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कुछ ख्याल सुनोगे?

सब से पहले एक छोटिशी रचना पेश करता हूं।

लडकि

चाय के बागानों से निकलती खुशबू लगती हो;
लडकी साडी पहना करो अच्छी लगती हो।

आइने की नज़र ना लगे तुमको;
क्या ईस लीये काली बिंदी करती हो।

मेरे कान खनक सुनने को तरसते हैं;
ओर तुम बस एक ही हाथ मे कंगन पहनती हो।

कहा से आता हैं इतना गहेरा रंग;
काजल किस चीज़ से करती हो?

कभी जा कर सरहद पर मुस्कुरा देना;
तुम जंग होने से रोक सकती हो।

मैं दिनभर बस एक ही बात सोचा करता हूँ;
कि तुम मेरे बारे मे क्या सोचती हो?

तुमने किरनों को उधार दे रखा है
तुम रोशनी को रोशन करती हो।

●आशा है आपको पहले रचना पसंद आई होगी, तो अब एक ओर रचना पेश है,


दर्द कि है

किस तरह सुनाता उसे मेरी कहानी दर्द की है,
देखो होठों पे ये बेरुखी अंजानी दर्द की है।

आह! भी जो लडकी मेरी सुन लेती हैं,
अब उससे एक बात छुपानी दर्द की हैं।

ना पता था सुहागन को की इस बार,
दूर सरहद से खबर आनी दर्द की है।

तुने ही तो अता कि हैं रोशनी मुजको
ओर तुजे ही फिल्में सारी दिखानी दर्द की है।

वो इस कदर शिद्दत से चुमती हैं मुजको,
जेसे उसे कोई दवा बनानी दर्द की हैं।

●आब मे आपको कुछ समय बाद में प्रकाशित होने वालीं एक किताब का पहले अंश पेश करता हू।

नायिका

श्रावण माह की सुबह, सूर्योदय का समय, पूरी रात बारिश की वजह से पानी से तरबतर वृक्ष, एक दुसरे से भिन्न पर कीसी प्रकार समान नजर आने वाले मकान, कीतने दीनो से बारिश का मार सह रही कच्ची पक्की सडक, पीपल के पेड के नीचें हाथो में छडी और पुस्तक लेकर बच्चों को पढाता हुआ शिक्षक, उसी पीपल के पेड के नीचें ठंडे दिन के कारन आँखे खुली रखने के लिए संघर्ष करते हुए विद्यार्थी,गाँव के मध्य में स्थित नाई की दुकान, उसी दुकान के पास छोटी सी खुली जगह पर चाई बनाता हुआ रामदास, वहीं से गाँव के खेतों की ओर ले जाता हुआ एक रास्ता,उसी रास्ते पर दाहिनी दिशा में उगा हुआ चंदन का पेड, उसी चंदन के पेड पर बरसों बाद मिले हुए प्रेमियों की तरह लीपटा हुआ नाग, नाग की काली आँखों की दीशा में थोड़ी दुर बना हुआ भोलेनाथ का छोटा सा मंदिर, तेजी से मंदिर की तरफ चलते हुए दो पैंर, पैंरो की तेजी के बावजूद स्थिर बनी हुई दो आँखे, चंद्र के माँ रेवा में दिखते हुऐ प्रतिबिंब जेसा चहेरा,कभी शान्त सरोवर तो कभी भयंकर गरजता हुवा समंदर बन जाने वाला उसका मन, शिवलिंग पर दुध चढाते हुऐ उसके हाथ और शिवाय नमः का जाप करते हुए उसके दबे होठ, समुद्र मंथन से प्रगट हुई और वेदों मे जिसका उल्लेख न किया गया हो ऐसी सत्तर साल की एक लडकी।

ऐसी हैं हमारी नायिका!


● बस आब एक आखिर ख्याल से मेरी कलम रोकता हूँ।

नतीजा

तुम जब तुम्हारे लबो को मेरे लबो पे आहीस्था से रख के मुजे चुप करते हो

मुजे ये एहसास होता है की तुम मेरे पुरखोकी पढी दुवावो का नतीजा हो!


आशा है आपको मेरी सभी रचना पसंद आईं होगी...

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