Kahaani kisase ye kahe - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

कहानी किससे ये कहें! - 2

कहानी किससे ये कहें!

  • नीला प्रसाद
  • (2)
  • ‘जी’

    ‘आप महिलाएँ बोलती बहुत हैं। जब से मेरे कमरे में आई हैं, बोले ही जा रही हैं। समझ नहीं आ रहा कि जब आपसे पहले कोई लेडी ऑफिसर फील्ड में पोस्ट नहीं की गई तो किस वजह से, आखिर क्यों आपको यहाँ पोस्ट करके मेरे सिर डाल दिया गया? आपकी सुरक्षा के लिए मैं सिक्योरिटी गार्ड्स नहीं दे पाऊँगा। आप अपने रिस्क पर यहाँ रहेंगी, काम करेंगी और प्रॉब्लम होगी तो खुद डील करेंगी.. और आप यहाँ इश्क लड़ाती नहीं फिरेंगी। उफ्, कोई एक मुसीबत है लेडी ऑफिसर रखने की.. हाँ, तो अब आप जा सकती हैं।’

    उमा उठ खड़ी हुईं तो अय्यर का पी.ए. चिरौरी के स्वर में बोला- ‘सर, वो फाइल तो डिस्कस हुई ही नहीं।’

    ‘ओSS यस। बैठिए, बैठिए..’ अय्यर साहब के मुँह से निकलती व्यंग्य की धार बरकरार रही। ‘अब आप जैसा कोई ऑफिसर बन कर आएगा तो इंडस्ट्रियल रिलेशन प्रॉब्लम तो होगी ही। क्यों, एग्ज़ाम के समय कंपनी के नियम-कानून पढ़े नहीं थे क्या? पास कैसे हो गईं?’

    ‘जी पढ़े थे’, मिसेज चन्द्र ने स्पष्ट स्वर में जवाब दिया।

    ‘तो फिर क्या है यह?’ साहब ने फाइल टेबल पर उनकी ओर फेंकते हुए कहा।

    ‘ऐज पर रूल ही लिखा है सर ...’

    ‘ ओS ऐज पर रूल..क्यों! आपने कभी यूनियन से डील किया है? क्या वे रूल के अनुसार डील करते हैं? आप जैसी छुई-मुई लड़कियों को तो वे फूँक मारकर उड़ा देंगे। लेबर प्रॉब्लम डील करेंगी आप? पता है यूनियन के बात करने का तरीका?’

    मिसेज चन्द्र क्षण भर को ठिठकीं। उनके सामने धूर्त आँखों वाला, गोरा-चिट्टा, निहायत ही दुबला-पतला-ठिगना व्यक्ति भारी-भरकम गद्देदार कुर्सी में डूबा-सा बैठा था और उत्तेजना में हल्के-हल्के कुर्सी समेत बायें-दायें घूम जा रहा था। मिसेज चन्द्र कुर्सी से उठ खड़ी हुईं और बिना इजाजत कमरे से निकलती हुई बोलीं।

    ‘सर, मुझे खेद है कि मुझे परखे बिना ही आपने मेरी क्षमता के बारे में राय बना ली। मैं लेबर ऑफिसर बनने से पहले वर्कर्स यूनियन में लेडी रिप्रेजेन्टेटिव थी। मुझे मालूम है मैनेजमेंट और यूनियन में बातें कैसे होती हैं। मुझे हड़ताल, घेराव सब मालूम है। मुझे जो लिखना था, मैंने लिख दिया। अब आपको जो लिखना हो, लिख दें। पालन तो आपके ही आदेशों का होना है। पर आइंदा मुझसे ऐसे टोन में बात मत कीजिए, प्लीज़! थैंक्यू सर! थैंक्यू फॉर द ट्रीटमेंट यू हैव गिवन मी टुडे।’

    उस दिन मिसेज चन्द्र के कमरे से निकलने के बाद उस कमरे में जो हुआ, वह अलग कहानी है। मिसेज चन्द्र के लिए एक एक्सप्लानेशन लेटर डिक्टेट किया गया, साइन कर देने के बाद उसे डिस्पैच में भेजने से पहले ही अय्यर साहब के आदेश पर वापस मँगा लिया गया। ‘कीप इट पेंडिंग’ लिखकर अय्यर साहब ने उस लेटर को अपने पी.ए. को दे दिया कि इसे आलमारी में रख दिया जाए ताकि अगली जरूरत पर विदिन सेकेंड्स यह डिस्पैच किया जा सके... पर तीन घंटे के अंदर-अंदर ऑफिस छोड़ने के ठीक पहले उस लेटर को निकलवाकर अय्यर ने अपने हाथों फाड़कर डस्टबिन में फेंक दिया।

    तब उमा बहुत बोल्ड हुआ करती थीं। कुछ कर गुजरने को आतुर, जोशो-खरोश से भरी एक युवा महिला, जिसने झुकना तो जैसे सीखा ही नहीं था। पर धीरे-धीरे वे गप्पों के केन्द्र में आ गईं। उनके बारे में तरह-तरह की बातें कही-सुनी-सोची जाने लगीं, अफवाहें फैलने लगीं। उनके विवाह, पति, उनके बच्चों को लेकर संदेह सतह पर उभरने लगे– कि उनका विवाह सचमुच हुआ भी है या नहीं! निरंजन उनके पति हैं या कोई और? अगर पति हैं तो साथ क्यों नहीं रहते? तलाक हो चुका है तो कभी-कभार आकर दो-एक दिन रुक कैसे जाते हैं? बच्चे निरंजन से हैं या किसी और से? शादी से पहले के हैं या बाद के? एक ओर उन्हें लेकर इतनी चर्चाएँ; दूसरी ओर यह खेद कि वे मायके-ससुराल दोनों तरफ से इतनी संभ्रांत, प्रतिष्ठित, धनी परिवार की होते हुए, अपने ऊपर इतना कीचड़ उछाले जाने के बावजूद, धन की कोई आवश्यकता नहीं रहते हुए भी नौकरी में टिकी हुई हैं! वे तो पिता से मिले धन से ही अपना और बच्चों का गुजारा मज़े में कर सकती हैं...और पति भी देखने से लगते तो नहीं हैं कि पैसा देने से मना करेंगे!! मतलब यह कि नौकरी जीवन-यापन के लिए नहीं, मज़े के लिए अपनी जिद से कर रही लगती हैं। शुरू-शुरू में वे परेशान हो जातीं, पूछने पर सफाई देतीं, उग्र हो उठतीं, फिर धीरे-धीरे उन्होंने सीख लिया कि चर्चाओं को खत्म करने का बस एक ही तरीका है– उनपर कोई ध्यान नहीं देना। न कभी सफाई देना, न चर्चा करने वाले को चुप कराने का कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रयत्न करना! इससे वे इतना लाभ तो ले ही पाईं कि चर्चा करने वालों के स्वर धीरे-धीरे मंद होते गए। अफवाहों की खुलेआम चर्चा कानाफूसियों में बदलने लगी और वे अपेक्षाकृत शांति से जी पाने लगीं। पर कितने दिन? अफवाहें तो जैसे आग थीं जो जरा से इंधन से फिर-फिर भड़क उठती थीं। ये साठ के दशक का जमाना था और फील्ड- जाहिर है- इंटीरियर में हुआ करते थे, जहाँ का माहौल आज के समय से काफी अलग था।

    और फिर वह घटना घटी, जिसने उनका नाम अय्यर साहब के साथ जोड़ दिया।

    कंपनी के सामुदायिक विकास कार्यक्रम के तहत किसी एरिया में महिला सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र का उद्घाटन होना था। अय्यर साहब को तो जाना ही था क्योंकि हेडक्वार्टर से दूसरे बड़े अधिकारी आने वाले थे। काम सँभालने के लिए किसी जूनियर ऑफिसर का साथ होना भी जरूरी समझा गया। मिसेज चन्द्र की बुलाहट हुई। उन्हें जाने में हिचक थी क्योंकि कार्यक्रम शाम का था और उसके बाद रात में रुककर अगले दिन वापसी होनी थी। यह बात वे साहब से कह नहीं सकती थीं, इसीलिए उनसे बच्चों को रात में घर पर अकेले छोड़ने में दिक्कत जताई।

    ‘पर मेरी जानकारी में इन दिनों आपकी माँ आई हुई हैं- राइट?’

    ‘यस सर’, वे झूठ नहीं बोल पाईं।

    ‘तो फिर?’ साहब ने तेवर दिखाए। 'आपको कोर्ट केसेस और कॉन्सिलिएशन केसेस दिए नहीं जा सकते क्योंकि कानून की आपकी जानकारी शून्य है पर आप महिला सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र का उद्घाटन तो करवा ही सकती हैं। कभी सिलाई मशीन नहीं देखी? देखी है न? और सुई–धागा? वह क्या होता है, जरूर पता होगा.. तो आप शायद चाहती हैं कि काम हम आपसे कभी लें ही नहीं। जो काम आप कर सकती हैं, वह भी हमीं करें पर सैलरी पूरी देते रहें और खुश हो लें कि कंपनी ने इतनी तरक्की कर ली है कि हमारे साथ एक लेडी ऑफिसर काम करती हैं। अब यही तो दिक्कत है। दावा आप महिलाओं का बराबरी का है पर आप हमेशा अपने लिए अतिरिक्त सुविधाएँ चाहती हैं, सहानुभूति और अतिरिक्त प्रशंसा चाहती हैं, आप चाहती हैं कि..’

    ‘सर, मैं चलने को तैयार हूँ। मैं कोर्ट केसेज डील करने को भी तैयार हूँ।’ मिसेज चन्द्र ने बीच में ही बात काटते हुए कहा और अय्यर साहब को हतप्रभ छोड़, कमरे से बाहर निकल गईं।

    अगले दिन कुल पंद्रह कारों का काफिला रवाना हुआ, जिसमें से एक में मिसेज चन्द्र ससम्मान अकेली बिठाई गईं, और रास्ते में जहाँ-जहाँ रुके, अय्यर साहब ने ड्राइवर से पुछवा भेजा कि उन्हें किसी चीज़ की जरूरत तो नहीं! पर वे गुस्से में थीं, अपनी मर्जी के विरूद्ध कहीं ले जाई जा रही थीं- ऐसी जुर्रत तो कभी उनके पति तक नहीं कर सके थे। यात्रा के दौरान कुछ माँगने या जरूरत जताने पर बाद में ताने-उलाहने सुनने का खतरा था, इसीलिए मिसेज चन्द्र ने वाटर बॉटल घर पर भूल जाने के बावजूद, प्यासी रहना मंजूर किया, अय्यर साहब की गाड़ी में बहुतायत में मौजूद पानी की बोतलों में से एक बोतल पानी माँग लेना नहीं।

    पहुँच जाने के बाद एक महिला होने के नाते, प्रशिक्षण देने और लेने आई गाँव की दूसरी महिलाओं से उनकी घनिष्ठता बनते देर न लगी- यहाँ तक कि अपने बीच एक महिला अधिकारी को पाकर उन्होंने कुछ अतिरिक्त उत्साह दिखाया और उद्घाटन भव्य तरीके से, रंगारंग कार्यक्रम के साथ संपन्न हो गया। मुख्यालय से आए अधिकारियों के द्वारा मिसेज चन्द्र की व्यवस्था और काबिलियत की तारीफ शुरु होते ही अय्यर तपाक से बोले कि यह कार्यक्रम तो मूल रूप से उनका आइडिया था और सारा काम मिसेज चन्द्र को सँभालने देने और उन्हें यहाँ आने को मनाने में उन्हें तमाम परेशानियाँ झेलनी पड़ी हैं। तब बधाइयाँ अय्यर साहब की ओर मुड़ गईं, जिन्हें उन्होंने बड़ी विनम्रता से ग्रहण किया और उमा एक कोने में खड़ी, सब देखती-सुनती चुप रहीं। रात हो चुकी थी, लौटना संभव नहीं था। वहाँ से बीस किलोमीटर दूर कंपनी के गेस्ट हाउस में रुकने का फैसला हुआ। उमा को रात को रुकने की बात को लेकर तमाम आशंकाएँ घेरे हुए थीं। कमरा उमा को अय्यर साहब के ठीक बगल वाला मिला– यह पहले से तय योजना थी या संयोग, वे समझ नहीं पाईं। थकी थीं, इसीलिए खाना खाने के नाम पर डाइनिंग रूम में जाकर कुछ कौर निगले और कमरे में आकर बिस्तर पर निढाल हो गईं। बच्चों की याद आ रही थी। रिसेप्शन के फोन से बच्चों से दो मिनट बात करके सोने की तैयारी करने लगीं। तभी इंटरकॉम घनघना उठा। अय्यर उन्हें समारोह में आने और सारी व्यवस्था कुशलता से सँभाल लेने की औपचारिक बधाई देने को उनके कमरे में आना चाहते थे। वे आशंकित हो उठीं।

    ‘सर, क्यों न बाहर बरामदे में खुले में बैठें?’

    ‘ऐज यू लाइक ऐंड विश’। अय्यर तुरन्त मान गए। दोनों कमरों की पीछे की बालकनी साझा थी। अय्यर रात के कपड़ों में आए और सहज भाव से बालकनी में पड़ी बेंत की कुर्सी पर बैठ गए।

    ‘क्यों न कॉफी पी जाय?’ उन्होंने प्रस्ताव रखा और उमा को स्वीकृति या विरोध का मौका दिए बिना बेयरे को बुला लिया। फिर कॉफी के प्यालों से उठती भाप के साथ उन्होंने इस बात पर खुशी जाहिर की, कि उमा वहाँ आईं, इतने शानदार तरीके से कार्यक्रम को अंजाम दिया, रात को रुकने को भी राजी हो गईं.. और इससे उनके मन में टूर वगैरह को लेकर जो आशंकाएँ पनपती रही होंगी, निश्चित रूप से गल गई होंगी और अब वे ऑफिस तथा खुद अय्यर के लिए ज्यादा उपयोगी साबित होंगी। ‘महिलाओं के मन में ऑफिस के वातावरण और बड़े अधिकारियों के व्यवहार को लेकर जो प्रीकन्सीव्ड नोशन्स, इनहिबिशन्स हुआ करते हैं, ऐसे ही कुछ पुरुषों के मन में महिलाओं को लेकर भी होते हैं’ – उन्होंने घोषणा के स्वर में कहा। ‘कुछ नहीं, शियर मिसअंडरस्टैंडिंग ऐंड ए इनर विश टू सी द विमेन ऑलवेज बिहाइंड, सो दैट मेन आर प्रूव्ड स्मार्टर, वाइज़र, सुपीरियर’ - वे हँसते हुए बोले। ‘आपने अपने घर में भी देखा होगा। वह तो आप सौभाग्यशाली हैं कि आपके पति आपको तरक्की करने देना चाहते हैं, बुरा मानने की बजाय प्रोत्साहित करते हैं। वैसे असल में नौकरी कर क्यों रही हैं आप? आपके पति का बिजनस चलता नहीं क्या? या कि आप उनसे अलग होने की कोशिश में हैं? पर क्या यह सही होगा कि जिस पति ने आपको मैट्रिक से लेकर एम.ए. सोशियोलजी तक अपने खर्चे से कराया, रिसेप्शनिस्ट से लेकर ऑफिसर बनवाया, उसे मौका मिलते ही आप छोड़ दें?! आपके दाम्पत्य सम्बन्ध ठीक तो हैं न?’ उमा सुनती रहीं बिल्कुल खामोश, और अय्यर बोलते रहे अनवरत, और कॉफी प्यालों में ढाली जाती रही लगातार... और रात ढलती रही बाकायदा, और गेस्ट हाउस के बेयरे आदतन आते- जाते, कानाफूसी करते रहे एकक्रम.. और रात के दस बजते न बजते बेयरे चले गए नियमानुसार.. और सुबह होते- होते, जब अय्यर उमा चन्द्र के दाम्पत्य सम्बन्धों से शुरु करके अपने दाम्पत्य सम्बन्धों तक की बखिया उधेड़ चुके थे, यह चर्चा हवा में फैल गई कि अय्यर साहब और मिसेज चन्द्र ने रात इकट्ठे बिताई। अगले दिन जब वे कार में बैठकर ऊँघती ऑफिस वापस पहुँची तो उनकी खास दोस्त ने बताया कि सब चर्चा कर रहे हैं कि उन दोनों ने रात इकट्ठे बिताई- क्या यह सच है? वे हतप्रभ हो गईं। कुछ सोच- समझ पातीं, उसके पहले ही जाने कैसे निरंजन पत्नी को अपनी अदालत में पाप स्वीकार करवाने शहर से फील्ड पहुँच चुके थे।

    क्रमश...

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