गुमनाम - 3 Urmi Chauhan द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

गुमनाम - 3

सुनैना बहोत आश्चर्य में थी। क्योंकि जब से चट्टी पड़ी तबसे सुरेश बहोत चिंता में लग रहे थे और पुलिस को भी उस मामले से दूर रहने को कहा। उसे कुछ भी समझ मे नही आ रहा था। वह बौहत चिंतित हो गई। और सेरेश से पूछने लगी..
"मेरा रवि ठीक तो है..? क्या लिखा है चिठी में? उसने क्यों हमारे रवि को पकड़ा है..? इतना कहते ही सुनैना रोने लगती है और जमीन पे बेठ जाती है। सुरेश उसे चट्टी देता है। चट्टी पड़ते ही वो चिट्टी लिखने वाले के बारे में पूछति है। चिट्टी में उसका नाम लिखा होता है और वो सुरेश का दोस्त होने का दावा भी करता है। कुछ देर तक सुरेश चुप रहता है । थोडी देर बाद बात कहता है। वो राज उसके अतीत से जुड़े था।
ये बात आज से 15 साल पहले की है। मेरे गाँव मे मेरा बोहत पक्का दोस्त था। हम दोनों बोहत अच्छे दोस्त थे। हर बात एकदूसरे के साथ बाटते थे। उसका नाम मोहन था। उसके घर मे बस उसकी माँ थी जो बिमार रहती थी। मोहन के पास पैसे की कमी थी। जो कुछ वो थोड़ा बोहत कमाता वो खानेपीने ओर उसकी माँ की दवाईओ में निकल जाता। मैने बोहत बार उसकी मदद करनी चाही पर उसने मुझे माना कर दिया। कहा जब मुजे चाहिए होंगे तो तुमसे मांग लुगा। ऐसे रोज रोज तुमसे पैसे नही ले सकता।
एक दिन अचानक क्या हुआ कि मोहन आधी रात को किसी के घर से कुछ लेके जा रहा था मुझे कुछ समझ मे नही आया। में उसे कुछ पूछू उसे पहले वो वहाँ से भाग गया। सुबह हुई तो पता चला कि उस घर मे चोरी हुई है। सोने के दगिने चोरी हुआ है। गांव में शोर मच गया।पता नही किसने चोरी की होगी ऐसा गांववाले सोच रहे थे। सब एकदूसरे से पूछ रहे थे। गांव के पुलिस आई और पूछताछ हुई। पुलिस ने सभी से पूछा कि किसी को इस घर के आसपास कोई दिख थ। सभी ने कुछ नही किया पर मैने बोल दिया कि मोहन रात को कुछ लेके भाग गया रहा था। मेने उसे बुलाय पर उसने सुना नही। गांव वाले ये सुनार चोक गए। पुलिस ने भी अपनी जांच जारी रखी। मेने कभी नही सोचा था कि मोहन चोर होगा। वो उस समय गांव से भी बाहर था। कही नही मिला। अब पुलिस उसे ढूढ रही थी।

पुलिस मोहन के घर गई वहाँ पूछताछ की।घर मे सिर्फ उसकी माँ थी। उसे पुलिस ने पूछा कि कहा है मोहन..? पर उसकी माँ को भी पता नही था। वो बहोत बीमार थी। काल सुबह से ही उसे बहोत बुखार था। उसे तो पता भी नही चला कि सुबह से रात कहा हो गई। पर मोहन की माँ ने बताया कि, मोहन ने रात को खाने के समय उसे उठाया और खाना खिलाया ओर दवाई दी। ओर कुछ नही कहा। उसके बाद में फिर से मेरी आँख लग गई। और सुबह को के सब सुना। मुझे कुछ नही पता।
पुलिस को लगता है कि वो यहां से दूर नही गया होगा। वो आसपास की जगह पे तलाश करती है। और शाम तक मोहन को ढूढ लाती है। और चोरी का सामान भी उसके पास था। पुलिस उसे पकड़ लेती है और उसे सजा होती है। पर जब उसे पता चलता है कि पुलिस को उसके बारे में मैने बताया तो वो बहोत गुस्सा होता है और मुझे नफरत करने लगता है। ये सब होने के बाद थोड़े ही दिनों में हमे काम के कारण शहर आना पड़ा । बाद में क्या हुआ मुजे नही खबर।
उन सब बातो के बीच फोन की घटी बजती है।
ये फोन किसका है..? मोहन ने किया है की किसी ओर ने इस कहानी के अंतिम भाग में उस सब राज का पता चलेगा।