अगला एक हफ्ता पास-पड़ोस का आना-जाना और पार्टी का माहौल बना रहा | देर रात जब भी अंकुर सोने के लिए कमरे में आता तो दादा-दादी उसके साथ ही बेड पर बैठ उसका माथा बारी-बारी से तब तक सहलाते रहते जब तक कि वह सो नहीं जाता | अंकुर हैरान था कि आखिर दादा-दादी उसके माँ-बाप के बारे में क्यों नहीं पूछते हैं | उसे एक बात और भी हैरान करती कि कभी भी जब वह अकेले दादा या दादी से बात शुरू करता तो दूसरा उसी समय वहाँ आकर बैठ जाता और किसी और विषय पर बात शुरू कर देता | दादा-दादी का प्रेम और ख़ुशी देख उसकी भी हिम्मत न होती थी कि वह अपने बारे में उन्हें कुछ बता कर उनका दिल दुखाये|
इसी तरह बीस दिन बीत जाते हैं | अब पास-पड़ोस का आना-जाना भी काफी हद तक रुक गया था | एक दिन सुबह जब उसकी नींद खुली तो उसने देखा कि दादी उसके बिस्तर पर बैठी उसे निहार रही थी | दादी को देख वह जल्दी से उठ कर बैठ जाता है | उसे उठते देख दादी बोली ‘क्या बात है बेटा आज बहुत देर सोये’ | अंकुर हँसते हुए बोला ‘क्यों दादी ऐसा क्यों कह रहे हो’ |
दादी मुस्कुराते हुए बोली ‘बेटा जी दोपहर हो गई है | और इस समय बारह बज रहे हैं’ | अंकुर यह सुन जल्दी से उठते हुए बोला ‘अच्छा जी | फिर आपने मुझे उठाया क्यों नहीं’ | दादी मुस्कुराते हुए बोली ‘मैंने तो कई बार तुझे पुकारा लेकिन तू इतना मस्त सो रहा था कि दिल ही नहीं किया..’|
अंकुर नाराजगी दिखाते हुए बोला ‘आप लोग तो मेरी आदत ही बिगाड़ दोगे | चलिए ठीक है मैं आता हूँ आप जल्दी से नाश्ता लगाइए’, कह कर अंकुर कमरे से बाहर निकल जाता है | अंकुर की बात सुन दादी मुस्कुराती हुई उसके पीछे-पीछे चल देती है | अंकुर वापिस आकर देखता है कि दादी बरामदे में टेबल पर नाश्ता सजा कर उसका ही इन्तजार कर रही थी | अंकुर सुबह-सुबह नाश्ते में पकोड़े देख अपने को रोक न सका | तीन-चार पकोड़े खाने के बाद अचानक उसकी नजर जब दादी पर पड़ी तो वह मुस्कुरा कर बोला ‘दादी आप ऐसे क्यों देख रही हो’ |
दादी यह सुन कर अपनी आँखें पोंछते हुए बोली ‘कुछ नहीं बेटा | तुम पकोड़े खाओ’ | अंकुर अपनी कुर्सी दादी के पास खींच कर बैठते हुए बोला ‘दादी आपने नाश्ता किया की नहीं और दादा कहाँ हैं’ |
दादी भराई आवाज में बोली ‘बेटा दादा सुबह काफी देर तुम्हारे उठने का इन्तजार करते रहे | उन्हें चंडीगढ़ में कुछ काम था इसलिए जब तुम ग्यारह बजे तक नहीं उठे तो वह नाश्ता कर चले गये | वह कह रहे थे कि अगर उन्हें समय मिला तो तुम्हारे लिए कुछ गर्म कपड़े भी ले आएंगे’ |
अंकुर हैरान होते हुए बोला ‘गर्म कपड़ों की क्या जरूरत है’?
दादी मुस्कुराती हुई बोली ‘बेटा तुम मुंबई के रहने वाले हो न | तुम्हें ठंड का पता नहीं है | यहाँ इस मौसम में ज्यादातर ठंड शुरू हो जाती है’ |
अंकुर हँसते हुए बोला ‘लेकिन दादी ऐसा तो कुछ महसूस नहीं हो रहा है’ | यह सुन दादी मुस्कुराते हुए बोली ‘बेटा जी इस मौसम में अचानक किसी दिन भी बारिश हो सकती है | और बारिश होते ही देखना मौसम कैसे करवट बदलेगा’ |
अंकुर चाय पीते हुए बोला ‘दादी मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ’ ?
दादी आशंकित होते हुए बोली ‘क्या बेटा’ ?
‘यही कि आपने अभी तक मुझे मेरे माँ-बाप के बारे में कुछ नहीं बताया’ |
यह सुन दादी एक लम्बा साँस लेते हुए बोली ‘बेटा तुमने कभी पूछा ही नहीं और फिर मैंने या तुम्हारे दादा ने ये सोच कर तुम्हें कुछ नहीं बताया कि पता नहीं तुम कुछ जानना चाहते भी हो या नहीं | बाकी आज तुमने पूछा है तो मैं जरूर तुम्हें सब बताउंगी’, कह कर वह आराम से कुर्सी पर बैठते हुए बोलीं ‘बेटा प्रवेश शुरू से ही अलग स्वभाव का था | उसने खिलोनों के लिए या दूसरे बच्चों के साथ खेलने की कभी जिद्द नहीं की | वह शुरू से अपने में ही मस्त रहा करता था | जहाँ बैठा दो जैसा भी खिला दो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था | वह हमेशा स्कूल में फर्स्ट या सेकंड आया करता था | पढ़ाई के इलावा उसने कभी कुछ और सोचा ही नहीं | उसके स्कूल के सब टीचर्स उसकी बहुत तारीफ़ किया करते थे | हम भी उसकी लग्न देख बहुत ही खुश थे | बाहरवीं में वह अपने स्कूल में फर्स्ट आया था | उसकी मेहनत और लग्न के कारण ही उसका दिल्ली के टॉप कॉलेज में एडमिशन हो गया था | दिन-प्रतिदिन पढ़ाई के प्रति उसकी लग्न बढ़ती ही जा रही थी | कॉलेज के बाद जब उसका IIM में एडमिशन हो गया तो वह बहुत खुश था’, कह कर दादी एक लम्बा साँस लेकर फिर से बोली ‘वो IIM करने ऐसा घर से निकला कि फिर लौट कर कभी वापिस नहीं आया |
एम.बी.ए. पूरा होते ही उसे मुंबई की एक इंटरनेशनल कंपनी ने पचास हजार पर रख लिया | उस जमाने में पचास हजार बहुत बड़ी रकम होती थी | वह वहीं से मुंबई चला गया’, कह कर दादी रोने लगी | दादी को रोता देख अंकुर दादी का हाथ अपने हाथ में पकड़ दादी कर दादी के सामान्य होने का इन्तजार करने लगा | कुछ देर बाद दादी अपने आँसू पोंछते हुए भर्राई आवाज में बोली ‘वहीं मुंबई में उसकी मुलाकात एक पार्टी में तुम्हारी माँ रोमा से हुई | जोकि एक advertisement कंपनी में फैशन डिज़ाइनर का काम कर रही थी | दोनों को एक दूसरे से पहली नजर में ही प्यार हो गया | लगभग छः महीने की कोर्टशिप के बाद उन्होंने शादी कर ली | हम दोनों शादी में ऐसे शरीक हुए जैसे दूर के रिश्तेदार होते हैं | बस बेटा उसके बाद उसका फ़ोन कभी नहीं आया | हम ही उसे फ़ोन कर लिया करते थे | चार-पांच फ़ोन करने पर कभी उसके पास टाइम होता तो वो बात करता नहीं तो ये कह कर फ़ोन रख देता कि अभी मेरे पास टाइम नहीं है जब होगा तब बात करूंगा | बीच के आठ-दस साल उससे लगभग न के बराबर ही बात हुई | जब मैं काफ़ी दुःखी और परेशान रहने लगी तो तेरे दादा मुझे उससे मिलवाने मुम्बई लेकर गये लेकिन वह हमसे वहाँ भी परायों की तरह ही मिला और चला गया | उसका इतना आलिशान बंगला होने के बावजूद हम होटल में ठहरे’, कह कर दादी फूट-फूट कर रोने लगी | दादी की बातें सुन और उन्हें रोता देख अंकुर भी सिसक कर रोते हुए दादी के गले लग जाता है|
काफ़ी देर के बाद दादी सामान्य होते हुए अंकुर के सिर पर प्यार और दुलार से हाथ फेरते हुए बोली ‘बेटा हम से ज्यादा तो तूने सहा होगा | बेटा मैं तुम्हारी हिम्मत की दाद देती हूँ कि इतना सब कुछ होने के बावजूद तूने अपने आप पर काबू बनाए रखा | उसके जाने के बाद तूने हमारे पास आकर बहुत अच्छा किया.....’ | अंकुर हैरान होते हुए बोला ‘मतलब दादी तुम्हें पता है कि पापा नहीं रहे’ ?
दादी आँसू पोंछते हुए भर्राई आवाज में बोली ‘बेटा मैं fake id बनाकर तेरे पापा की दोस्त बन गई थी इसीलिए मुझे यह सब पता लग पाया’, कह कर दादी अंकुर का चेहरा अपने हाथ में लेकर उसके आँसू पोंछते हुए बोली ‘बेटा उसके एक्सीडेंट और उसके बाद उसकी डेथ होने की खबर पढ़ कर अंदर ही अंदर घुटती रही अकेले में रोती रही लेकिन मैंने इन्हें कुछ नहीं बताया | ये दिल के बहुत कमज़ोर हैं बेटा तू भी इन्हें कुछ नहीं बताना’, कह कर दादी प्रश्नवाचक निगाहों से अंकुर को देखती है |
दादा की सेहत की खातिर दादी इतना बड़ा झटका अकेले सहन कर गई सोच कर अंकुर की आँखों से अविरल आँसू बहने लगते हैं | ऐसे देवता स्वरुप माँ-बाप के घर ऐसा निष्ठुर बेटा कैसे पैदा हो गया सोच कर अंकुर मन ही मन अपने पिता को कोसने लगता है | उसकी ऐसी हालत देख दादी अंकुर का सिर चूमते हुए बोली ‘बेटा तू भी अपना मन हल्का कर ले’ | दादी का प्यार दुलार देख अंकुर रुंधे गले से बोला ‘दादी मुझे शुरू से ही डे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया गया था | मैं बचपन से ही अकेले रहने का आदि हो गया था क्योंकि मेरे लिए दोनों के पास समय ही नहीं था | कुछ समय के बाद मुझे एक इंटरनेशनल स्कूल में पढने भेज दिया गया | मैं जब भी छुट्टियों में घर आता है तो मम्मी-पापा मेरे साथ ऐसे समय बिताते जैसे किसी पराये के साथ बिताया जाता है | दोनों के पास रोज होने वाली पार्टियों के लिए तो समय था लेकिन मेरे लिए नहीं था | दोनों का रात को घर देर से आना | कभी-कभी दोनों का नशे में आना देख मेरा दिल टूटने लगा था | मुझे आप लोगों से मिलने से पहले तक पता ही नहीं था कि माँ-बाप का प्यार क्या होता है | बारहवीं के बाद मेरा एडमिशन mbbs में करवा दिया गया | कॉलेज के आखिरी वर्ष में मुझे खबर मिली कि पापा का एक्सीडेंट हो गया है | मैं कॉलेज से छुट्टी ले हॉस्पिटल पहुँचा तो मुझे माँ ने बताया कि पापा की हालत बहुत नाजुक है और वह बार-बार बेहोशी की हालत में भी मुझे पुकार रहें हैं | मैं बदहवास-सा जब क्रिटिकल यूनिट में पहुँचा तो उस समय वह बेहोश थे | मैंने जैसे ही उनके हाथ पर हाथ रखा तो वह होश में आते ही कहराते हुए बोले कि बेटा तुम आ गये | मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था | मेरी अलमारी में एक डायरी रखी है जिसमें तेरे दादा-दादी की फोटो और एड्रेस है | अगर मुझे कुछ हो जाए तो तू उनके पास चले जाना | वह सिसकते हुए बोले कि बेटा मुझे मॉफ करना मैं तुम्हें बाप का प्यार न दे सका | बेटा तुम जब भी दादा-दादी से मिलो तो उन से मेरी तरफ से मॉफी जरूर माँगना | मैं पैसे और शोहरत के चक्कर में ऐसा फंसा की अपनों को ही भूल गया | मुझे तो आज इस आख़िरी वक्त में ये सब याद आ रहा है लेकिन बेटा तुम कभी ऐसी गलती नहीं करना | बस वह इसके आगे कुछ और नहीं बोल पाए | देखते ही देखते उनकी साँस उखड़ने लगी और फिर....’, कह कर अंकुर फूट-फूट कर रोने लगा | दोनों दादी-पोता कितनी ही देर आपस में लिपटे हुए रोते रहे |
ऐसे ही एक दिन अंकुर को अकेले दूर पहाड़ो को ख़ामोशी से ताकते देख दादा उसके पास आ कंधे पर हाथ रख कर बोले ‘बेटा इतने निराश होने से ये जिन्दगी नहीं चलती | हमें हर हालात में आगे बढ़ते ही रहना पड़ता है | मैं जानता हूँ कि तुमने इतनी छोटी सी जिन्दगी में बहुत कुछ देख लिया है लेकिन बेटा निराश होने से कुछ नहीं होगा | अब जो हो गया वो हो गया | आज अभी से अपनी नई जिन्दगी की शुरुआत करो | बस बेटा एक बात याद रखना कि अपने पापा के बारे में दादी को कुछ नहीं बताना वह बेचारी इस उम्र में यह सब सहन नहीं कर पाएगी’, कह कर वह नम आँखें लिए आगे बढ़ जाते हैं |
अंकुर को अब समझ आता है कि वह दोनों उसे देख कर क्यों बेहोश हुए थे | आज उसे अपने दादा-दादी पर फक्र महसूस हो रहा था | दोनों एक दूसरे को कितना चाहते हैं | एक दूसरे को दुःख न पहुँचे अंदर ही अंदर अपने बेटे का ग़म कितनी ख़ामोशी से सह गए हैं | ये होता है आत्मिक प्यार | काश कि उसके माँ-बाप भी ऐसे ही होते, सोचते हुए वह घर की ओर चल देता है |
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