पिता वो ध्रतरास्त्र भी हे जो अपनी मेहतवाकांक्षा ओर मोह से वंस का विनाश भी करवा देता है
पिता एक दशरथ भी था जो अपने त्याग ओर संसकार से पुत्र को राम बना देता है
ऐसा नहीं पिता को गुस्सा नहीं आता है , ऐसा नहीं के पिता को गुस्सा नहीं आता है
पर घर मे आशांती आ जाये उसे वो नहीं भाता है
वो हर बेइजती को हस्ते हस्ते सेह जाता है
उसे पता होता है कुछ गलत हो रहा है
लेकिन रिस्तो के टूटने के डर से कुछ पल बाद फिर से वो मुस्कुरा जाता है ओर सब भूल जाता है
अजीब दिल हे उसका, इस लिए पिता परमेश्वर ऐसे ही नहीं कहलाता है
पिता वो हे जो कभी किसी से कुछ मांगता नहीं
वजाय सारी ज़िन्दगी वो अपने परिवार को देता ही रहता हे
पिता वो सिपही हे जो सदेव अपने परिवार की रक्षा
मे खडा रहता हे
पिता वो देव हे जिसके चरणो मे सारे ज़हा की खुशिया होती है
पूरी ज़िन्दगी अपनो के लिए जीता हे
बदले मे केवल इज्जात ओर सम्मान मांगता है
इसी के साथ मे इस कविता का अंत करता हू ओर कहना चाहता हू की महान हे हमारी भारतीय संशक्रती
ज़हा पिता इंसानियत का सबसे बड़ा वारदान है
अपने माता पिता का सम्मान करे ओर उनके जीवन से कुछ शिक्षा ले , ज़हा की सारी खुशिया उनके चरणो मे है , उनकी सेवा करे उनको घर से ना निकाले, उनका अपमान ना करे, व्रधाअश्राम मे ना डाले.
सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्।।
अर्थात: माता सर्वतीर्थ मयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप हैं इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है, उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। माता-पिता अपनी संतान के लिए जो क्लेश सहन करते हैं, उसके बदले पुत्र यदि सौ वर्ष माता-पिता की सेवा करे, तब भी वह इनसे उऋण नहीं हो सकता।