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दशरथ का रावण दहन



ये बात उन दिनों की है जब मेरे चाचा के बेटे छोटे- छोटे थे ।संयुक्त परिवार में रहने वाले हम सब एक खुशहाल परिवार माने जाते हैं जिसे हमारी दादी ने एक सूत्र में बांध रखा है ।

हर तीज त्यौहार हम सब मिलकर मनाते हैं। दशहरे के दिन मेरे दोनों छोटे भाइयों ने निर्णय लिया कि इस बार घर में ही रावण बनायेगे और मुहल्ले में सबको आमंत्रित करके रावण का पुतला फूंका जाएगा । दोनों की उम्र उस समय क्रमशः 3 साल और 5 साल थी । दादी से रामायण की कहानियों को सुनकर वो लोग दिन भर मेरे दुप्पटे की धोती बनाकर झाड़ू की सींक से धनुष बाण बना कर रामायण के खेल खेलते थे । इस खेल में मेरी सबसे छोटी बहन जो कि उस समय10 साल की थी; सीता बनती थी ।

इस खेल का एक पात्र मेरे पापा हुआ करते थे ;जिन्हें वो लोग अपनी सुविधा से कभी दशरथ तो कभी रावण बना लिया

करते थे । मेरे पापा बहुत सीधे इंसान थे ;साथ में बेहद मजाकिया भी । बच्चों के परम मित्र ।

दशहरे के दिन सुबह से दोनों बहुत खुश थे ;अपने बड़े पापा के साथ सारी योजना पर चर्चा करने के बाद पूरे मुहल्ले में रावण दहन का न्यौता भी दे आये । बच्चो का खेल सोच कर लोगों ने भी उन्हें प्रोत्साहित किया ।घर आकर पिछले साल के पटाखों को ढूंढ कर हम सबने मिलकर उनके लिए रावण तैयार किया।

शाम को तीनों तैयार हुए हालांकि दादी बोली कि छुटकी का क्या काम रावण दहन में ? फिर भी उनदोनो ने" बहन सीता "को भी जबरजस्ती तैयार करवा लिया।हाँ खेल में भी राम जी अपनीमर्यादा में ही रहते थे और बड़ी बहन को पूरे सम्मान के साथ "बहन सीता" ही कहते थे । रावण को खड़ा किया गया; पिछले एक महीने के रद्दी अखबार और पटाखों से तैयार रावण की कोई हड्डी नहीं थी मतलब अंदर ढांचा नहीं था ;एक पतले से डंडे के सहारे ही बेचारा खड़ा था तो उसकी हालत भी पतली सी थी । मुहहल्ले के लोंगो ने अपनी जगह लेनी शुरू कर दी थी ।

"आज के रावण " की सोचनीय दशा पर सबने टिप्पणी की ।कुछ लोगो ने मंदोदरी को जिम्मेदार बताया तो कोई बोला कि अब राज्यपाट नहीं रहा तो कमजोर सा हो गया है। कुछ ने तो उसे किसी बड़ी बीमारी से ग्रसित भी घोसित कर दिया । खैर बेचारा रावण अपनी कमजोरी से उबर पाता या स्वास्थ्य लाभ ले पाता उससे पहले उसे मारने के लिए राम जी और लक्ष्मण जी खड़े हो चुके थे । बहन सीता भी एक साड़ी पहने एक कोने में खड़ी थी। आज की रामलीला में मेरे पापा का रोल नहीं था तो वो कुर्सी पर बैठे हुए दोनों का उत्साह बड़ा रहे थे ।

तभी रावण अपनी कमजोरी से चक्कर खा कर गिर पड़ा । बेचारे की ये हालत देखकर राम जी बुक्का फाड़ कर वहीं फैल कर रोने लगे ;तब सीता बहन जल्दी से उनकी दूध की बोतल लेकर गयी जिसे पी कर वो शांत हुए । इतनी देर में हम लोग रावण को फिर से खड़ा होने लायक़ बना चुके थे। रावण के लिए राम के ह्रदय में प्यार देखकर सब का हसीं के मारे बुरा हाल था ।

अब बारी रावण दहन की थी ;दोनों ने अपने -अपने धनुष निकाले और रावण की तरफ करके चलाना शुरू किया । झाड़ू की सिंक से बने तीर से मुश्किल से तीर रावण तक पहुँच पा रहे थे । करीब 10 मिनेट तक तीर खा कर भी रावण मरने का नाम नहीं ले रहा था इतने में राम जी का झगड़ा लक्ष्मण जी से हो गया तो दोनों एक दूसरे को मारने लगे । दशरथ जी यानी मेरे पापा ने दोनों को अलग- अलग किया फिर 5मिनेट के सू -सू ब्रेक के बाद दोनों फिर से मैदान में थे और रावण अपनी दशा पर खुश हो रहा था कि चाहे कमजोर ही क्यों न हूँफिर भी नहीं मरूंगा क्यों कि अब राम लक्ष्मण भी तो वो नहीं रहे ।

रावण तक तीर पहुंचते न देखकर जनता भी उठ कर जाने लगी थी तभी मेरे पापा के मन में विचार आया;धीरे से उठकर पापा रावण के पुतले के पीछे गए और अपनी सिगरेट छुला दी । पुतले के अंदर के पटाखे फूटने लगे और रावण जलने लगा। छोटे वाले ने पापा को ये करते देख लिया फिर उसने शोर मचा कर रोना शुरू किया" दशरथ जी ने रावण कक्का को मार दिया " (वो लोग रावण को रावण कक्का बोलते थे)।

दादी उनका शोर सुनकर बाहर आई और पापा की बहुत डांट पड़ी ।

ये पहली राम लीला थी जिंसमे रावण का वध हुआ था वो भी दशरथ जी के हाथों ।

यहाँ का दृश्य उस समय इस प्रकार था कि कमजोर सा रावण बेचारा अधमरा सा खड़ा था;राम लक्ष्मण उसके मरे पर बुक्का फाड़ कर मंचपर लोट पोट हो कर रोने में लगे थे और दशरथ जी अपनी इस जबरजस्ती की वीरता पर डांट खा रहे थे ।

हां कहानी की एक और पात्र बहन सीता जल्दी- जल्दी रावण को कपड़े से बुझाने में लगी हुई थी।

ये अनोखी राम लीला के दर्शक अपनी -अपनी कुर्सी पर हँसते-हँसते लोटपोट हो रहे थे।

खैर दुबारा से रावण को आकस्मिक चिकित्सा हेतुं भेजा जहाँ से स्वास्थ्य लाभ करके वो करीब आधे घंटे में वापस आया फिर उसका दहन किया गया। ये राम लीला कईबर्षो तक चर्चा में रही और मेरे छोटे भाइयों के जीवन से जुड़ी होने के कारण अविस्मरणीय है ।

सुप्रिया सिंह ।

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