एक गांव में जब एक परिवार खुशी से रह रहा था।
उस परिवार में छह सदस्य थे।
एक दिन इस परिवार द्वारा सभी प्रियजनों और रिश्तेदारों के लिए हवन और भगवान कृष्ण की पूजा की गई।
लोगों ने परिवार के लिए अफवाह फैलाना शुरू कर दिया, कि उन्हें बहुत परेशानी हो रही है और सिर्फ हवन का दिखावा करने के लिए और पूजा का आयोजन किया जाता है।
इस परिवार में माँ, पिता, पुत्र, पुत्रवधू और वहाँ दो बच्चे एक साथ रह रहे थे। बहू कभी भी किसी भी स्थिति में अपने मुंह से एक शब्द नहीं बोलती थी। लोगों ने भी उसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया जैसे वह मासूम गाय है..और लोग उसकी और भी भद्दी बातें करने लगी।
एक दिन कविराज की पत्नी कविपर्णा अपने घर में फर्श पर बैठी थी। कविपर्ण की बहन आई और उसने उससे पूछा कि तुम हवन में भी कभी किसी के खिलाफ या किसी के पक्ष में बात क्यों नहीं करते।
वह अपने सवाल का जवाब देती है कि देखिए मुर्गजाया मैं भगवान शिव की भक्त हूं और कृष्ण से मैंने चुप रहना सीखा जब हम सही चीजों या कार्यों को नहीं जानते हैं।
मेरा मतलब है कि अगर मैं कहूंगी कि Apple लाल है और यह Apple स्वाद में मीठा नहीं है, तो उसे लगेगा कि मैं मूर्ख हूं या मैं सेब नहीं खरीदने के लिए ऐसा कर रही हूं, यहां तक कि वे लाल भी हैं, फिर भी मैं इसका मीठा नहीं होने का बहाना दे रही हूं।
आपको मेरी बात सही लगी? murgjaya उसे अर्थ नहीं मिला। कविपर्णा ने कहा
अपने कर्तव्यों का पालन करें और सही तरीके से कार्य करें। कभी भी अपने अधिकारों को महत्व न दें जब तक कि आप अपनी कार्यों और कर्तव्यों से 100 प्रतिशत संतुष्ट न हों।
किसी के पास शब्द, विचार और बुद्धि के रूप में ज्ञान और पवित्रता होनी चाहिए यदि यह संभव नहीं है, तो मेरा विश्वास करो कि मेरे पास दुर्जन के पास भाषण देने या अनुकूल या प्रतिकूल वोट देने के कोई काम नहीं है। मेरे ज्ञान के अनुसार भगवान कृष्ण की सबसे बड़ी शिक्षाओं का यही अर्थ है।
मृगयाया ने अपनी बहन को चुप रहने के लिए समझा और उन्होंने उनके समझ के स्तर की सराहना की।
कविपर्ण का व्यक्तित्व पानी की तरह निर्मल था।उसकी बहन मृगजया तितली की तरह चंचल थी।
दोनों में काफी गहरी मित्रता थी।
जब कविपर्णा की बात उसकी बहन के समझ में आई तब वह धीरे धीरे स्वभाव से गंभीर होने लगी।
उसने भागवत गीता और दूसरे ग्रंथो की पढ़ाई करना शुरू किया।
उसने देखा कि उसकी बहन कविपर्ना ने जो सहज और बिल्कुल सरलता से बातो बातो में सीखा दिया था वहीं सब ये मोटी मोटी किताबो में दोहराया गया है।
वह एक दिन फिर से अपनी बहन के पास गई उसने कहा मुझे ज्ञान और अज्ञान का सरल अर्थ बताओ।
काविपर्ना ने कहा जहां अंधकार है वह ज्योत नहीं
जहां ज्योत नहीं वहां प्रकाश नहीं।
यानी जहां अज्ञानरुपी अंधकार है वहा प्रकाश रूपी ज्ञान नहीं।
और समझाती हूं जब हमे किसी चीज के अवकाश में हम नहीं आते तब तक हमे लगता है वो है ही नहीं।
लेकिन जब उस चीज को देख लेते है तो हमे उसे देखने कि जिज्ञासा होती है वह जिज्ञासा ज्ञान का साधन है।
सब से सामान्य अर्थ है कि जिस भी वस्तु को समजते है वह हमारा ज्ञान है।