गुलफ़ाम TEJ VEER SINGH द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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गुलफ़ाम

सिन्हा साहब जैसे ही ऑफ़िस से लौटत हैं मिसेज सिन्हा गाड़ी की आवाज सुनते ही गेट पर आ जाती हैं। यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो चुका है। आज भी जैसे ही सिन्हा जी ने गेट में प्रवेश किया, मैडम ने तुरंत उनका बैग और टिफिन बॉक्स ले लिया। सिन्हा जी के हाथ में अभी भी एक डब्बा था।

"इसमें क्या है?"

"लो खुद ही खोल कर देख लो।"

मिसेज सिन्हा ने बड़ी बेसब्री से डब्बा खोला। उसमें एक बड़ा सा खूबसूरत कॉफ़ी मग निकला। मिसेज सिन्हा ने आश्चर्य चकित मुद्रा में पूछा,"यह किसके लिये? अपने यहाँ तो कोई भी इतना बड़ा मग प्रयोग में नहीं लेता।"

"ठीक कहा तुमने। यह अपने लिये नहीं है। यह गुलफ़ाम के लिये है।"

"कौन गुलफ़ाम?"

"अरे वही झाड़ू वाला जमादार लड़का जो रोज सुबह बाहर सड़क पर साफ़ सफ़ाई करता है।"

"आप भी हद्द करते हो। उसका नाम तो किशन है।क्यों बेचारे का नाम बिगाड़ रहे हो ?बुरा मान जायेगा।"

"पर मैं तो कब से उसे गुलफ़ाम कह कर ही बुलाता रहा हूँ।उसने तो कभी  कुछ नहीं कहा।"

"चलो ठीक है। पर यह मग किसलिये?"

"ओह हाँ, आज सुबह ऑफ़िस जाते समय मैंने उससे  पूछ लिया," कैसे हो गुलफ़ाम? सब कुशल है।"

वह बोला,"साहब जी, एक निवेदन करना है कि मैम साहब से मेरी ओर से विनती कर दीजिये कि मेरे लिये चाय थोड़ी ज्यादा बना दिया करें | आपका दिया हुआ कप बहुत छोटा है तो चाय में मज़ा नहीं आता और मन भी नहीं भरता।"

"ओह अब समझी। उसने एक बार कहा भी था कि मैम साहब आप लोग बहुत छोटे कप प्रयोग करते हो। पर मैं उसका आशय नहीं समझ पायी।"

"कल उसे नये और बड़े मग में चाय मिलेगी तो खुश हो जायेगा।" सिन्हा जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"पर आपने यह नहीं बताया कि यह नाम गुलफ़ाम आपको कैसे सूझा?"

"अरे क्या बताऊं। कालेज के दिनों में एक पिक्चर देखी थी। उसका हीरो बिलकुल इसी की तरह सूट बूट, टाई और धूप का चश्मा लगाता था। उसका नाम गुलफ़ाम था।"

"इसे देखकर तो मुझे भी अचंभा होता है कि काम तो झाड़ू लगाने का लेकिन पोशाक बाबुओं की तरह टिपटॉप। अन्यत्र कोई उसे देखकर सोच ही नहीं सकता कि यह सफ़ाई कर्मचारी होगा।"

"मैंने एक दिन उसे पूछ लिया था,"भाई गुलफ़ाम बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?"

"कैसी बात करते हो साहब जी? हमारी इतनी औक़ात है क्या जो आपकी बात का बुरा मानेंगे।"

"तुम काम तो साफ़ सफ़ाई का करते हो लेकिन तुम्हारे पहनावे को देख कर इस पर सब लोग तरह तरह की चर्चा करते हैं।"

"साहब जी आप लोग बड़े लोग हो कुछ भी समझ लो। कुछ भी कह लो| लेकिन मेरी कहानी कुछ अलग प्रकार की है।"

"क्या मुझे सुनाओगे अपनी कहानी?"

"अवश्य साहब जी।आप ही तो मेरे सब कुछ हो।एक आप का ही आसरा है। साहब जी, मेरा बापू भी यही साफ़ सफ़ाई का काम करता था। पर उसे यह सब पसंद नहीं था | लेकिन मजबूरी थी  | परन्तु मैं बचपन से ही पढ़ने में बहुत तेज था।अपनी क्लास में प्रथम आता था। बापू को मुझसे बड़ी आस थी| अतः मेरा बापू मुझे बड़ा आदमी बनाने के सपने देखने लगा।वह मुझे टाई और बूट पहन कर ऑफ़िस जाते देखना चाहता था। जब भी मौका मिलता मेरे लिये टाई खरीद लाता। मेरे ग्रेजुएट होते होते मेरे पास लगभग एक दर्जन टाई हो गयीं। हम लोग पिछड़ी जाति से हैं तो बापू को उम्मीद थी कि हमको आरक्षण का लाभ भी मिलेगा। लेकिन बापू के जीते जी मुझे कोई जॉब नहीं मिला। कितनी ही नौकरियों के लिये आवेदन दिया। पर सब व्यर्थ ही रहा। आजकल बिना सिफ़ारिश या बड़ी रिश्वत के कोई काम नहीं मिलता साहब जी। इसी बीच बापू गुजर गया।और उसकी जगह मुझे इस काम के लिये ऑफ़र मिला। घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए मेरे पास इस ऑफ़र को स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। साथ ही मैंने सोचा कि घर पर पड़ा रहने से बेहतर है कि यह काम कर लूँ। काम तो काम है। इसमें अच्छा बुरा क्या सोचना। बहुत लोग तो इसके लिये भी तरसते हैं। और फिर एक नौकरी हाथ में होगी तो अच्छी नौकरी के लिये कोशिश करता रहूंगा। इस नौकरी के बहाने आप जैसे बड़े और प्रभावशाली लोगों की सेवा का अवसर मिलेगा। बदले में कभी मेवा भी मिल सकती है। लेकिन मैं बापू की आत्मा की शाँति के लिये ये टाई और बूट पहन कर काम पर आता हूँ। अच्छा तो मुझे भी नहीं लगता परंतु मेरा बापू से भावनात्मक जुड़ाव मुझे विवश कर देता है। रोज सुबह घर से निकलते समय बापू की फोटो के आगे माथा टेक कर ईश्वर को साक्षी मान कर शपथ लेता हूँ कि एक दिन बापू का सपना अवश्य पूरा करूंगा।"

"सुनो जी, उसकी कहानी तो वास्तव में बहुत दर्द भरी है। मुझे तो बेहद सहानुभूति हो रही है उससे। कितना शालीन और संस्कारी लड़का है।"

"दुख तो मुझे भी होता है कि इतना पढ़ा लिखा होने के बावज़ूद उसे यह काम करना पड़ रहा है।"

"क्यों  जी आप इतने बड़े सरकारी अधिकारी हो।आपके पास इतने सारे विभाग हैं। क्या आप उसकी कोई मदद नहीं कर सकते?"

"हाँ मैंने उससे उसके बायोडेटा लेकर कुछ लोगों को दे रखे हैं। कुछ जगह उसने साक्षात्कार भी दिये हैं। शायद कुछ रास्ता निकल आये।बाकी सब तो ईश्वर और गुलफ़ाम के नसीब पर निर्भर करता है।"

अगले दिन सुबह जैसे ही डोर बैल बजी। मिसेज सिन्हा गेट पर पहुंची तो आशा के अनुसार गुलफ़ाम ही था लेकिन न तो उसके हाथ में झाड़ू थी और न ही उसकी कचरे की गाड़ी।

"किशन तुम्हारे लिये एक सरप्राइज है। साहब तुम्हारे लिये एक नया कॉफ़ी मग लाये हैं। आज से तुम्हें नये और बड़े मग में चाय मिलेगी। चाय पीकर इसे धोकर गैराज में रख लेना।"

"मैम साहब मेरे पास इससे भी बड़ा सरप्राइज है।यह मग मेरे लिये बहुत लकी है। अब इसे मैं अपने साथ लेकर जाउंगा। साहब की कृपा से मेरी नगर पालिका में क्लर्क की नौकरी लग गयी है।अब उनका गुलफ़ाम सचमुच का गुलफ़ाम बन गया है ।"

---------------------------- मौलिक कहानी

तेज वीर सिंह "तेज"

पूना- महाराष्ट्र