ख़ुशी - भाग-२ Anil Sainger द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ख़ुशी - भाग-२

हार्दिक दरवाजे के पास पहुँच कर धीमी आवाज में बोला ‘मैडम ऐसा ही कुछ मेरे एक दोस्त आयुष के साथ भी हुआ था’| यह सुनते ही सोनाली धम्म से वहीं बिस्तर पर बैठ जाती है | उसके चेहरे से लग रहा था कि वह ये नाम सुनकर अंदर-ही-अंदर पूरी तरह अंदर से हिल गई है | वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रही थी लेकिन उसकी आँखों से बहते आंसू सब कुछ बयाँ कर रहे थे | वह कुछ देर हैरानी से हार्दिक को देखती रहती है फिर अपने पर काबू पाते हुए धीरे से कपकपाती आवाज में बोली ‘आप कौन हैं’|

हार्दिक वापिस आकर कुर्सी पर बैठते हुए बोला “मैडम मैं असल में आयुष का दोस्त हूँ’ |

सोनाली हैरान होते हुए बोली ‘ले...कि...न मैं तो आपको नहीं जानती | आप मुझे कैसे जानते हैं’? हार्दिक मुस्कुराते हुए बोला ‘मैडम वो तो मैं नहीं बताऊंगा’ | सोनाली सकपकाते हुए बोली ‘ऐसा क्यों’? हार्दिक हँसते हुए बोला ‘ऐसा नहीं है कि मैं बताऊंगा ही नहीं लेकिन अभी नहीं.... | पहले आप मेरे दो प्रश्नों का उत्तर दो फिर मैं सोचूंगा कि आपको बताना है कि नहीं’| यह सुन कर सोनाली नाराज होते हुए बोली ‘पूछिए आप क्या पूछना चाहते हैं’?

हार्दिक गंभीर भाव से बोला ‘सोनाली जी आप दोनों बहुत कम समय साथ रहे फिर भी वह साथ आपको कैसा लगा’| सोनाली यादों में खोते हुए बोली ‘बहुत कम समय के लिए हम मिले और बिछुड़ गए | उसका एक कारण तो मेरी निजी जिन्दगी ने मुझे अचानक ऐसा झटका दिया कि मैं अभी तक भी उससे उभर नहीं पाई हूँ और दूसरा कारण ये रहा कि उसने कभी भी अपने बारे में मुझे कुछ ख़ास बताया ही नहीं’ |

हार्दिक सोनाली की आँखों में आँखें डाल उसके भावों को पढ़ते हुए बोला ‘अगर वो आपके साथ होता तो आपको आज कैसा लगता’ | सोनाली गंभीर भाव से बोली ‘मैंने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं क्योकिं वक्त ने मुझे ऐसा कुछ सोचने का मौका ही नहीं दिया | हाँ ! अगर वो मेरे साथ होता तो शायद मैं कुछ जल्दी सम्भल जाती | लेकिन कुछ बातें ऐसी जिन्दगी में ऐसी होती हैं जिन पर आपका कोई कण्ट्रोल नहीं होता’ |

हार्दिक, सोनाली को देखते हुए बोला ‘नहीं मैडम ऐसा नहीं है | मेरे हिसाब से हमारी जिन्दगी में जो कुछ भी होता है वह सब हमारे कण्ट्रोल में हमेशा से होता है लेकिन हम वक्त रहते उस तरफ देखते ही नहीं हैं | जब वक्त निकल जाता है तब हम उसे किस्मत समझ कर संतोष कर लेते हैं’ | यह सुन कर सोनाली एक लम्बी सांस लेकर कंधे उचकाती हुए बोली ‘मैं नहीं मानती क्योंकि मैं तो भुग्तभोगी हूँ | आप ही बताएं कि मेरे माता-पिता का अचानक चले जाने में मेरा क्या हाथ था और मैं कैसे रोक लेती | दूसरा आयुष का मेरी जिन्दगी में आना और चले जाना मेरे कण्ट्रोल में कैसे था’ |

‘मैडम आपके पिता फ़ौज में थे और ऐसा फ़ौजी की जिन्दगी में कभी भी हो सकता है | इसमें आपका इतना दुःखी होना नजायज है | हाँ आपकी माँ का अचानक पिता के साथ ही चले जाना दुखदाई जरूर है | लेकिन मरना-जीना हमारे हाथ में कहाँ है | एक दिन आपको इस गम से बाहर तो आना ही है या आना ही पड़ेगा तो फिर आज क्यों नहीं | आयुष के मामले में भी आपकी कमी है | आपने वक्त रहते उससे उसकी जिन्दगी के बारे में क्यों कुछ नहीं पूछा ? आप इसे ऐसे भी तो मान सकती हैं कि वक्त या किस्मत ने आपको पहले ही बुरे वक्त से जूझने के लिए एक सहारा दिया था लेकिन आपने उसे समझा ही नहीं | आज आप उसे किस्मत मान रही हैं” | सोनाली हार्दिक की बात सुन सिर झुका कर धीमी आवाज में बोली ‘हाँ, शायद | मैंने कभी ऐसा सोचा ही नहीं | मुझे जब भी उसकी याद आई तो हमेशा येही लगा कि उसने यह सब जान बूझ कर किया था’|

हार्दिक सोनाली को देखते हुए बोला ‘मैडम ये भी तो हो सकता है कि उसके पास कुछ बताने को हो ही न या फिर वह पहले से ही अपनी जिन्दगी से जूझ रहा हो | शायद इसीलिए उसने आपको परेशान न करने के लिए ऐसा किया हो” |

सोनाली हैरान होते हुए बोली ‘हाँ ! शायद लेकिन मुझे तो बस उसमें ही कमी दिखती रही | अपनी कमी की तरफ ध्यान ही नहीं गया | आप इतना कुछ मेरे और उसके बारे में कैसे जानते हैं और आपने बताया नहीं कि आपने मुझे पहचाना कैसे | क्या आप इस होटल में काम करते हैं’ | हार्दिक मुस्कुराते हुए बोला ‘जी नहीं, मैं इस होटल में काम नहीं करता | आप के बारे में मुझे उसने ही बताया था | बाकि आप दोनों की बातों से मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि आप दोनों की दोस्ती चाहे कुछ समय ही रही लेकिन अच्छी थी | आज की परिस्थिति में आप दोनों को एक दूसरे की जरूरत भी है और वक्त लगभग एक सा ही चल रहा है | दोनों ही सच्चे इंसान है और ऐसे इंसान बहुत कम आपस में टकराते हैं | मेरे पिता जी कहते हैं कि हम जब भी मिलते हैं या किसी से कोई सम्बन्ध बनता है तो इसमें पिछले जन्म का हाथ जरूर होता है’

सोनाली ख़ुश होते हुए बोली ‘आप सही कह रहे हैं | आज आपकी बातें सुन कर मुझे लग रहा है जैसे मेरे जीवन में प्रकाश की एक नई किरण निकली है | मैंने कभी ऐसा न सुना और न ऐसा सोचा | मैं आपकी बहुत आभारी हूँ कि आप मुझ से मिलने आए’ | हार्दिक मुस्कुराते हुए बोला ‘अब कुछ काम की बात हो जाए | मेरी तारीफ़ आप फिर कभी भी कर सकती हैं | मुझे तो आप ये बताइए कि क्या आप आयुष से फिर से अपनी दोस्ती को आगे बढ़ाना चाहेंगी | लेकिन तभी जब आप की जिन्दगी में कोई और न हो’ | सोनाली हँसते हुए बोली ‘जी मेरी जिन्दगी में अभी तक तो कोई नहीं है | हाँ जहाँ तक आयुष की बात है | एक बार उससे जरूर मिलना चाहूंगी | बाकि तो उसके बाद ही कुछ कह सकती हूँ’ |

हार्दिक खुश होकर उठते हुए बोला ‘कब मिलना चाहेंगी’? सोनाली चेहकते हुए बोली ‘जब आप चाहें | बहुत पिटेगा मुझसे, अब आपकी मर्जी जब आप उसे पिटवाना चाहें’ |

हार्दिक तेज आवाज में बोला ‘आज अभी इसी वक्त’ |

‘क........क्या, व......वो दिल्ली में है’, हैरान होते हुए सोनाली बोली |

‘जी वो न सिर्फ दिल्ली में है बल्कि इस होटल में और इसी फ्लोर पर है’ | सोनाली यह सुन कर एक झटके से उठ खड़ी होती है और कमरे में दो चार कदम असमंजस में काटते हुए बोली ‘यार तुम तो जब से मिले हो झटके पर झटके दिए जा रहे हो’, फिर कुछ रुक कर बोली ‘यकीन ही नहीं हो रहा है कि अचानक मेरी जिन्दगी ऐसे भी पलटी मार सकती है’| गौरव हँसते हुए बोला ‘मैडम कभी भी कुछ भी हो सकता है’ |

‘हाँ यार यकीन ही नहीं हो रहा है | मैं कैसे इस होटल में पहुँच गई मुझे नहीं मालूम | सही मायनों में पूछो तो मैं उस ऑटो वाले को बहुत कौस रही थी कि वो मुझे इस भीड़-भाड़ वाले इलाके के इस छोटे से होटल में क्यों ले आया | अभी कुछ देर पहले ही सोच रही थी कि कल कोई और होटल शांत जगह पर देखूंगी | देखो मैं शायद आप लोगों से ही मिलने आई थी’, फिर सिर पर हाथ मारते हुए बोली ‘छोड़ो ये बातें, आयुष कहाँ है’|

हार्दिक जल्दी से कमरे से बाहर निकलते हुए बोला ‘आईये’ | हार्दिक के पीछे-पीछे वह आयुष के कमरे में प्रवेश करती है | दरवाजा खुलने की आवाज सुन आयुष और पुलकित अपनी-अपनी जगह से उठ खड़े होते हैं | आयुष और सोनाली दोनों एक दूसरे को ठगे से कुछ देर देखते रहते हैं | दोनों की आँखों से अविरल आंसू बहने लगते हैं | सोनाली अपनी आँखे पोंछ कर भाग कर आयुष को आलिंगनबद्ध कर लेती है | उन्हें इस परिस्थिति में देख हार्दिक पुलकित को इशारा करता है और फिर वह दोनों धीरे-धीरे कदम रखते हुए कमरे से बाहर आ कर कमरे का दरवाजा बंद कर देते हैं | हार्दिक पुलकित का हाथ पकड़ कर बोला ‘चल भाई हमने अपना काम कर दिया | अब इतने दिनों के बिछुड़े दोस्तों को आपस में बात-चीत करने दो | हमारा अब यहाँ ठहरना उचित नहीं है’ |

पुलकित ख़ुशी से झूमते हुए बोला ‘हाँ भाई तू सही कह रहा है | आज मुझे पहली बार इतनी ख़ुशी महसूस हो रही है कि मैं ब्यान नही कर सकता हूँ | बिछुड़ों को मिलाने का मजा ही कुछ अलग होता है’, कह कर पुलकित हार्दिक के साथ होटल से बाहर की ओर चल देता है |

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