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फ़ैसला

"फैसला"
प्रतिभा ने कॉलेज से आते ही पानी पिया और राहत की साँस ली। प्रतिभा अपने माँ-बाप की इकलौती संतान है। जिसे उसके माँ-बाबूजी ने बड़े लाड़-प्यार और नाजों से पाला है।
बचपन से ही प्रतिभा को अच्छे संस्कार मिले हैं क्योंकि माता-पिता दोनों ही धर्म-कर्म में विश्वाश रखते हैं और धार्मिक प्रवृत्ति के हैं।

पिता का नाम श्यामसुंदर तथा माता का नाम रोहिणी है।
श्यामसुंदर के पास सम्पति के नाम पर कुछ पुस्तैनी ज़मीन है जिसे वे हर साल ठेके पर दे देते हैं।
उनकी एक छोटी सी दुकान है जिससे घर खर्च आसानी से निकल जाता है तथा बाकी की बचत को वे बेटी के विवाह में काम में लेने के लिए बैंक में जमा कर देते हैं।
दुकान का काम औसतन ठीक चलता है क्योंकि वे उधार आदि नहीं करते हैं। श्यामसुंदर जी बड़े ही नेकदिल और सभ्य इंसान हैं इसलिए समाज में उनका काफी अच्छा रुतबा है ...।

रोहिणी भी स्वभाव की बहुत अच्छी महिला हैं।
कुल मिलाकर पूरा परिवार आपसी स्नेह रूपी डोरी में बंधा हुआ है।
प्रतिभा खूबसूरत होने के साथ-साथ पढ़ाई में बहुत होशियार है।
एक दिन वह अपनी सहेली के साथ कॉलेज जा रही थी। सड़क बिल्कुल सुनसान थी।
अचानक एक बदमाश उन दोनों के पीछे से भागता हुआ आता है और प्रतिभा के हाथ से उसका मनिबेग छीनकर भागने लगता है...
प्रतिभा को कुछ समझ नहीं आता है कि वो क्या करे , भय से उसके मुँह से आवाज भी नहीं निकल पाती है।
तभी पीछे से सफेद रंग की शिफ्ट गाड़ी तेज़ गति से उनके पास से निकलती जाती है...
करीब 100 मीटर की दूरी पर जाकर कार ज़ोरदार ब्रेक लगने से गाड़ी की टायर कुछ कदम घसीटने के बाद गाड़ी रुक जाती है।
अचानक कार में से एक युवक बाहर निकलता है और तेजी से भागते हुए युवक की ओर लपकता है...
कार वाले युवक ने भागते हुए लड़के के क़दमों में अपनी टांग अड़ा दी जिससे बदमाश लड़खड़ाते हुए एक दर्द भरी आह के साथ गिर जाता है।
बदमास को अंकित उसकी कॉलर पकड़कर उठाता है और बिना एक पल गंवाये उसकी गाल पर ज़ोरदार तमाचा मारता है, बदमाश के चेहरे पर डर साफ-साफ नजर आने लगता है।

जैसे-तैसे बदमाश अपने आपको अंकित की गिरफ्त से छुड़ाकर मनिबेग को वहीं फेंकता देता है और वहाँ से हवा हो जाता है...।
हाँ कार से उतरने वाले लड़के का नाम अंकित है। जिसने काले रंग की पेंट उसी रंग के जूते और हल्के नीले कलर की शर्ट पहन रखी है। जिसने आँखों पर धूप का चश्मा पहन रखा है जो काफी स्टाइलिश है। वह भी उसी कॉलेज में पढ़ता है जिसमें प्रतिभा पढ़ती है।
इतनें में दोनों लड़कियाँ वहाँ पहुँच जाती हैं और अंकित प्रतिभा को उसका बैग लौटकर बिना कुछ बोले वहाँ से चला जाता है...

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फिर दोनों लड़कियाँ कॉलेज जाती हैं और घर आने पर प्रतिभा ने अपनी माँ को सारी बात बताई...।
"बेटा संभलकर चला करो आजकल जमाना बहुत खराब है, आगे से जब भी तुम कॉलेज या अपनी सहेली के घर जाओ तब याद रखना कि सुनसान सड़क को छोड़कर ऐसी सड़क से जाना चाहिये जहाँ चहलपहल ज्यादा हो," माँ ने समझाते हुए कहा...।

3-4 दिन बाद कॉलेज कैंटीन के पास प्रतिभा ने अंकित को देखा और सकुचाते हुए उस दिन के लिए धन्यवाद दिया।
इट्स ओके साधारण लहजे में अंकित ने प्रत्युत्तर दिया और वहाँ से चला गया।
ऐसे ही कॉलेज में कई बार दोनों का आमना सामना होने लगा और दोनों के बीच साधारण बातचीत भी शुरू हो गई...
दिन गुजरते गए और धीरे-धीरे प्रतिभा को ये एहसास होने लगा था कि वह अंकित की और खींची चली जा रही है, जैसे उसका अपने मन पर नियंत्रण कम हो रहा हो... उसके मन में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई थी।
एक बार उसे लगता जैसे उसे अंकित से प्यार हो गया है दूसरे ही पल प्रतिभा अपने आपसे से ही कहती है, नहीं-नहीं ये मेरा वहम है।
अंकित को भी अब ये महसूस होने लगा था कि प्रतिभा के मन में उसके प्रति आकर्षण बढ़ रहा है।
एक दिन जब कॉलेज में प्रक्टिकल चल रहे थे तब मौका पाकर अंकित ने प्रतिभा को अपनी ओर आने का इशारा किया...

प्रतिभा भी निःसंकोच उसके बुलाने पर उधर चली गयी जहाँ अंकित खड़ा था, क्योंकि ऐसा आज पहली बार नहीं था कि वे दोनों अन्य लोगों से थोड़ी दूरी बनाकर अकेले खड़े हों,,।
अंकित ने साधारण बातचीत के बाद कहा; एक बात कहूँ प्रतिभा तुम बुरा तो नहीं मानोगी?
"मैं बुरा क्यों मानूँगी तुम पूछो क्या बात है?" - प्रतिभा ने कहा।
"प्रतिभा आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो"- अंकित ने थोड़ा खुलते हुए कहा और उसकी ओर इस आशा से देखने लगा कि वो क्या कहने वाली है ?
तथा इस बात को सुनकर प्रतिभा के सुंदर चेहरे पर किस तरह के भाव आ रहे हैं, शायद वो उसके चेहरे से प्रतिभा के अव्यक्त भावों को पढ़ने की पुरजोर कोशिश कर रहा था।

प्रतिभा वास्तव में बहुत ही खूबसूरत है लेकिन वो एक सभ्य और गुणवंती लड़की भी है।
इसलिए आज तक कभी भी अपनी सुंदरता को लेकर उसके मन में किसी भी तरह का अहम भाव नहीं आया था।
प्रतिभा का प्राकृतिक सौंदर्य देखने वाले को मंत्रमुग्ध कर देता ...
बिना मेकअप के भी उसकी खूबसूरती सिर चढ़कर बोलती थी।
यही कारण है कि कम समय में ही कॉलेज की बहुत सारी लड़कियाँ प्रतिभा की सहेलियाँ बन गयी क्योंकि प्रतिभा अपने स्वभाव के अनुसार हमेशा सभी के साथ बिना किसी राग-द्वेष के मधुर व्यवहार करती थी...।
प्रतिभा ने अंकित की बात सुनकर कहा; मैं कहाँ खूबसूरत हूँ...
और तुम तो मुझे जैसे चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हो...।
तब अंकित ने कहा ऐसी बात नहीं है तुम वास्तव में ही बहुत खूबसूरत हो और मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ। बड़ी मुश्किल से मैं ये सब कह पाया हूँ। हिम्मत ही नहीं हो रही थी...।

हालांकि वह अपनी प्रसंशा सुनकर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी परंतु उसने उस समय अपने भावों को छुपा लिया। वह विचलित हो गयी और तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहती थी, क्योंकि उसने ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि अंकित इस तरह से अचानक अपनी बात उसके सामने रख देगा...।

साथ ही उसे शर्म आने के कारण वो नज़रों को झुकाये नीचे देखने लगी। लज्जावश वो और कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी और किसी भी तरह वहाँ से जाना चाहती थी....
इतने में ही मानसी ने उसे पुकारा... प्रतिभा को लगा जैसे कोई मन मांगी मुराद पूरी हुई हो और बिना कुछ बोले वहाँ से मानसी की ओर कदम बढ़ा दिए.... अंकित उसे जाते हुए देखता रहा...।

*********
आज प्रतिभा का किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था और घर आते ही खाना खाकर जल्दी ही सोने चली गयी...।
अगले दिन उनके घर प्रतिभा की भुआजी आने वाली थी इस कारण से माँ रोहिणी ने उसे कॉलेज जाने से रोक दिया..
लगभग 10 बजे शकुंतला भुआजी उनके घर आयी और सभी से प्रेमपूर्वक मिली। प्रतिभा का पूरा परिवार भुआजी का बहुत मान-सम्मान करता था। भुआजी भी प्रतिभा को अपनी ही बेटी मानती थी क्योंकि उनके केवल एक बेटा था बेटी नहीं थी। अतः जब भी वो आती प्रतिभा के लिए ढ़ेर सारा समान और उपहार लेकर आती थी। अपने बेटे की शादी शकुंतला ने 5 वर्ष पूर्व ही कर दी थी।

दो दिन रहकर जब भुआजी जाने लगी तो रोहिणी ने उनको एकांत में लेकर कहा दीदी जी इस साल प्रतिभा के एग्जाम होने पर उसकी शादी करने का विचार है, आप के ध्यान में कोई अच्छा सा लड़का और परिवार ढूँढ़कर हमें बताना... लेकिन दीदी जी परिवार हमारी ही तरह का होना चाहिए क्योंकि हम शादी में ज्यादा दान-दहेज नहीं दे पाएंगे।
ताकि कल को बेटी को उसके ससुराल वाले परेशान न करें...।
हाँ, हाँ क्यों नहीं मैं आपको 6-7 दिन में फोन से समाचार कर दूँगी- भुआजी ने कहा।
भुआजी चली गयी और रोहिणी घर का काम काज संभालने में व्यस्त हो गयी...।
इधर प्रतिभा 3-4 दिन लगातार कॉलेज जाती है लेकिन उसकी मुलाकात अंकित से नहीं हुई।
वैसे प्रतिभा ने लज्जावश अंकित से मिलना भी नहीं चाहा पर मन ही मन उसने निर्णय कर लिया कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो वह अंकित से ही शादी करेगी।
लगभग एक सप्ताह बाद एग्जाम शुरू होने थे अतः वह भी मन लगाकर तैयारी करने लगी...।
इसी बीच शकुंतला ने समाचार भेजा कि उनके देवर का लड़का है अजय उसने एक वर्ष पहले ही कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर ली है और अब एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत है। तनख्वाह भी अच्छी है, हमारे परिवार को तो आप जानते ही हैं सभी बहुत अच्छे हैं, मैंने अपने देवर से बात कर ली और वे इस रिश्ते से बहुत खुश हैं, दान दहेज की कोई समस्या नहीं मैने उनसे इस बारे में भी बात कर ली उनका तो ये कहना है कि जब हमारे घर प्रतिभा जैसी लक्ष्मी आ रही है तो हमें भला और किस धन की चाह हो सकती है। वैसे भी प्रतिभा हमारे घर आयेगी तो मेरी भी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी...।
अगर आप चाहो तो मैं अगले रविवार को अजय के मम्मी - पापा और प्रतिभा के फूफाजी को लेकर आ जाऊँ...।
तब रोहिणी ने श्यामसुंदर जी से बात की और शकुंतला को अगले रविवार को घर आने के लिए कह दिया...।
शाम को रोहिणी ने प्रतिभा से कहा कि अगले रविवार को तुम्हारी भुआजी और मेहमान तुम्हें देखने आ रहे हैं...
और फिर रोहिणी को भुआजी ने जो बात लड़के और उनके परिवार के बारे में बताई थी सब बातें क्रमशः रोहिणी ने प्रतिभा को भी बता दी...
रोहिणी ,"बेटा मैं सोच रही थी कि उनके आ जाने के बाद लड़का हमें पसंद आ गया तो शादी में खर्च के लिए जरूरत के हिसाब से थोड़ा बहुत कर्ज़ ले लेंगे बाद में थोड़ा - थोड़ा करके उत्तर देंगे।"
तब प्रतिभा ने भी अपनी सारी बात माँ को बताई की किस तरह से वो अंकित को चाहने लगी और अब उसी से शादी करेगी...।
ये सब अपनी माँ को बताकर प्रतिभा ने करुण नेत्रों से उनकी ओर देखा...।
रोहिणी प्रतिभा के पास बैठते हुए गम्भीर मुद्रा में बोली बेटा मैं जानती हूँ तुम संस्कारी लड़की हो और ये भी जानती हूँ कि तुमने कुछ गलत नहीं किया, जो कुछ भी हुआ तुमने मुझे साफ-साफ बता दिया है।
लेकिन बेटी माँ-बाप कभी भी अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते...

रही बात अंकित की तो उसके बारे में हम नहीं जानते कि वह कौन है? उसके माँ - बाप कौन है? कहाँ रहता है? क्या करता है? खानदान कैसा है? उनका व्यवहार कैसा है? हम कुछ भी नहीं जानते।
मैं नहीं चाहती कि कल को मेरी फूल सी बच्ची को किसी भी तरह की कोई तक़लीफ़ हो...।
रोहिणी ने आगे कहा, खैर किसी भी निर्णय पर तुरंत फैसला करने से पहले अपने और हमारे परिवार के बारे में जरूर सोच लेना।
तुम जानती हो तुम्हारे बचपन से लेकर आज तक तुम्हारे पापा और मैंने तुम्हारी हर छोटी से छोटी खुशी को पूरा किया। हम दोनों से तुम्हारा रोना तो दूर किसी चीज़ के लिए मचलना तक नहीं देखा गया, फिर अब हम तुम्हारा बुरा क्यों करने लगे?
मान लो अंकित से तुमने शादी कर भी ली और कोई ऐसी - वैसी बात हो गयी तो हमारा क्या होगा...।
अगले रविवार को वो बस तुम्हें देखने आ रहे हैं बाकी निर्णय हम सब एक साथ बैठकर कर लेंगे... जल्दबाजी में उन्हें रोकना ठीक नहीं होगा।

रविवार को मेहमान आये... मेहमानों को चाय नाश्ता करवाया गया... उसके बाद शकुंतला ने भी रसोई के काम में दोनों माँ बेटियों का हाथ बटाया... मेहमानों को भोजन कराया गया...। उनका परिवार बहुत अच्छा था, सभी मिलसार थे। शकुंतला की देवरानी बड़ी भली औरत थी, उन्होंने तो प्रतिभा को देखते ही बहू के रूप में स्वीकार कर लिया ...
मेहमानों के जाने के बाद घर पहुँचकर भुआजी ने समाचार दिया कि लड़के वालों को प्रतिभा पसंद है अब आपकी सहमति भी जरूरी है जब आप कहें आपको लड़का दिखा देंगे बाकी आप अजय को पहले से ही जानते हैं...।
अब फ़ैसला प्रतिभा को करना था..।
कॉलेज में एग्जाम शुरू हो गए संयोग से अंतिम दो पेपरों में लगभग 20 दिन का अंतराल है...।
प्रतिभा ने इस रिश्ते के लिए हाँ तो कर दी लेकिन आजकल वो चुपचाप सी रहने लगी...
किसी कारण से लड़के वाले शादी अगले महीने ही करना चाहते थे...
शादी 15 दिन बाद तय की गई...।
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एक दिन प्रतिभा कुछ असहज महसूस कर रही थी तो अपनी मम्मी से पूछकर अपनी बेस्ट फ्रेंड मानसी को बुलाने के लये कॉल की... मानसी ने प्रतिभा से कहा कि एक-दो दिन में मैं तुम्हारे पास वैसे भी आने ही वाली थी... जल्दी से तुम घर तो आओ कहकर प्रतिभा ने फोन काट दिया और सोचने लगी मानसी क्या कहना चाहती है...?
लगभग 1 घंटे बाद मानसी प्रतिभा के घर में थी...।
मानसी ने घर आते ही हमेशां की तरह रोहिणी के पैर छुए और आशीर्वाद लिया...
तुम दोनों प्रतिभा के कमरे में बैठो मैं अभी चाय-नाश्ता लाती हूँ-रोहिणी ने कहा।
प्रतिभा और मानसी ने थोड़ी देर इधर उधर की बातें की इतने में ही रोहिणी चाय नाश्ता ले आयीं...।
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चाय पीते-पीते मानसी ने कहना शुरू किया... प्रतिभा तुम्हें एक बात बतानी है...
हाँ, तो बताओ ना -प्रतिभा ने कहा।
मैं अंकित के बारे में कुछ कहना चाहती हूँ..।
हाँ बोलो क्या बात है?
उस दिन जब तुम अंकित के पास खड़ी थी तब मुझे लगा शायद तुम अंकित को चाहने लगी हो... मैंने सोचा भी कि किसी को चाहना कोई बुरी बात तो नहीं...
लेकिन मेरे मन में ये ख्याल आया कि जिसे तुम चाहने लगी हो उसके बारे में पूरी बात जानना आवश्यक है... मानसी ने कहा।
हाँ, ये बात तो है प्रतिभा ने भी सहमति दी..।
तब मैंने एक बार तो सोचा कि इस बारे में मैं तुमसे बात करती हूँ फिर दूसरे ही पल ये सोचा कि अगर वास्तव में तुम्हें अंकित से प्यार हुआ तो तुम उसके बारे में जानने के बजाय मुझे ही भला-बुरा कहती, शायद मुझसे बात भी नहीं करती...

फिर क्या किया तुमने? प्रतिभा ने उत्सुकता से पूछा।
फिर मैंने उसी दिन तुम्हें बिना बताए एक प्लान बनाया।
कैसे भी करके मैं अंकित के बारे में पता लगाऊँगी... वह कैसा है?
अगर अंकित सही है तो जरूरत पड़ने पर तुम्हारी सहायता करूँगी और अगर अंकित गलत लड़का है तो तुम्हें रोकने का पूरा प्रयास करूँगी यही सोचते-सोचते मैं घर चली गई...

मानसी ने आगे कहना शुरू किया ; संयोग से उसी दिन शाम को जब मैं कुछ जरूरी सामान खरीदने बाजार गयी तब मुझे वो लड़का मिला जिसने एक बार तुम्हारा मनिबेग छीना था... तुम्हें याद है ना वह?
मुझे ज्यादा तो याद नहीं लेकिन सामने आने पर शायद पहचान लूँगी - प्रतिभा ने दिमाग पर जोर देते हुए कहा...।

मानसी ने कहना जारी रखा; मेरे लिए उसे पहचानना ज्यादा मुश्किल नहीं हुआ क्योंकि उस बदमाश से दिखने वाले लड़के ने वही टी-शर्ट पहन रखी थी जो घटना वाले दिन पहन रखी थी, इसलिए मैंने तुरंत उसे पहचान लिया ...
लड़का वहीं बाज़ार में मजदूरी पर वाटर कैंपर सप्लाई करने का काम कर रहा था...
अब प्रतिभा को और भी आश्चर्य हो रहा था तथा बीच में ही पूछने लगी कि फिर क्या हुआ?
फिर क्या, मैने उसे बहाने से रोका और धीरे से कहा जो कुछ पूछूँ सब सही-सही बताना वरना मैं पुलिस थाने में कंप्लेन करुंगी...
लड़के के माथे पर पसीने की बूंदें साफ-साफ झलकने लगी...।

तब वो गिड़गिड़ाने हुए बोला मैम आप जो भी पूछेंगी मैं सब कुछ बता दूँगा लेकिन पुलिस थाने मत जाना...
तब मैंने उस दिन वाला सारा घटनाक्रम दोहराया और पूछा, क्या वो सब किसी के कहने से किया था ... या तुम्हारा काम ही चोरी करना है?
तब उस लड़के ने जो बताया वो आश्चर्यजनक था...

मैं इस शहर में काम की तलाश में नया-नया आया था,,, जो कुछ भी अपुन के पास में था सब 8-10 दिन में खर्च हो गया।
अपुन ने कई जगह काम की तलाश की लेकिन सफलता नहीं मिली... उस घटना से 2 दिन पहले मैंने किसी तरह से स्टेशन पर रात गुजारी, 2 दिन भूखा ही रहना पड़ा... उस दिन मैं किसी से काम माँग रहा था, मुझे काम तो नहीं मिला लेकिन उन साहब ने मुझे किसी से काम मांगते हुए देख लिया होगा... मुझे अपने पास बुलाया और कहा कि एक काम करेगा ?
अपुन बोला काम तो करेगा साब लेकिन काम क्या है?

तब साब ने कहा कि किसी लड़की का पर्स मारना है...
लफड़े वाला काम हमको नहीं करना साब, मैने स्पष्ट कहा।
तब वो साब बोला कोई झंझट नहीं होगा क्योंकि हमें एक बार पर्स उड़ाने का अभिनय करने का बाद में पर्स वापस लड़की को लौटाने का...
मेरे पास पैसे नहीं थे और पर्स जिसका था उसको वापस मिलना था तो मैंने हाँ कर दी...
मुझे योजना बता दी गयी थी... काम होने के बात अपुन को साब ने 1300 रुपये दिए थे...। बस इससे ज्यादा मैं नहीं जानता लेकिन अब आप मुझे जाने दें, मैने कोई चोरी नहीं कि अब मुझे काम भी मिल गया है...
इतना बड़ा धोखा - प्रतिभा के मुख से अपने आप निकला...

मानसी ने कहा बाद में और छानबीन करने पर अंकित के बारे में मुझे और भी बहुत कुछ पता चला... खैर छोड़ो अब तो तुम्हारी शादी भी होने वाली है...
अंकित के बारे में सारी बात जानकर प्रतिभा ने मानसी को गले से लगा लिया और रोते हुए कहा कि मानसी तुमने मेरे कलेजे से बहुत बड़ा बोझ उतार दिया है।
मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं किन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ...
मानसी ने कहा तू मेरी सहेली होने के साथ-साथ बहन जैसी भी है, तुम ही बताओ यदि तुम मेरी जगह होती तो क्या तुम मेरी सहायता नहीं करती?
जरूर करती-प्रतिभा ने कहा।
मानसी ने कहा अच्छा समय बहुत हो गया अब मैं चलती हूँ...

प्रतिभा ने मानसी से कहा कि अब तो तुम्हें यहाँ रोज आना पड़ेगा क्योंकि हमें शादी की शॉपिंग भी तो करनी है...

अच्छा-अच्छा ठीक है कहते हुए मानसी वहाँ से चली गयी...।
थोड़ी देर बाद रोहिणी ने प्रतिभा के कमरे में प्रवेश किया...

रोहिणी ने बताया कि उन्होंने मानसी की सारी बातें सुन ली है और प्रतिभा को गले लगाते हुए भगवान को धन्यवाद किया..।
दोनों माँ बेटी की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी ...

___समाप्त

✍️ परमानन्द 'प्रेम'

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