एक पिता की व्यथा Sanjay Prajapati द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक पिता की व्यथा

इस लोकडाउन मे बात एक पिता की भी होनी ज़रूरी है
जो पिता रात दिन काम करता था आज वो घर पे बिना काम के बेठा हे फिर भी मुस्कुरा रहा हे
जिस पिता को आराम की आदात नहीं आज वो चेहरे से गम छूपा रहा है
जो पिता कभी हारा नहीं थका नहीं आज वो बच्चो के साथ खिलखिला रहा है
वक्त का वो भी धौर उसने आज देखा है , ओर मन ही मन मे गुम सुम सा वो रहता है फिर भी पिता सबका सहारा है
पर कितना ही बुरा समय क्यो ना आ जाये, हर कठिनाई से वो लड़ जाता हे, पिता परमेश्वर ऐसे ही नहीं वो कहलाता है.
आज ना ऑफिस है ना कमाई का जारिया है
फिर भी उसका दिल दरीया है
बच्चो की हर जीद को वो पूरा करता है, घर का खर्च भी उसे उठाना हे ओर भविष्य की चिंता करके ना वो चैंन से सो पाता है फिर भी हास्ते परिवार को देख कर वो मुस्कुरता है ऐसे ही नहीं वो पिता कहलाता है
जो कभी बच्चो ओर मां बाप के सोक पूरे कराता था उनके लिए अच्छे अच्छे कपडे, खिलोने लाता था
बाहर घुमाने ओर खाना खिलाने ले जाता था,
आज वो डाल चावल ओर खिचडी खिला कर सभ्यता ओर लोकडाउन का पाठ पढाता है
पिता वो भी हे जो सारहादो पर देश की रक्षा करता हे
पिता वो भी हे जो शहरो मे मजुरी करता हे
पिता वो भी हे जो मारीजो का इलाज करता हे
पिता वो भी हे जो धूप मे खडा हो कर देश की सेवा करता हे
पिता वो योधा हे जो हर मुसीबत से लड़ता हे
उसकी एक ही विरासात होती हे उसका परिवार
ओर उसी परिवार से दूर रह कर भी वो हर गम को छूपाता हे
और हमेशा प्यार दिखाया है
पिता ऐसे ही नहीं पिता परमेश्वर कहलाता है.
एक पिता चाहे जितना भी गरीब क्यो न हो , अपने बच्चो के लिए हमेशा अमीर ही होता है ।
उसके पास पैसे चाहे नही हो पर वो कम पैसों में भी खुशिया खरीद लेता है ।
पिता वो ध्रतरास्त्र भी हे जो अपनी मेहतवाकांक्षा ओर मोह से वंस का विनाश भी करवा देता है
पिता एक दशरथ भी था जो अपने त्याग ओर संसकार से पुत्र को राम बना देता है
ऐसा नहीं पिता को गुस्सा नहीं आता है , ऐसा नहीं के पिता को गुस्सा नहीं आता है
पर घर मे आशांती आ जाये उसे वो नहीं भाता है
वो हर बेइजती को हस्ते हस्ते सेह जाता है
उसे पता होता है कुछ गलत हो रहा है
लेकिन रिस्तो के टूटने के डर से कुछ पल बाद फिर से वो मुस्कुरा जाता है ओर सब भूल जाता है
अजीब दिल हे उसका, इस लिए पिता परमेश्वर ऐसे ही नहीं कहलाता है
पिता वो हे जो कभी किसी से कुछ मांगता नहीं
वजाय सारी ज़िन्दगी वो अपने परिवार को देता ही रहता हे
पिता वो सिपही हे जो सदेव अपने परिवार की रक्षा
मे खडा रहता हे
पिता वो देव हे जिसके चरणो मे सारे ज़हा की खुशिया होती है
पूरी ज़िन्दगी अपनो के लिए जीता हे
बदले मे केवल इज्जात ओर सम्मान मांगता है

इसी के साथ मे इस कविता का अंत करता हू ओर कहना चाहता हू की महान हे हमारी भारतीय संशक्रती
ज़हा पिता इंसानियत का सबसे बड़ा वारदान है
अपने माता पिता का सम्मान करे ओर उनके जीवन से कुछ शिक्षा ले , ज़हा की सारी खुशिया उनके चरणो मे है , उनकी सेवा करे उनको घर से ना निकाले, उनका अपमान ना करे, व्रधाअश्राम मे ना डाले.

सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।

अर्थात: माता सर्वतीर्थ मयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। माता-पिता अपनी संतान के लिए जो क्लेश सहन करते हैं, उसके बदले पुत्र यदि सौ वर्ष माता-पिता की सेवा करे, तब भी वह इनसे उऋण नहीं हो सकता।