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मिलाप

अरे,ऋतु!!
याद है ना कि शाम को मेरे बॉस अपने परिवार सहित खाने पर आने वाले हैं,खास ख्याल रखना, खाना स्वादिष्ट रहे और किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो पापा जी से कहकर बाजार से मंगवा लेना, गौतम ने ये सब एक सांस में कह दिया।।
हां.. हां... चिंता मत कीजिए,मैं सब सम्भाल लूंगी, इससे पहले भी तो आपके कई पुराने बॉस परिवार सहित खाने पर आ चुके हैं, मैंने पहले भी तो सम्भाला है तो इस बार आप क्यो इतना घबरा रहे हैं,ऋतु ने गौतम से पूछा।।
अरे इस बार दिक्कत यह है कि मेरे बॉस की माता जी भी साथ में आ रही हैं इसलिए फ़िक्र ज्यादा हो रही है,गौतम ने जवाब दिया।।
क्यो इतनी टेंशन ले रहे हो? बेटा, मुझे अपनी बहु पर पूरा भरोसा है, तेरी मां के जाने के बाद कितनी अच्छी तरह से घर सम्भाला है ऋतु ने ,मिस्टर श्रीवास्तव बोले।।
ठीक है पापा,अब मैं आफिस के लिए निकलता हूं,प्लीज आप देख लीजिएगा और खाना भी टेस्ट कर लीजिएगा, मैं फिर से ऋतु से कुछ कहूंगा तो बुरा ना मान जाए, गौतम ने आफिस जाते हुए, मिस्टर श्रीवास्तव से कहा।।
उधर श्रीवास्तव जी ऋतु से बोले, बेटा!! बुरा मत मानना,गौतम की बातों का, बिल्कुल अपनी मां पर गया है,वो भी ऐसे ही जरा सी बात पर दुनिया भर की चिंता लेकर बैठ जाती थीं,जब तक हम लोगों के साथ थी,तब तक बहुत ख्याल रखा उसने हम लोगों का, बहुत जल्दी हमलोगो को छोड़कर चली गई, उसके जाने के बाद ये घर तो जैसे वीरान हो गया था फिर तेरे आने के बाद इस घर में खुशियां फिर से लौट आई हैं,तेरे जैसी बहु भगवान सबको दे।।
क्या, पापा आप भी, मैं आपकी बहु नहीं बेटी हूं,बहु कहकर पराया मत कीजिए,ऋतु थोड़ा भावुक होकर बोली।।
हां... हां...तू मेरी बेटी ही हैं, अच्छा अब जाकर तैयारी कर लें और जो भी जरूरत का सामान ना हो मुझे बता मैं लाकर देता हूं और तू चिंता मत कर आज मैं आकृति को स्कूल से भी ले आऊंगा श्रीवास्तव जी बोले।।
ठीक है पापा,मैं जाकर सामान देखती हूं, ऋतु बोली।।
इसी तरह तैयारियों में पूरा दिन निकल गया,शाम को गौतम भी ऑफिस से जल्दी आ गया,ऋतु ने भी सारी तैयारियां पूरी कर ली थी।।
गौतम ने अपनी सारी तसल्ली करने के बाद ऋतु से कहा, बिल्कुल ,सब परफेक्ट है, बहुत अच्छे से सम्भाला है सब कुछ तुमने,थैंक्स यार!!अब जाकर तुम भी तैयार हो जाओ और हां अच्छी सी साड़ी पहन लो, बॉस की माता जी आ रही है इसलिए__
जो आज्ञा पतिदेव!! और ऋतु मुस्कुराते हुए तैयार होने चली गई।।
थोड़ी शाम गहराने लगी थी, ऋतु ने तैयार होकर, डाइनिंग टेबल पर सब करीने से सजा दिया था तभी बाहर किसी कार के रूकने की आवाज आई।।
गौतम बोला, पापा....
लगता है वो लोग आ गए...
श्रीवास्तव जी बोले, हां शायद...
गौतम, ऋतु और श्रीवास्तव जी उनका स्वागत करने के लिए फ़ौरन दरवाजे तक पहुंचे।।
आइए सर!! कोई परेशानी तो नहीं हुई, यहां तक पहुंचने में,गौतम ने अपने बॉस से कहा।।
नहीं, कोई परेशानी नहीं हुई,गौतम के बॉस बोले।।
गौतम ने श्रीवास्तव जी का परिचय करवाया,ये मेरे पापा ,ये मेरी पत्नी ऋतु और बेटी आकृति।।
गौतम के बॉस ने सबसे नमस्ते की,
तभी कार में से गौतम के बॉस की मां, पत्नी और बेटा बाहर आए, गौतम ने भी सबसे नमस्ते की।।
गौतम के बॉस ने कहा,ये मेरी मां, पत्नी और बेटा और अंकल आप मुझे कबीर कहें,मेरा नाम कबीर हैं और मैं भी तो आपके बेटे जैसा हूं।।
ठीक है बेटा, मिस्टर श्रीवास्तव बोले।।
तभी एकाएक कबीर की मां ने श्रीवास्तव जी को देखकर कहा,अरे सुधीर तुम..... इतने सालों बाद....!! मुझे पहचाना...
श्रीवास्तव जी ने, बहुत गौर से अपने चश्मे के पीछे आंखों को बड़ा करके ध्यान से देखा फिर बोले,सुमन....तुम हो..!!वो भी इतने सालों बाद....
दोनों एक-दूसरे को देखकर इतने खुश हुए कि दोनों की आंखों से खुशी के दो आंसू छलक ही पड़े, दोनों समझ ही नहीं पा रहे थे कि कहां से बातें शुरू करें.... इतना कुछ था कहने के लिए, बहुत कुछ था दोनों के पास सुनाने के लिए, कुछ शिकवे, कुछ शिकायतें, जिंदगी इस मोड़ पर लाकर दोनों को मिलाएगी, दोनों ने नहीं सोचा था।।
पता है सुधीर, कितने साल हो गए,सुमन बोली...
हां... हां... पता है,पूरे बयालिस साल ,सुधीर बोला।।
सभी हैरान थे, दोनों की बातें सुनकर___
तभी गौतम से ना रहा गया और पूछ ही बैठा____
क्या,आप दोनों एक-दूसरे को पहले से जानते हैं...
दोनों खिलखिला कर हंस पड़े__
सुमन बोली, हां...
हां हम लोग एक ही मुहल्ले में रहते थे,बयालिस साल पहले...
अच्छा, तभी...कबीर बोला।।
सुधीर और सुमन बहुत सी बातें करना चाहते थे लेकिन सबके सामने कर ना सके।।
सबने डिनर किया, थोड़ी बहुत औपचारिक बातें हुई...
कबीर बोला, पहले मम्मी, पापा के साथ रहतीं थीं,जब से पापा नहीं रहें तो मम्मी अकेली पड़ गई थीं और अक्सर बीमार रहने लगी थी तो मैंने इन्हें अपने पास बुला लिया।।
ऐसी ही बातों के बीच समय निकल गया और कबीर बोला,अब चलना चाहिए, काफी टाइम हो गया है फिर मिलते हैं कभी,अगली बार मेरे घर पर।।
गौतम बोला, जरूर, अच्छा लगा आप लोग आए।।
कबीर बोला, हमें भी बहुत अच्छा लगा
और चलते समय,ऋतु ने सुमन से कहा, आंटी जी अपना फोन नंबर देंगी, मुझे कभी अगर बात करने का मन करें तो...
हां..... हां...क्यो नही बेटा,जब भी मन करें,बात कर लेना।।
ऋतु ने सुमन से फोन नंबर लेकर, दरवाजे तक जाकर उन्हें विदा किया।।
सारा डाइनिंग साफ किया, फिर चेंज करके गौतम से बोली, मैं अभी आई, पापा जी के पास से,आज थोड़ा उदास दिखें मुझे,जरा पूछती हूं कि क्या बात है?
गौतम बोला,सुबह पूछ लेना,अभी आकृति को सुलाओ।।
नहीं, गौतम तुम नहीं समझते,वो हमारे बुजुर्ग है उनकी मन की बात समझना, हमारी जिम्मेदारी है और उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती, ऐसे में उनके दिल पर ज्यादा बोझ डालना ठीक नहीं है,मैं बस अभी पूछकर आई।।
और ऋतु,सुधीर के पास जाकर बोली, पापा जी कुछ चाहिए आपको...
सुधीर बोला, नहीं बेटा,अब नहीं,जो चाहिए था आज मिल गया...
ऋतु बोली,क्या मतलब पापा!!!;
सुधीर बोला, कुछ नहीं बेटा, ऐसे ही,मन थोड़ा उदास है,जीभर आया, उससे सालों से बहुत कुछ कहना था लेकिन पगली आज भी चली गई,उस दिन की तरह जैसे बयालिस साल पहले गई थीं, जिंदगी को अस्त-ब्यस्त करके, दिमाग में उथल-पुथल मजा के और दिल का सुकून छीनकर, कैसे सम्भाला था उस समय मैंने अपने आप को बता नहीं सकता, कितना कुछ बाकी है पूछने के लिए, कितना कुछ बाकी है बताने के लिए, कहना था उससे कि लौटा दो वो पल मेरे,जो तुम मुझसे सालों पहले छीनकर ले गई थीं,किस बात की सजा दी मुझे, आखिर गलती तो बताती लेकिन कुछ भी नहीं कहा, उसने!! उसके बाद दिखी ही नहीं, बिल्कुल अदृश्य सी हो गई और सालों बाद आज मिली वो भी एक सपने की तरह।।
अपनी परेशानी बताकर जाती, कुछ तो कहती, कुछ तो बोलती लेकिन वो तो उड़ गई मेरी जिन्दगी से हवा के झोंके की तरह,फूल से खुशबू की तरह, पानी में बने प्रतिबिम्ब की तरह, पानी को हिलाने पर गायब हो गई।।
उसकी खामोशी ने जो जख्म किया था दिल पर,आज भी वो हरा ही है और जब तक मेरे सवालों का जवाब नहीं मिलता,वो कभी नहीं सूखेगा।।
ऐसा क्या हुआ था, पापा...
ऐसा क्या रिश्ता था आपसे आंटी का,ऋतु ने पूछा।।
कोई रिश्ता ही नहीं था,उसकी तरफ से,बस मैं ही मानता रहा उसे सब, मुझे क्या पता था कि उसके दिल में मेरे लिए कुछ था ही नहीं,ये शायद मेरी कल्पना मात्र थी कि वो भी मुझे पसंद करती हैं।।
अच्छा पापा,सुनाइए ना क्या हुआ था,ऋतु बोली...
अच्छा,सुनाता हूं,मेरा भी मन है आज अपने दिल की बात किसी से कहने का....
आज से बयालिस साल पहले की बात है....
मैं बारहवीं में पढ़ने वाला एक अल्हड़ शरारती लड़का हुआ करता था,उमर यहीं कोई अठारह साल,पढ़ाई में हमेशा अव्वल आता था,जब तक वो नहीं शामिल हुई थी मेरी जिन्दगी में।।
पहले बहुत खुले खुले घर हुआ करते थे, गलियों वाले, गर्मियों के दिन थे,उस समय तो सब छत में सोया करते थे,एक रोज में छत में सोया था,हल्का हल्का सूरज निकल आया था,मैं भी अलसाया हुआ सा छत पर लेटा था,आंख तो खुल गई थी लेकिन आलस की वजह से बिस्तर से उठने का मन नहीं था, तभी लेटे-लेटे क्या देखता हूं कि सामने वाली छत पर एक खूबसूरत सी मेरी हमउम्र लड़की छत पर कपड़े सुखाने आई है, उसके गीले और लम्बे बालों से पानी टपक रहा था, मैंने उसे बस एक झलक देखा और देखता ही रह गया, इतनी खूबसूरत लड़की मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखी थी या फिर उस समय की उम्र का असर होगा लेकिन जो भी कहो वो उस समय मेरी नज़र में दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की थी,वो गीले कपड़े रस्सी पर डालती रही और मैं उसे देखता रहा लेकिन जैसे ही उसकी नजर मुझ पर पड़ी वो शरमाकर,छत से भाग खड़ी हुई।।
अब मैं तो जैसे पागल,बावरा हो चला उसके पीछे,अब साइकिल से उसका पीछा भी होने लगा, मैं उस पर नजर रखने लगा कि वो कहां कहां जाती है,पता चला कि इस कस्बे में वे लोग नए नए आए हैं, लड़की अपने ताई और ताऊ जी के साथ रहती है,कन्या विद्यालय में बारहवीं में पढ़ती है, अंग्रेजी भी ले रखी है, कहीं ट्यूशन भी पढ़ती है, इतनी शिद्दत से अगर खुदा को भी खोजते तो मिल जाता जितनी शिद्दत से हमने उसके बारे में सब पता किया।
अब मैंने हर घड़ी उसका पीछा करना शुरू कर दिया, बहुत सुकून मिलता था लेकिन वो मुझे देखती तक नहीं थी,बस मैं ही उसके पीछे दीवाना था, पढ़ाई-लिखाई चौपट,बस ये याद रहता था कि आज उसने किस रंग का दुपट्टा ओढ़ा था।।
बस दिन गुजर रहे थे, बेकरारी में,वो अजब ही खुमार था,वो हमें घास नहीं डालती थे और हम उसके पीछे दिवाने थे।।
फिर हमने भी सोचा,एक दिन की फैसला हो ही जाए,अगर पसंद करती होंगी तो हां बोलेगी, नहीं तो ना है ही....
फिर एक दिन हिम्मत करके एक प्रेमपत्र लिख ही डाला,अब जो भी लिखा था,हाल ए दिल बयां कर दिया था, अंदर से इतना डर था, बी पी बढ़ा हुआ कि कहीं ऐसा ना हो ना कि सैंडिल की मार पड़ जाए।।
बस सोच लिया था कि जब ओखली में सर दे ही दिया है तो मूसलों से क्या डरना,बस ताक में थे इसी तरह एक दो दिन निकल गए, हिम्मत न जुटी फिर मजबूर होकर एक दोस्त को बताया, दोस्त बोला उसकी नजरें देखकर तो लगता है कि पसंद है करती है लेकिन कभी कहेंगी नहीं,तू परेशान मत हो धोखा खाएगा लेकिन हम बड़े तीसमार खां, किसी की कहां सुनने वाले थे,इश्क का भूत जो सवार था,बस यहीं पर जिंदगी ने जो मोड़ लिया रातों-रात समझदार बना दिया....
फिर एक बार सोचा,आज तो आर या पार,रोज ये प्रेमपत्र लेकर नहीं घूम सकते,आज तो ये ठिकाने लगकर रहेगा,बस क्या था,एक सुनसान गली के पास, जहां से वो रोज गुजरती थी, साइकिल खड़ी की,उसकी ओर चिट्ठी देने के लिए हाथ बढ़ाया और उसने खींच कर जो गाल में दिया,सारे इश्क की धज्जियां उड़ गई,मौहब्बत टूटकर चकनाचूर हो गई।।
ऐसा झटका लगा कि पल भर में अचानक ये क्या हो गया,सारे मनसूबों पर पानी फिर गया,घर आकर आंख से आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे,अरे कसूर तो बताती, नहीं पसंद थे तो कह देती, मैं उसके रास्ते से ही हट जाता, पन्द्रह दिन तक कमरे में बंद रहे फिर पता चला उसकी शादी तय हो गई है, मेरी आंखों के सामने वो दुल्हन बनकर विदा हो गई और मैं कुछ नहीं कर पाया,बस अफसोस रह गया जीवन भर का कि कुछ तो कहती.... आंखें बरसती रही और दिल रोता रहा और कमबख्त आज मिली है.....
बस इतनी ही कहानी थी बेटा!!
बहुत ही दर्द भरी कहानी थी, पापा !!और ऋतु की आंखें भी छलछला आईं।।
इसलिए तो मैंने उनका फोन नंबर मांगा था,ऋतु बोली,
और आप कल ही उनसे मिलकर सारी बातें क्लीयर करेंगे।।
क्यो परेशान होती हो, बेटा,वो नहीं आएगी,सुधीर बोले।।
वो आएगी और उन्हें आना पड़ेगा ,आपके सवालों के जवाब देने ऋतु बोली।।
और सुबह होते ही ऋतु ने सुमन को फोन किया कि आप बाहर मिल सकती है, किसी रेस्टोरेंट में,
ऋतु ने हां, में जवाब दिया।।
ऋतु बोली, पापा जाइए और सारे सवालों के जवाब लेकर ही आइएगा।।
सुधीर रेस्टोरेंट पहुंचे, वहां सुमन पहले से इंतज़ार कर रही थी।।
सुधीर,सुमन के सामने जाकर बैठ गया।।
अब दोनों अकेले आमने-सामने थे,वो भी बयालिस साल बाद__
सुमन बोली, कितने बूढ़े हो गए हो__
सुधीर हंसते हुए बोला... हां इतने साल भी तो गुजर गए..
सुमन बोली, तुम्हारी डेट आफ बर्थ बताओं...
सुधीर ने बताई...
सुमन खिलखिला कर हंस पड़ी__
सुधीर बोला,क्या हुआ,क्यो हंस रही हो..
सुमन बोली,तुम मुझसे दो महीने छोटे हो..
फिर सुधीर भी हंस पड़ा..
बहुत नाराज़ होंगे,तुम मुझसे...है ना!!सुमन बोली।।
पहले था लेकिन अब नहीं,सुधीर बोला
तुमने कुछ भी नहीं कहा और बिना बताए,मेरा दिल तोड़कर चली गई, पता है कितनी तकलीफ़ हुई थी, हफ्ते भर रोया था मैं।। इतना कहते कहते सुधीर की आंखें भर आईं।।
सुमन बोली, पता है
पता है तो क्यो किया था ऐसा, कुछ तो बोलती, मैं खुद ही हट जाता , तुम्हारे रास्ते से।।सुधीर बोला।।
पता है,सुधीर,तुम ही मेरी पहली पसंद थे और हमेशा रहोगे लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरी थी, मैं एक अनाथ लड़की थी,ताई जी और ताऊ जी ने बेटी की तरह पाला, मैं उनकी इज्जत नहीं उछाल सकती थी,समाज और बड़े , मेरे लिए मेरे प्यार से बढ़कर थे,एक लड़की बहुत कुछ लेकर चलती है, और बहुत कुछ छोड़ देती है अपनों के लिए,काश तुम समझ पाते अगर तुम मेरी जगह होते कितना मुश्किल होता है एक लड़की होना।।
उस दिन के बाद मैं हमेशा से तुमसे माफी मांगना चाहती थी जो मैंने उस दिन किया था लेकिन फिर कभी हम मिल ना सके, तुम्हारे कस्बे से ताई और ताऊ जी भी कहीं और बस गए, फिर कभी तुमसे मिलना ही नहीं हुआ,आज माफी मांगती हूं, अपने उस किए की,दिल का बोझ आज हल्का होगा,आज शायद इतने सालों बाद चैन की नींद आएगी,शायद इसीलिए अभी तक जिंदा थीं।।
और उस दिन सुधीर और सुमन ने जीभर बातें की और दोनों खुशी खुशी अपने अपने घर लौट गए।।
दूसरे दिन सुबह गौतम के फोन की घंटी बजी ,कबीर का फोन था,कबीर बोला.... गौतम मां नहीं रही।।
गौतम ने फ़ौरन पापा और ऋतु से कहा...
लेकिन सुधीर के कदम रूक गए......
वो ना जा सका सुमन के अंतिम दर्शन करने...
कैसे जाता, हिम्मत ही नहीं थी...
इतने सालों बाद मिली थी फिर से खो गई वो भी हमेशा के लिए.......

समाप्त__
सरोज वर्मा___🌹


















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