21 दिन का लोकडाउन... Gal Divya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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21 दिन का लोकडाउन...



मंजरी दोड के जा रही थी, पीछे उसका 4 साल का बेटा जुगनू उसे पुकार रहा था, मंजरी वहीं से अपने बाबा को उसे रख ने को बोल फैक्ट्री की ओर चल दी।
फैक्ट्री में सभी मजदूरों को मालिक ने बुलाया था, मंजरी भी यही काम करती थी, इसी लिए मालिक के बुलावे पर अयी थी। मालिक ने सभी मजदूरों को बताया कि पूरे विश्व में कोरोना वायरस फेल गया है, हमारे देश में भी फैलने लगा है, इस लिए सरकार ने जनहित के लिए आज से 21दिन का लॉकडाउन जाहीर किया है। तो कोइ इस 21दिनों तक घर से बाहर नहीं निकलेगा , आेर ये फैक्ट्री भी बन्ध हों रही है, सब अपने घर में रहेना सुरक्षित रहेना ।
मंजरी तो परेशान हो गई अगर फैक्ट्री बंद हो जाएगी तो वो पैसे कहा से कमायेगी, आेर वो फैक्ट्री में ही तो वो रहती है, अब वो कहा जाएगी। ये सोचते सोचते वो अपने बाबा के पास पाहोची, आेर उनको पूरी बात बताई, बाबा ने कहा तो अब हम क्या करेंगे?
मंजरी ने कहा हमें वतन ही जाना पड़ेगा, कल सुबह हम निकल जाएंगे। दूसरी सुबह मंजरी अपने बाबा आेर अपने बेटे जुगनू को लेके रेल्वे स्टेशन पहुंची, लेकिन वहा मुश्किल से 10-15 लोग नजर आए और वो भी रेल्वे स्टाफ ही था। पूछताछ के बाद पता चला सभी ट्रेन बंद है।
मंजरी हार मानने वालों में से नहीं थी, उसने फैसला किया वो चल के ही 300की.मी. दुर अपने वतन पहुंचेगी।उसे पता नहीं था कि वो इस समय इस तरह बाहर निकाल कर कितनी बड़ी गलती कर रही थी। उसने अपने बाबा आेर जुगनू के साथ चलना शुरु कर दिया, चलते चलते दोपहर हो गयी, जुगनू बोला मां मुझे प्यास लगी है अोर भूख भी लगी है। मंजरी के पास खाना नहीं था थोड़ा पानी पिलाया और कहा खाना आगे मिलेगा बच्चा।
जुगनू रोने लगा अब मंजरी के पास कोई रास्ता नहीं था , उसने अपने बाबा से कहा आप जुगनू को रखो आगे गांव दिख रहा है में जाके खाना लाती हूं।
मंजरी को बड़ी मुश्किल से थोड़ा खाना मिला उसने जुगनू आेर बाबा को खाना खिलाया आेर आराम करके वो फिर चल पड़े ।दूसरे गांव पहुंचते हुचते रात हो गई, उस गांव के लोगो को जब इनके आने का पता चला तो वहा के सरपंच दौड़े दौड़े पहुंच गए, उनको गांव की सरकारी स्कुल में रखा गया, जो मंजरी अपनी ज़िंदगी में कभी स्कूल नहीं गई थी वो आज स्कूल पहुंच गई । वो अपने जुगनू को बोलने लगी मेरे बेटे में तुझे एसे हि स्कूल में पढ़ने भेजना चाहती हूं। जुगनू आेर मंजरी की अखो में एक उम्मीद दिखी । लेकिन सामने आज के हालत दिखे जहा पूरे गांव में डर का माहौल हो गया। अब मंजरी को थोड़ा समझ आने लगा कि इस तरह चलके अपने वतन जाने का फैसला गलत था, सब उनसे डर रहे थे, उनसे दूर भाग रहे थे, कई लोग तो उनको भगाने की बात कर रहे थे। लेकिन सरपंच भला आदमी था, उनको खाना दिया आेर डाक्टर को बुला के तीनों का कॉरोना टेस्ट करवाया।

सुबह मंजरी अपने बाबा आेर जुगनू को लेके निकल ने हि वाली थी कि सरपंच ने रोक लिया कहा टेस्ट का रिजल्ट आने दो तब तक यही रहना पड़ेगा, मंजरी डर गई, सरपंच के पेर पकड़ के बोल ने लगि हमें जाने दो, हमें घर जाना है। तभी रिपोर्ट आ गई, आेर पता चला कि जुगनू आेर बाबा दोनों को कोरॉना वायरस की असर हो गई हैं। मंजरी पर तो जाने आसमान टूट पड़ा वो अपने होश हि खो बेढ़ी, जोर जोर से रोने लगी, उसे लगा जैसे उसने सब कुछ खो दिया है।
जुगनू आेर बाबा को अस्पताल में फर्ती करवाया गया और मंजरी को वहीं स्कूल में रखा गया, अब मंजरी अपने जुगनू से या बाबा से मिल नहीं पाएगी यह उसे बताया गया। वो अपना दुःख बाट सके वैसा भी कोई नहीं था, वो रोने लगी।
3 दिनों तक तो मंजरी को भी कोई छूता नहीं था, उसका 2 बार आेर टेस्ट किया गया आेर उसे कारोना की असर नहीं थी। फिर उसे बड़ी मुश्किल से अपने बाबा आेर जुगनू को देखने दिया गया, लेकिन वो भी काच में से, जुगनू मा को देख उसे मिलने भागा, पर मा को छू नहीं पाया। मंजरी यह देख नहीं पाई, वो रोने लगी। फिर तो एसे हि आेर 5 दिन निकाल गए , रोज मंजरी बाबा आेर जुगनू की बाहर से देखती रहती ओर रोती रहती।
दूसरी सुबह बाबा को सास लेने में तकलीफ होने लगी वो तड़पने लगे। यह देख मंजरी बहुत डर गई डॉकतर से मिनते करने लगी कि उसके बाबा को बचा लो। उसके बाबा को वेंटिलेटर पर रखा गया।
4 दिन तक बाबा वेंटिलेटर पर रहे आेर आखिर में दम तोड दिया। मंजरी का तो होस्ला हि टूट गया, आेर दुःख तो देखो बाबा को मंजरी आख्ररी बार गले तक लगा न पाई उनके अंतिम संस्कार तक ना कर पाई, अब तो मंजरी मुरजा हि गई थी ना कुछ बोलती ना कुछ बस अपने जुगनू को देखती रहती।
फिर एसे हि चार दिन गुजर गए, मंजरी जुगनू को देख रही थी अचानक जुगनू को सास अना बन्ध हों गई मंजरी चिल्लाने लगी वो डॉक्टर को कहने लगी मुझे मेरे बचे को मिलने दो एक बार गले से लगने दो, मुझे अन्दर जाने दो , वो रोती रही यह जुगनू की भी वेंटिलेटर पर रखा गया मंजरी सोचने लगी ये भी देखो क्या बुरे दिन आए हैं मा अपने बेटे को छू नहीं सकती। एसी भी बिमरी आ गई है कि इंसान सब छोड़ चला है।
दूसरे दिन जुगनू की हालत में सुधार आ गया, वेंटिलेटर हटा दिया गया अब जाके मंजरी की सास में सास आयी। अब तो जुगनू बिलकुल ठीक हो गया। दो बार टेस्ट किया और उसे डिस्चार्ज कर दिया गया। आखिर में मंजरी आेर जुगनू मिले, मा आेर बेटे का ये संगम देख पूरी हॉस्पिटल में खुशियों का माहौल बन गया। मंजरी जुगनू को पागलों की तरह चूम ने लगी उसे गले लगाया आेर खुशी से पागल हो गई। उसने डाक्टर को भगवान की तरह पूजा। आखिर 21दिन का लोकडाउन खत्म हुआ, आेर मंजरी की ज़िंदगी का भी लोकडाउन खुल गया।