सावन की ऋतु ने जैसे सारे वृक्षों और पौधों को नहला दिया हो! हरे रंग की आभा लिए पेड़ पौधों की पत्तियाँ चमक उठी थी! जीवानंद बाबू तथा उनके तीन सहयोगी दफ़्तर के दौरे पर दिल्ली से हरिद्वार जा रहे थे! उनकी जीप हाईवे पर फर्राटा भर रही थी! हाईवे के दोनों तरफ फैला जंगल ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों वर्षा ऋतु में प्रकृति ने हरियाली की चादर ओढ़ ली हो! रिमझिम वर्षा अभी भी हो रही थी! सड़क के किनारे चाय का टी स्टाल देखकर सहयोगी अनिल बोल पड़े ‘ड्राइवर यहाँ गाडी रोक दो! इतना अच्छा मौसम हैं जरा गरमा गरम चाय हो जाए!’ जीप के रुकते ही सभी व्यक्ति जीप से नीचे उतरने लगे सिवाए जीवानंद बाबू के!
‘चलिए जीवानंद बाबू चाय पीते हैं!’ जीप से उतरते हुए सहयोगी अनिल बोले!
‘नहीं तुम लोग पी लो! में यही जीप पर ही बैठा हूँ!’ तथस्ट भाव से जीवानंद बाबू बोले !
‘कमाल हैं आप तो चाय के इतने शौक़ीन हैं! ऐसे सावनी समां में हाईवे के किनारे चाय के साथ पकोड़े खाने का अपना ही मजा हैं और आप मना कर रहे हैं! चलिए आइए!’ थोड़ा मनुहार करते हुए सहयोगी अनिल बोल पड़े!
‘नहीं आज जरा चाय पीने की इच्छा नहीं हैं! आप लोग पी आओ!’ जीवानंद बाबू थोड़ा अनमने भाव से बोले!
‘ठीक हैं जैसी आपकी मर्जी!’ कहते हुए सहयोगी अनिल जीप से नीचे उतर गए!
सहयोगी अनिल के जाते ही जीवानंद बाबू विचारों में खो गए और अतीत में घटी एक घटना जिसे चाह कर भी वो भूल नहीं पाये चल चित्र की भाँति उनकी आँखों के आगे चलने लगी!
घडी द्वारा सुबह के ६ बजे का अलार्म बजते ही मानो घर में हड़कम्प सा मच जाता हैं! रात की निस्तबध्ता सुबह रसोईघर के बर्तनो की खड़खड़ाहट से टूटती! सुबह सबसे जल्दी उठने की ड्यूटी गायत्री की ही होती हैं! गृहस्थी की गाडी चलाने का सदियों से ये ही तो नियम चला आ रहा हैं की प्रातः काल गृहस्वामिनी ही सबसे पहले उठती हैं तत्पश्चात घर के अन्य सदस्य उठते हैं! गायत्री ने गैस पर जल्दी से चाय का पानी चढ़ा दिया जितनी देर में चाय का पानी खोलता हैं तब तक गायत्री पानी भरने के लिए मोटर चला देती हैं! महानगरों का यही रोना हैं पानी भी समय का पाबंद हैं! सुबह शाम निर्धारित समय पर ही आता हैं! चाय बनते ही कप लेकर गायत्री जीवानंद बाबू के पास तेजी से गई और जगाते हुए बोली ‘ऐ जी जल्दी उठो सुबह हो गई हैं ये चाय रखी हैं यहाँ पर!’ कहते हुए गायत्री वापस रसोईघर की तरफ दौड़ पड़ी! सुबह इन दो तीन घंटो में गायत्री को साँस लेने की भी फुर्सत नहीं होती! पति तथा दोनों बच्चों के लिए चाय बनाना , दूध बनाना, नाश्ता तथा लंच बनाना, पानी भरना, उफ़ चकरघिन्नी की तरह गायत्री घूम जाती हैं! बच्चे तो ७:३० बजे तक स्कूल चले जाते हैं लेकिन जीवानंद बाबू का दफ्तर चूँकि घर से जयादा दूर नहीं हैं इसलिए वह ९:३० तक ही दफ्तर के लिए निकलते हैं!
‘गायत्री कैसी चाय बनाती हो तुम? सुबह की चाय तो कम से कम बढ़िया बनाया करो! भई, दिन की शुरुआत होती है!’ जीवानंद बाबू खाली कप लेकर रसोईघर की तरफ आते हुए बोले!
‘हाँ -हाँ मेरे हाथ की चाय क्यों अच्छी लगेगी तुम्हें? तुमको तो पाण्डेय जी टी स्टाल की चाय की लत जो लग गई हैं!’ रोटी बेलते हुए गायत्री बोली!
रसोईघर की गर्मी से गायत्री पसीने पसीने हो रही थी! जीवानंद बाबू ने इस समय गायत्री से बहस करना उचित नहीं समझा! घरेलु कार्यों में व्यस्त गृहस्वामिनी से बिना वजह उलझने का परिणाम गृहस्वामी भलीभांति जानते थे और उस पर ये भयंकर गर्मी, चुप रहने में ही भलाई हैं! दोनों बच्चे आरुषि और आयुष अब तक नहा धोकर विद्यालय जाने के लिए तैयार हो चुके थे! आरुषि दसवी कक्षा की छात्रा हैं और आयुष आठवी कक्षा में पड़ता हैं!
‘चलो दोनों जल्दी से नाश्ता कर लो, मैंने नाश्ता टेबल पर लगा दिया हैं!’ गायत्री बच्चों को आवाज देते हुए बोली!
‘पापा हमारे स्कूल का ट्रिप नैनीताल जा रहा हैं मुझे भी जाना हैं!’ आरुषि नाश्ता करते हुए बोली!
‘अभी कही नहीं जाना हैं अगले साल हम लोग परिवार के साथ जाएंगे!’ दाढ़ी बनाते हुए जीवानंद बाबू बोले! ‘हुम इतनी सी तनख्वा में घर के खर्चे ही पूरे नहीं होते ऊपर से ये स्कूल वालों के अनाप शनाप खर्चे!’ जीवानंद बाबू धीरे से बड़बड़ाते हुए बोले!
‘अच्छा पापा एक स्मार्ट मोबाइल फ़ोन ही ले लो जिसमे नेट कनेक्शन हो क्योंकि अब तो स्कूल के होमवर्क के लिए भी नेट की जरुरत पड़ती हैं!’ आरुषि फिर बोली!
‘ठीक हैं ठीक हैं देखते हैं!’ जीवानंद बाबू मुँह पोंछते हुए बोले!
जीवानंद बाबू उत्तराखंड के रहने वाले हैं! एक निजी संस्थान में जूनियर अकाउंटेंट के पद पर तैनात हैं! तनख्वाह ठीक ठाक हैं! विवाह के बाद पत्नी को भी अपने साथ शहर ले आये! दो कमरो का छोटा सा फ्लैट हैं उसकी भी हर महीने किश्त जाती हैं! एक व्यक्ति की तनख्वाह में गृहस्थी के रोजमर्रा के खर्चे , मकान की किश्त भरना , दो बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाना इन सब खर्चो को पूरा करने के लिए किस तरह मन की कई इच्छाओं को मारकर घर का बजट बनाया जाता हैं यह एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति ही जान सकता हैं! ऊपर से अब ये कंप्यूटर नेट स्मार्टफोन आदि का अनावश्यक खर्चा भी, असल में अब यह सब वस्तुऐ भी भोग विलास की वस्तुऐ ना रहकर धीरे धीरे दैनिक दिनचर्या में शामिल हो गई हैं!
‘सुनो टिफ़िन पैक कर दिया क्या? ९:३० हो गए हैं दफ्तर के लिए निकलता हूँ!’ जीवानन्द बाबू अपनी पत्नी को आवाज देते हुए बोले! जीवानंद बाबू का दफ्तर घर से जयादा दूर नहीं हैं! यही कोई तीन चार किलोमीटर की दूरी पर होगा! यहाँ पर इस रुट पर लोकल ऑटो खूब चलते हैं! जीवानंद बाबू भी इन्ही ऑटो से दफ्तर जाते हैं! एक ऑटो में आठ व्यक्तियों को किस तरह से बैठाया जाता हैं तथा गंतव्य तक पहुँचाया जाता हैं! इस हुनर को ये ऑटो चालक बखूबी जानते हैं! चार सवारी पीछे की सीट पर, दो सवारी ड्राइवर के दायी तरफ की सीट पर दो सवारी बाईं तरफ की सीट पर बैठाई जाती हैं और ड्राइवर बीच में उकड़ूँ बैठकर ऑटो चलाता हैं! बढ़ती भीड़ के कारण महानगरों में ये जुगाड़ ऑटो अब खूब चलने लगे हैं!
ऑटो स्टैंड के पास ही पांडेजी टी स्टाल हैं! जीवानंद बाबू दफ्तर जाते हुए इस टी स्टाल पर चाय जरूर पीते हैं! सालों से उनका ये क्रम चल रहा हैं! उन्हें इस टी स्टाल की चाय खासी पसंद हैं! घर और दफ्तर के बीच में पड़ने वाले इस टी स्टाल पर शांतिपूर्वक बैठकर चाय पीने में जीवानंद बाबू एक असीम आनंद का अनुभव करते हैं! कुछ मिन्टो के लिए उन्हें लगता है जैसे इस संसार की आपाधापी से वह अभी मुक्त हैं! सकून के ये पल सिर्फ उनके अपने हैं! एक बात और, यहाँ काम करने वाले एक बालक से उनको खास लगाव भी हैं! उसकी आयु १५-१६ वर्ष के लगभग होगी, फिर वो भी उन्ही की तरह उत्तराखंड का ही रहने वाला हैं! विषम आर्थिक परिस्थितयों के कारण पढाई छोड़कर वह उत्तराखंड से यहाँ नौकरी करने आया हैं! वैसे तो उसका नाम मनोज हैं, लेकिन जैसा की आमतौर पर देखा जाता हैं हर टी स्टाल पर काम करने वाले बच्चे का नाम छोटू ही पड़ जाता हैं! मनोज को भी टी स्टाल में सभी छोटू कहकर ही बुलाते केवल जीवानंद बाबू ही उसे मनोज कहकर सम्बोधित करते थे! कभी कभी जीवानंद बाबू मनोज को १००- ५० रूपए दे देते! उससे उसके घर परिवार के बारे में पूछ लेते! मनोज के लिए यह अपार स्नेह क्यों था ये जीवानंद बाबू खुद भी नहीं जानते थे! शायद एक तो मनोज उन्ही की तरह उत्तराखंड का रहने वाला था और दूसरा इतनी कम आयु से ही गरीबी के कारण पढाई छोड़कर नौकरी करके अपना घर चला रहा था! इसी कारण जीवनंद बाबू को मनोज से सहानुभूति हो गयी थी! जीवानंद बाबू को देखते ही मनोज के चेहरे पर चमक आ जाती! मनोज को जीवानंद बाबू के चाय का स्वाद का भी भलीभांति ज्ञान हो गया था! सर्दियों में वह अदरक वाली चाय, गर्मियों में हरी इलायची वाली चाय लेते हैं! कभी बरसात हो तो चाय के साथ एक आध ब्रेड पकोड़ा भी आर्डर कर देते हैं! ख़ास तीज त्योहारों पर जीवानंद बाबू मनोज को कुछ रूपए अवश्य देते हैं साथ ही घर से भी खास पकवान पैक करा के मनोज के लिए ले आते! इन सभी बातों के कारण मनोज को भी उनसे बहुत लगाव हो गया था! उसके पिता नहीं थे पर अब वो जीवानंद बाबू में ही अपने पिता की छवि देखने लगा!
आज जीवानंद बाबू दफ्तर से घर आये तो उनके हाथ में एक डिब्बा था! बच्चे उत्सुकता से देखने लगे!
‘अरे आरुषि और आयुष तुम दोनों उस दिन स्मार्टफोन की बात कर रहे थे लो ले आया में टच स्क्रीन मोबाइल फ़ोन!’ जीवानंद बाबू ख़ुशी से बोले!
‘क्या? सच में!’ दोनों बच्चे ख़ुशी के मारे उछल पड़े! पत्नी भी जल्दी जल्दी चाय बनाकर ले आई!
‘कितने का हैं?’ पत्नी उत्सुकतावश पूछने लगी!
‘पूरे १८ हजार का’ जीवानंद बाबू थोड़ा गर्व से बोले! आज वह अपने को बेचारा पति या पिता ना समझ कर अपने को बड़ा विजयी महसूस कर रहे थे!
‘१८ हजार रूपए, इतने रूपए कहाँ से आए?’ पत्नी ने चौंकते हुए पूछा!
‘चिंता मत करो किश्तों में लिया हैं! किश्त भी ज्यादा नहीं जाएगी! बजट में एडजस्ट हो जायेगा!” थोड़ा यथार्थ के धरातल पर आते हुए जीवानंद बाबू बोले!
‘पापा इसमें नेट कनेक्शन ले लिया क्या?’ आरुषि अधीर होकर पूछने लगी!
‘ले लेंगे’ कहकर जीवानंद बाबू तोलिया लेकर बाथरूम की तरफ चल पड़े!
अगली सुबह जीवानंद बाबू जब पाण्डेय जी टी स्टाल पहुंचे तो मेज पर रखे चमचमाते मोबाइल फ़ोन को देखते ही मनोज बोल पड़ा ‘बाबूजी नया फ़ोन लिया हैं?’
‘हाँ मनोज स्मार्टफोन हैं! पूरे १८००० रूपए का हैं!’
‘बहुत महंगा हैं!’ मनोज मेज पर कपडा मारते हुए बोला!
‘हाँ तो इसमें गाने, फिल्म सब डाउनलोड कर सकते हैं!’ गर्वीली आवाज में जीवानंद बाबू बोले! उन्हें लग रहा था जब से उन्होंने ये फ़ोन लिया हैं तब से उनका रुतबा बढ़ गया हैं!
‘ले ये ५० रूपए रख ले मिठाई खा लेना!’ जीवानंद बाबू प्रसन्न भाव से बोले!
मनोज ने खुशी ख़ुशी ५० रूपए रख लिए और चहकते हुए बोला ‘बाबूजी तो आज इस खुशी में चाय के साथ एक ब्रेड पकोड़ा खा लीजये!’
‘अरे नहीं आज तो घर से भरपेट नाश्ता करके आया हूँ! तू बस एक कप इलायची वाली बढ़िया सी चाय पिला दे फिर ऑटो पकड़ता हूँ!’ ऑटो स्टैंड की तरफ नजर घुमाते हुए जीवानंद बाबू बोले!
घर में नया मोबाइल फ़ोन क्या आ गया मानो सबको खुशी का खजाना मिल गया हो! मध्यमवर्गीय परिवारों की खुशियाँ ऐसे ही छोटे छोटे पलों में ही तो बसती हैं! वैसे तो जीवनंद बाबू फ़ोन अपने पास ही रखते लेकिन शाम को बच्चे कभी उसमे गेम खेलते कभी गाने सुनते, फोटो खीचते! इस तरह ये स्मार्टफोन घर में सभी का चहेता बना हुआ था!
‘आज दफ्तर में कुछ ज्यादा ही काम आ गया हैं लगता हैं देर तक बैठना पड़ेगा! गायत्री को फ़ोन कर देता हूँ! नहीं तो वो बेकार ही चिंता करेगी!’ जीवानंद बाबू ये सोचते हुए गायत्री को फ़ोन करने लगे!
‘सुनो गायत्री, तुम और बच्चे खाना खाकर सो जाना! मुझे आज दफ्तर में ज्यादा देर हो जाएगी! एकाउंट्स की कुछ महत्वपूर्ण फाइल आई हुई आज ही निपटानी हैं!’ जीवानंद बाबू अपनी पत्नी से फ़ोन पर बोले!
‘ठीक हैं फिर भी कब तक आएंगे?’ गायत्री ने पूछा!
‘यही कोई ११-१२ बज जाएंगे!’ कहते हुए जीवानंद बाबू ने फ़ोन रख दिया और फाइलों में नजरे गड़ा दी!
रात को जीवानंद बाबू बहुत देर से घर पहुंचे! बच्चे सो चुके थे! पत्नी भी उबासी लेते हुए जैसे उनकी ही राह देख रही थी! थके मांदे जीवानंद बाबू जो बिस्तर पर पड़े तो सुबह ७:०० बजे ही आँख खुली!
‘गायत्री जरा जल्दी उठा देती’ जीवानंद बाबू अलसाये से बोले!
‘कल आप देर से घर आए तो मुझे लगा आपको थोड़ा और सोने देती हूँ!’ प्यार जताते हुए गायत्री बोल पड़ी!
‘अच्छा, मुझे आज जल्दी दफ्तर जाना हैं, तुम लंच जल्दी बना दो!’ कहते हुए जीवानंद बाबू स्नानघर की तरफ बढ़ गए!
रोज की तरह जीवानंद बाबू टी स्टाल पर चाय पीने आए! मनोज से रोज की तरह बातचीत करके जीवनद बाबू ऑटो स्टैंड की तरफ बढ़ गए! अचानक उन्हें कुछ ध्यान आया ‘मेरा मोबाइल फोन कहा गया?’ जेब टटोलते हुए वह सोचने लगे!
‘लगता हैं में मोबाइल फ़ोन चाय स्टाल पर मेज पर ही छोड़ आया हूँ!’ यह सोचते हुए वह वापस टी स्टाल की तरफ मुड़ गए!
‘मनोज अरे मनोज मेरा मोबाइल यही मेज पर ही छूट गया था! तूने उठाया क्या?’
‘नहीं बाबूजी, मैंने तो आपका मोबाइल फ़ोन देखा ही नहीं’ मनोज थोड़ा घबराते हुए बोला!
‘कैसी बाते कर रहा हैं? मेज पर ही तो रखा था! तू चाय का प्याला उठाने आया था तभी शायद तूने फ़ोन भी उठा लिया होगा!’
‘नहीं नहीं बाबूजी आज तो मैंने फ़ोन आपके हाथ में देखा ही नहीं! आपने अपने बैग या जेब में ही रखा होगा!’ मनोज डरते डरते बोला!
‘मैंने बैग और जेब सब चेक कर लिया है!’ जीवानन्द बाबू कठोरता से बोले!
जीवानंद बाबू इतना महंगा मोबाइल फ़ोन गुम होने से चिंतित तथा परेशान हो गए! बड़ी कठिनाइयों से तो उन्होंने यह फ़ोन लिया था! अब उन्हें मनोज पर गुस्सा आने लगा!
‘फ़ोन इसी ने लिया होगा! रोज की तरह मोबाइल हमेशा में मेज पर ही रखता हूँ! चाय देने तथा कप उठाने यही तो मेज के पास आता हैं! मैंने इसे कुछ ज्यादा ही सर चढ़ा लिया और उसका नतीजा आज देख भी लिया! कुछ भी हो इसने आज अपनी औकात दिखा दी! जरा सा मौका देखते ही कीमती चीज चुरा ली! ये साले होते ही चोर उच्चके हैं! मेरी सहानभूति स्नेह का ये बदला दिया इसने!’ गुस्से से कांपते हुए जीवानंद बाबू बोले! शोर सुनकर वहां अन्य ग्राहक तथा स्टाल का मालिक भी आ गया!
‘आप जरा इससे अपना मोबाइल नम्बर मिलाइये, अभी पता चल जायेगा!’ अपना फ़ोन जीवानंद बाबू को देता हुआ स्टाल का मालिक बोला!’
‘फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा हैं! इसने इतनी जल्दी फ़ोन स्विच ऑफ कर दिया अब तो पक्का विश्वास हो गया फ़ोन इसी ने चुराया हैं!’ जीवानंद बाबू मनोज को घूरते हुए बोले!
‘नहीं नहीं बाबूजी मैंने फ़ोन नहीं चुराया हैं!’ डर से थर थर कांपते हुए मनोज बोला!
‘बस बहुत हो गया मुझे कुछ नहीं सुनना! में इसके खिलाफ पुलिस में एफ आई आर लिखूंगा!’ जीवानंद बाबू का गुस्सा अब आपे से बाहर हो गया था! आखिर जीवानंद बाबू ने मनोज के खिलाफ एफ आई आर लिखा दी! पुलिस मनोज को पूछताछ के लिए पकड़ कर ले गयी!
जीवानंद बाबू दोपहर एक बजे तक घर पहुंचे! ‘आज आप दोपहर में ही घर आ गए! तबियत तो ठीक हैं!’ पत्नी ने दरवाजा खोलते हुए कहा! जीवानंद बाबू बड़े थके उदास लाचार से दिख रहे थे! वह ख़ामोशी से सोफे पर बैठ गए!
‘क्या बात हैं?’ पत्नी ने पानी देते हुए पूछा!
‘गायत्री आज में दफ्तर नहीं गया बल्कि थाने से आ रहा हूँ!’ मोबाइल फोन चोरी हो गया!’ बुझे स्वर में जीवानंद बाबू बोले!
‘क्या???’ पत्नी इस तरह चोंक कर बोले मनो किसी ने उस पर वज्रपात कर दिया हो!
जीवानंद बाबू ने आज का सारा वृत्तांत पत्नी को सुना दिया!
‘मैंने तो पहले ही कहा था! आपको क्या जरुरत थी उस बच्चे को इतना मुँह लगाने की? अरे पहाड़ी हैं तो क्या हुआ हमारा रिश्तेदार थोड़े था! दिखा दी न उसने अपनी हाथ की सफाई! एक चीज नहीं संभलती आपसे, पता नहीं अब फ़ोन मिलेगा भी की नहीं!’ रुआंसी होते हुए गायत्री बोली! इतनी महंगी वस्तु का चोरी हो जाना गृहस्वामिनी को अंदर तक हिला गया! मोबाइल फ़ोन चोरी होने से पूरे घर में सन्नाटा पसर गया! पत्नी, बच्चे सभी ने जैसे मौन व्रत धारण कर लिया हो!
अगली सुबह जीवानंद बाबू दफ्तर के लिए जल्दी ही निकल गए! पाण्डेय जी टी स्टाल पर बिना रुके उन्होंने सीधे ऑटो ही पकड़ लिया! दफ्तर पहुँच कर उन्होंने जैसे ही अपनी मेज की दराज खोली तो उनकी आँखे फटी की फटी की रह गई! मोबाइल फ़ोन दराज में पड़ा था! चार्ज नहीं होने के कारण फ़ोन स्विच ऑफ हो गया था! अब उन्हें सारी बातें याद आने लगी! परसो रात दफ्तर में देर से रुकने के कारण वो मोबाइल घर ले जाना ही भूल गए थे! कल सुबह दफ्तर के लिए जल्दी निकले थे! उन्हें मोबाइल का बिलकुल ही ध्यान ही नहीं रहा! वो तो अचानक टी स्टाल से निकलते हुए उन्हें मोबाइल का ध्यान आ गया! ‘उफ़ ये उन्होंने क्या कर दिया! एक निर्दोष को........मुझे अभी थाने जाना होगा!’ यह सोचते उए जीवानंद बाबू थाने की तरफ चल दिए!
‘इंस्पेक्टर साहब में अपनी एफ आई आर वापस लेता हूँ! आप उस लड़के को छोड़ दीजिये!’ सारी खानापूर्ति के बाद मनोज थाने में जीवानंद बाबू के सामने खड़ा था! उसको देखते ही जीवानंद बाबू को आत्मग्लानि का अनुभव होने लगा!
‘चलो मनोज में तुम्हें टी स्टाल पर छोड़ देता हूँ और तुम्हारे मालिक से बात भी कर लेता हूँ की.......'’
‘नहीं बाबूजी में चला जाऊंगा!’ जीवानंद बाबू की बात को बीच में ही काट कर मनोज विनम्रता से बोल पड़ा और चुपचाप थाने से बाहर निकल गया!
फ़ोन मिलते ही घर में फिर से उत्साह का वातावरण छा गया! आज जीवानंद बाबू भी दफ्तर जाने के लिए बड़े उत्सुक थे! ‘में मनोज को १०० रूपए दे दूंगा! उससे प्यार से समझा दूंगा!’ यही सोचते हुए वह पाण्डेय जी टी स्टाल की तरफ चल दिए! टी स्टाल में पहुंचकर जीवानंद बाबू की नजरे मनोज को ढूंढने लगी! उन्हें वह कही दिखाई नहीं दिया! तभी दूकान का मालिक पाण्डेय जी उन्हें अपनी तरफ आता दिखाई दिया! ‘बाबूजी मनोज को ढूंढ रहे हो! वह तो काम छोड़कर वापस अपने गाँव उत्तराखंड चला गया! आपके लिए यह चिट्ठी देकर गया हैं!’ पाण्डेय जी बोले! जीवानंद बाबू ने कांपते हाटों से चिट्ठी खोली! टूटी फूटी हिंदी में मनोज ने लिखा था!
आदरणीय बाबूजी ,
प्रणाम, में अपने परिवार के पास हमेशा के लिए गाँव जा रहा हूँ! आपका स्थान हमेशा मेरे ह्रदय में सर्वोच्च रहेगा क्योंकि इस भीड़ भाड़, अजनबी शहर में एक आप ही थे जिनसे मुझे हमेशा अपनत्व और स्नेह मिला वरना एक बेसहारा गरीब बच्चे को कौन पितातुल्य प्यार देता हैं! मुझे इस बात का किंचित भी दुःख नहीं हैं की आपने मुझ पर चोरी का इल्जाम लगाया जितना स्नेह मुझे आप से मिला उसकी एवज में ये कुछ भी नहीं हैं! बस इतनी विनती हैं कभी किसी दूकान पर कोई और छोटू मिले तो उसे इतना अपनापन और स्नेह देने के पश्च्चात कठोरता से उससे वापस छीन ना ले!
आपका
मनोज
जीवानन्द बाबू ने पत्र अपनी जेब में रख लिया और बोझिल कदमो से ऑटो स्टैंड की तरफ चल दिए!
जीवानन्द बाबू अब किसी भी टी स्टाल पर चाय नहीं पीते और पाण्डेय जी टी स्टाल की तरफ तो वो आँख उठा कर भी नहीं देखते!
‘वाह, मजा आ गया! सच ढाबे के चाय का मजा ही कुछ और होता हैं!’ यह शब्द कानो में पड़ते ही जीवानंद बाबू की तन्द्रा टूटी! वे अतीत से वर्तमान में लौटे! उनके सहयोगी जीप में बैठ चुके थे तथा प्रसन्न भाव से आपस में चाय के बारे में वार्तालाप कर रह थे! ड्राइवर ने जीप स्टार्ट कर दी थी!
‘क्या, जीवानंद बाबू, आप भी यहाँ जीप में ही बैठे रहे! आप ने बढ़िया चाय और पकोड़े खाने का अवसर गवां दिया!’ उनके सहयोगी बोल पड़े!
जीवानंद बाबू बस एक फीकी से मुस्कान देकर रह गए!
रजनी गोसाईं