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भदूकड़ा - 37

अगली सुबह फिर जानकी की मुसीबत करने के लिये ही कुन्ती ने सुनिश्चित की थी. सबेरे जब जानकी सबको चाय दे रही थी, तो कुन्ती ने टेढ़ी निगाह कर पूछा-

चाय कीनै बनाई? तुमनै?

आंहां अम्मा. चाय तौ सुमित्रा चाची नै बनाई. हम तौ बस सब खों दै रय. जानकी ने सहज उत्तर दिया.

छन्न.......... चाय का कप छन्न की आवाज़ के साथ ही आंगन में अपनी चाय बिखेरे औंधा पड़ा था.

तुमै इत्ती अक्कल नइयां कै चाय बना लो? बड़ी जनैं चाय बनायं, औ तुम भकोस लो!! जेई सिखाया का तुमाई मताई नै?

कुन्ती अपने रौद्र अवतार में वापस आ रही थी.

देखो अम्मा, ऐसी है, कै अबै ई घर में आये हमें मुलक दिना नईं भय. हमें नईं पतौ कै इतै का कैसो होत. जब बड़ी जनीं हां देख हैं, तब सीख पैहैं. रई बात मताई के सिखाबे की, तौ उनने का सिखाओ, का नईं सिखाओ, जे रन दो अब. उतै के रीत-रिवाज हम उतईं छोड़ आय. अब इतै कौ सीखनै सब. सो हमाई मताई लौ न जाइयो बेर-बेर. ऊ दिना भौत सुन लओ हमने अपने बाप-मताई के लानै. अब रोज़-रोज़ न सुन पैंहैं. औ बच्चा सब अपने आप सीखत. कोऊ के बाप-मताई सब कछु नईं सिखा देत. कछु अपन अपने आप सीखत. अब आपकी मताई नै कौन चिल्ल्याबौ सिखाओ हुइये आप खों......

एक तो कुन्ती के लिये नई बहू से जवाब ही अपेक्षित नहीं था, उस पर ऐसा जवाब.... और फिर उन्हीं की मां को उलाहना!!!

आव देखा न ताव, कुन्ती ने लपक के जानकी की गर्दन पकड़ ली. इस अनपेक्षित हमले के लिये जानकी बिल्कुल तैयार नहीं थी. जब तक कुछ समझती, उसकी गर्दन कुन्ती के हाथों में थी. बड़ी ज़ोर से चिल्लाई-

ओ चाची रे....... मार डाला.....!

आवाज़ सुन के रमा और सुमित्रा दोनों दौड़ीं. बाहर बैठे लोग भी दौड़े. ऐसा दृश्य, तिवारी खानदान में पहली बार उपस्थित हुआ था. वरना कितनी सारी सगी/चचेरी देवरानियां-जेठानियां मिलजुल के रहते, काम करते अब उम्रदराज़ होने लगी थीं. कभी ऊंची आवाज़ तक नहीं सुनी गयी इस घर से. लेकिन आज बाहर काम करता खवास, अन्दर आंगन लीपती कहारिन, सब दौड़े चले आये. कुन्ती के हाथों से रमा ने किसी प्रकार जानकी की गर्दन छुड़ाई. इस छीना-झपटी में जानकी की गर्दन अच्छी खासी रगड़ खा गयी थी.

रमा, इस लौंडिया से कह दो, मेरी नज़रों से दूर हो जाये. मेरे मां-बाप तक पहुंच रही है...! हट यहां से. दोबारा अपनी ये घिनौनी शकल मत दिखाना यहां. अपमान और क्रोध से कुन्ती थर थर कांपने लगी थी. आखिर पहली बार किसी ने पलट के जवाब देने की गुस्ताख़ी की थी! गुस्से में कुन्ती एकदम खड़ी बोली बोलने लगती थी.

रमा कुछ कहे उसके पहले ही जानकी अपनी गर्दन सहलाती बोली-

ऐसो है अम्मा, हम कहूं नईं जा रय. तुम ब्याह कैं ल्याईं हमें. अब जित्तौ तुमाओ है जौ घर, उत्तौ हमाओ भी है. कोऊ की दम नइयां हमें काड़बे की. औ कोऊ हमाय मताई-बाप लौं न पौंचे कभऊं. हम सें ऊटपटांग न बोलें तौ हमें कारे कुत्ता नै नईं काटो कै हम उल्टो-सीधो बोलहैं. हम चाउत हैं कै सब औरें नौने प्रेम सें रओ. अपनी इज्जत अपने हाथ में होत. सो अम्मा, न तुम हमें छेड़ियो, न हम कछू ऐसो बोल हैं, जौन तुमैं बुरओ लगै.

क्रमशः

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