मिखाइल: एक रहस्य - 12 - आदित्यनाथ या भैयाजी? Hussain Chauhan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मिखाइल: एक रहस्य - 12 - आदित्यनाथ या भैयाजी?

"ठीक से सुनो रहीम, कुछ दिनों के बाद तुमको थोड़े दिनों के लिये मुम्बई से दीव आना होगा, मैं तुम्हे दीव कब आना है और किस तरह आना है इसकी जानकारी दे दूंगा और साथ ही तुम्हारे रहने और खाने पीने का सब इंतेज़ाम भी हो जायेगा।" अब्बास ने रहीम को अपनी परफेक्ट योजना का शुरुआती हिस्सा बताते हुवे कहा।
"लेकिन दीव ही क्यो?" रहीम कुछ समझ नही पा रहा था कि आखिरकार अब्बास उस भैयाजी से बदला कैसे लेगा और उसने दीव ही क्यो चुना था, इसी कारण उत्सुकता वश वो पूछ बैठा।

"दीव में एक कंपनी है, जिसका नाम है महेक इंफ़्रा और वो कंपनी लखनऊ के विधायक रामदास पासवान की है और उसे आदित्यनाथ चलाता है।"

"अब यह आदित्यनाथ कौन है?" रहीम समझ नही पा रहा था कि बात तो भैयाजी से बदला लेने की थी तो फिर यह बीच मे दीव, दीव की कंपनी महेक इंफ़्रा और आदित्यनाथ से इसका क्या लेना देना था। इससे पहले की वो कुछ आगे पूछ पाता अब्बास ने एक छोटी सी लिफाफे के साइज की फ़ोटो रहीम को थमा दी।

"यही तो है भैयाजी!" रहीम उस फ़ोटो को देखते ही पहचान गया और उसकी आवाज़ में भी बदले की भावना साफ साफ झलक रही थी।

"यह है, महेक इंफ़्रा का ऑन पेपर मालिक, आदित्यनाथ!" अब्बास ने रहीम की बात बीचमे ही काटते हुवे कहा।

"नही, मेरी आँखें धोखा नही खा सकती, अभी भी वो दर्दनाक मंज़र मेरी नज़रो के सामने है, जिस दिन इसने अपने आदमियो के साथ मिलकर मेरी नज़र के सामने मेरे दोनों दोस्तो को मार दिया था।" रहीम ने अब्बास की बात को मानने से साफ तौर से इनकार कर दिया।

"इसके बाद इस आदमी ने तुम्हारे परिवार को मारा, फिर रामदास ने इसे अंडरग्राउंड कर दिया और तब से लेकर आज तक यह आदित्यनाथ के नाम के साथ, एक शरीफ बिज़नेस मैन का श्वेत चोगा पहने जिंदगी जिये जा रहा है।" अब्बास ने पूरा सच रहीम के सामने रख दिया था।

"लेकिन, तुमको इसके बारे में इतना सब कैसे पता?" रहीमने हैरान होकर पूछा।

"अपने दुश्मनों की पल पल की जानकारी अब्बास रखता है, और मुझे यह भी पता है कि तुमने कभी दिल से अपना कसाई का काम स्वीकार नही किया है, तुम बचपन से ही कंप्यूटर इंजीनियरिंग करना चाहते थे लेकिन, पैसो की कमी के कारण तुम कर नही पाये और अपने बाप-दादा के धंधे में आ गये।" अब्बास मानो किसी स्ट्रेंजर की तरह एक के बाद एक पन्ने पलटे जा रहा था।

रहीम बहुत हैरान था, उसके दिमाग मे एक साथ बहुत सारे सवाल आने शुरू हो चुके थे, क्या वो इस आदमी पर भरोसा कर सकता था जिसको उसके बारे में एक-एक जानकारी थी, जिसको भैयाजी और आदित्यनाथ दोनों एक थे वो पहले से ही मालूम था, अगर उसके पास इतनी जानकारी थी तो उसने अकेले ही क्यों भैयाजी को मार नही गिराया? वगेरह... वगेरह....

"खैर, तुम्हे इतना मालूम है तो तुमने खुद यह काम क्यो नही कर लिया?" कई सारे सवालों में से दिमाग मे घूमता हुआ एक सवाल रहीम ने अब्बास से पूछ लिया।

"खैर, मैं मार भी सकता था, लेकिन जब इस आदमी के बारे में मैं जानकारी इकठ्ठी कर रहा था तभी तुम्हारी कहानी भी मेरे सामने आयी! तुम भी उसी तरह सताये गये हो जिस तरह मैं! एक बात बताओ क्या तुम ठीक से सो लेते हो रात भर? मैं तो नही सो पाता, और इसी लिये मैने सोचा कि तुमको भी इस काम मे शामिल किया जाये, तुम निश्चिंत रहो पुलिस के लफड़े में हम दोनों मेसे कोई नही पड़ेगा। फिर भी आगे तुम्हारी मर्ज़ी, तुम सोच लो रात तक का वक़्त है तुम्हारे पास।" अब्बास रहीम की चार पाई से उठ कर दरवाज़े की ओर जाने लगा जो बहुत ही बीमार हालात में थी।

"हां, एक और बात यदि तुम्हारा जवाब हां, है तो कल इरफान भाई की दुकान से ठीक सुबह ९ बजे एक वनीला आइस क्रीम खरीद लेना, मुझे पता चल जायेगा।" इतना बोलते ही अब्बास रहीम के घर से चला गया, और दूसरी तरफ रहीम पूरी रात असमंजस में रहा।

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"एक बात बताओ, तुम यहाँ आगरा में क्या कर रही हो? मुझे तो लगा कि तुम अहमदाबाद में अपने क्लासिस ले रही हो।" ओकले दंपति को होटल पर उनके रूम पर छोड़ने के बाद जय ने वेटिंग एरिया की तरफ जब वे दोनों एक साथ आगे बढ़ रहे थे तभी जय ने माहेरा से पूछा।

"कोई नही, ऐसे ही। मेरी एक सहेली है नफीसा उसका रिश्ता आया था तो बस इसी सिलसिले में आगरा आ गयी, इसी बहाने ताज भी देख लिया और किस्मत ने तुमसे भी मिलवा दिया।" अपने लंबे बालों को माहेरा ने कान के पीछे करते हुवे जय को बताया।

"ओह! तो अब किस्मत कहा ले जा रही है तुम्हे?" जय ने रुक कर पूछा।

"मतलब?" माहेरा जय की बात समझ तो चुकी थी लेकिन फिर भी एक बार उसने कुछ समझ न आया हो वैसे बनते हुवे पूछा।

"मतलब कि, तुम कहा ठहरी हो?"

"ओह! तो जनाब को मैं कहा ठहरी हूं इसका पता चाहिये, हंह?" बड़े ही शरारती अंदाज़ से माहेरा ने अपनी बालो की लतों को उंगलियों से करली करते हुवे पूछा।

"नही, मेरा मतलब था कि, तुम मेरे घर पर आज रुक सकती हो, अगर रुकना चाहो तो!" जय ने बड़बड़ाहट में कुछ भी बोल दिया।

जय के सवाल का बिना कोई जवाब दिये माहेरा आगे की ओर बढ़ने लगी, जय को लगा कि उसने कोई गलती करदी, वो दौड़ता हुआ माहेरा कि और गया और पीछे से ही उसका हाथ पकड़ लिया।

"सॉरी, आई डिडन्ट मीन धेट"

"आई नॉ, लेकिन अब कैब भी तो लेनी होगी।" माहेरा ने जय की ओर मुड़कर हंसते हुवे कहा।

"तो मतलब, तुम्हे गलत नही लगा मेरी बात का?" जय में ऐसे ही हाथ पकड़े हुवे ही पूछा।

"अगर, मुझे गलत लगा होता, तो क्या ऐसे में यहां खड़े रहकर, हंसते हुवे तुमसे बात कर रही होती? और वैसे भी इंसानों की अच्छी परख है मुझे।" माहेरा ने अपना हाथ छुड़ाते हुवे कहा।

धीरे धीरे वे दोनों बाहर की ओर चलने लगे, बरसो बाद जय को अपने पिता द्वारा कही गयी वो बात याद आ गयी कि, ज़िन्दगी रहस्य और रोमांच से भरी पड़ी है। कोई नही जानता कि, अगले पल क्या होने वाला है। ऊपरवाले से बड़ा और कोई जादूगर नही।

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