शापित - 4 Ashish Dalal द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

शापित - 4

शापित

आशीष दलाल

(४)

तीन महीने पहले रोहित से हुई बात को एक बार फिर से याद करते हुए उसके शरीर में भयमिश्रित उत्तेजना छा गई. उस बात के बाद रोहित ने खुद ही नमन से दूरी बनाना शुरू कर दी थी और अपने बेटे को नमन के घर में अकेले होने पर यथासंभव उसके यहां भेजने से रोकने लगा था. नमन ने रोहित से अपनी हुई बात के बाद इस परिवर्तन को बड़ी ही अच्छी तरीके से महसूस किया था. रोहित से अपनी हुई इस बात के एक महीने बाद ही रोहित का एक्सीडेंट और फिर मौत होने पर नमन विचलित हो गया.

नमन के मन में खाली बैठे बैठे तरह तरह के विचार उमड़ रहे थे तभी नीता के ऑफिस जाने के बाद चिंटू नमन के पास आ गया. सुनंदा भी नमन को घर साफ रखने की हिदायत देकर ग्यारह बजे के लगभग घर से निकल गई. चिंटू के साथ मस्ती करते हुए दोपहर का खाना खा लेने के बाद दोपहर को नमन चिंटू को लेकर अपने बेडरूम में आ गया.

पंखे का स्वीच ऑन कर नमन टेबल पर से एक उपन्यास लेकर कुर्सी पर बैठ गया और चिंटू वहीं अपनी खिलौने की कार से खेलने लगा.

टेबल के सामने की ओर दीवार से सटाकर बेड लगा रखा हुआ था. और बेड से कुछ दूरी पर उस ओर की दीवार पर खिड़की थी. खिड़की से हल्की सी हवा के साथ दोपहर की सूरज की रोशनी छनकर कमरे के अन्दर आ रही थी. खिड़की के ऊपर की खाली दीवार पर कृष्ण और अर्जुन का गीता के उपदेश वाली एक तस्वीर टंगी हुई थी.

नमन बड़ी ही तन्मयता से उपन्यास पढ़ने में लीन हो गया. चिंटू बार बार आकर उसके पैरों के पंजों पर से अपनी कार चलाकर ले जाता और नमन उसे हिदायत देकर ऐसा करने से मना कर रहा था. तभी चिंटू अपनी कार लेकर नमन के दोनों पैरों के बीच खड़ा हो गया और उसके पेट पर कार चलाने लगा. नमन चिंटू की इस हरकत से गुदगुदी होने से खिलखिलाकर हंस दिया और अपने हाथ में पकड़ रखी उपन्यास टेबल पर रखकर उसे लाड़ लड़ाते हुए अपनी गोद में बिठा लिया.

‘तुझे मना किया है न परेशान करने को. अब अगर परेशान किया तो घर भेज दूंगा.’ नमन ने चिंटू की नाक हल्के से दबाते हुए कहा.

‘तो मैं वापस आ जाऊंगा.’ चिंटू ने जवाब देते हुए नमन की नाक पकड़ ली.

‘मैं नहीं आने दूंगा.’ नमन ने अपना स्वर कड़क करते हुए चिंटू को घूरा.

‘आपने तो कहा था कि आप मेरे साथ खेलोगे पर आप तो किताब पढ़ने लग गए.’ चिंटू ने बड़ी ही मासूमियत से नमन को उसका किया गया वादा याद दिलाते हुए बात बदल दी.

‘हं ... अच्छा बता कौन सा खेल खेलेगा ?’ नमन ने चिंटू का मन रखने के लिए पूछा.

‘नया वाला खेल ! जो किसी को न आता हो.’ चिंटू ने चहकते हुए जवाब दिया. उसका जवाब सुनकर नमन को एक झटका लगा और उसके मन को पुरानी वाली वही घटना फिर से कचोटने लगी.

वह ठीक तरीके से याद कर पा रहा था कि रोहित ने उसे किस तरह नए खेल के झांसे में फंसाकर उसकी देह का उपभोग किया था. सहसा उसका हाथ अपने दोनों पैरों के बीच की जगह को छू गया. वह एक तनाव महसूस कर रहा था. उसने चिंटू को अपनी गोद से थोड़ा सा खिसकाकर बराबर पैरों के बीच बिठा लिया. धीरे धीरे नमन के मन पर शैतान अपनी काली छाया डालने लगा था.

‘भैया.. चलों न ! खेलते है.’ चिंटू ने नमन के गालों को अपनी हथेलियों से सहलाया.

‘चिंटू, आज हम दोनों एक नया खेल खेलेंगे.’ नमन ने जवाब देते हुए चिंटू को अपनी गोद से उतारा और खड़े होकर खिड़की बंद कर दी. फिर चिंटू को बिस्तर पर बिठा दिया.

‘नहीं मुझे सोना नहीं है. मुझे खेलना है.’ चिंटू ने विरोध किया.

‘हां, खेलेंगे न !’ पन्द्रह साल पहले की एक एक घटना नमन के दिमाग पर हावी होने लगी. एक अजीब से उन्माद से उसकी आंखें बोझिल होने लगी.

‘कौन सा खेल भैया ?’ चिंटू ने बड़ी ही मासूमियत से नमन की ओर देखा.

‘बड़ा ही मजेदार खेल है. हम दोनों को बहुत मजा आएगा.’ जवाब देते हुए नमन की आंखों में कुटिलता छा गई.

‘तो चलो न भैया ! जल्दी से खेलते है.’ कहते हुए लाड़ लड़ाते हुए चिंटू नमन से लिपट गया.

‘पहले एक प्रामिस करना होगा भैया से.’ नमन बड़ी ही आसानी से कहते हुए चिंटू को देखा.

‘प्रामिस.’ चिंटू ने भोलेपन से जवाब दिया.

‘पहले पूछ तो सही कौन सा प्रामिस करना है ?’ सहसा नमन के चेहरे पर मुस्कुराहट छा गई.

‘कौन सा भैया ?’ चिंटू कहते हुए ने नमन के गालों को अपने नन्हीं हथेलियों से सहलाया.

‘इस खेल के बारें में किसी से कुछ भी मत कहना. कहोगे तो भगवान तुम्हारें भैया को उनके पास बुला लेंगे.’ नमन ने ठीक उसी तरह से चिंटू को अपनी बातों में उलझाते हुए कहा जिस तरह वह खुद शिकार हुआ था.

‘किसी से भी नहीं ? दादी और मम्मी से भी नहीं ?’ चिंटू ने पूछा.

‘हां, किसी से भी नहीं. प्रामिस ?’ कहते हुए नमन ने अपना हाथ आगे बढ़ाया. चिंटू ने अपना हाथ उसके हाथ में रख दिया.

‘ठीक है तो मेरे शेर. चल यहां लेट जा.’ चिंटू को अपने से अलगकर नमन ने उसे बिस्तर पर लिटाते हुए कहा.

‘नहीं, आप तो दादी की तरह झूठ बोलकर मुझे सुला दोगे. मुझे नींद नहीं आ रही है. मुझे तो खेलना है.’ चिंटू ने बैठते हुए कहा.

‘ये नया खेल है और लेटकर ही खेला जाता है.’ नमन ने चिंटू को अपनी बातों में लेते हुए कहा.

‘तो ठीक है.’ कहते हुए चिंटू खुद ही फिर से लेट गया. अपना शर्ट उतारकर नमन चिंटू की बगल में लेट गया और अपने गालों से चिंटू के गालों को सहलाने लगा.

‘भैया, गुदगुदी हो रही है.’ चिंटू नमन का क्लीन शेव्ड चेहरा अपने गालों पर से हटाने की कोशिश करते हुए हंसते हुए बोला.

‘मजा आ रहा है न. अब और मजा आएगा.’ कहते हुए नमन के हाथ चिंटू के शर्ट के बटन छूते हुए उसकी कमर तक जा पहुंचे.

चिंटू नमन की बगल में लेटा चुपचाप उसकी हरकतों पर गौर करता हुआ निर्बोध भाव से खिलखिलाकर हंस रहा था. नमन के हाथ सहसा चिंटू की चड्डी के इर्दगिर्द घूमने लगे. सहसा उसकी आंखों के आगे एक बार फिर वही पुराना दृश्य घूम गया. चिंटू की जगह वह अपने को लेटा हुआ देख रहा था और खुद की जगह पर रोहित को.

‘जो घाव मेरे मन पर कालिख की तरह जमकर मुझे पल पल पीड़ा दे रहे है आज उन्हीं जख्मों पर मलहम लगाने का वक्त आ गया है. तुम्हारा तो कुछ न बिगाड़ सका रोहित अंकल पर तुम्हारी जगह तुम्हारा बेटा ही सही.’ मन ही मन रोष व्यक्त करते हुए नमन ने एक बार जोर से चिंटू को दबोच लिया.

******