जब कभी मैं ख़ुशी के बारे में सोचती हूँ तो मुझे एक मूवी का डायलॉग याद आ जाता है।
“आज खुश तो बहुत होंगे तुम “ शायद इसलिए क्योकि कोई भी मुझसे ये सवाल पूछता ही नहीं या फिर मैं सबसे दूर हो गई हूँ, जो भी कहो लेकिन सच में ख़ुशी मेरे लिए सवाल ही बना गई है? जिसका जवाब मुझे सच में सोचने पर मजबूर कर देता है? या फिर ये कहु की की मेरे लिए ख़ुशी छोटे-से बच्चे की मुस्कान है, जो निश्छल और पवित्र है बिलकुल ईश्वर के सामान। जो मुझे मेरी सारी परेशानी ले जाती है और मुझे सकून दे जाती हैं। वो मुस्कान न जाने मुझ से मेरा वो गम और अकेलापन ले जाती यही, जो कभी-कभी इतनी शांति देती है और मुझे चैन दे जाती है
सच कहूँ मुझे समझ नहीं आता है। सच में ख़ुशी क्या है?
शायद मेरे लिए मेट्रो की अपनी सीट किसी और को देना में है जो मुझे अपनी दुआ में “ खुश रहो बेटा ” कहा के जाते है। वो सकून मेरी आँखों में एक नई-सी चमक दे जाती है, जो सच में मुझे ख़ुशी दे जाती है।
याद आती है मुझे सर्दी की शाम, जब मेट्रो जाते समय स्टेशन के बाहर एक बुजुर्ग अपनी लाठी को थामे हुए अपने कांपते हाथो से कुछ सामान बेचते हुए सब आते-जाते उसे देखते है, कुछ करते नहीं है। शायद तब यही सवाल मेरे जहन में आता है। सच्ची ख़ुशी क्या होती है ? मैं अपना सर झुकाये चली जाती हूँ और ये सवाल वही रहा जाता है। अगले दिन सोचती हूँ न देखु उस बुजुर्ग को वरन फिर खो जाऊँगी उन सवालो में ???
शायद ख़ुशी वो है जब मेने अपनी बहन को अंधेरी रात में दीवार के पीछे से भूत बना कर डराया था और खूब रोइ थी वो और मुझे बहुत मज़ा आया था , उसके बाद मम्मी ने मेरी बैंड बजाई थी।
शायद ख़ुशी वो है जब भाई, पापा को भूत की कहानी सुनते और सुने के बाद डर के नीचे नहीं उतारते और फिर कहते मौसा जी मुझे नीचे छोड़ के आ जाओ ना उसकी हालत पर जोर जोर से हसना और उसे डरने के भूत की आवाजे निकलना उसका चिल्लाना और पलट के ये कहना बताता हूँ..... तुम्हारी ड्राइंग कौन बनता है रुका।
भाई का घर पर आना चहरे पर झूठी मुस्कान और मेरा ये पूछना क्या हुआ है.? और उसका कहना कुछ नहीं। फिर मेरा ये कहना दोस्त है पहले, या बहन-भाई और उसका जवाब देना दोस्त, फिर मेरा पूछना बता हुआ क्या?
एक-दूसरे से सारी फीलिंग शेयर करना और फिर एक-दूसरे को खुश करना और साथ लड़ना, सब कुछ भूल के एक-दूसरे की तंग खींचना।
शायद ख़ुशी वो है जब लाइट का चले जाना और पापा और हम सब का एक साथ पागलो की तरह गाने गाना और मम्मी का ये चिल्लाना बाप-बेटी ने घर को चिड़ियाघर बना दिया है। फिर चिल्ला कर कहना चुप हो जाओ और हमारा और तेज़ गाना। मम्मी का हम सब को देख कर मुस्कान।
शायद ख़ुशी वो है जब सारे दोस्त बाहर खाने के लिए जाते है और पैसे कम पड़ जाते है और तब सब का पैसे मिलाना और बाहर आ कर बच गए ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना।
शायद ख़ुशी वो है जब बस स्टैंड पर बस का इंतिज़ार करना। बस लेते ही दोस्तों का बैग पीछे खींचना और ये कहाँ अलगी ले लेना।
शायद ख़ुशी वो है जब दोस्तों को बेवकूफो की तरह इंतजार करना और उनका कहना बस पहुंचने वाला हूँ या....... उसके बाद भी 2 घंटे लेट आना और जम के सुनना।
शायद ख़ुशी वो जब हम अपने नज़रिये से दुनिया को देख और समझने की कोशिश में नए दोस्त बनाना, अपने ढंग से अपने संग रहना, अपने लिए खुद कुछ करना, हर दिन को एक नए दिन जैसे जीना।
शायद मुझे ख़ुशी को समझने के लिए और समझने की जरूरत है। कभी-कभी अपनी ख़ुशी दुसरो को खुश देखने में होती है....... सच कहना।
शायद इसलिए मुझे ख़ुशी समझ नहीं आती की ये है क्या ?