सोचना होगा | तब ही हम देश की प्रगति में अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं | देखते-देखते सबकी परीक्षायें सम्पन्न हो गई और दीक्षांत समारम्भ का समय आचुका था | इस समारोह में प्रमाण पत्र का वितरण बर्तन ताण्डव की लोकप्रिय सुशिल स्त्री के हाथों किया गया था | सभी सुशिल स्त्री के हाथों प्रमाण पत्र प्राप्त कर ख़ुशी से झूम उठे थे | सुशिल स्त्री ने प्रमुख अतिथि का वक्तव्य देते हुए कहा, “ मेरे बर्तन ताण्डव के भाइयों और बहनों, मेरा बर्तन नमस्कार स्वीकार करें | आज मुझे आपके सामने अपने दिल की बात रखते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही हैं | आपने मुझे और मेरी पुस्तक में लिखे बर्तन ताण्डव की विद्या को ग्रहण कर लिया हैं | मैंने सपना देखा था कि मैं अपनी विद्या सारें संसार को सिखाऊँ | आज इसका आरम्भ चुगल चौपाल से हो चूका हैं | हम वसुधैव कुटम्बकम की भावना को लेकर चलने वाले हैं | मुझे आशा है कि एक दिन सारे संसार का चुगल चौपाल इस विद्या को ग्रहण कर इसे अमरता प्रदान कर देगा | वास्तव में यह विद्या आमरता की घुट्टी हैं | जो पियेगा वह अमर हो जायेगा |” इतना कहकर सुशिल स्त्री का वक्तव्य समाप्त होना ही था कि दीक्षांत समारम्भ में बर्तन के माह ताण्डव ध्वनि से उनका आदर व्यक्त किया गया |

सुशिल स्त्री का सपना साकार हो रहा था | विश्व के सारे सुशिल स्त्री एवं सारे बाबूराव ने इस विद्या को हासिल कर लिया था | सुशिल स्त्री अब सारे विश्व के लिए आदर एवं पूजनीय बन चुकी थी | भारत और उसके प्यारे पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान के साथ विश्व में आपस में प्रेम को बढ़ावा देनेवाले देश इराण-इजराइल, कोरिया,अमरीका, रशिया, अफ्रीका, सूडान, जर्मन, जापान, फ्रांस लगभग सभी देशों ने आपस में सम्मति बना ली थी कि सीमा पर अब बम-गोली नहीं बल्कि बर्तन पटकें जायेंगे | विश्व के सारे संसद में यह प्रस्ताव भी पारित हो गया कि साल के विशेष दिन के मौके पर शांति और सोहार्द का उत्सव ‘बर्तन ताण्डव’ दिवस भी मनाया जायेगा | एक दिन बाबूराव गलती से समाचार पत्र पढ़ रहे थे | उसमें लिखा था, बर्तन ताण्डव की लोकप्रियता को देखते हुए विश्व के सारे खेल प्रेमियों ने भी यह माँग उठाई कि ओलम्पिक में बर्तन ताण्डव के खेल को भी शामिल किया जायें |

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