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रुहानियत (दास्ताँ - ए - रूह) का शायरनामा

रुहानियत (दास्ताँ - ए - रूह) का शायरनामा...

1. तुम्हारे होठों को छूकर जो गिला की रोशनी आई थी,
इतना गुरूर तो अब भी है की,
रोशन करने के लिए उन शिकवों को अंधेरा तो हम से ही मिला था।।।

2. राही बन हुए राह से जब रूबरू
बरबस ही रिश्तों कि मंज़िल पे चल दिए,
आए तो थे महफ़िल में अनजानों की तरह,
अब लेकर संग कारवां ए संगदिल चल दिए।।

3.जिंदगी तेरी जिद के तराने भी अजीब है,
आंखो से निकलते इन अश्कों के ये बहाने भी अजीब है।।

4. जानकार भी अनजान बनते हो,
आप हो नहीं जितने नादान बनते हो,

मुफलिसी की बात आई तो समां बना लिया,
सरफरोशी की बात पे हमको आगे बढ़ा दिया!!!

जरा इतना बता दीजिए
कौन करता है ऐसा भला अपनों के साथ,
असलियत में नहीं तो ना सही,
मिलती कहां है ये वफा भला सपनों के साथ???

5.मांगी थी एक मुराद खुदा से, तन्हाई से निजात पाने की
गलत मांग ली, भूल गया था कि वो भी तन्हा है अपने बंदों के बिना।।।

भूल गया था कि वो भी तन्हा है आपने बंदों के बिना,
की खुदा भी तन्हा है अपने बंदों के बिना,
जैसे एक शायर तन्हा है अपने अज़ीज़ गुलकंदो के बिना,
वैसे ही, आज इंसा भी तन्हा है चार कंधो के बिना।।

6.वक़्त की हंसी से रोशन हुआ,
एक जीता जागता मकान हूं,
चुप्पी जो है जमाने की खामोशी से,
पीछे उसके एक दबा हुआ तूफान हूं,
मत सोचो कि कहां करे इबादत,
और कहां करे इनायत,
हर दर्रे, हर ज़र्रे से आती,
खुदा की पाकीज़ा मुस्कान हूं,
कई दिलो में बसती अरमानों की अज़ान हूं,
में आज का नौजवान हूं।
आज का नौजवान हूं।।

7.जन्नत से जमीं को बरसती ये ओस की बूंदे...
पूछती है मालिक क्या तेरी रजा है???

हो सके तो कर के देर से निकले सूरज...

जरा इश्क फरमा लु में भी अपने यार से...
इस दो पल की जिंदगी की और क्या वजा है???

8.होठों से निकली हर नज़्म आपकी अब तो आयत सी लगती है...
डरते हैं ...बंदगी में आपकी कहीं खुदा से बगावत न कर बैठें???

9.आरज़ू तो बहुत थी आपको अपना बनाने की,
पर ये चार दिन की जिंदगी, आपको देखने में ही खर्च हो गई।।

10. है हुस्न तो इबादत कर उसकी,
जिसने बख्शा तुजे ये नूर है,
निखार उसे अपनी रूह से,
बाहर रहता सिर्फ कसूर है,
पेश कर ईमान उसके दर पे,
बंदगी में उसकी इश्क का सुरूर है,
बनाई उसकी हर चीज से मुहब्बत कर ले,
आखिर मिलता खाक में हर आसमां का गुरूर है।

11.एक उसे पाने को न जाने कितनी मिन्नत करवाएगा??
वो खुदा भी न जाने कब सपनों से बाहर मुजे मेरी जन्नत से मिलवाएगा??

12.इतनी हवा न दे चिंगारी को,
की शोला ये निखर जाएगा,
जल उठी जो लौ इस सीने अंदर की,
ये आसमां भी फिर पिघल जाएगा।।।

13.दे सके दीदार इस करामाती नूर का,
काबिल ऐसा इस जहां में क्या दरिया कोई और भी है??
पा सके पाकीज़ा शिद्दत से तूजे हर जहां में,
बता दे ऐसा जरिया क्या कहीं और भी है??

14. खाक हो सके वतन पे,
मालिक इतनी सी वजा दे,,
सर जुके अब सिर्फ कलम पे,
मालिक इतनी रजा दे।।।

15.राह एक,यहां पे राहबर कई हैं,
मंज़िल एक, जिसपे मुकद्दर कई हैं,
हवा एक, जिसके बवंडर कई हैं,
पानी एक, गहरे समंदर कई हैं,
जीत भी है एक,
जिसके सिकंदर कई हैं।

16.इश्क से नाफरमानी करनी हमें आती नहीं...
तुझसे दिल्लगी है इतनी गहरी....
की तेरी याद इस दिल से जाती नहीं...

17.मायूसी को मिटाया जा सकता है,
अगर उजाला दिल से हो,
जन्नत को जमीं पे लाया जा सकता है,
अगर कोशिश पूरे दिल से हो,

की जा सकती है बगावत, बदहाली से,
अगर तय ये पूरी महफ़िल से हो,
तकदीर भी तेवर बदलती है जनाब,
अगर कोशिश पूरे दिल से हो।।

18.जा सके तो जा छोड़ के,
पर थोड़ा याद तो कर लेना,
अगर छूटी जो कोई वफा की तस्वीर जो पीछे,
उसे जरा बरबाद तो कर देना।।

19.याद रखना जिस दिन
तेरे दिल से अलविदा हो जाएंगे,
उसी दिन,
इस दुनिया और जिस्म से भी
जुदा हो जाएंगे।।।

20. मिट्टी से बना ये जिस्म और,
तेल में डूबी ये बाती है,
रोशन करती जहां को मगर,
जलती ये आग जज़्बाती है।।।

21. मोहलत मांगी थी ख़ुदा से कुछ पल की ,
सोचा था, की ज़ियारत हो जाएगी,
मिला साथ जबसे तेरा इस जहां में,
यकीं है, की ईबादत भी हो जाएगी।।

22.यूहीं हँसते पूछ लिया था वख्त ने कभी जिंदगी से की,
बता तेरी हस्ती किसकी मोहताज है,किस्मत के करम की??
या मेरे रहम की??

हँसते हुए जिन्दगीने भी बोल दिया था,
न किस्मत के करम की, ओर न वख्त के वहम की,
मोहताज है हस्ती मेरी सिर्फ,
इंसां के ईमान ओ करम की,
ओर उसपे रब के रहम की...।।। और
तू काहे इतराता है?ए वख्त क्यूँ गौर नही फरमाता है??
अगले पल की सुध नही, तेरी हस्ती सिर्फ आज है!!
बनता जो है सरताज तू...
खुद तेरी भी हस्ती उस मालिक की मोहताज है।।

23. कहते हैं कुछ लोग की,
बड़ा मजा है जीने में,
जब नशा है पीने में,
नादान है नही जानते,
धधक उठती है आग दिल के अंदर
जब गले से उतरता ये बारूद,
जा घुलता है लहू से इस सीने में....
बड़ी तकलीफ होती है जीने में..।।

24.सारी उम्र बसर करने के बाद भी,
सिर्फ दो ही बातें समझ पाया की,
मौत आने से पहले अपनी इत्तेला नही देती,
और
जिंदगी अपने पीछे निशाँ छोड़ जाती है।

25.कुछ निशाँ गहरे होते हैं,
पर तकलीफ़ नही करते,
ओर
कुछ बिना निशाँ के घाव,
बड़ा दर्द दे जाते हैं।

26.आपके दीदार की किमत और क्या करूँ??
नजरें सोना तलाशने निकल पड़ती हैं,
और हाथ संगेमरमर को।।।

27.अय खुदा
दुआ है तुजसे इतनी बस एक बार मुजे इश्क़ का गुनाह करने दे।
अपनी सांसे ओर इस रूह को उसके साये में बेपनाह करने दे।।

28.हशिश की कशिश में न जाने कब
से इतने मसरूफ हो गए...
की कई पुरानी खताओं को
आईने के सामने क़बूल करते गए।।

29.अल्फ़ाज जब बयाँ होने लगे आंखोसे,
जुबां का फिर वजूद क्या है??
आग भी जो जलने लगी पानी के अंदर,
तेल के दिए का फिर वजूद क्या है??

30. तन्हाइयों ने भी अब तो छोड़ दिया है,
दस्तक देना मेरे दरवाजों पर,
अय खुदा,
इल्तज़ा है बस इतनी तुजसे,
हो सके तो भेज दे कोई मौला,
जो पढ़ दे ख़ुत्बा मेरे इश्क़की नमाज़ों पर।।।

31.क़बूल कर इमान मेरा,
जो पेशेख़िदमत है तेरे दर पे,बड़ी संज़ीदगी से,
कुर्बान इस जिस्म का हर क़तरा मेरे मालिक़,
आज से तेरी बंदगी पे।।।

32. चाँद की वफ़ा का ज़िक्र और क्या करें?
लाखों सितारों से घिरे होने के बावजूद उसकी चांदनी
सिर्फ जहाँ को देता है,
दुनिया की बेवफाई भी देख लो जनाब,
उसी रोशनी के मद्देनजर,
ये जहाँ सितारों को गिनता है।

33.मालूमात करने निकले थे इमरान साहब,
पूछा टहलते किसी अजनबी से, की सब खैरियत तो है??
सवाल के सामने सवाल आ गया,

खैरियत छोड़ो जनाब वजीरे आजम,
यूँ तन्हा घूम रहे हो जो सड़को पे,
तुम पहले ये बताओ,
की अब भी पाकिस्तान में जम्हूरियत तो है??😂😂🤣🤣

34.मिलता हूँ जो रोज सुब्ह तुमको,
इक शाम भला तू भी आ जा,
ये वख्त, हर वख्त, बड़ा कमबख्त है,
बेवख़्त यूँ ही सरेआम आ जा।।।

35.बनके बिगड़ी यूँ जिंदगी इस कदर,
की फिर से जो ये तन्हा हो गई,
कर डाली मुहब्बत जो इतनी शिद्दत से तुजसे,
की इस जहां से भी छूटने की अब तमन्ना हो गई।।

36. आरजू तो बहोत थी,
इस दिल मे दर्द छुपाने की,
पर क्या करें हुजूर...
आपकी यादों ने उन्हें
बेसहारा कर दिया।।

37. याद जो कर लिया है तुमको,
पता है कि तन्हाइयां भी जरूर आएँगी,
लेकिन यक़ीन है ये भी पूरे दिल से,
एक दिन तो इन वादीयों में फिजाएं रंग जरूर लाएंगी।।

38. मांगता हूँ जब हररोज एक दिन जिंदगी से उधारी पे,
कमज़र्फ हँसती है बड़ी बेहूदगी से, इस नादारी पे,
टूटती है हिम्मत, नजर पड़ती है जब खत्म होती ख़ुद्दारी पे,
ये दिल करता है दुआ मौत की,
जब नजर पड़ती है कभी न खत्म होती जिम्मेदारी पे।।

39. निकलती है तो निकलने दे चिंगारी को,
ये आग अर्से से,जो सीने में दफ़न है,
बता भी दो, जो कोई रूह से जिंदा है गर
बिछी हैं चलती फिरती लाशें हर तरफ,
पहना हर किसी ने जो अब तो कफन है।

40. अय उम्मीद, इतनी भी हवा न दे,
किसी बुझते चिराग को,
की जो ये जल उठा,
फिर तो अंधेरा भी रोशन हो जाएगा।।।

41. रंग गए जो तेरे इश्क़ में..
बेरंग, इस जिन्दगी में अब कोई किस्सा नहीं,
ख़ुदा मान लिया तुजे मुहब्बत का जब से,
तुजसे जुड़ी न हो ऐसी किसी शय का ये जिंदगी अब हिस्सा नहीं।।।

42.इन नज़रों को तेरा दिदार हुआ जब,
बड़ी मुश्क़िल से हैं सम्भले, इन आफती वार से,
निभा लिए किरदार को तो कुछ जुगाड़ करके,
पर क़ुरबान हो लिए 'कातिल' तेरे हथियार से।

43. मोहलत मांगी थी ख़ुदा से कुछ पल की ,
सोचा था, की ज़ियारत हो जाएगी,
मिला साथ जबसे तेरा इस जहां में,
यकीं है, की ईबादत भी हो जाएगी।।

44. नासाज़ तो थी ही तबियत कुछ अरसे से हमारी,
थोड़ा रंगीन हो लिए तो क्या हो गया??
ख़्वाहिश तो थे ही आप कुछ अरसे से हमारी,
अब आफ़रीन हो लिए तो क्या हो गया??

45. जिंदगी चली गई, सबूत के लिए....
लाशें कर रही इन्तेज़ार,
अब ताबूत के लिए।।।

*ताबूत - शवपेटी

46. मेरी कश्ती को के दरिया में क्यूँ उतारा साहिल,
में शायर हूँ, मुजे मयखाने में रहने दो,
प्यासा जो हूँ, मेरी प्यास के पयमाने हैँ कई,
जिंदा जब तक मुजे, तहखाने में रहने दो।।।

47. કહે તો ઓગાળી દઉ મારી જાતને હવામાં,
બસ એક વાર જો તુ મળી જાય મુજને દુઆ માં,

પણ એ હવા, એ પવન એ વખત મારો હશે...

ભલે બજતી હો સો કુરનીશ તારી એ સજદા માં,
તારી પાંપણ ઝુકશે જ્યાંથી, એ ઝરૂખો મારો હશે...

48. પ્રખર સહરાના રણની તરસને જાણે મીઠી વીરડી મળી છે..
આવ્યા છો આજ... નક્કી કોઈક બાધા ફળી છે....

કહો કોઈ એમને....શું તો આ સૌંદર્ય અતિ નયન રમ્ય છે...
આપ છો અહીં એવી ખાતરી મમઃ હૃદયગમ્ય છે

આપને કરેલ અનુનય વિનય પણ અનન્ય છે...
આપના આગમનથી સંતૃપ્ત થઈ આજ મારી

'આંખ' આ ધન્ય છે...

49. बहा दे , बहा दे, दिले दरिया को,
की होगा जो नूर वो बिखर जाएगा...
नज्में जो तेरी, ठहरी होठों पे मेरी,
इश्के इबादत का सुरूर भी तो,
फ़ितूर बन के निखर आएगा।।

50. अय ख़ुदा, हो सके तो इस जहां से इतना फारिग कर दे,
दिने क़यामत तक भी न भूली जाए हस्ती मेरी,
जिंदा ऐसी कोई तारीख़ कर दे।।।

51. आग से तपिश, ओर बूँद से रवानी मांगी है,
अय मौत, कर ले इन्तेज़ार कुछ और दिन का...
आखिरी दुआ में अपनी...इस दिल ने ..
इश्क़ वाली जवानी मांगी है।।।

52.वादा जो किया था तुजसे...
की तेरी खुशियों में शरीक जरूर होंगे...
तो कर शुकरान....
की हम वादा निभाए हैं...
मरने के बाद भी
हाजिरी देने तेरी दावत में...
जन्नत से रूह ओर
जमीं से दफ्न जिस्म
भी उठा लाए हैं।

53. टूटते सितारे को देख लोगोंने
अपने हिस्से को मन्नत मांग ली,
गर्दिश में बिखरे उन टुकडों को जोड़
हमने तेरा आईना बना दिया।।

54. तेरे इश्क़ का दुलारा यहां ओर कोई नहीं,
तू जो है पास तो है सब ख़ैरियत,
वरना इस दिल का गुज़ारा ओर कोई नहीं।।।

55. जिंदगी जीने की वज़हें कम,
मरने के बहाने ज्यादा हैं,
फिर भी अय जिंदगी,
तुजे जी लेने की चाहत छूटती नहीं,
सांसे लेने की आदत जो छूटती नहीं,
उसे पाने की राह है मेरी अब भी कायम,
क्योंकि
मुकम्मल उम्मीद ऐसे टूटती नहीं,
ये मिज़ाजे आशिक़ी ऐसे छूटती नहीं।।।

56. वादा रहा,
तब भी इतना ही खूबसूरत हर एक वो मंज़र होगा,
होगी इन लबों पे हंसी तब भी...तेरे लिए
जब इस पीठ पे लगा तेरे हाथ का खंजर होगा।।।

57. सुना है कि कोई पैग़ाम पाक ए फ़रिश्ता से आया है,
टूट रही थी तार बंदगी की,
छूट रही थी साँसे जिंदगी की,
मिलाने फिर से अपने बंदों को अल्लाह से
वो नया रिश्ता लाया है।।।

58. ये दिल भी बड़ा लालची है, कहता है,

बयां जो कर दी हैं अपनी हसरतें तमाम,
हुई गर जो एक भी पूरी,
दूसरी की दुआ...
तीसरी की मन्नत माँग लेना।।☺️☺️

59. जन्नत की कश्तियों को जमीन पे उतार दो...
आज हम घूमने कश्मीर निकले हैं।।।

60. मुहब्बत ओर मिलावट की कोई तालीम नहीं होती,
हम मदरसों का मुआयना कर के आये हैं।।।।।।।।।

61. ये कैसे हो सकता है ?? की,
बेदर्दी ओर बेरहमी की सरगोशी हो,
ओर इसकी रिवायत भी न हो।।
आप आए हमारे शहर में ओर दर पे,
आपकी इनायत भी न हो।।
आप करें तो मनमानी ओर इसकी रियायतें,
ओर हमको जरा सी शिकायत भी न हो।।।

62. इन अरमानों की लिस्ट बहुत लंबी है मौला,
इतनी जल्द खत्म नहीं होगी,
तेरी तवज्जो के बिना।।।

63. माना की आप उठते हो
हर सुब्ह कुछ देर से...
पर ये दिल आपके दीदार को
रात भर जगता है।।।

64. हमने पढ़ा है जिब्रान को,
मगर मिज़ाज ग़ालिब का रखा है,
कुछ इस क़दर हमने खुद को,
उनके मुताबिक़ रखा है।।।

65. “तुमसे पहले वो जो इक शख्स यहां तख़्त नशीं था
उसको भी अपने ख़ुदा होने का इतना ही यकीं था”

- His Ex.Habib Jalib (shayre Pak)

66. इश्क़ को क़ुरबान करके भी,
ये दिल्लगी निभाई जाएगी,
ये वादा रहा आपसे की,
ताउम्र दोस्ती निभाई जाएगी।।
कुछ इस कदर जिंदगी और साँसे
खपाई जाएंगी।।

67. इश्क़ की शायरियाँ बहुत हो गईं,
क़लमकार अब आराम फ़रमाने निकले हैं,
अय जहाँपनाह,
तुम भी कुछ काम धंधा देख लो,,,
वरना ये अवामी तख़्त को हराम करने निकले हैं।।।

(अवामी - common Public)
(क़लमकार - writers, shayar)
(जहाँपनाह - government)

68. तुजसे दूर होके भी ये दिल बर्बाद हो लिया,
अगर पास होते!!!
तो अंजाम - ए - दिल क्या होता???

69. ना ही तलवार की धार से,
ना ही किसी वार से,
तख्तनशीनों के तेवर कटेंगे,
सिर्फ क़लम के हथियार से।।।

70. यूँ तो मिलेंगे इस जहाँ में ईक रोज तुमसे...
उस जहाँ में मुलाकात तो सितारों ने मुक़म्मल कर दी।।।

71. मेरा वख्त ओर मेरे यार के नख़रे दोनो ही बड़े अजीब हैं,

एक को बदलना मेरे वश में नहीं
ओर
दूजे को संभालना मेरे बस में नहीं।।।

72. भारतीय होना एक स्वाभिमान है,
भारतीयता ही मेरी पहचान है,
तीन रंगों से सजा जिसका आसमान है,
उत्तर प्रहरी नगाधिराज हिमालय का मणि मुकूट,
ओर दक्षिण में पाद प्रक्षालन करता जिसके, हिन्द का महासागर महान है,
पूरब में जिसके सूरज यानि अरुण का आँचल
ओर पश्चिम में गांधी गिरा गुजरात महान है,
हृदय में बहती गंगा जिसके,
गंगा जमुनी तहज़ीब जहाँ की कौमी एकता का
करती गुणगान है,
वो भारत ही मेरा देश और
मेरा अभिमान है।।।

73. नाकामियाब हुआ इस कदर तो सोचा,
किसी ने बददुआ दी होगी,
तिनके के सहारे उठा जब,
रेहमत ने उसकी महल बना दिया तो सोचा,
किसी ने बद इरादे से ही सही,
पर दुआ तो की होगी।।।

74. आईने के उस पार भी कोई दुनिया होगी,
काँच के उस तरफ भी कोई रो रहा था।।

75. बिछाने को कुछ बॉक्स के टुकड़े..
ओढ़ने के लिए एक चादर..
लेटने के लिए ज़मीन..
सूरज की धूप भरी छाँव...
धरती माता का आँचल..
जलाने को कूड़े का ढेर..
पीने के लिए एक पानी भरी बॉटल..
पैरों के लिए एक जोड़ी चप्पल..
साथ मे एक वफ़ादार दोस्त..
जो बिना बोले..
बिना तोले..
बस ख़ामोश रहकर दर्द बांटे..
ओर दोस्ती निभाए...
ओर एक गाढ़ी नींद..
इससे ज्यादा अमीर और कौन होगा भला???
(क्या इनका भी कोई बजट होगा??)

76. तीर नीकला है कमान से,
तो मालूमात तो होगी,
चिंगारी जो लगाई है बड़े दिल से,
आग से रूबरू फिर मुलाकात तो होगी।।।

77. सूखी सर्द इन हवाओं में कहीं न कहीं नमी जरूर होगी,
उतरी जो हैं आप जन्नत से हूर बन के,
चूमने आपके कदमों को बेशक,
कहीं तो कोई बेताब जमीं जरूर होगी।।।

78. ख्वाब में देखा था जिसे कभी,
वो सारों का हिन्दुस्तान था,
सड़कें घूम के देखा जिसे,
वो सिर्फ नारों का हिन्दुस्तान था।।।

79. वो कहते हैं हम नादान है,
जो इसका फायदा नहीं जानते!!
बड़े नासमझ हैं वो जो सोचते हैं
की हम अपना हक और
इस सरजमीं का कायदा नहीं जानते।।

80. दिल करता है, चुरा लूं तेरे अक्स को आईने से भी,
पर तू दरिया है रेत का, हाथ से फिसल ही जाएगा।।।

81. अपने अरमानों की दुकान को
किसी नदिया में बहा दो,
मौजूद थे सारे, तो फरिश्ता बन गए,
जिंदा हूं जब तक किसी इंसान से मिला दो।।।

82. साँसों से अपनी ये जिस्म भी जुदा हो गया,
जब से है जाना,
कि तू किसी और के इश्क़ का ख़ुदा हो गया।।।

83. एक अर्से से संजोया था तुज़े यादों में अपनी,
आंख से आँसु बन के जो निकले हो,
गुज़ारिश है बस इतनी की,
भूल से भी भूल मत जाना, इस नाचीज़ को।।।

84. नमाज़ के वख़्त लोग बंदगी भूलते गए,
शानो शौक़त की जूठी चकाचौंध में,
लोग जिंदगी भूलते गए।।।

85. यूँ तो तोड़ा है हौसला जिंदगी ने बहुत मगर,
ख़्वाहिशें भूलकर यूँ जीना मेरे बस में नहीं,
मिल जाऊं जो राह पे, किसी मोड़ पे,
मुस्कारके दीदार जरा दे देना,
आँखे बंद करके तुज़े यूँ भूल जाऊं
ऐसे जीना मेरे बस में नहीं।।।

86. चंद पंक्तियाँ आपकी शानमें पेशेख़िदमत है,
कि,
ईश्के मिज़ाजी करना इतनी भी अच्छी आदत नहीं,
हर ख़्वाहिश, हर नुमाईश का सज़दा करना पड़ता है।।।

87. रिश्ता तोड़ देने के बाद वो बोली,
इतनी ज़िल्लत क्या कम थी,
जो फिर से जहालत दिखाने आ गए??

बड़े सुकून से हमने भी कह दिया,
तूने जो ठुकराई वो मुहब्बत थी हमारी,
खुदा माना था कभी इस दिल का तुजे,
हम तो बस इबादत करने आ गए।।।

88. જિંદગીની ચાલમાં, શ્વાસોના તાલમાં
એકલતા થી મોટું અન્યત્ર, કોઈ ઠેકાણું નથી...
અસ્ખલિત પ્રવાહે જે વહે છે સદા,
એ સમયથી મોટું, બીજું કોઈ ઉખાણું નથી...

89. एक हाथ में नबी का निशान, पवित्र क़ुरान
और दूसरे में तलवार साथ नहीं चल सकते..
अगर साथ चाहिए तलवार का,
तो सर पे उसके हाथ की उम्मीद नहीं कर सकते।।।

क्योंकि क़यामत के दिन
वो तुम्हारा ईमान देखता है,
सामान नहीं।।।

90. सिरफ़ तेरे हाथ की पियाली नहीं है काफी...
हो सके तो साथ में, दो घूँट जाम हो जाए....
परदानशीं हो कर, कर लिए हैं बहुत कुछ....
बाकी बचा जो थोड़ा, सरेआम हो जाए।।।

91. आए दिन डूबता रहता हूँ तेरी आँखों के समंदर में..
सोचा बता दूँ तुजे,

की इतनी भी मशहूर नहीं है मेरी तैराकी...

की तू रोज इम्तेहां ले सके।।

92. मत कर इतना भी गुरुर अपने पे..
की ख़ुद ही ख़ुद को ख़ुदा बना ले..
मत भूल की तक़दीर बहुत जल्द करवट बदल देती है,
कहीं तेरी हसरत ही तुजको
तारीख़ ओर तवारीख़ से गुमशुदा न बना दे।।

93. सोचा था रात होते ही सोते ही
ख्वाबों को ज़ुबाँ मिल जाएगी,,,
पर क्या पता था दिले नादान,
आँख खोलते ही इतनी जल्द
वापिस सुब्ह हो जाएगी।।।

94.आज सुब्ह आँखें मूंदकर फिर से किसी के ख्यालों में खोई हुई थी वो,,
क्या पता कितनी रातोंसे आँखें खोलकर ही सोई हुई थी वो।।

95.दुनिया भी पहचान लेती है इश्क़ का दस्तूर,,,
एक तुम ही नहीं समज़े भला,
इसमें हमारा क्या कसूर???

96.सोचा था रुबरू में भी कभी तुमसे मुलाक़ात तो होगी
तब तक भला ख्वाबों में ही सही,
पर गुफ़्तगू में भी बात तो होगी।।

97.लिखता हूँ हमेशा किन्हीं बेज़ुबानों के हक़ के लिए,,
क्या पता कब शहीद कर दिया जाऊं किसी बेवज़ह शक के लिए???

98.उनके पैरों की आहट से ज़रा बेताब हो जाते हैं,
कुछ कहते हैं,
उनकी रौनक़ से हम आफ़ताब हो जाते हैं।

99.माशूक़ की क्या औक़ात की तुज़से उधार ले सके,
अय दरिया तू इतना भी क़ाबिल नहीं,
की चंद बूंदे मीठा पानी दे सके।।।

100.ज़िन्दगी भी साली तवायफ़ ही निकली....
ख़र्चा हम उठा रहे थे...
साँसे हम लूटा रहे थे...
और वो मुजरा किसी और के इशारों पे कर रही थी।।।।

101.जिंदगी जीने बस यूँही उधर जाता हूँ मै...
कभी दफ्तर...कभी घर...
बस इन दोनों के बीच ही गुज़र जाता हूँ मैं।।

- एक इँसान का वख़्त


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