काश ! में समज पाता - 3 Mahek Parwani द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

काश ! में समज पाता - 3

कुछ महीने बाद प्रेरणा फिर से एक बार खुश खबरी सुनाती है हीचकिचाहट के साथ और फिर से चेकप कराती है इस बार ईश्वर की कृपा से वह नन्ही सी जान बेबी बॉय था । घर में अब सब बहुत खुश है किन्तु प्रेरणा अब भी खुद को गुनेगार मान रही है , प्रणव उसे समजा रहा है की ,"अब सब कुछ ठीक हो जाने पर पुरानी बाते भूल जाओ ।" बातो में यू ही वक़्त बीतता गया । आखिर कार प्रेरणा ने एक बेटे को जनम दिया और पूरा माहौल खुशाल हो गया । बेटे की परवरिश में व्यस्त रहते प्रेरणा के जखम भरने लगे थे , अब वह खुश रहने लगी । उसने पुरे परिवार को दिलसे माफ़ कर दिया । प्रणव के माताजी ने प्रेरणा से माफ़ी मांगी और कहा ," उसका दिल दुखाने या कष्ट देने का कोई इरादा नहीं था किन्तु वंश बढ़ाने की चिंता थी ।" बेटे का नाम करन किया, बहुत लोगो को निमंत्रण दिया गया , नाम रखा गया 'चिराग' पुरे घर में खुशिया लोट आयी थी । आज फिर प्रणव सोच रहा था की बस अब मुझे इस जिंदगी से कुछ नहीं चाहिए । मुझे हर ख़ुशी मिल गयी है । चिराग बड़ा हो गया । वक़्त की रफ़्तार तेज थी ।उसने अभी अभी बारवी की परीक्षा दी थी और कॉलेज में पहोच गया । कॉलेज में फर्स्ट ईयर तक सब कुछ ठीक चल रहा था । लेकिन दूसरे बच्चों को देखते देखते उसने अपने पापा से बाइक की डिमांड की । घर का एक लोटा चिराग उसकी ख़ुशी में सब खुश थे । पर बात बाइक पर ख़तम नहीं हुई । अब रोज दोस्तों के साथ बाइक रेसिंग होती थी, रेसिंग लगाते लगाते कब सटो पे पहोच गया और सटो से कैसिनो पे । अब दिन ब दिन उसकी अयाशिया भी बढ़ने लगी । अतः प्रणव के घर में वापस लोटी हुए सुख शांति का अंत निश्चित हो गया । प्रणव को उसके ही घर के चिराग ने अँधेरे रास्तो पे ला कर खड़ा कर दिया । दूसरी और प्रणव का बिज़नेस ग्राफ ढलता हुआ दिखाई दे रहा था ।
हर वो आदत चिराग का साया बन चुकी थी । जिससे हर माँ बाप अपने बच्चे को दूर रखना चाहते है । प्रेरणा और प्रणव का मन बहुत व्यथित था , उनके मन में बस एक ही सवाल था ," कहाँ कमी रह गयी थी हमारी परवरिश में ? ये हमारे करम है या सजा ?"
अचानक, प्रेरणा अपना भूतकाल याद करते हुए प्रणव को कह रही थी शायद ये उसी गलती का परिणाम है, जब हमने माँ लक्ष्मी का स्वागत करने की बजाए दरवाजे बंद कर दिए थे , उसी वक़्त प्रणव को एहसास होता है की सच में वही ज़िन्दगी की सबसे बड़ी गलती थी जिसकी सजा हमें आज मिल रही है । काश ! में उस दिन थोड़ी सी जिद और बुद्विमानी दिखाता तो हमें आज ये दिन देखना न पड़ता । सच कहा है किसने ," बेटा अगर वंश है , तो बेटी अंश है और अंश को मारकर वंश को ज़िंदा नहीं रखा जा सकता । "प्रणव कहता है ," काश ! में समज पाता की करम एक आईना है जो इंसान को अपना असली चेहरा जरूर दिखता है । इसलिए तो कहा जाता है की ," धरमराय जब लेखा मांगेगा तो क्या मुख लेके जायेगा ।" प्रेरणा प्रणव को समजाते हुए ," तुम्हारा बुरा हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा , लेकिन तुम्हारा अच्छा लोट कर फिरसे आएगा ।" इसी सोच के साथ प्रेरणा और प्रणव ने प्राश्चित करनेका निश्चय किया । अब वो लोग एक एन. जी. यो (रौशनी) चलाते है ,जहाँ गरीब लडकियों को शिक्षा दी जाती है और आत्मनिर्भर बनना सिखाया जाता है । उनके विवाह की भी जिमेदारी उठाई जाती है , इसके उपरांत गरीब परिवारों में लड़की का जनम होते ही बक्शीश के तोर पर कुछ रकम दी जाती है ।

"बेटी ही जीवन का आधार है ।"

लेखिका - महेक परवानी