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ग़ज़ल, कविता, शेर

प्रेम-जल बरशा बादल से,
दरख़्त की हर पत्तियां सुनहरी हों चली हैं।
अंगड़ाई लिए नई कोंपलें
उठती हैं, जमीं कितनी ताज़ा हो चली हैं।___Rajdeep Kota


एक रोज़ शादाब शामों से दूर जाना होगा।
ज़िन्दगी का फ़िर कहां ठौर-ठिकाना होगा।
रात की बर्फ़पोश टेहनी पर पिछले पहर
उदास खौफज़दा बैठा कोई फसाना होगा।___Rajdeep Kota

बेवफ़ाई से उसकी दिल नहीं लगता कहीं ओर
चाहने के लिए आलम मैं जैसे एक वोही शख़्स हों।__Rajdeep kota


मनोहर भव्य दर्शित-रहिमो करीम हैं मूरत
उसकी
छूंछे आभाहिन सन्नाटासन्न जीवन को हैं जरूरत उसकी
फूल हैं मेरा जीवन
महक सुगंध लुभावनी अदाएं वो।
ग्रीवा है मेरा जीवन
निकलती प्रीतिकर रुचिर सदाएं वो।
डग भरने दुश्वार हो गए हैं
प्रियजन मेरे मुझसे दूर हो गए हैं
जैसे एकाकी बीहड़ तपते मरुस्थल में खड़ा हूं
अपत्रस्त में मायूसियों की जंजीरों में जकड़ा हुआ हूं
जीवन संजीवनी जैसे वो हैं
जीवन तारिणी जैसे वो हैं
मनोहर भव्य दर्शित-रहिमो करीम है मूरत
उसकी
छूंछे आभाहिन सन्नाटासन्न जीवन को है जरूरत उसकी।___Rajdeep Kota



बस यूंही तेरा खयाल आता हैं।
बिना कूढ़े पेरे कूटे रुलाता हैं।
अंधियारों से सन्न नभ पर
मां वसुंधरा से एकदम ऊपर
मंदाकिनी से
कोई तारका बिछुड़ जाता हैं।
गोद में धरणी के जा समाता हैं।
बस यूंही तेरा खयाल आता हैं।
बिना कुढ़े पेरे कूटे रुलाता हैं
अंतर के असीम अंधकार मैं
सांसों की प्रखर विकराल तेज़ झंझार में
हृदयपट पर अवस्थित
विटप की शाख पर
भावों को भीतर समेटे
करुणा से हो तरबतर
उम्मीदों-सा कोई जगमगाता हैं
बस यूंही तेरा खयाल आता है।
बिना कूढ़े पेरे कूटे रुलाता हैं।___Rajdeep Kota



शाम की सौंधी हवाएं किसे सदाएं देती हैं।
शाम हमें आज कल मायूस परिंदे-सी लगती हैं।
चिराग़ डूब जातें है सूरज कि घनी धूप में
स्याह रात में चांदनी बहुत चिल्लाती हैं।___Rajdeep Kota



ग़ज़ल की शाख पर फ़ल आने को हैं।
इश्क़ की बेहद जरूरत जमाने को हैं।
कुरबतों की खुशियां मत पूछो हमसे,
फ़िराक़ मैं गम फकत दिखाने को हैं।
चेहरा खिलखिला हमारा देखतें हैं सब
कुछ ख़ामोश गम भी रखें छुपाने को हैं।____Rajdeep Kota



लगा जैसे कोई शर्माया हुआ आया।
बुझा दीप दिल का किसने आके जलाया।
धूप की बारिश में निकल पड़ें दो परिंदे
ये हरा-भरा शादाब पेड़ किसने गिराया।
कुछ मजबूरियां कुछ रिवायतें आई बिचमें
भुलाना कठिन था उस शख़्स को हमने भुलाया।___Rajdeep Kota



देह के कोठे कोठे मैं उतरी हुई लगती हैं
वो नभ पे उज्जवल चंद्रमा सी लगती हैं
बगैर जिसके एक डग भरना भी दुश्वार हो
ऐसी जीवन में जरूरत सी लगती हैं।___Rajdeep Kota



पलकों पे शबनम की अलामत दिखाई देगी
मेरे अंदर तुझे आतिश-ए-ईश्क जलती दिखाई देगी
उदास आसमां की ज़ंज़ीर में गिरफ्त बन बैठा हूं
बारिश खुशनुमा कब आयेगी कब मुझे रिहाई देगी
पायाम-ए-इश्क देखने की कोशिशें
तुम्हें हर मरहले पे रुसवाई देगी।___Rajdeep Kota



बस्ती वालें तुझे मेरी मेहबूब बतातें हैं।
दास्तां आजकल तेरी मेरी गुनगुनातें हैं।

जर्द पत्तो की बारात आए जब अंगनाई में,
शादाब पड़े पोेधे ख़ूब चिल्लाते हैं।

खुशबू बरसात की हवा में उड़ती हैं
धूल अटें पेड़ के हर शोख पत्तें मुस्कुरातें हैं।

कहकशें की झलक सी दिखाई दी मुझे
तिरी इन आंख में सितारें झिलमिलातें हैं।

नज़दीकियों की सोहबत असर कर गई
मुझको सब तिरे नाम से बुलाते हैं।___Rajdeep Kota

सीने में कभी उतरकर देखो
धड़कता एक पत्थर अब भी हैं।

छोड़कर मुझे तुम भी चले गए
ज़िंदगी बची कितनी सूनी हैं।

इस तनहा उजड़े घर में ना जाने
क्यों फेरी किसी-कि अब भी रहती है।

चांदनी मिरे होंठो पे उछलते
सुनहले शबनम की तरह लगती हैं।

दास्तां-ए-दिल क्या सुनाऊं तुम्हें
छोड़ो ये कहानी हुई बहुत पुरानी है।

आंसू मिरे घनी बारिश के बाद
शोख़ पत्तो पे लगे ओस की कहानी है।__Rajdeep Kota



जाफ़िज़ा ओर क्या है
जाफ़िज़ा पानी हैं।
विसाल में कहां
फ़िराक़ मैं कहानी है।
दूरियों की सबब
तेरी मेरी बदगुमानी हैं।
हर शख़्स बड़ा
यहां थोड़ी खानदानी हैं।
सिवा तुम्हारे शहर
के लोग सारे अनजानी है।
शाम की वो सुर्ख
आंखें कितनी सुहानी हैं।
अडिग मर्मवेधी कितनी
उसके लफ़्ज़ों की रवानी हैं।
इस शहर में कोई
शख़्स रहती जानी पहचानी हैं।___Rajdeep Kota




इन सितारों-सा झगमगाता हूं
चांद सूरज-सा दीपदीपाता हूं
तुम होती हो साथ मेरे जिस बेला
नई नवेली कलियों-सा मुस्कुराता हूं।___Rajdeep Kota




बिछड़ना हुआ तब
अहमियत महसूस हुई तुम्हारी।
तुम्हारे बिन ज़िदंगी
कितनी मायूस दु:खद है हमारी।___Rajdeep Kota




बारिश के कतरे गिरते रहें बदन पे, मैं पाक हो गया।
बदलियों मैं छिपी कई गूंगी गर्जनाओ कि आवाज़ हो गया।
रात के पिछले पहर में चांदनी-से तुम आए ख़्वाब मैं
स्याह शब मैं मूर्छित पड़ा स्याह बदन मेरा उजला हो गया।___Rajdeep Kota



मैं चाहता हूं तुम बारिश बन आओ।
क़तरा क़तरा बन बदन पे छा जाओ।
माहौल कितना खूबसूरत है सावन का
तनहा हूं विनती है पास मेरे आ जाओ।___Rajdeep Kota




रात की पलकों पे कोई ख़्वाब ठहेरा हुआ।
ख़्वाब मैं हमारी पुहचा तो सवेरा हुआ।
तुझे भूलाने के वोही पुराने मसलें में
फ़िर दिन गुज़र गया ओर अंधेरा हुआ।___Rajdeep Kota




बदलियों बेवजह सिर से न गुज़रा करों।
बेरंगा हूं,अपनी बूंद से मुझको हरा करों।___Rajdeep Kota



बेजुबान दिल की हर धड़क बोल उठीं।
पत्थर बनी हाथ की लकीरें बोल उठीं।
कसक हर भूलाकर वो तेरे पास आयेगी
बे-एतीबारी खौफ़नाक चेष्टाएं बोल उठीं।___Rajdeep Kota



तन्हाईयो के सफ़र मैं चलते हुए।
फरिश्ता मिला कोई सिसकते हुए।

मुलाक़ात होगी फ़िर किसी मोड़ पर
दूर हो गया मुझसे कोई ये कहते हुए।

आज भी खयालात वोही पुराने वाले
पाक ना हुए, तुम्हारे दिल मैं रहते हुए।

फरेब हुआ साहिल की सख़्त रेत पे
मछिली ने प्राण त्यागें, तड़पते हुए।

एहसानमंदी का हवाला ओर क्या दू तुम्हें
चिराग़ प्रकाश छोड़ता है ख़ुद जलते हुए।___Rajdeep Kota




बिछड़कर मुझसे वो कितना दूर हो गया,
कई रोज़ से याद भी नहीं आई उसकी।___Rajdeep kota




सफ़र की फ़िर वोही खौफ़ज़दा सदाएं।
डर लगता हैं, हम किसको बुलाएं।
सब अजनबी थें, तुम्हारे सिवा मेरा था ही
कौन दास्तान-ए-दर्द किसे सुनाएं।___Rajdeep Kota




મળી કૈક અવનવી વાતો શું નહીં કરી શકું...
મૃત્યુ રૂપ મહાનાદ માં ભળી એ
તીવ્ર ગતિ એ લુપ્ત થઇ ગઈ.
રૂડી રૂપાળી સ્નેહ ભીની જણાય એવી
ક્વચિત્ યાદો એની
સંઘરી રાખી, મતી હ્રિદય માં
સંધ્યા ટાણે સોહામણા વિલુપ્ત થતાં સૂરજ ને
ઉદય થતાં શશી ની ઉપસ્થિત માં
સાહિલ ની હુંફાળી ચળકતી રેત પર રસ્તો ખોળતો ખોળતો
શીત સમીર ને આહ્વાન આપતો આપતો
ઉછાળી ફેંકિસ આકાશે
રોશન કરી નભમંડળ ને
સમસ્ત ભુ ધરા ને
આવી ફરી લુપ્ત થઈ જશે
મતી હ્રિદય માં
મળી કૈક અવનવી વાતો શું નહીં કરી શકું...
મૃત્યુ રૂપ મહાનાદ માં ભળી એ
તીવ્ર ગતિ એ લુપ્ત થઇ ગઈ...___Rajdeep Kota


पत्तियां हरी कुछ दरख़्त की चुनकर
घनी बदलियों में छिपे तारों को चुनकर
कोई ख़्वाब फ़ेक दिया हैं तेरी आंखों मैं
सुनहले रेशमी मुलायम तागो से बुनकर।___Rajdeep Kota



शाम ढल गई, इंतजार करतें रहें।
फ़िर भी तुझपे ऐतबार करतें रहें।

नींद चैन आंसू बोहोत कुछ गवाया
तेरे लिए कितना नुकसान करतें रहें।

दुर्गम खौफजदा सफ़र बार बार
याद कर तुझे आसान करतें रहें।

सुनहरी शाम की चादर ओढ़ कर
फैली दरिया खुशबू को समेटते रहें।

दिल मुहब्बत आंखें आंसू लफ़्ज़
दरिचे से हर तेरी आवाज़ें सुनते रहें।___Rajdeep Kota


चाहत बेइंतेहा थीं उनसे
इजहार मैं झिझक गया।

दिल का वो घुंघरू,ना
जाने क्यों आज टूट गया।

अंधेरा घना दिल-ए-जहां में
शाम गई, बिखर गया।

आंखों में तेरी रहते रहते
फैलना था,पर संवर गया।

मिरी अंगनाई के उस पेड़ को गले
लगा कर,में तुझसे दूर हो गया।___Rajdeep Kota




लफ़्ज़ों से तेरा बदन सज़ा दूं।
ग़ज़ल कोई तिरे नाम की बना दूं।

स्नेह से लबालब भरा पड़ा
नीला भूरा तौफिक मैं आसमां दू।

दिल निकाल कर दे दिया तुझको
मैंने बता ओर तुझे क्या दू।

दिल भारी, घर बेजान-सा हुआ
तनहाई में किसको सदा दू।

ग़ज़ल की शाख पे फूल कोई
बहन अब्बा का भी खिला दू।_____Rajdeep Kota



शब की वो सुनहरी चादर अकेलें ही ओढ़ ली मैंने
नज़र पूहची वहां तक देखा मगर दिखीं नहीं तुम।
गुज़ार नी मुश्किल थीं वो शब गुज़ार दी हमने
इंतजार घंटो तक करता रहा मगर आई नहीं तुम।______Rajdeep Kota




बादल घिरें,बरसात की आश मैं रहा।
फासलों मैं भी तेरे आसपास मैं रहा।
दिल्लगी के ज़रिए कई थे महफ़िल में
सब ख़ुशी मैं झुमें बोहोत उदास मैं रहा।___Rajdeep Kota



सफ़र-ए-इश्क में ज़िकों से डर गए
काबिल नहीं हो तुम मुहब्बत के।
समेट सकों तो समेट लों यारों
मोती ही मोती बिखरे हैं यहां उल्फ़त केे।___Rajdeep Kota




हम तो उसे बहुत याद करतें हैं।
याद कर के आंखें नम करतें हैं।
जीना दुश्वार हैै उसके बगैर
कोई बताएं मुझे वो कहां रहते हैं।____Rajdeep w



પામી ચાહી કલ્પી શક્યો કલ્પનામાં
નવ પામી ચાહી શક્યો પ્રત્યક્ષ
અધૂરી આશ એક ચાહવાની
અધૂરી આશ એક પામવાની
અધૂરી અધૂરી દબાયેલ રહી જશે શું.....
મળ્યો ભેટ્યો આનંદિત થયો કલ્પનામાં
નવ મળી ભેટી શક્યો પ્રત્યક્ષ
અધૂરી આશ એક મળવાની
અધૂરી આશ એક ભેટવાની
અધૂરી અધૂરી મુંઝાયેલ રહી જશે શું.....

મુજ ના નિર્મળ અનુરાગ થી
પૂજ્ય પવિત્ર ઈચ્છિત રાગ થી
અજાણ છે શું.....
વિરહે ઝૂરતા એના પ્રિયતમ ની
ભાવો માં ઉત્તમ ભાવ ની
એને ઓળખાણ છે શું......___Rajdeep Kota


રહ્યું સહ્યું હ્રિદયે જડેલું
પ્રેમાના કોમળ નિર્મળ સંસ્મરણો ને છંછેડતું
દીપક સમું તેજોમય
પ્રભાવભર્યા ગુંજનો થી એના, ભર્યું હ્રિદયાલય
વિનતી, વિનવણી એટલીજ,
હૈ નાથ,
શુષ્ક વિરાન ચેતનાહિન ક્યારેક નવ દિશે...
મન, હૃદય આભલે
સ્યાહ વાદળ સમું
ચમકતી વીજ સમું
જીવન આંગણે હસાવતું પુલકિત કરતું મુજને
વિનતી, વિનવણી એટલીજ,
હૈ નાથ,
નિહાળું આંતર દૃષ્ટિએ જ્યારે, મૂને દૂર નવ દિશે.___Rajdeep Kota




उस गली में अब ठहरता है कौन।
प्यार से सदाएं देता हैं कौन।

आंखों को सोते भ्रम हुआ होगा
सायद,अब ख्वाबों में दिखाई देता हैं कौन।

मतलब के तरफदार है यहां सब, तुझे
चाहता है कौन, मुझे चाहता है कौन।

इश्क़ गुनाह नहीं, ख़ुदा की ओर से मिला
तौफीक है,पर यहां समझता है कौन।

उस राह से गुज़रू तो हैरान रहता हूं
प्यार से मुझको सदाएं देता है कौन

दिल एक उजड़ी हुई सराय की तरह हैं
ये आवाज़ें कैसी, यहां रहता है कौन।

दिल दिमाग पे कई रोज़ से रहता है छाया
नाज़ुक पलकें मिरी नम करता है कौन।___Rajdeep Kota



छेड़ा गया फ़लसफ़ा-ए-मुहब्बत।
पलने लगी अजीब सी हसरत।
रात भर जगा याद में किसी की
दिखाई ना दी पर कोई सूरत।
बदला बदला सब कुछ दिखता हैं
बदल गई है आदमी की मुरौवत।
बसर करने दिन ओर रात मेरी
सहारा ज़िन्दगी का तुम नहीं हो फकत।
दिल की वो हो सुंदरता, सौंधापन
आंखों के अश्को की हो तुम इज्जत।
इस नादान मासूम दिल को
बख्स देना तू, हो गई है तेरी आदत।
शाम की सुनहरी गलियों में
चलते चलते हो गया में किसी की चाहत।
आंखों के मंज़र आंसूओ से थे गीले
चलने वाला फिसल जाएं तो क्या हैरत।
पास मिरी जब से तू आया
दुनिया रखने लगी मुझसे मुखालिफत।___Rajdeep Kota





आज तिरे दर पे आके सदैव दूर हो गए।
जज़्बात कई मिरी ज़िन्दगी के घर हो गए।
मैं सब का भार ढोती, जमीं रह गया
तुम आबाद खुल्ले आसमान हो गए।___Rajdeep Kota




कुछ जताना चाहते है, पर जताएं कैसे।
हमें मुहब्बत है तुमसे, हम बताएं कैसे।
दर्द-ए-दिल बयान कर देती है शकल,
छुपाना लाख चाहें हम मगर छुपाएं कैसे।
तारों की कतार में लगाना चाहतें है कुछ
दिए, मौला तू ही बता हम लगाएं कैसे।
गर वो किसी मोड़ पे मिल भी गया, तो
मसला ये होगा इज़हार-ए-इश्क करें कैसे।
प्रयासरत रेहतें है कई रोज़ से हम बादल
की घटाओं मैं ख़ुद को खोया हुआ पाएं कैसे।
राह पर चलता हुआ कई बार दिखा तू
अब अल्फ़ाज़ कौन सा चुने तुझे बुलाएं कैसे।___Rajdeep Kota





तलब उसकी
ऐतबार उसीका
एक तड़प सीने पे छुपाने की उसे
वैभव सम्मोहन से उसके तर होने कि इच्छाएं।
हिमालय के वो हर
बर्फाच्छादित शिखरों की
नर्म सौम्य सौंधी जायकेदार हवा,
घाटियों में पलते वक्ष के पत्तों में
गर्तो में से निकलते कलकल गुनगुनाते झरनों में
वस्तु में हर उसकी
गुंथी हुई हैं चेतन वंत है प्रदिप्त हैं
भारत की आदिम चेतना
जान कुर्बान करने की उसकी गोद में हाय... ये कैसी तमन्नाएं
अंतर से छू लिया उसे
स्वर्ग पाने की-सी कोई कामना ना रहीं
हैं मनुष्य मिलेंगे तुझे हर रास्तें राज़ का हर
संभव कारण, छिपा हुआ है सब कुछ वहीं
अज्ञान असमझ द्वेष के-सो के परिणाम स्वरूप जागृति रहना, तू दूर ना हो जाएं कहीं।
प्रकाश वंत हैं वहां
जिंदा रखें है जो हमें वे प्रकृति
पली है पल रहीं हैं बहरहाल
ओर पलेगी वहां भारत मा की संस्कृति
हृदय में आवास दें उसे
हृदय से आवाज़ दें उसे
वादी तू जीवन का हैं सार
अस्तित्व से तीरे दमक उठता है संसार
दमी पड़ी हैं, चलायमान हैं भीतर
निकलने बाहर श्रम करती हैै
तुझको छूने, बाहों मैं कसने, तुझे अश्कों से गीला करने
सीने में बसाने की-सी महत्वाकांक्षाएं।___Rajdeep Kota




रखी थीं उम्मीदें ज़िन्दगी से
बेज़ार-सा ना बनाएं मुझको
ना दिखाए अपनी करामत
लाचार-सा ना बनाएं मुझको।__Rajdeep Kota



दूरियां बढ़ाते हैं दरमियान हमारी ओर
वस्ल तक ऐसे कर के पोहच जाएंगे।
हमारे मिलन के शाक्षी रूप सब स्थानक

बिछड़ेंगे हम, फ़िर कितने सुने हो जाएंगे___Rajdeep Kota



आज इस बस्ती में इतना उजाला क्यों हैं
कोई शख़्स मुद्दतों बाद आने वाला है क्या।__Rajdeep Kota




सोचा,लहज़ा बदल के बात करू,कोई बात बन जाएं।
मेरी भी महफ़िल-ए-मुहब्बत कोई जगह बन जाएं।___Rajdeep Kota



इतने बैचेन बेबस बदहवास क्यों है।
ग़म की गहराइयां हमें रास क्यों हैं।

रुखसत तो कई लोग हुए ज़िन्दगी से
आज जब वो हुई तो उदास क्यों हैं।

तअल्लुक़ मुद्दत से नहीं, मिरे घर से
बिस्तर में से आती उनकी बास क्यों हैं।

पता हैं उसका आना अब हैं ना-मुमकिन
ज़मीर को आने की एक आस क्यों हैं।

होंठ सूखे चेहरा फ़िका सासें कुछ थमी
धड़कनें मंद,अश्क आंखों से निराश क्यों हैं।___Rajdeep Kota



सावन की बरसातों में बादल की घटाओं मैं।
दिखाई देता है तू जहीर हर फिजाओं मैं।

ख़ुदा से रहीं है सदैव मेरी यही कामना
मिलाएं तुझको मुझसे हर समाओं मैं।

पातें है तुझे अक्सर खयालों में ख़्वाबों मैं
ख्वाहिशों में दिल से कि हर दुआओं मै।

चलतां रेः तू बिना ऊबे बिना क्षुब्ध होएं
एक दिन मिलेंगे ज़रूर हम अज्ञात राहों मैं।

माना मजबूरी दोनों की थी फ़िराक़ का सबब
पर तू ही बता, संतुष्टी क्या थी ऐसी विसालों में।

आराम एतीबार जन्नत जुनून अलग जोश
सबों नहीं थें क्या तेरी बाहों में मेरी बाहों में।___Rajdeep Kota


रहो भीतर थोड़ी जगह बची हैं।
अधिक मैं उदासीनता खड़ी हैं।
माहौल हरतरफ हैं निराशाओं का
आशाएं आखिर कहां छिपी हैं।___Rajdeep Kota

थकान दिन की बोसा दे के मिटाए देती थीं।
कोन थी वो जो मुझको प्यार से सदाएं देती थीं।

लबों पे सज़ा के रखें थें कुछ गुलाब मैंने
मृदु हस्त से वो पंखुड़ियां चूना करती थीं।

भटका था कभी, फ़िर मुद्दतों लापता रहा
जुल्फें उसकी क्या खौफ़नाक जंगल थीं।

चांद को छत से राज़ कोई बया कर दिया
मैं उसके लिए वो मेरे लिए जिया करती थीं।

इख्लास को बातिल न ठहराओ दुनियावालों
मैं कभी उसका वो कभी मेरी हुआ करती थीं।

आज वो बोहोत दूर हैं, जहां की क्रूरता डरा-मुझको जो अपनी बाहों में पनाह देती थीं।___Rajdeep Kota


मतालबा सुन लिया ख़ुदाने मंज़िल मिल गई।
मेरी मौजूदगी की सबब तेरी याद मिल गई।
दिल वो खंडहर था जिसमें कहकहें लगाते थें अंधेरे,अजिब बात है जो आज चांदनी खिल गई।___Rajdeep Kota

यहां, लेकर सहारा चलना पड़ता है क्या।
फूलों की तरह कभी झड़ना पड़ता हैं क्या।
रखता हूं मैं जैसी मोहोब्बत्त तुझसे
वैसी ही तू भी मुझसे रखता है क्या।

नज़रे छिपाए फिरती हो आजकल
तुम्हें मुझसे मुहब्बत हो गई है क्या।___Rajdeep Kota



आंखों की सारी नमी उतर आएगी।
जब वो मुझे छोड़ के चली जाएगी।

सोचूं तो कंपित हो उठता हूं
याद उसकी मुझे कितना सताएगी।

तारीखें पता नहीं कितनी दूर उनसे
वक्त के बहाव में बहती चली जाएगी।

फ़कत में ही नहीं सोचूंगा उसे
उसे भी याद मिरी बोहोत आयेगी।

बारिश कभी कभी धूप तो कभी तेज़ हवाएं
ऋतुएं हर अपना करामती फन दिखाएगी

कब से इंतज़ार मैं बैठे है उसके
क्या तरस खाकर मिलने नहीं आयेगी।

बड़ी महफूज़ अनुपम जगह है वहां
उनकी गोद में सुला मिरे बाल नहीं संवारेगी।___Rajdeep Kota



तू नज़दीक से मिरे गुज़रा करें तो अच्छा है।
खाली खाली-सा मुझको भरा करें तो अच्छा है।__Rajdeep Kota




सांसों की बारात निकल पड़ती हैं।
सामने से मिरे जब तू गुजरती है।

चांदनी भी इंतज़ार मैं किसीके
छत पे मिरे साथ रात भर टहलती हैं।

इश्क़ में फासलों का आना दूर नहीं
तिरी ख़ामोशी कोई निशा बयां करती हैं।

तुम्हारे यहां होती होगी गुफ्तगू जुबां से
हमारे यहां तो नज़रें बातें करती हैं।

नजर करूं पीछे आज तो तनहा गुजारी
समूची शबें मायूस बेहद लगती हैै।___Rajdeep Kota




धुंधली-सी एक याद तेरी
मुद्दतें जुदाई की बताई देती हैं।

मुंसिफ बनकर अरसों से बंध
निर्जन कारागार में से मुझे रिहाई देती हैं।

बहरहाल बहती हवाएं फिजाएं भी हृदय में
तस्वीर तिरी कोई बनाई देती हैै।

बोसे-कि सी अदनी ख्वाइश रखूं जब भी सामने,
मेहबूबा मेरी लज्जाई देती हैं।

यूं तो आभास ही होगा मगर कमरे में
तिरे कंगन झांझर की आवाज़ें आज भी सुनाई देती हैं।___Rajdeep Kota




मुस्कान सारी चेहरे कि चली गई
छोड़कर मुझे मेंरी जान चली गई।

भार किस बात का लिए फिरते थें
खुशियों की बारिश बादल मैं चली गई।

मिलने मैं सबों को जो बात थी
एक दिनों, पता नहीं वो बात कहां चली गई।

आया सिरे कुछ अपनों का सपनों का बोझ
प्रसन्नता सारी रंजीदगी में चली गई।

दिले जहां में पतझड़ हैं पत्ते बिखरे है चारो और
बारिश भी थी कभी जो कब की चली गई।__Rajdeep Kota


ये हक़ीक़त मेरी दुनियावालों सुनो
जिया कैसे जाता है सनम के बिना
बड़ा हुआ तो क्या हुआ महल भी
सुना लगता है चमन के बिना
देख लूं ना तुझे जीभर के जब तक
चैन आता नहीं इस दिल को तब तक
गुमसुम बैठी खामोशी मेरी
चिल्लाए देती हैं प्रियतम के बिना
घड़ी-ब-घड़ी जो फुरसत की मिलें
सोचतें है तुझे जाने-जहां
निशा तेरे ढूंढते फिरते है
छिपे हुए है आखिर कहां
कुछ हम अधूरे कुछ स्वर बेसुरे है
ज़िन्दगी के प्रिया के बिना
प्रतीक्षा में ही
क्या ज़िन्दगी बसर होगी
उम्मीद तो यही है
की सिघ्र ही सहर होगी
विस्मरण का रोग लगा है सनम के बिना
रमणीय कुछ नहीं लगता सनम के बिना
सौंदर्य ही मारा गया
जीवन का, सनम के बिना
जीना क्या क्लिष्ट नहीं है
प्रियतम के बिना
सत्ता मेरी अकारण है
प्रियतम के बिना।__Rajdeep Kota



मिरे ख़्वाबों मैं तेरा आना कई रोज़ से बंध हैं,
सायद तू किसी ओर को परेशान करता होगा।___Rajdeep Kota


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