अद्भुत प्रेम--(तृतीय पृष्ठ) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अद्भुत प्रेम--(तृतीय पृष्ठ)

करूणा के जाने के बाद ठाकुर फतेह सिंह बहुत उदास रहने लगे, जीजी बहुत समझाती कि तेरे ऐसे उदास रहने से वो वापस तो नहीं आ जाएगी,तू ठीक से खाता-पीता भी नहीं, ऐसे कैसे चलेगा,तू घर का मुखिया हैं, तुझसे ही ये घर चल रहा है, समझदारी से काम लें।
कैसे भूल जाऊं, करूणा को, जीजी,ये मेरे बस में नहीं है,फतेह सिंह बोले।
करूणा के जाने के बाद कान्हा का ख्याल पूरी तरह से फतेह सिंह और जीजी ही रखते थे,सुलक्षणा अब भी बच्चे से कटी-कटी रहती,प्यार तो करती थी कान्हा से लेकिन कभी कभी सोचती कि इसी बच्चे के कारण ही वो आज इस रास्ते पर खड़ी है और फ़िर से उसे प्रकाश की बेवफ़ाई याद आ जाती।
एक दिन जीजी ने सुलक्षणा से आकर कहा, करूणा के जाने के बाद अब तुम ही फतेह की ब्याहता हो,इस घर की मालकिन हो, ये सबकुछ तुम्हारा है, मैं बड़ी होने के नाते बस सलाह दे सकती हूं, मानना ना मानना तुम्हारी मर्जी, करूणा की भी मरते समय यही इच्छा थी कि तुम और फतेह एक हो जाओ, तुम फतेह को अपना लो,मेरा भाई बहुत अच्छा है, करूणा के जाने से तो जैसे उसकी मुस्कराहट ही चली गई है,
तभी कान्हा के रोने की आवाज़ आई, जीजी बोली, अच्छा मैं जाती हूं, कान्हा क्यो रो रहा है,जरा देखूं तो,मेरी बात पर जरा गौर करना।
पहले सुलक्षणा सिंदूर नहीं लगाती थी लेकिन उस दिन के ाद जीजी के इतना कहने पर मांग में सिंदूर भरने लगी, करूणा की तरह सारे व्रत-उपवास करने लगी,घर की ज्यादातर जिम्मेदारियां सम्भाल ली, यदा-कदा वो अब सबकी नजरें बचाकर फतेह सिंह को भी देखने लगी लेकिन फतेह सिंह कभी भी भूलकर भी उसकी तरफ नज़र तक नहीं डालते, यहां तक कि खाने के लिए जीजी से कहते या किसी नौकर से,अब सुलक्षणा भी चाहे दिन हो या रात जब तक फतेह सिंह खाना नहीं खा लेते, वो खाना नहीं खाती,उनका हमेशा इंतजार करती।
ये सब देखकर जीजी को अच्छा लगता कि चलो,अभी भी मेरे भाई का घर उजड़ा नहीं है,सुलक्षणा के मन में मेरे भाई के लिए प्यार उमड़ रहा,फतेह भी एक ना एक रोज ये बात समझ जाएगा।
जीजी अब सुलक्षणा को ठीक से समझने लगी थी,कि सुलक्षणा दिल की बुरी नही है,उस समय परिस्थितियां ही कुछ ऐसी थी कि ___
जीजी हमेशा सुलक्षणा को समझाती,पति को खुश रखना है तो थोड़ा बन-संवर के रहा कर,सुलक्षणा शर्म से लाल हो जाती और कहती, कैसी बातें करती हो जीजी? जीजी बोलती,भाई ननद हूं तेरी, मजाक तो कर ही सकती हूं, और मुस्कुरा देती।
सुलक्षणा अब बन-संवर के भी रहती,तब भी फतेह उसकी तरफ नहीं देखते,बस हमेशा की तरह कमरे में आते फर्श पर चटाई बिछाकर सो जाते,सुलक्षणा से कभी बात भी नहीं करते।
आज करवा -चौथ है, जीजी ने सुलक्षणा से करवा- चौथ का व्रत रखने के लिए कहा है,सुलक्षणा ने भी हाथों में मेहंदी लगा रखीं हैं और जीजी से पूछ रही है, जीजी शाम को कौन सी साड़ी और गहने पहनूं, जीजी बोली,तू दुल्हन की तरह तैयार होना आज,लाल साड़ी और सारे गहने पहनकर।
तभी जीजी को कुछ याद आया, वो फतेह के पास गई और पूछा, कहां जा रहे हो?
फतेह बोले,आज शहर तक जा रहा हूं, थोड़ा काम है,आप कहो,कुछ काम है,
हां,आज करवा- चौथ है,सुलक्षणा ने तेरे लिए व्रत रखा है,शाम को जल्दी आना और उसके लिए साथ में कुछ उपहार लेते आना,एक अच्छी सी साड़ी और एक मंगलसूत्र।
फतेह बोला, ठीक है जीजी।
शाम को सुलक्षणा,लाल साड़ी और गहने पहनकर बहुत ही खूबसूरत लग रही थी, जीजी ने तुरंत काला टीका लगाया, पूजा की सारी तैयारी हो गई,चांद भी निकल आया लेकिन फतेह सिंह को बहुत देर हो गई थी और वो अब तक नहीं लौटे थे,सुलक्षणा भूखी-प्यासी इंतजार कर रही थी और जीजी से बोली जीजी आप खाना खा लो, लेकिन जीजी नहीं मानी, बोली त्यौहार का समय है तुम दोनों भूखे बैठे हो और मैं खा लूं।
तभी आंगन के बाहर के दरवाज़े की खुलने की आवाज़ आई,शायद फतेह आ गया था, जीजी ने कहा तुरंत,हाथ पैर धोकर ऊपर आजा,फतेह थोड़ी देर में ऊपर आया,सूलक्षणा ने छलनी में चांद देखा फिर फतेह का चेहरा देखा,आज उसने पहली बार गौर से फतेह का चेहरा देखा था, लेकिन फतेह की नज़रें नीचे थी उसने एक बार भी सुलक्षणा की तरफ नहीं देखा।
फिर सुलक्षणा ने पूजा करके फतेह के पैर छुए और उसने दोनों पैरों का स्पर्श इस तरह किया कि जैसे माफी मांग रही हो और उसकी आंखें भी भर आईं थीं फिर जीजी बोली फतेह पानी पिला बहु को,फतेह ने पानी पिलाया, जीजी बोली जो उपहार लाया हो तो देदे, फतेह ने मंगलसूत्र और साड़ी सुलक्षणा को थमा दी।
जीजी बोली अब मंगलसूत्र लाया है तो पहना भी दे,फतेह ने मंगलसूत्र सुलक्षणा को पहना दिया, जीजी बोली आज पहली बार करवा-चौथ का व्रत रखा है, थोड़ा सिंदूर भी लगा दे,फतेह ने सिंदूर भी लगा दिया, फिर नीचे जाकर सबने खाना खाया।
जीजी बोली, आने में इतनी देर कैसे हो गई,फतेह बोला, जीजी एक मित्र के यहां ये साड़ी और मंगलसूत्र भूल आया था,शाम तक गांव आ गया था फिर याद आया कि साड़ी और मंगलसूत्र तो मित्र के यहां छूट गये, फिर वापस जाकर लेकर आया।
करवा -चौथ की रात बिस्तर पर सुलक्षणा सजी-धजी बैठी थी,फतेह ने उसकी ओर देखा भी नहीं,अपना बिस्तर फर्श पर बिछाया और लेट गया,उधर सुलक्षणा, फफक-फफक कर रो पड़ी।
फिर दूसरे दिन उसने शाम के समय करूणा की साड़ी पहनी और करूणा की तरह तैयार हो कर बिस्तर पर बैठ गई, जीजी से कह दिया कि वो आए तो खाना दे दिजियेगा, मेरी तबियत ठीक नहीं है,फतेह सिंह खाना खाकर आए और इस तरह से सुलक्षणा को करूणा के कपड़ों में देखा और खींचकर गाल में ज़ोर का थप्पड़ मारा,बोले तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई करूणा के कपड़ों को हाथ लगाने की, खबरदार जो आज के बाद ऐसा किया।
सुलक्षणा फूट-फूटकर रोने लगी,आप किस बात का बदला ले रहे हैं, मुझे लगा कि मैं दीदी की तरह लगूंगी तो आप मुझे पसन्द करने लगेंगे,मैं आपसे प्यार करने लगी हूं, आपको ये बात क्यो नहीं समझ आती।
और फूट-फूट कर फिर से रोने लगी, लेकिन फतेह सिंह बिस्तर बिछा कर करवट ले कर लेट गये, उनकी आंखें भी भरी हुई थी, उनके मन में भी थोड़ी बहुत प्यार जाग रहा था, न सुलक्षणा के लिए।
जीजी को रात की सारी बात पता चली तो उन्होंने सुलक्षणा को समझाया कि उसके मन में भी कहीं ना कहीं थोड़ा बहुत प्यार है तुम्हारे लिए, इसलिए तो करवा- चौथ वाले दिन दोबारा जाकर अपने दोस्त के घर से मंगलसूत्र और साड़ी ले आया था फिक्र मत कर सब ठीक हो जाएगा।
जीजी बोली कल बिटिया और दामाद जी आ रहे हैं,खबर भिजवाई है,घर में थोड़ी चहल-पहल हो जाएगी, थोड़ी तैयारी कर लो दो दिन के लिए ही आ रहे हैं।
दूसरे दिन जीजी की बेटी और दामाद आ गये, ऐसे बातों- बातों में, दामाद जी ने कहा,मामा जी आपके खेतों में धान बहुत होता है ना, मेरे एक व्यापारी मित्र हैं, वो चावल का व्यापार करते हैं,वो आपसे थोक के भाव चावल खरीदना चाहते हैं,अगर आपका मन हो तो मैं उन्हें बुला लेता हूं तब आपलोग आपस में अपनी व्यापारिक बातें कर लें।
फतेह सिंह बोले ठीक है,आप जैसा ठीक समझें दामाद जी।
दूसरे दिन वो व्यापारी उनके घर आ गया, लेकिन सुलक्षणा उसे देखकर घबरा गई, क्योंकि वो कोई और नहीं प्रकाश था।

क्रमशः_____

सरोज वर्मा____🦃