अभागी Satish Sardana Kumar द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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"देखो सर!हमारी बात हो गई थी।आपने मुझसे प्यार नहीं करना है!"इतनी सी बात कहते हुए वह परेशान सी हो गई थी।
वह जानती थी कि चावला सर ने उसके लिए बहुत किया है।इतना किया है कि कोई अपने वाला न करे।
इसके बदले में भावना के वशीभूत होकर वे उससे प्यार का इज़हार कर बैठे थे।
चावला सर और उसमें पंद्रह साल उम्र का अंतर था।ऊपर से वे शादीशुदा थे।खुद अपने मुँह से कह चुके थे कि उन्हें अपनी पत्नी से कोई शिकायत नहीं है।
फुसफुसाते हुए इतना भी बता दिया कि उनकी सेक्स लाइफ बहुत मस्त चल रही है।
फिर भी उन्होंने उससे प्यार का इज़हार किया था।
रूह को चावला जी की बात सुनकर गुस्सा होना चाहिए था।गुस्सा नहीं आ रहा था,तब भी क्रोध का दिखावा तो करना चाहिए था।
असल में चावला सर इतने अच्छे हैं कि उनकी बात पर उसे गुस्सा नहीं तरस आया था।
उसे लगा कि उसने उन्हें प्यार से समझा दिया था।
"देखो सर!"रूही सकुचाई थी,"काश मैं आपको आपकी शादी होने से पहले मिली होती।मुझे आपकी पत्नी बनकर दिली खुशी मिलती।आप जैसा अच्छा इंसान मिलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।आप की बीवी है,बच्चे हैं।आपकी हैप्पी फैमिली है।आप उनमें मस्त रहिए।"
जब वह यह बात चावला सर से कह रही थी मोमो की उस दुकान पर बड़ी भीड़ थी।यह छोटी दुकान एक बड़े पेड़ के नीचे थी।जब वह यह बात कह रही थी तब उस पेड़ पर बैठा एक कौआ न जाने क्यों काँव-काँव का शोर कर रहा था।
चावला सर ने उससे कुछ कहा था मगर कौवे की काँव-काँव के शोर में उसे सुनाई न दिया था।
"क्या?"वह कान पर हाथ रखकर उनके थोड़े नजदीक आ गई थी।इतनी नजदीक की उसके काले रंग के पंजाबी सूट पर का लाल फूल उनकी निगाहों में अटक गया था।वह लाल फूल बिल्कुल उसके वक्षों की चोटी पर उगा था।
उसने यह सूट चावला सर को खुश करने के लिए पहना था।सूट चावला जी ने लेकर दिया था।जब भी वे लोग घूमने निकलते थे चावला सर उसे कुछ न कुछ दिलवाते थे।किसी दिन न दिलवाएं तो वह बच्चों की तरह रूठ जाती थी।जब वे बिछुड़ते तो वह ठुनक कर कहती,"बड़े गंदे हो आप!मुझे कुछ दिलाया नहीं!"
चावला सर जो भी दिलवाते थे या उनसे दिलवा लिया जाता था वह चीज क्या थी, कितने की पड़ी,दुकानदार ने क्या कहा और उसके जवाब में उसने क्या कहा,वह सब विस्तार से माँ को बताती।इस तरह से माँ-बेटी के बीच क्या बातचीत हुई,वह अगली मुलाकात में डिस्कशन का विषय होता चावला सर और उसके बीच!
उनके बीच क्या कारोबारी रिश्ता था या वे कैसे और कहाँ मिले।चावला सर ने उसकी ऐसी क्या मदद कर दी कि और किसी ने न की और उसे चावला सर अच्छे लगने लगे।अगर उसने चावला सर का प्रेम-निवेदन ठुकराना ही था तो वह उनके साथ घूमने को क्यों लालायित रहती थी?अगर वह सिर्फ चावला सर को अपना दोस्त और मददगार ही समझती थी तो उनसे गिफ्ट क्यों लेती थी।जिस अधिकार भाव से वह उनके पर्स में से पैसे निकालकर खर्च करती थी,वह या तो पत्नी कर सकती थी या बेटी!
चावला सर की पत्नी भी उनके पर्स को इतने अधिकार से हाथ नहीं लगाती थी जैसे वह!पत्नी वह बनना नहीं चाहती थी, बेटी वह थी नहीं।हालाँकि आप उसमें उसकी गलती नहीं कह सकते हैं।एक मुलाकात में उसे घर छोड़ते वक्त मोटरसायकिल पर बैठे हुए चावला सर ने कहा था,"मैं तुममें और दीक्षा में कोई फर्क नहीं करता हूँ।मैं दिल से चाहता हूँ कि मेरी बेटी बड़ी होकर तुम्हारे जैसे स्वावलंबी और स्वाभिमानी बने!"यह बात सुनकर वह अभिभूत हो गई थी।
इस कथन से हालाँकि उसके मन में पुत्री भाव जागृत नहीं हुआ था।फिर चावला जी ने यह बात कहते हुए उसका हाथ भी तो पकड़ लिया था।
"तुम्हारा हाथ कुछ सख्त सा है।मेरी बीवी के हाथ तो कोमल हैं।"वे थोड़े हैरान हुए थे।
"चावला सर!आपकी बीवी के हाथ सरमायेदार की गृहिणी के हाथ हैं।मेरे हाथ मजदूर के हाथ हैं,सर्वहारा के हाथ हैं!"कहकर वह खिलखिलाने लगी थी।
"ज्यादा प्रोलितरिएत न बनो!तुम ब्यूटी पार्लर जाकर पेडिक्योर,मैनीक्योर करवाओ!इतने मर्दाना हाथ मुझे अच्छे नहीं लगते!"वे मुस्कराए थे।
"फिर वैसे हो जाने है।आपके घर में तो कपड़े धोने के लिए ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन है।बर्तन साफ करने,सब्जी काटने,आटा घूँधने के लिए कामवाली आती है।"वह कहने लगी तो चावला सर फिर से मुस्कराए थे!
"अरे!तुम्हें इतनी बातें कैसे पता?"
"मैं आपकी बीवी से अक्सर फोन पर बातें करती हूँ।"वह नाजो अदा से सगर्व बोली थी।
"अच्छा!मेरे लिए तो यह नई सूचना है और खतरनाक भी!"चावला साहब हँस पड़े थे।
"खतरनाक क्यों?आपकी बीवी तो हमेशा आपकी तारीफ ही करती है और मैं तो आपकी बुराई कर ही नहीं सकती!"वह भी हँसने लगी थी।
"और अगर तुमने मेरे कंधे का वह सर्जरी वाला दाग डिस्कस कर लिया उसके साथ ?"चावला सर ने सशंकित होकर पूछा था।
उसे वह दिन स्मरण हो आया।चावला सर उसे लिवाने आये थे।उसके वन बेडरूम हाफ किचन अपार्टमेंट से,जो उसे चावला सर की कोशिशों से किराये पर मिला था।किराया एक रूम के रेंट से भी कम।
"शर्ट बहुत अच्छी है!"उसने उनकी शर्ट का कॉलर सीधा करते हुए कहा था।इसके बाद वह उनके गालों को छूकर बोलेगी,"शेव खुद बनाई है या बार्बर ने?
खुश्बू अच्छी आ रही है,कहकर सूंघने लगेगी!"
चावला सर को यह सब अच्छा लगता है।उनकी बीवी कभी ऐसे प्यार नहीं जताती।यह लड़की मर्दों को इम्प्रेस करने की कोई किताब पढ़ती है क्या?उन्होंने सोचा था।
"ओ! एक बटन टूटा हुआ है।"वह कहती है,"लाओ!शर्ट उतार दीजिये।मैं बटन लगा देती हूँ!"वह कहती है।
चावला सर हँस कर कहते हैं,"राजेन्द्र कुमार की फिल्मों में तो हीरोइन शर्ट पहने पहने ही बटन लगा देती थी।और फिर धागा दाँत से काटने के बहाने सीने के बिल्कुल पास आ जाती थी!"
"मैं इस मामले में बिल्कुल अनाड़ी हूँ।सुई चुभ जाएगी फिर न कहना!सीने से लगना है तो वैसे ही लग जाती हूँ!"हँस कर वह सचमुच सीने से लग जाती है।
उसने शर्ट उतार कर दी थी।लड़की ने कंधे पर सर्जरी का दाग देखा था।गोरी चमड़ी पर लाल-काला सा दाग!इतने सालों से वह दाग वहाँ पर था कि वह उसके बारे में भूल ही गया था।वह एक फोड़े की सर्जरी का दाग था।फोड़ा शुरू में छोटा ही होता है।ध्यान न दो तो पककर बड़ा हो जाता है।
पत्नी ने शादी के शुरुआती साल में इस दाग की बाबत एक दो-बार पूछा था।उसके बाद कभी नहीं।
"यह दाग!इतना बड़ा?क्या कोई चोट लगी थी यहाँ?"लड़की ने पूछा था।
"हाँ!किसी बदमाश ने चाकू मारा था।जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था उन दिनों की बात है।कॉलेज के गेट पर गुंडा एक लड़की को छेड़ रहा था।मैंने रोका तो उसने मुझे चाँटा मार दिया था।मैंने उसे इतने मुक्के मारे थे कि उसका दम उखड़ गया था।मुझे उस दिन बहुत गुस्सा आ गया था।अचानक उसने चाकू मार दिया था।उसका वार तो मेरी गर्दन पर था किस्मत अच्छी थी कि कंधे पर पड़ा था।"चावला सर ने एक कहानी बनाकर सुना दी थी।
"गुस्सा तो आपको आजकल भी बहुत आता है।आँखें लाल कर लेते हो।"लड़की भवें सिकोड़ कर बोली थी।
दोनों मुस्करा दिए थे।
ये क्या?उम्र उठान पर और रहो अकेले?अभी तीस की भी नहीं हुई वह!इतनी सुंदर और आकर्षक तो वह है कि कोई बॉयफ्रेंड बना सके।मेले बाबु ने खाना खाया,टाइप न तो कोई आलिंगन में ले लेने वाला।मीठा चुम्बन देने वाला।ऐसी बातें करने वाला जिससे यह दौड़ता भागता पथरीला शहर अच्छा लगने लगे।
उस दिन सुबह उठते ही उसका मन न जाने कैसा हो रहा था।