मिखाइल: एक रहस्य - 13 - बदला Hussain Chauhan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मिखाइल: एक रहस्य - 13 - बदला

मुग़ल क्वीन से तकरीबन १५ मिनट की कैब राइड के बाद जय और माहेरा उनके अपार्टमेंट अपर्णा प्रेम पर पहुंच चुके थे जो शास्त्रीपुरम में स्थित था।

"क्या यह तुम्हारा अपना घर है?" लिविंग रूम में पैर रखते ही माहेरा ने जय से पूछा, जो बहुत ही कम चीज़े होने के कारण बहुत ही बड़ा दिखाई दे रहा था। चीज़ों के नाम पर वहां सिर्फ एक मैन सोफे के इर्द-गिर्द दो सिंगल सोफे थे और उनसे थोड़े दूर एक तिपाहि पड़ी थी जो फर्नीचर से बिल्कुल मिलती झूलती थी। उस तिपाहि पर एक पारदर्शक ग्लास था जिस पर एक स्विरल बनी हुई थी।

इसके अलावा लिविंग रूम में सोफे के एक दम सामने वाली दीवाल पर एक ३२ इंच का टीवी बिना कोई टीवी यूनिट फर्नीचर के लगा हुआ था, जो उतनी बड़ी और खाली दीवार पर छोटा दिखाई दे रहा था।

"नही, वैसे देखा जाये तो में भारत मे ज़्यादा से ज़्यादा ४ से ५ महीने रहता हूं तो मेरी कंपनी ने मुझे यह घर दिलाया है।"

"तो बाकी के महीने कहा रहते हो?" माहेरा ने उत्सुकता से पूछा।

"बाकी के थोड़े दिन अमेरिका, और बाकी बचे दिनों में जहाँ किस्मत ले जाये।" माहेरा के बिल्कुल पास सोफे पर बैठते हुवे जय ने कहा।

"तो क्या पूरी जिंदगी ऐसे घूमते-फिरते ही बिताओगे? सैटल होने का कोई इरादा नही है?" भले ही माहेरा की जय से मुलाकात हुवे ज़्यादा वक़्त नही हुवा था लेकिन कुछ तो जय में ऐसी बात थी जो माहेरा को उसकी ओर खिंचे जा रही थी।

"वैसे देखा जाए तो अभी तक तो नही, लेकिन हां इन फ्यूचर आई विल गिव इट अ थॉट।"

"व्हेर इस ध वाशरूम? आई नीड टू पी" माहेरा ने सोफे से खड़े होते हुवे पूछा।

"गो इन ध रूम" जय ने रूम की ओर इशारा करते हुवे कहा।

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जब वह उठा तो उसने खुद को एक लकड़े की कुर्सी पर अपने हाथ और पैर दोनों बंधा हुआ पाया। उसके सर में भारी सिरदर्द था। उसकी आंख की पुतलियां थोड़ी सी लाल हो चुकी थी, साथ ही उसकी आवाज़ कमरे से बाहर ना निकल सके इसके लिए उसके मुंह को कपड़े से बांध दिया गया था। वो समझ नही पा रहा था कि कुछ वक्त पहले तो वह बिल्कुल ठीक था और एकदम से उसकी ऐसी हालत कैसे हो गयी?

"मैं कहा हूँ?" आंखों में एकदम से गुस्सा भरे उसने पूछना चाहा लेकिन मुंह पर बंधी हुई कपड़े की पट्टी के कारण उसकी आवाज़ उसके मुंह के अंदर ही दबी हुई रह गयी।

"भैयाजी, भैयाजी! नींद तो ठीक से आई न आपको? खातिरदारी में कोई कमी तो नही रह गयी बंदे से?" उसके बिल्कुल सामने हरा लबादा पहने हुवे बैठे एक सख्श ने पूछा।

बरसो के बाद किसी के मुंह से अपना पुराना नाम सुनकर आदित्यनाथ चौंक गया और अपने आपको उस रस्सियों के बंधन से छुड़वाने की नाकाम कोशिशें करने लगा। वो पहचान चुका था कि वो हरा लबादा पहना हुआ शख्श वही था जो उसने रामदास की भेजी हुई वीडियो में देखा था। वो जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्द वहां से निकल जाना चाहता।

"इतना छटपटा क्यो रहे हो भैयाजी? आपने तो ऐसी घटनाएं जिंदगी में कितनी बार देखी होगी, और तो और आपने कितनी मर्तबा दूसरो के लिए ऐसी स्थितियों का निर्माण भी किया होगा। खैर कोई नही, हम आपको जल्द ही आज़ाद कर देंगे।" इतना बोलते ही हरा लबादा पहना हुआ शख्श ज़ोरो से हंसने लगा।

"तुम कौन हो और क्या चाहते हो?" फिरसे भैयाजी ने पूछना चाहा लेकिन फिर पहले की तरह उसकी आवाज़ उसके मुंह मे ही दबी रह गयी।

"लगता है तू कुछ पूछना चाहता है, चल एक काम करता हूँ, तेरे मुंह पर बंधी पट्टी खोल देता हूँ।" हरा लबादा पहना हुआ शख्श अपनी कुर्सी से उठते हुवे बोला और भैयाजी के मुंह पर बंधी हुई पट्टी खोल दी।

"तू मुझे जानता नही है मादरचोद!" जैसे ही भैयाजी की मुंह की पट्टी खुली भैयाजी ने पूरी ताकत लगाते हुवे खुद को रस्सियों से अलग करने की कोशिश करते हुवे कहा।

"अले ले! भैयाजी को गुस्सा आ गया!" भैयाजी का मज़ाक बनाते हुवे हरा लबादा पहने हुवे शख्श ने फिर से उनके मुंह पर पट्टी बांध दी।

"भैयाजी, आपने कभी फिश टैंक को टूटते हुवे देखा है, जब फिश टैंक टूटता है न तब मरने से पहले मछलियां बहुत छटपटाती है, आप भी कुछ इसी तरह आज छटपटा रहे हो।" भैयाजी के मुंह पर पट्टी लगाने के बाद हरा लबादा पहना हुआ शख्श अपनी कुर्सी की ओर गया और बैठते हुवे भैयाजी से कहा।

हरा लबादा पहने हुवे शख्श की इस बात को सुनकर भैयाजी और ज़ोर से खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगा। अब वो पसीने से पूरी तरह भीग चुका था और तो और उसकी सांसें भी तेज होती जा रही थी।

"क्यो खामखा अपने आखिरी लम्हो को खराब कर रहे है भैयाजी, थोड़ी शांति रखिये, भगवान का ध्यान करिये, अपने गुनाहों को याद करिये, कुछ ही वक़्त में आपको भगवान से रूबरू जो होना है।"

"नही, नही, मैं आपको नही मारने वाला हूं, मेरी इतनी मजाल जो भैयाजी को मार दे।" हरा लबादा पहने हुवे शख्श ने भैयाजी का मज़ाक बनाते हुवे कहा, भैयाजी ने अपनी पूरी जिंदगी में कभी खुदको इतना मजबूर और लाचार नही पाया था जितना वो आज था।

"आपने तो अपनी ज़िंदगी मे बहुत गुनाह किये होंगे न भैयाजी? और उनमें से कोई गुनाह ऐसा भी होगा जिसे आपको करने में बड़ा ही मज़ा आया होगा, नही भैयाजी? चलिए आपके बेहतरीन गुनाह का कोई किस्सा मुझे सुनाइये, आखिर हम भी तो सुने भैयाजी की कहानी, भैयाजी की जुबानी।" हरा लबादा पहना हुआ शख्श फिर से हंस पड़ा। जैसे किसी चूहे को खाने से पहले बिल्ली अपने शिकार से खेलती है ठीक उसी तरह वो हरा लबादा पहना हुआ शख्श भैयाजी से पेश आ रहा था।

भैयाजी की छूटने की नाकाम कोशिशों की वजह से अब उसकी सांसें इतनी फूल गयी थी की अब उसने खुदको छुड़ाने के प्रयास बंध कर दिए थे।

"वेरी गुड बॉय! अब आप किसी एक अच्छे बच्चे की तरह पेश आ रहे है।" भैयाजी को छूटने का कोई भी प्रयास न करते हुवे देख हरा लबादा पहने हुवे शख्श ने फिरसे उसका मजाक बनाते हुवे कहा।

"चलिए में आपको आपकी ज़िंदगी का एक बेहतरीन गुनाह याद दिलाता हूं।" हरा लबादा पहने हुवे शख्श ने इतना बोलते हुवे रहीम को आवाज़ लगाई, और महज़ कुछ ही सेकंड में रहीम भैयाजी के सामने था।

रहीम को देख भैयाजी को अपना बरसो पहले किया हुआ कांड याद आ गया जिसमें उसने और उसके आदमियों ने मिलकर रहीम के दो दोस्त फरहाद और ज़फर को रहीम के सामने मौत के घाट उतार दिया था।

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