"हे मोरी शारदा मैया, जानकी खों ठीक कर दियो" अपने आप ही कुंती के मुंह से ये दुआ निकली और हाथ स्वतः ही जुड़ गए प्रार्थना में। ये प्रार्थना जानकी के स्वास्थ्य के लिए थी, या अपनी गर्दन की चिंता.... भगवान जाने...!
कुंती को याद तो सुमित्रा के साथ की गईं ज़्यादतियां भी आ रही थीं.....बहुत दुख दिए हैं उसने सुमित्रा को। लेकिन तब भी उसे उआँ पर कोई पछतावा नहीं है। अपनी करनी के आगे, उसे अपने जेठ से ब्याह करवाने का अपराध ज़्यादा बड़ा लगता है। कुंती ये कभी मान ही नकहिं पाई कि सुमित्रा जी ने ये रिश्ता जानबूझ के नहीं करवाया। जबकि सच ये नहीं था। कुंती कितनी ही कोशिशें कर ले, सुमित्रा के प्रति उसकी खुन्नस कम नहीं होती।
सुमित्रा जी को ग्वालियर पहुंचते पहुंचते रात के दस बज गए थे। खाना गांव से ही बांध के ले आये थे तो सारे लोग खाना खा के अपने अपने बिस्तर के हवाले हुए। अब जो होना था, सुबह ही होना था।
सुबह तिवारी जी ने सबसे पहला काम शहर के नामी मनोचिकित्सक डॉक्टर आर के वर्मा से अपॉइंटमेंट लेने का किया। शाम चार बजे का समय मिला तो तय हुआ कि सुमित्रा 12 बजे स्कूल से लौट आती है इसलिए किशोर, सुमित्रा और जानकी ही डॉक्टर के पास जाएंगे। तिवारी जी की ड्यूटी ही 12 बजे से शुरू होती थी तो चार बजे उनका आना सम्भव नहीं था।
सबेरे सुमित्रा जी खाना बनाने की तैयारी करने लगीं तो जानकी ने उन्हें रोक दिया।
"छोटी अम्मा, तुम तो तैयार हो के स्कूल जाओ, खाना हम बना लैहैं।"
सुमित्रा जी मुस्कुराईं और तैयार होने चली गईं। लौट के आईं तो देखा, जानकी ने बहुत सलीके से पूरा खाना न केवल बनाया बल्कि तिवारी जी और बच्चों को खिला भी दिया था। बच्चे सब बड़े ही थे लेकिन तब भी सुमित्रा जी पढाई के चलते रूपा दीपा को किचन में नहीं झोंकतीं थीं। आज मौका पा के रूपा ने भी जानकी की पूरी मदद करवाई। जानकी को देख के लग ही नहीं रहा था कि उसे कोई मानसिक बीमारी होगी। सबसे अदब से बात करती, खिलखिलाती जानकी सुमित्रा जी को रूपा की तरह ही लग रही थी। किशोर भी खुश था।
शाम को चार बजे, नियत समय पर सुमित्रा जी, किशोर और जानकी डॉक्टर से मिलने चल दिये। डॉक्टर ने उन्हें तुरन्त ही चैंबर में बुलवा लिया। कुछ बातें सब के सामने कीं और लगभग आधे घण्टे जानकी से अलग से बात करते रहे। सेशन ख़त्म हुआ तो उन्होंने सुमित्रा जी, किशोर को अंदर बुलाया।
"देखिये मिसेज तिवारी, मुझे तो जानकी में कोई मानसिक समस्या समझ मे नहीं आई सिवाय इसके कि गाँव में वो अपनी सास के व्यवहार से बहुत परेशान रहती है। यही परेशानी कभी कभी बढ़ जाती है तो उसका व्यवहार कुछ न कर पाने की स्थिति में उग्र हो जाता है। फिलहाल मैं कुछ दवाइयां टेंशन रिलीज़ करने की लिख रहा हूँ। ध्यान रहे, इनसे कोई ऊंची आवाज़ में उल्टी सीधी बात न करे वरना कोई हादसा भी हो सकता है।"
ये स्थिति तो किशोर और सुमित्रा जी भी समझ ही रहे थे। दवाइयां ले के तीनों वापस घर आ गए।
रात में खाना पीना होने के बाद जब सब अपने बिस्तरों पर थे तो जानकी सुमित्रा जी के पास आई।
"छोटी अम्मा, हमें कुछ कहना है।"
"कहो बेटा"
"छोटी अम्मा, हमें कछु नईं भओ। हमने तौ अम्मा की गालियों से परेशान हो के पीपल वाले बब्बा जू के सिर पे सवार होने का नाटक किया था। कोई और रास्ता नई दिखा रओ तो हमें छोटी अम्मा....और ऊ के बाद अम्मा कछु सीधी भी पड़ गईं...!"
जानकी की बात सुन के पता नहीं क्यों सुमित्रा जी को अचरज नहीं हुआ। उन्हें जैसे पहले से अंदेशा था कि ऐसा ही कुछ है, जो इस घटना के पीछे का सच है।
क्रमशः