शापित - 5 - अंतिम भाग Ashish Dalal द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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शापित - 5 - अंतिम भाग

शापित

आशीष दलाल

(५)

‘भैया, दुख रहा है. धीरे से पकड़ो न हाथ.’ चिंटू ने नमन के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए दर्द से तिलमिलाते हुए कहा.

‘अच्छा धीरे से बस !’ चिंटू के चीखने पर नमन का आवेग कुछ कम हुआ उसने उसके हाथ पर अपनी पकड़ कुछ ढ़ीली कर दी.

‘नहीं, मुझे नहीं खेलना है यह खेल. हम दूसरा खेल खेलेंगे.’ तभी चिंटू उठकर बैठने की कोशिश करने लगा.

‘ठीक है. मेरे शेर. अब दूसरा खेल खेलते है.’ कहते हुए नमन ने चिंटू को अपने सीने से लगा लिया.

‘छोड़ो मुझे भैया. ये अच्छा खेल नहीं है. टीचर ने सिखाया है यह बेड टच होता है.’ चिंटू ने फिर से नमन की पकड़ से छूटने की कोशिश की.

‘इसे बेड टच नहीं कहते. मैं तुम्हारा भैया हूं न तो भैया टच करे तो बेड टच नहीं होता.’ नमन की आंखें शैतान की काली छाया में पूरी तरह से रोशनी विहीन हो चुकी थी.

‘तो बेड टच किसे कहते है ?’ नमन ने चिंटू की आंखों में देखा. उसकी मासूमियत भरी आंखों में उसे एक अटूट विश्वास की झलक दिखाई दे रही थी.

‘मेरी आंखों में भी तो यही विश्वास था. लेकिन मुझे किसी ने सिखाया ही नहीं था कि बेड टच भी होता है.’ मन ही मन कुछ विचारते हुए नमन की पकड़ चिंटू पर ढ़ीली पड़ गई.

‘भैया, बताओं न फिर बेड टच किसे कहते है ? सहसा चिंटू फुर्ती से उठकर नमन के पेट पर चढ़कर बैठ गया.

‘जिसे हम जानते न हो और वो ऐसा टच करे तो वो बेड टच होता है. तुम तो मुझे जानते हो तो मेरा टच बेड टच नहीं होगा.’ नमन ने चिंटू से कहा और उसे अपने पेट पर से उतारकर अपनी बगल में वापस लिटा दिया.

‘अच्छा ! ठीक है तो अब नया खेल कब खेलेंगे ?’

‘खेल ? हां ... हां... खेलेंगे. जरुर खेलेंगे.’ कहते हुए नमन ने फिर से चिंटू को अपने सीने से लगा लिया.

‘भैया, मैं अगर इस खेल में जीत गया तो आप क्या देंगे मुझे ?’ तभी चिंटू अपने नन्हें हाथ नमन के गालों पर रख दिए.

चिंटू का मासूमियत भरा सवाल सुनकर नमन सोच में पड़ गया.

‘बोलो न भैया.’ नमन को चुप पाकर चिंटू ने फिर से अपना प्रश्न दोहराया.

नमन की नजर सहसा सामने लगी तस्वीर पर जाकर टिक गई. हाथ जोड़कर घुटनों के बल बैठे अर्जुन को उपदेश दे रहे उसके सम्मुख खड़े कृष्ण की छबि उसके मन पर कई तरह के प्रश्न कर रही थी.

‘उस वक्त जीत किसकी हुई थी ? मेरी या .... पर बदले में मुझे क्या मिला ? बस एक घृणा, अविश्वास, दर्द, जिंदगी भर की तड़प.....जो मुझे मिला उसे इस अबोध को देकर अपने बदले की भावना लेकर मैं चैन से जी पाऊंगा ?’ अपने किए जा रहे कृत्य पर घृणा करते हुए वह एक झटके से उठ खड़ा हुआ और पास ही पड़ी शर्ट बदन पर चढ़ा ली.

‘बोलो न भैया ? मैं अगर जीत गया तो मुझे क्या मिलेगा ?’ बिस्तर पर लेटा हुआ चिंटू अब भी अपना प्रश्न दोहरा रहा था.

‘तू खेले बिना जीत गया रे मेरे शेर. तुझे जिंदगीभर मेरा विश्वास मिलेगा.’ चिंटू के बालों को सहलाते हुए नमन ने मुस्कुराते हुए उसे गोद में लेते हुए कहा और शर्ट पहन ली. थोड़ी देर बाद खिड़की के पास जाकर उसने उसे खोल दी. कमरे में भरी दोपहर को ठण्डी हवा का एक झोंका प्रसर गया और एक जिन्दगी शापित होने से बच गई.

XXXXX