नूरीन - 5 Pradeep Shrivastava द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

नूरीन - 5

नूरीन

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 5

अम्मी के दबाव में मैंने जो गुनाह किया है उसकी सजा अल्लाह जो देगा वो तो देगा ही। पुलिस उससे पहले ही हड्डी-पसली एक कर देगी। दुनिया थूक-थूक कर ही ऐसी जलालत की दुनिया में झोंक देगी कि मेरे सामने सिवाय कहीं डूब मरने के कोई रास्ता नहीं होगा। अम्मी का यह झूठ-गुनाह बस दो चार दिन का ही है। उसके गुनाह से मैंने यदि समय रहते निजात ना पा ली तो सब कुछ बरबाद होने, तबाह होने से बचा ना पाऊंगी। समय रहते अम्मी के गुनाह की इस दुनिया को नष्ट करना ही होगा, इसी में पूरे परिवार और उनकी भी भलाई है। नुरीन लाख थकी-मांदी, भूखी-प्यासी थी लेकिन दिमाग में चलते इन बातों के बवंडर से खुद को अलग नहीं कर पा रही थी। आंखों में गहरी नींद थी लेकिन उन्हें बंद कर वह सो नहीं पा रही थी। उसके दिलो-दिमाग इंतिहा की हद तक बेचैन थे, तालाब से बाहर छिटक गई मछली की तरह उसकी तडफड़ाहट बढ़ती ही जा रही थी कि कैसे इस हालात को बदल दे। जो कालिख खुद पर पोत ली है उसे साफ कर पाक-साफ बन जाए। उलझन तड़फड़ाहट बेचैनी इतनी बढ़ी कि वह उठ कर बैठ गई।

अगली सुबह उसकी अम्मी जल्द ही उठ गई। उसने रात भर एक सपना कई बार देखा कि नुरीन अपनी सारी बहनों को लिए घर के आंगन में एक तरफ खड़ी है। वो उन्हें जो भी बात कहती है, उसे नुरीन और उसकी बहनें एक दम तवज्जोह नहीं दे रही हैं। और जब वह गुस्से में उन्हें मारने दौड़ती है तो वह सब नुरीन के पीछे-पीछे कुछ कदम बाहर को जा कर एकदम गायब हो जाती हैं। उन्होंने बेड पर से उतरने के लिए दोनों पैर नीचे लटकाए, दुपट्टे को ओढ़ने के लिए कंधे पर पीछे फेंका तो उनको लगा कि उसके एक कोने पर कुछ बंधा हुआ है। दुपट्टे के छोर को वापस खींचा तो देखा उनका शक सही था। वह मन ही मन बोलीं ‘मैं तो दुपट्टे में यूं कभी कुछ बांधती नहीं। कल सोते वक्त भी कुछ नहीं था मेरे हाथ में जो बांधती।’ मन में बढ़ती जा रही इस उलझन के बीच ही उन्होंने गांठ खेल कर देखा तो उसमें किसी कॉपी के कई पन्ने बंधे हुए थे। जिसके पहले पन्ने पर बड़े अक्षरों में सिर्फ़ इतना लिखा था। ‘अम्मी यह सिर्फ़ तुम्हारे लिए है। आगे के पन्नों को पूरा जरूर पढ़ लेना।’ यह लाइन पढ़ते ही उसकी अम्मी भीतर ही भीतर कुछ बुरा होने की आशंका से घबरा उठी। उन्होंने अपनी धड़कनों के बढ़ते जाने को स्पष्ट महसूस किया। साथ ही पूरे शरीर में एक थर-थराहट भी।

जल्दी से अगला पन्ना खोल कर पढ़ना शुरू किया। पहली लाइन पढ़ते ही दिल धक् से हो कर रह गया। चेहरे पर पसीने की बूंदें चमक उठीं। हथेलियां नम हो उठीं। कुछ क्षण अपने को संभालने के बाद उन्होंने पहली ही लाइन से फिर पढ़ना शुरू किया। नुरीन ने बिना किसी अभिवादन के सीधे-सीधे लिखना शुरू किया था कि ‘अम्मी मैं हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रही हूं। इसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम ज़िम्मेदार हो। मैं तुम्हारे गुनाहों में अब और साथ नहीं दे सकती। इसलिए मेरे पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है। इससे भी पहले यह कहूंगी कि मैं अपने अब्बू को निरीह, लाचार अब्बू को तुम्हारे गुनाहों के कारण समय से पहले मौत के मुंह में जाते नहीं देख सकती। और साथ ही यह भी कि तुम अब्बू के इलाज में अकेली सबसे बड़ी बाधा हो, रुकावट हो। अम्मी मैंने अब तक अपने जीवन में तुम्हारी जैसी औरत नहीं देखी जो संपत्ति के लालच में अपने शौहर को मौत के मुंह में धकेल दे। मुफ्त की संपत्ति पाने के लिए फरिश्ते जैसे अपने ससुर पर अपनी पोती की इज्जत लूटने का घिनौना इल्जाम लगा दे। तुम लालच में इतनी अंधी हो गई हो कि अपनी बेटी की इज्जत पूरी दुनिया के सामने उछालते तुम्हें जरा भी संकोच शर्म नहीं आई। तुमने पलभर को भी यह ना सोचा कि अस्सी बरस के ऐसे इंसान पर तुम आरोप लगा रही हो जो चलने-फिरने, खाने-पीने में भी लाचार है। वह मेरी जैसी लहीम-सहीम एक जवान लड़की की इज़्जत क्या लूट पाएगा।

तुम्हें यह आरोप लगाते हुए जरा सी यह बात समझ में न आई कि दुनिया तुम्हारी इन बातों पर कैसे यकीन कर लेगी। हर आदमी शुरू से ही तुम पर ही शक कर रहा है। पुलिस को दुनिया ऐसी-वैसी कहती रहती है। लेकिन वह सब भी तुम्हीं पर शक कर रहे हैं कि तुमने मुझ पर कोई न कोई दबाव बना कर ही मुझे इस साजिश में शामिल किया है।

अम्मी तुम्हें भले ही पुलिसवालों, दुनिया वालों की नज़र में खुद के लिए लानत-मलामत ना दिख रही हो लेकिन मैंने इन सबकी नज़रों में अपने लिए गुस्सा, नफरत, लानत-मलामत सब देखा है। किसी के सामने पड़ने पर शर्म के मारे मैं जमीन में धंसी चली जाती हूं। मुझे लगता है कि जैसे सचमुच ही सरेराह मेरी इज़्जत लुट चुकी है। पुलिस वालों ने जिस तरह से सच जानने के लिए तरह-तरह के सवाल किए वह मैं बता नहीं सकती। तुम्हें भले ही इन बातों से कोई फर्क ना पड़े लेकिन मुझे वह सब सुन कर लगता है कि इससे अच्छा था कि मैं मर ही जाती।

उस महिला अधिकारी ने बड़ा साफ-साफ पूछा कि तुम्हारे दादा ने यह छेड़खानी पहली बार की या इसके पहले कितनी बार की। उन्होंने तुम्हारे शरीर के किस-किस हिस्से को छुआ। वह मुझसे सच उगलवाने पर इस कदर तुली हुई थी कि शरीर के अहम हिस्सों की तरफ इशारा करके पूछती यहां छुआ या यहां छुआ। किस तरह से दबाया, कितना किया। मैं जवाब दे पाने के बजाय फूट-फूट कर रो पड़ी थी अम्मी। मुझे यह सब सुन कर लग रहा था मानो सचमुच मेरी इज़्जत लुट रही है। असहनीय थी मेरे लिए वह जलालत।

मैं उस पुलिस अधिकारी को क्या बताती कि मेरे दादा के हाथ हमेशा हम सब बच्चों की भलाई के लिए, दुआ के लिए ही उठे। सिर पर हाथ हमेशा आशीर्वाद के लिए ही रखा। लेकिन अम्मी मैं ऐसी खुर्राट पुलिस ऑफिसर के भी सामने, ऐसी जलालत भरी स्थिति में भी टूटी नहीं। झूठ को बराबर सच बनाए रही। रोती रही मगर अड़ी रही। क्यों कि अब्बू का चेहरा बराबर मेरे सामने था। और तुम्हारी धमकी बराबर कानों में गूंजती रही, कि ‘जरा भी तूने सच बोला तो अब्बू का मरा मुंह देखेगी।‘ तुम बराबर झूठ पर झूठ बोलती रही कि तुम और ख़ालु अब्बू के इलाज के लिए पैसे का इंतजाम बस कर ही चुकी हो। अम्मी यह सब जानते हुए भी मैं सिर्फ़ इस लिए तुम्हारे इशारे पर नाचती रही क्योंकि मैं किसी भी सूरत में अब्बू को नहीं खोना चाहती। और इसीलिए यहां से भागने का भी फै़सला लिया। हमेशा के लिए। क्योंकि मैं जानती हूं कि मैं यहां रहूंगी तो तुम तो अब्बू का इलाज कराने से रही। ऊपर से दादा को भी छोड़ोगी नहीं। इस हालत में इस तरह तो वह यूं ही चल बसेंगे। इसलिए मैं जा रही हूं। सबसे पहले मैं यहां से जाकर पुलिस को विस्तार से ई-मेल करूंगी। कि दादा को किस तरह झूठी साजिश रचकर फंसाया गया। मुझे साजिश में शामिल होने के लिए फंसाया गया, विवश किया गया।

इन सारी बातों की मैं विडियो रिकॉर्डिंग कर के विडियो भी पुलिस को मेल कर दूंगी। कि दादा बिल्कुल बेगुनाह हैं उन्हें तुरंत छोड़ दिया जाए। इस काम के लिए मैं तुम्हारा मोबाइल ले जा रही हूं। यह काम पूरा होते ही कोरियर से भेज दूंगी। क्योंकि अपने पास रखूंगी तो पुलिस इसके सहारे मुझ तक पहुंच जाएगी। सच जानने के बाद वह तुम्हें नहीं छोड़ेगी। इसलिए मैं दादा को भी फ़ोन करके उनसे गुजारिश करूंगी कि वो ख़ालु को छोड़कर हमें, तुम्हें और बाकी सबको बख्श दें। पुलिस को किसी भी तरह मना कर दें। उन्हें अब्बू का वास्ता दूंगी। अल्लाह-त-अला का वास्ता दूंगी कि हम भटक गए थे। हमें माफ कर दें। हमें पूरा यकीन है कि वे ऐसे नेक इंसान हैं कि हम ने उनसे इतनी घिनौनी ज़्यादती की है लेकिन वह फिर भी हमें बख्श देंगे। वो इतनी कूवत रखते हैं कि हमें जरूर बचा लेंगे।

अम्मी अब तुम यह सोच रही होगी कि इस सबसे अब्बू का इलाज कहां से हो जाएगा। तो अम्मी यह अच्छी तरह समझ लो कि जब मुझे यह पक्का यकीन हो गया कि यह कदम उठाने से दादा को बचाने के साथ-साथ अब्बू के इलाज का भी रास्ता साफ हो जाएगा तभी मैंने यह क़दम उठाया। मैं दादा से साफ कहूंगी कि आप छूटते ही सबसे पहले जो प्रॉपर्टी बेचना चाहते हैं तुरंत बेचकर अब्बू का इलाज कराएं। और घर में शांति बनी रहे इसके लिए वह तुम पर किसी सूरत में कोई केस न करें। तुम्हें बख्श दें। एक तरह से यह तुम्हारे लिए सजा भी है। मैं उनसे यह भी कहूंगी कि दादा मुझे भूल जाओ। क्योंकि मेरे वहां रहने पर आप यह सब नहीं कर पाएंगे। क्योंकि अम्मी ख़ालु के साथ कोई ना कोई साजिश रच कर मुझे फंसाए रहेंगी।

अम्मी मैं दादा को यह भी बता दूंगी कि तुमने किस तरह प्रॉपर्टी के चक्कर में मेरा निकाह ख़ालु के लड़के दिलशाद से करने की साजिश रची है। अम्मी तुम प्रॉपर्टी के चक्कर में इस कदर गिर जाओगी मैंने यह कभी भी नहीं सोचा था। तुम्हें यह भी ख़याल नहीं आया कि मैं भी एक इंसान हूं कोई भेड़-बकरी नहीं कि जहां चाहे बांध दिया, जब चाहा तब जबह कर दिया।

इस निकाह के बारे में सोचते हुए तुम्हें यह ख़याल तो करना चाहिए था कि जिस लड़के के साथ मैं बचपन से खेलती-कूदती, पढ़ती-लिखती आई, जिसे मैंने हमेशा सगा भाई माना। उसे सगे भाई का दर्जा दिया, चाहा-प्यार किया और उसने भी हमें हमेशा सगी बहन माना, प्यार दिया। उससे तुम मेरा निकाह करने का फै़सला किए बैठी हो। ख़ालु तो ख़ालु ठहरे, वह जानते हैं कि घर में कोई लड़का है नहीं। मकान-दुकान मिलाकर कई करोड़ की प्रॉपर्टी है जो अंततः लड़कियों को ही मिलेगी। इस स्वार्थ में अंधे हो उन्होंने तुम्हें फंसाया फिर अपने लड़के को मुझसे निकाह के लिए तैयार कर लिया। जब से तुम दोनों ने दिलशाद को इसके लिए तैयार किया है तब से उसको मुझसे मिलने नहीं दिया। क्योंकि तुम्हें यह डर है कि मुझसे मिलने के बाद वह मुकर ना जाए।

अम्मी तुम्हें सोचना चाहिए था कि आखिर मैं ऐसे शख्स से कैसे निकाह कर लूंगी जिसे बचपन से भाई की तरह देखती रही हूं। फिर अचानक उसे शौहर मान लूं। उसके बच्चों को पैदा करने लगूं। छी.... अम्मी मुझे घिन आती है। यह खयाल आते ही उबकाई आने लगती है। मैं दिलशाद को भी समझा कर मेल करूंगी। मुझे यकीन है कि वह भी क़दम पीछे खींच लेगा। मैं उसको यह भी समझाऊंगी कि यदि तुम्हारे अब्बू, मेरी अम्मी मेरी छोटी बहनों से निकाह की बात चलाएं तो भी तुम ना मानना। बल्कि ऐसे किसी गलत काम को तुम रोकना भी।

अम्मी मैं एकदम समझ नहीं पा रही कि आखिर ख़ालु ऐसा कौन सा काला जादू जानते हैं कि इतनी आसानी से तुम्हें बरगलाया। अपने इशारे पर तुम्हें नचाते हुए एक के बाद एक गुनाह करवाए जा रहे हैं। अम्मी जरा सोचो कि इससे बड़ा गुनाह क्या होगा कि तुम उनके बहकावे में आकर अपने शौहर से दगा कर बैठी। मेरी जुबान यह कहते नहीं कांप रही अम्मी कि तुम लंबे समय से यह इंतजार कर रही हो कि कब तुम्हारे शौहर इस दुनिया से कूच कर जाएं।

अम्मी यह कहने की हिम्मत इस लिए कर पाई हूं, क्योंकि तुम्हारी हरकतों ने दिलो-दिमाग से तुम्हारे लिए सारी इज्जत धो डाली है। जिस तरह तुमने अपनी जवान लड़कियों के सामने, घर में शौहर के रहते ख़ालु से नाजायज संबंधों की पेंगें बढ़ाईं उससे अम्मी मन में तुम्हारे लिए नफरत ही नफरत भर गई है। अपने शौहर की लाचारगी का जैसा फ़ायदा तुम उठा रही हो अम्मी वैसा शायद ही कोई बीवी उठाती हो। जरा सोचो अम्मी तुम्हारी इस घिनौनी, जलील हरकत से अब्बू पर क्या बीतती होगी। अम्मी गुनाह करके ज़्यादा दिन बचा नहीं जा सकता। और अब यही तुम्हारे साथ भी हुआ। मैं जा रही हूं। मेरे जाने से तुम्हारे और कई गुनाह भी बेपर्दा हो जाएंगे। कम से कम दादा के साथ तुमने जो किया वह तो बेपर्दा हो ही जाएगा।

जहां तक बाकी गुनाहों की बात है तो समय के साथ वह अपने आप ही खुल जाएंगे। क्योंकि गुनाह एक दिन खुद पुरजोर आवाज़ में दुनिया के सामने सच बोल ही देता है। अम्मी मैं पुलिस को यह भी कह दूंगी कि मैं अब बालिग हूं। मैं कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हूं। अब मैं घर में नहीं रहूंगी। इसलिए मुझे ढूंढ़ा ना जाए। दादा से कह कर सारे केस समाप्त करवा लूंगी। अम्मी मुझे अपनी हिम्मत, अपनी क्षमता पर यकीन है। एक दिन अपना एक मुकाम जरूर बनाऊंगी। जिस दिन कुछ बन गई उस दिन एक बार घर जरूर आऊंगी। माना दुनिया बहुत खतरनाक है। एक अकेली लड़की का उसमें रहना दुनिया के सबसे भयानक खतरे का सामना करने जैसा है। शेर, चीतों, भालुओं जैसे हिंसक जानवरों से भरे जंगल में अकेले घूमने जैसा है। अम्मी, ख़ालु जैसे लोगों के चलते खतरे का सामना तो मैं अपने घर में भी करती ही आ रही हूं।

अम्मी इसी खतरनाक दुनिया में एक लड़की पढ़-लिख कर, मेहनत करके, होटल में वेटर से लेकर ना जाने क्या-क्या काम करके आगे बढ़ती है, अपने इसी मुल्क में केंद्रीय मंत्री बन जाती है। और भी ऐसी ना जाने कितनी लड़कियों ने अपना मुकाम बनाया है तो मैं भी क्यों नहीं बना सकती। अम्मी मैं जिस दिन कुछ बन जाऊंगी उस दिन अपनी बहनों को भी साथ ले जाऊंगी। और हां मैं तुम्हारा बुर्का पहन कर जा रही हूं। बड़ा खूबसूरत है। तुम भले ही छिपाओ लेकिन मुझे मालूम है कि किसने दिया है। वैसे भी क्या वाकई तुम्हें बुर्के की जरूरत है भी।

*****