The Author Sushma Gupta फॉलो Current Read मेरा संघर्ष By Sushma Gupta हिंदी लघुकथा Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books ग्रीन मेन “शंकर चाचा, ज़ल्दी से दरवाज़ा खोलिए!” बाहर से कोई इंसान के चिल... नफ़रत-ए-इश्क - 7 अग्निहोत्री हाउसविराट तूफान की तेजी से गाड़ी ड्राइव कर 30 मि... स्मृतियों का सत्य किशोर काका जल्दी-जल्दी अपनी चाय की लारी का सामान समेट रहे थे... मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२ मुनस्यारी( उत्तराखण्ड) यात्रा-२मुनस्यारी से लौटते हुये हिमाल... आई कैन सी यू - 41 अब तक हम ने पढ़ा की शादी शुदा जोड़े लूसी के मायके आए थे जहां... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे मेरा संघर्ष (8) 2.9k 15.1k 1 अगर कोई कहें कि जिंदगी में क्या पाया? तो शायद पाने से ज्यादा खोया ही है अभी तक ।आज अपनी जिंदगी की हर एक घटना सीमा की आँखो के सामने आ रही थी। पिता का साया उठ गया और सारी दुनिया ही बदल गयी। घर में सबसे बड़ी होने के कारण उसके जीवन का उद्देश्य ही बदल गया। अपने पिता के दम पर सपने देखने वाली लङकी के सामने परिवार की जिम्मेदारी और अपने छोटे भाई बहनों के सपने आ गए। अब सीमा के लिये अपनी पढ़ाई से ज्यादा माँ और दो छोटे भाई बहन की जिम्मेदारी ज्यादा महत्वपूर्ण थी। सीमा को पिता की जगह नौकरी मिल गई। उसकी खुद की पढ़ाई अधूरी रह गई। सारे परिवार को सीमा ने सम्भाल लिया था। पर सीमा के दिल मे हमेशा एक खालीपन और अपने अधूरे सपनों को लेकर एक कसक रहती थी। लेकिन अपनी जिम्मेदारियों ने उसे समझोता कराना सीखा दिया था और आज समझोते करते-करते वो अपने को बिल्कुल भूल चुकी थी। भाई बहन अपने पैरों पर खड़े हो चुके थे। माँ बुढ़ी हो चुकी थी पर भाई उन्हें सम्हालना नहीं चाहता था। बहन की शादी हो गई थी तो वो भी इस बात से कोई मतलब नहीं रखती थीं। हद तो जब हो गई जब सीमा ने अपने भाई को माँ की जिम्मेदारी उठाने के लिए कहा तो वो साफ़ इंकार कर गया। उसने सीमा को कह दिया कि उसने पिता की नोकरी ली है तो ये उसकी जिम्मेदारी है। भाई का मानना था कि तुमने तो बिना मेहनत के सब मिल गया और हम इतनी मुश्किल से पढ़ कर और मेहनत से आगे बढ़े हैं। हमने अपनी हर ख्वाहिश को अधूरा छोड़ दिया और सिर्फ पढ़ने पर ध्यान दिया। सीमा उसकी बातें सुनकर शांत हो गई थी। उसके पास भाई की बात का कोई जवाब नहीं था। अब सीमा सोच रही थी क्या पिता की नौकरी पाना उसकी खुशी थी या मजबूरी। उसने अपने सपनों को अधूरा इसलिए छोड़ा की वो मेहनत नहीं करना चाहती थी। आज वो वास्तविक स्थिति से सामना कर रही थी। अब सीमा अपने बारे में सोचना चाहती थी। उसकी माँ उसकी भावनाओं को समझ रही थी। जल्दी ही माँ ने एक अच्छे घर में उसकी शादी की बात चलाई। नौकरी वालीं लड़की के लिए जल्द ही लड़का मिल गया पर सीमा की शर्त थी कि वो अपनी माँ की जिम्मेदारी खुद निभाएगी। इस बात के लिए जल्दी से कोई तैयार नहीं हो रहा था। अखिर कार विनोद सीमा की माँ को साथ रखने के लिए तैयार हो गया उसे सीमा की माँ से ज्यादा सीमा की नौकरी में रुचि थी। यहा भी सीमा लालच और धोखे का शिकार हो गई। शादी के कुछ दिनों बाद ही उसे विनोद का लालच नज़र आ गया। सीमा को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें। वो आज भी अपनी दुनिया में अकेली थी। विनोद को सीमा के पैसो से ही मतलब था उसके लिए सीमा की भावनाएं कोई मायने नहीं रखती थीं। आज उसे अपने फेसले पर दुःख हो रहा था कि उसने तो अपनी जिन्दगी का अकेलापन दूर करने के लिए एक जीवन साथी तलाश की थी पर यहां भी उसे धोखा मिला। अब उसके पास अपनी जिंदगी को इसी तरह से काटने के अलावा उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। Download Our App