बचपन का डर ADARSH PRATAP SINGH द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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बचपन का डर

“अंधेरा ,डर दोनो का मेल अंधा स है प्रकाश के आते ही दोनों गायब से हो जाते है”
{मेरी तरफ वो आदमी चलता ही आ रहा था। वो डरावना स आदमी मेरी आँखों के सामने आकर खड़ा हो गया}

गर्मी की छुट्टियों का इंतजार हम सभी को होता है क्योंकि इन दिनों हम अपनी दादी के घर जाते थे,क्योंकि मैं ,मम्मी और पापा के काम के सिलसिले से कानपुर में रहते थे पापा NTPC में काम करते थे हमारी दादी उन्नाव में रहती थी मेरे 5वी की परीक्षा खत्म हो गई थी और हम सभी दादी के यहाँ गए। रास्ते मे पापा ने पसंद का गोला भी खरीदा,और हम सब शाम को दादी के यहाँ पहुचे। दादी की तबियत ठीक नहीं थीं, लेकिन दादी ने मेरे लिए बेसन के लड्डू बनाये थे जो मुझको बहुत पसंद है, हम सभी ने शाम का खाना साथ मे खाया और दादी की तबियत खराब होने की वजह से दादी घर के आँगन में लेटती थी क्योंकि वहाँ से बाथरूम पास पड़ता था। इस लिए हम सभी भी TV देखने के बाद दादी के साथ घर के आँगन में लेट गए। मम्मी के एक नाटक में डरावना स आदमी मुझे बार बार मेरे दिमाग उस आदमी की तस्वीर दिख सी रही थी लेकिन मम्मी पापा के बीच मे डर के सो गया।अचानक रात में मुझे टॉइलेट लगी ,मैंने किसी को जगाया नही और खुद अकेले बाथरूम चला गया बाथरूम में टॉयलेट करने के बाद मैंने फ्लश किया ही था।कि अचानक से घर की लाइट चली गयी, मैंने अंश अंश इधर आहो इधर आहो मैं बहुत डर गया था मैं बाथरूम के किनारे में बैट गया और रोने लगा मुझे उस डरावने से आदमी की आवाज से बहुत डर लग रहा था मैंने अपनी आंखों को को बंद कर लिया था ,लेकिन मेरी तरफ वो आदमी चलता ही आ रहा था। वो डरावना स आदमी मेरी आँखों के सामने आकर खड़ा हो गया उसकी सक्ल उभहु उस आदमी की थी वो मेरा नाम बार बार पुकार रहा था मैं झोर झोर से रो रहा था।उसने मुझे पकड़ा और और मुझे बाथरूम से उठा लिए जा रहा था, उसने मुझे बहुत तेजी से पकड़ा हुआ था। बाथरूम से उठाकर वो मुझे आँगन में लेकर गया डर के कारण मैं बेहोस हो गया
अंश अंश की आवाज से मुझे पापा बुला रहे थे बेटा क्या हो गया!bulb की तेज रोशनी मेरी आँखों पर पड़ रही थी,पानी की छिटो से मेरी T-SHIRT भीग गयी थी मम्मी मेरी t- shirt बदल रही थी मम्मी ने बोला बेटा बाथरूम में क्या हो गया था पापा तुम्हे बाथरूम से तुम्हे उठाकर लाये है।
उस दिन के बाद से मैंने कभी भी मम्मी के नाटक नही देखे ,इस बार हम लोग दादी के यहाँ जायदा दिन नही रूखे।
*धन्यवाद*
कहानियां सुनी व पढी नहीं जाती ,सिर्फ महसूस की जाती है
कहानी (लेखक):- आदर्श प्रताप सिंह
यह कहानी काल्पनिक कहानी है जो कि यह बताती है कि बच्चो में एक हास्य होता है जिससे बच्चो के बचपन के दौरान उनकी कल्पनाये उन्हें हसलियत लगने लगती है।
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