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मानवता की जीवित लाश

हाय रे मानव! जाति
क्या हो गया है तुझको
तू तो ऐसा नहीं था,
फिर तुझको क्या हो गया है।

आओ देखें मिलकर हम इस बार
कब तक जीवित रहती है यह लाश,
सुनने में थोड़ााा अटपटा लगेगा
कहीं लाश भी जीवित रहती है क्या?

मैं इस जगह को बता दूगा
मैंनेे जिंदा लाशोंं को देखा है,
पता अगर तुम जाने ना चाहो
लो मैं तुम्हें अभी दे रहा हूं

तुम मुझ पर विश्वास करो या ना करो,
लेकिन आज मैं तुम्हेंहें जीवित लाश ही कहूंगा
क्योंकि मैं नहीं मानवता को मरते देखाा है।

सड़क गलिया शहरों में नही
मैंनेेे पवित्र पावन जंगल में,
मानवता को मरते देखा है
मैं तो साक्षी नहीं हूं

पर मरी मानवता की लाश है साक्षी इसकी
मैं कुछ नहींं कहूंगा तुमसे,
अब तो जीवन का कुछ आशय ही नहीं
मैं अगर तुमसे कुछ कहता हूं
तो मैं भी तुम्हारी तरह मुर्दा

जीवन के इस अंतिम क्षण में
मृत्यु का भय है नहीं
पर फिर भी अंतिम प्रयास यही रहता है
कहीं मैं भी मानवता की जीवित लाश ना बन जाएं।

इसीलिए कभी कभी डरता हूंं भागता
अपनों सेेेेे खुद से इस जीवन से ।

आओ हम सब शोक व्यक्त्त करें,
मानवता के मर जाने पर
दुख अगर तुमको होता है।

तू मेरे कंधे पर सिर रख लो
क्योंकि जिस कोख सेे तुमने
जन्म लिया, मैं भी उसी का निवासी था,
अब तो उस कोख को भी शर्मिंदा
होना पड़ रहा है

क्योंकि जीवन में ऐसा कर्म जो तूनेे किया
मृत्यु भी अब तुझसे भर खाती है,
अब मानवता की बात कर पगले
तू मेरा भाई नहीं है
एक साथ होने से,
एक ही मन हो असंभव है।

तूने जो एक मां के साथ किया है
वह तो इस जीवन में मृत्यु सेे भी,
भयंकर है,
आओ मिलकर शोक व्यक्त करें
खुद के मर जाने पर
दुख तो तुमको होगा भाई।

लेकिन तुम सुख न करना
क्योंकि यह मेरे और तुम्हारे तरह है,
कुछ लोगों ने मिलकर,
मानवता को जला डाला
मृत्यु भी जिससे भाई खाती है!

उसको भी इसने भय दे डाला,
आओ भाई मिलकर शोक व्यक्त करें
मां की ममता इस जग में न्यारी,
इस जल की सबसे प्यारी मां की ममता!

इसने उस मा को जला डाला
ममता को जला डाला,

जीवन की आशा को जला डाला
मैं भी दुखी हूं तुम भी जरा दुखी हो लो
एक निर्जीव वस्तु से प्रेम रखना,
मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धि थी
देख जिसे देवता भी
प्रणाम करती थी सभी को!

ऐसे देश का निवासी थे हम सब
जहां हम वृक्षों को माता पृथ्वी को माता कहते हैं।

वहां पर एक माता की हत्या
जो है ममता की हकदार
हाय रे जीवन तू कैसी कैसी लीला करता है।

प्रभु अब तुम से यही कामना
मत दो जीवन !
मत दो जीवन !
मत दो जीवन!
अब मैं तुमसे कुछ नहीं कहूंगा,
अब मैं तुमसे नहीं करूंगा
क्योंकि सूनी रातों में

ममता की उजली आंखों से
मैंने इस जग का सूरज देखा
शायद उन्होंने भी देखा हो,
तब वह मानवता की मृत्यु पर
जश्न क्यों मनाते हैं।

हाय रे मानव जीवन
तू कैसा कैसा कर्म करवाता है
मैं तो मृत्यु से पहले भय खाता था,

नीत पूर्ण कर्म करके जाता था
कि कहीं आज अंतिम दिन तो नहीं।

आज मुझे पता चल ही गया
अंतिम दिन भी तेरे हाथ में नहीं
हाय रे मानव तू कैसा कैसा कर्म करता है।

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