बॉलीवुड लीजेंड्स - 5 S Sinha द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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बॉलीवुड लीजेंड्स - 5

बॉलीवुड लीजेंड्स


बॉलीवुड लीजेंड्स में उन दिवंगत बीते दिनों के बॉलीवुड कलाकारों के बारे में लिखने का प्रयास किया है जिन्होंने कुछ मुकाम हासिल किया है . सभी के बारे में तो लिखना असंभव नहीं तो अत्यंत कठिन जरूर है . इस आलेख में उनके व्यक्तिगत जीवन की चर्चा न कर सिर्फ उनकी एक्टिंग और उपलब्धि के बारे में लिखा गया है . आज भी जो एक्टर्स हैं उन्हें अभी नए कीर्तिमान स्थापित करने हैं , इसलिए उनके बारे में फिलहाल नहीं लिखा गया है . जानकारियां गूगल से ली गयीं हैं . कुछ त्रुटियां संभव हैं .


इस सीरीज के प्रथम दो भाग मातृभारती पर प्रकाशित हो चुके हैं और आगे के दो भाग प्रकाशन के लिए स्वीकार हो चुके हैं .


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सूची

1 दादा साहब फाल्के


2. . वी . शांताराम


3 . देविका रानी


4 . अशोक कुमार


5 . पृथ्वी राज कपूर


6 - बलराज साहनी


7 - ललिता पवार


8 - प्राण

9 .- शंकर जयकिशन

10 - मुकेश

11 - देव आनंद

12 - राज कपूर

13 - गुरुदत्त

14 - राज कुमार

15 - जॉनी वाकर

16 - नरगिस दत्त

17 - गीता बाली

18 - सुनील दत्त

19 - शम्मी कपूर

20 - मधुबाला

21 - मीना कुमारी

22 - नूतन

23 - संजीव कुमार

24 - नंदा

25 - राजेश खन्ना

26 - स्मिता पाटिल

27 - शशि कपूर

28 साधना

29 - विनोद खन्ना

30 . किशोर कुमार

31 - सुरैया

32 - राजेंद्र कुमार

33 - महमूद

34 - रफ़ी

35 - सोहराब मोदी

36 - के . एन . सिंह

37 . अमरीश पुरी

38 - अमज़द खान

39 - निरुपा राय

40 - लीला चिटनीस

41 - कुलदीप कौर

42 - मनोरमा

43 - टुनटुन

44 - नादिरा

45 . तलत महमूद

46 . मन्ना डे

47 . महेंद्र कपूर

48 . के . एल सहगल.

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बॉलीवुड लीजेंडस


Part 1 .


दादा साहब फाल्के

जन्म 30 अप्रैल - 1870 , त्रयम्केश्वर ( नासिक ) , बॉम्बे ब्रिटिश इंडिया

मृत्यु -16 फ़रवरी 1944 , नासिक

बर्थ नेम - धुंडीराज गोबिंद फाल्के

स्क्रीन नेम - दादा साहब फाल्के

प्रारम्भिक जीवन -


दादा साहब फाल्के ने 1890 में बॉम्बे के जे . जे . स्कूल ऑफ़ आर्ट्स से शिक्षा लेने के बाद बड़ौदा के कला भवन से शिल्पकला , ड्राइंग , पेंटिंग और फोटोग्राफी की शिक्षा ली . उन्होंने कैरियर की शुरुआत फोटोग्राफी से की , फिर वे कुछ समय तक भारतीय पुरात्तव विभाग में ड्राफ्ट्समैन रहे . फाल्के साहब ने अपना प्रिंटिंग प्रेस खोला जिसे पार्टनर से विवाद के चलते बंद कर दिया .


फ़िल्मी सफर - प्रेस बंद होने के बाद उनका ध्यान फिल्मों की ओर गया . उन्होंने 1912 में पहली फिल्म “ राजा हरिश्चंद्र “ बनायी जो 1913 में प्रदर्शित हुई थी . उस समय मूक फिल्म बनती थी . यह भारतीय फिल्म जगत की शुरुआत थी और इसीलिए उन्हें भारतीय सिनेमा का पिता कहा जाता है .


फाल्के साहब का झुकाव धार्मिक फिल्मों की ओर रहा था . फाल्के ने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान फिल्म कंपनी खोली . यहाँ भी विवादों के चलते हिन्दुतान फिल्म उन्हें छोड़ना पड़ा था .


सिने जगत में तकनीक बदलने लगी थी . मूक फिल्मों का जमाना समाप्त हो रहा था और बोलती फ़िल्में बनने लगी थीं . कोल्हापुर के महाराजा के निमंत्रण पर उन्होंने एकमात्र बोलती फिल्म “ गंगावतारण “ का निर्देशन किया . नये तकनीक के आने के बाद वे फिल्मों से रिटायर हो गए . उन्होंने करीब 95 फ़िल्में बनायीं .


पुरस्कार


दादा साहब के सम्मान में भारत सरकार ने फिल्म जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार - दादा साहब फाल्के अवार्ड -

उन्हीं के नाम पर रखा है . इस पुरस्कार का आरम्भ 1969 में हुआ था और देविका रानी पहली विजेता थीं . भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था .


1944 में नासिक में उनकी मृत्यु हो गयी . कहा जाता है कि अंतिम समय में वे कौड़ियों के मोहताज रहे थे और लगभग भुला दिए गए थे .


उनकी प्रमुख फ़िल्में -


मोहिनी भस्मासुर -1913 कालिया मर्दन -1919

सत्यवान सावित्री -1914 बुद्धदेव - 1923

लंका दहन -1917 सेतुबंधन - 1932

श्री कृष्ण जन्म -1918 गंगावतरण -1937

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Part 2 . वी . शांताराम

,

जन्म - 18 नवम्बर 1901, कोल्हापुर , बॉम्बे ब्रिटिश इंडिया

मृत्यु - 30 अक्टूबर 1990 , मुंबई

बर्थ नेम - शांताराम राजाराम वांकुदरे

स्क्रीन नेम - वी . शांताराम

प्रारम्भिक जीवन


शांताराम का जन्म एक मराठी जैन परिवार में कोल्हापुर में हुआ था . उनकी तीन शादियां हुईं थीं . उनकी दूसरी पत्नी जयश्री से हुई बेटी राजश्री एक सफल अभिनेत्री रही हैं . उनकी तीसरी पत्नी संध्या थी . संध्या उनकी फिल्मों में नायिका भी रही हैं .


फ़िल्मी सफर


उन्होंने कोल्हापुर के बाबूराव पेंटर की एक फिल्म कंपनी में छोटा मोटा काम शुरू किया . 1921 की मूक फिल्म

“ सुरेखा हरन “ में शांताराम ने पहली बार अभिनय किया . उन्होंने खुद बहुत ज्यादा फिल्मों में काम नहीं किया , पर वे अनेकों फिल्मों के निर्माता और निर्देशक रहे हैं . डॉ कोटनिस की अमर कहानी , दो आँखें बारह हाथ , नवरंग , झनक झनक पायल बाजे , स्त्री उनकी बहुचर्चित फ़िल्में रही हैं . शांताराम ने 12 फिल्मों में काम किया है .


1929 में उन्होंने अन्य मित्रों के साथ मिलकर प्रभात फिल्म कंपनी खोला . शांताराम के निर्देशन में प्रभात कंपनी ने पहली मराठी फिल्म बनायीं . 1942 में उन्होंने प्रभात कंपनी छोड़ कर अपनी कंपनी राजकमल कलामंदिर बनायीं .


पुरस्कार


झनक झनक पायल बाजे और दो आँखें बारह हाथ के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था . उन्हें पद्मविभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है .


शांताराम की फिल्म दो आँखें बारह हाथ को दो अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे . झनक झनक पायल बाजे के लिए बेस्ट निर्देशक का फिल्मफेयर अवार्ड भी उन्हें मिला है


शांताराम की प्रमुख हिंदी फ़िल्में - .


अभिनय के लिए - दो आँखें बारह हाथ , स्त्री , डॉ कोटनिस की अमर कहानी , सुबह का तारा , परछाईयाँ आदि


निर्माता - तीन बत्ती चार रास्ता , सेहरा , दो आँखें बारह हाथ ,नवरंग , गीत गाया पत्थरों ने , जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली आदि


निर्देशक - उन्होंने करीब 51 फिल्मों का निर्देशन भी किया है जिनमें पिंजरा , बूँद जो बन गयी मोती , शकुंतला ,दहेज़ , सुबह का तारा , सेहरा , तूफ़ान और दिया , नवरंग आदि फ़िल्में हैं .

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Part - 3


देविका रानी

जन्म - 30 मार्च 1908 , वाल्टेयर , मद्रास रेजीडेंसी , ब्रिटिश इंडिया


मृत्यु - 9 मार्च 1994 , बंगलुरु


बर्थ नेम - देविका रानी चौधरी


स्क्रीन नेम - देविका रानी


आरम्भिक जीवनी - देविका रानी का जन्म बंगाल के धनी परिवार में हुआ था . वे रवींद्र नाथ टैगोर की परपोती थीं . 1920 में स्कूलिंग के बाद नाटक और संगीत पढ़ने के लिए वे रॉयल अकेडमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट , इंग्लैंड गयीं . वहीँ एक फिल्म के निर्माण के दौरान हिमांशु राय से उनकी मुलाक़ात हुई . हिमांशु एक भारतीय थे जो वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए थे पर बाद में फिल्म उद्योग में आये . 1929 में दोनों का विवाह हुआ . कुछ दिनों बाद जर्मनी के एक विख्यात स्टूडियो से फिल्म “ ए थो ऑफ़ डाइस “ के निर्माण के लिए हिमांशु को निमंत्रण मिलने पर देविका पति के साथ वहां गयीं . उन्होंने भी पति के साथ फिल्म जगत में प्रवेश किया हालांकि इस फिल्म में उनकी भूमिका कॉस्ट्यूम डिज़ाइन और आर्ट डायरेक्शन की थी .


फ़िल्मी सफर - उन दिनों भारत में बोलती फ़िल्में बनने लगी थीं . हिमांशु अब अपने देश में फिल्म बनाना चाहते थे . देविका पति के साथ भारत आयीं और फिल्म “ कर्मा “ में उन्होंने अपनी एक्टिंग की शुरुआत उनकी नायिका बन कर की . कर्मा भारत में बनी पहली अंग्रेजी फिल्म थी . इस फिल्म में देविका ने एक अंग्रेजी गाना गाया था जो किसी भारतीय द्वारा गाये जाने वाला पहला इंग्लिश गाना था . इस फिल्म में भारतीय सिनेमा का पहला किसिंग सीन भी था जो सबसे ज्यादा लम्बा सीन भी रहा है - 4 मिनट का . इस फिल्म को इंग्लैंड और यूरोप में सफलता मिली थी . इस फिल्म का हिंदी संस्करण “ नागन की रागिनी “ में भी वैसा ही किसिंग सीन था . यह फिल्म भारत में सफल नहीं हुई पर भारत और इंग्लैंड दोनों देशों में उनकी सुंदरता की काफी चर्चा हुई . उन्हें फर्स्ट लेडी ऑफ़ इंडियन सिनेमा भी कहा जाता है .


बॉम्बे टॉकीज - 1934 में हिमांशु ने जर्मन तकनीक और मशीनों की मदद से तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म स्टूडियो की स्थापना की . बॉम्बे टॉकीज की पहली फिल्म “जवानी की हवा “ 1935 में बनी जिसमें देविका रानी नायिका थीं और नजल उल हसन नायक . बॉम्बे टॉकीज ने अशोक कुमार , दिलीप कुमार , राज कपूर , लीला चिटनीस , मधुबाला आदि महान कलाकारों को लांच किया . अछूत कन्या , मेला , शहीद , किस्मत आदि अपने ज़माने की मशहूर फिल्मों का निर्माण यहीं हुआ था .


नजल के साथ उनकी दूसरी फिल्म “ जीवन नैया “ बन रही थी . कहा जाता है कि फिल्म निर्माण के बीच में ही नजल से उनकी नजदीकियां बढ़ीं और दोनों फिल्म को अधूरा छोड़ कर भाग गए . इसके चलते हिमांशु नाराज हुए थे और साथ में बॉम्बे टॉकीज को काफी हानि हुई . कुछ दोस्तों की मध्यस्थता के बाद देविका सशर्त वापस आयीं पर दोनों के बीच रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे थे . 1940 में हिमांशु का देहांत हो गया .


वैधव्य और फिल्मों से सन्यास


पति के मरणोपरांत शशधर मुखर्जी और अमिय चक्रवर्ती के साथ देविका ने बॉम्बे टॉकीज का कार्यभार संभाला . अशोक कुमार के साथ उन्होंने अनजान , बसंत और किस्मत में भी काम किया . 1943 में उनकी अंतिम फिल्म ” हमारी बात “ थी जिसमें राज कपूर का भी कुछ रोल था . 1944 में फिल्म “ ज्वार भाटा “ के लिए उन्होंने दिलीप कुमार को चुना था .


बाद में अशोक कुमार और शशधर ने कुछ विवादों के चलते देविका से अलग हो कर अपना अलग स्टूडियो “ फिल्मिस्तान “ की स्थापना की . इसके कुछ दिनों बाद ही देविका ने फिल्मों से सन्यास ले लिया और एक रूसी पेंटर स्वेतोस्लाव रॉयरिक से शादी कर ली .


पुरस्कार


1958 में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था .1970 में फिल्म जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहेब फाल्के पुरस्कार को पहली बार मिलने का श्रेय देविका के नाम है .


प्रमुख फ़िल्में - उपरोक्त फिल्मों के अतिरिक्त सावित्री , इज्जत , ममता और मियां बीबी , जीवन प्रभात , प्रेमकहानी , निर्मला , वचन , दुर्गा और जन्म भूमि उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं . लगभग 29 फिल्मों के निर्माण में उनका योगदान रहा है .

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Part 4 - अशोक कुमार

जन्म - 13 अक्टूबर 1911 , भागलपुर तत्कालीन , ब्रिटिश बंगाल प्रेसिडेंसी ( अब बिहार )

मृत्यु - 10 दिसंबर 2001 , मुंबई

बर्थ नेम - कुमुदलाल गांगुली

स्क्रीन नेम - अशोक कुमार

( अशोक कुमार को सभी भाई बहनों में सबसे बड़े होने के कारण प्यार से दादामुनि कहा जाता था . उनके दोनों छोटे भाई कल्याण ( अनूप कुमार ) और आभास ( किशोर कुमार ) भी फिल्म जगत में थे .)


प्रारम्भिक जीवन


अशोक कुमार कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से कानून की पढाई कर रहे थे . पर उनका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था . उनका झुकाव फिल्मों की ओर था . उनके निकट संबंधी शशिधर मुख़र्जी उन दिनों बॉम्बे टॉकीज में थे . बॉम्बे टॉकीज उस समय का एक बड़ा और मशहूर स्टूडियो था . वहां उन्होंने लेबोरेट्री सहायक के रूप में काम शुरू किया .


फ़िल्मी सफर


अशोक कुमार का फिल्मों में आना एक इत्तफाक था . बॉम्बे टॉकीज के मुखिया हिमांशु राय थे . 1936 में फिल्म ” जीवन नैया “ का निर्माण चल रहा था . अचानक किसी विवाद वश फिल्म के नायक के अनुपस्थित रहने के कारण अशोक कुमार को यह रोल मिला . इस फिल्म की नायिका उस समय की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी थीं . एक्टिंग के आरम्भ में उन्हें काफी संकोच हो रहा था . इस फिल्म के बाद उन्होंने देविका रानी के साथ दूसरी फिल्म “ अछूत कन्या “ की जो सुपरहिट हुई थी . इसके बाद देविका रानी के साथ कुछ और फ़िल्में की . अभी तक उनकी अपनी पहचान ठीक से नहीं बन सकी थी , वे देविका रानी के हीरो कहलाते थे . देविका के साथ उनकी अंतिम फिल्म “ अंजान “ के पिट जाने के बाद यह जोड़ी टूट गयी .


इसके बाद अशोक कुमार ने लीला चिटनिस के साथ कई सफल फ़िल्में की . लीला भी उनसे सीनियर आर्टिस्ट थीं . लीला के साथ सुपरहिट फिल्म झूला ( 1941 ) के बाद हिंदी फिल्म जगत में वे काफी लोकप्रिय हो गए . 1960 तक उन्होंने तत्कालीन लगभग सभी लोकप्रिय अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के साथ काम किया और अनेकों फ़िल्में सुपरहिट हुई थीं .


प्रौढ़ावस्था में 1960 से अशोक कुमार ने चरित्र अभिनेता के रूप में दमदार एक्टिंग शुरू की और 1980 तक इसमें काफी सफल रहे थे . 1980 और 1990 के बीच भी उन्होंने कुछ फ़िल्में की . 1997 की “ आँखों में तुम हो “ उनकी अंतिम फिल्म थी . उन्होंने 275 से अधिक फिल्मों में काम किया है . कुछ बंगाली फिल्मों में भी उन्होंने अभिनय किया है .


अभिनय के अलावा अशोक कुमार पेंटर और अच्छे होमियोपैथ डॉक्टर भी थे .


90 वर्ष की आयु में मुंबई में हार्ट फेल होने से उनकी मृत्यु हो गयी . उनकी सभी फिल्मों का नाम लेना तो कठिन होगा .


उनकी प्रमुख फ़िल्में


30 के दशक में अछूत कन्या ,जन्मभूमि , 40 के दशक में बंधन ,झूला , किस्मत ,गृहस्थी ,महल आदि , 50 के दशक में दशक में परिणीता , भाई भाई ,चलती का नाम गाडी , हावड़ाब्रिज आदि , क़ानून ,,60 के दशक में आरती ,राखी ,गुमराह ,भींगी रात ,चित्रलेखा ,ज्यूवेल्थीफ ,आशीर्वाद,इंतकाम आदि , 70 के दशक में

विक्टोरिया नंबर . 203 ,छोटी सी बात आदि 1980 में खूबसूरत , 90 के दशक में शौक़ीन , संग्राम आदि


पुरस्कार -- अशोक कुमार को चार बार फिल्मफेयर अवार्ड , एक बार नेशनल अवार्ड , संगीत नाटक अकादेमी अवार्ड के अतिरिक्त अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है . भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया है . इनके अतिरिक्त दर्जनों अवार्ड्स उन्हें विभिन्न संस्थाओं से मिले हैं .

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Part 5 - पृथ्वी राज कपूर



जन्म - 3 नवंबर 1906 , समुंद्री -फैसलाबाद , ब्रिटिश इंडिया ( अब पाकिस्तान )

मृत्यु - 29 मई 1972 , मुंबई

प्रारम्भिक जीवन


पृथ्वीराज कपूर ब्रिटिश शासन के दौरान पेशावर में पुलिस अफसर थे . उन्हें शुरू से ही रंगमंच से लगाव था . वे लायलापुर और पेशावर में नाटकों में भाग लेते थे .


फ़िल्मी सफर


1928 में पृथ्वीराज बॉम्बे ( अब मुंबई ) आये और इम्पीरियल फिल्म कंपनी ज्वाइन किया . मूक फिल्म “ दो धरी तलवार “ फिल्म में उनका मामूली सा रोल था लेकिन 1929 की फिल्म “ कॉलेज गर्ल “ में उन्हें लीड रोल मिला था . नौ मूक फिल्मों में काम करने के बाद 1931 की भारत की पहली बोलती सिनेमा “ आलम आरा “ में उन्होंने अभिनय किया है . 1941 की सोहराब मोदी की फिल्म “ सिकंदर “ में उनका रोल अत्यंत सराहनीय रहा था .


1944 में उन्होंने अपना थियेटर “ पृथ्वी थियेटर “ बनाया जो देश में घूम घूम कर नाटक किया करता था . वे अपने नाटकों द्वारा देश के युवकों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते थे . उनका एक नाटक “ पठान “ का करीब 600 शो हुआ था .


पृथ्वीराज बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे . वे अभिनेता , निर्माता , निर्देशक और लेखक थे . हिंदी के अतिरिक्त उन्होंने मशहूर पंजाबी फ़िल्में भी बनायीं हैं . उनकी पंजाबी फिल्म “ नानक नाम जहाज है “ ( 1969 ) की टिकट के लिए दो किलोमीटर से ज्यादा लम्बी कतार थी . उन्होंने 1971 की कन्नड़ फिल्म “ साक्षात्कार “ में भी अभिनय किया है


1960 की फिल्म “ मुग़ल ए आज़म “ में उनका अभिनय अविस्मरणीय रहा है . 1971 में उनकी फिल्म “ कल आज और कल “ में स्वयं बेटे राज कपूर और पोते रणधीर कपूर के साथ तीन पीढ़ियों की कहानी दिखाई है .


वे आठ साल तक राज्य सभा के मनोनीत सदस्य भी रहे हैं . 29 मई 1972 को मुंबई में उनका देहांत हुआ .


पुरस्कार .


पृथ्वीराज कपूर को संगीत नाटक अकादमी का पुरस्कार मिला है . इसके अतिरिक्त उन्हें पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है . उनके नाम से भारतीय डाक ने टिकट जारी किया है .


प्रमुख फ़िल्में


उपरोक्त फिल्मों के अतिरिक्त उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं - सीता , मिलाप , दुश्मन , विद्यापति , आनंदमठ , आवारा , परदेसी , रुस्तम सोहराब , दहेज़ , ग़ज़ल , ज़िन्दगी , जानवर आदि


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PART 6 - बलराज साहनी


जन्म - 1 मई 1913 , रावलपिंडी , ब्रिटिश इंडिया ( अब पाकिस्तान )

मृत्यु - 13 अप्रैल 1973 , मुंबई

बर्थ नेम - युधिष्ठिर साहनी

स्क्रीन नेम - बलराज साहनी


प्रारम्भिक जीवन


बलराज साहनी ने गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से अंग्रेजी में एम . ए . किया था . साथ ही हिंदी में भी स्नातक की डिग्री ली थी . 1930 में वे अपनी पत्नी दयमंती के साथ रवींद्र नाथ टैगोर के विश्व भारती , शांतिनिकेतन, बंगाल आये थे . यहाँ पर साहनी अंग्रेजी और हिंदी पढ़ाया करते थे . उनकी पत्नी वहां स्नातक कर रही थीं .


बलराज साहनी 1938 में करीब एक साल गांधीजी के सम्पर्क में रहे थे . गांधीजी के सहयोग से अगले साल वे इंग्लैंड गए . वहां वे BBC की हिंदी सेवा में अनाउंसर रहे . 1943 में वे भारत लौट आये .


साहनी को भाषा से लगाव था . वे एक अच्छे लेखक और कवि भी थे . वे अंग्रेजी और पंजाबी में लिखा करते थे . 1936 में उन्होंने पहली किताब “ शाहजादों का ड्रिंक “ लिखी थी . अपनी पाकिस्तान यात्रा के बाद उन्होंने

“ मेरा पाकिस्तानी सफर “ ; रूस की यात्रा के बाद “ मेरा रूसी सफरनामा “ और अपनी आत्मकथा “ मेरी फ़िल्मी आत्मकथा “ पुस्तकें भी लिखी हैं . वे विख्यात लेखक भीष्म साहनी के भाई थे . वे आल इंडियन यूथ फेडरेशन के पहले प्रेसिडेंट भी चुने गए थे . साहनी रंगमंच से भी जुड़े थे .


फ़िल्मी सफर


1951 में देव आनंद की फिल्म “ बाज़ी “ कहानी बलराज साहनी ने लिखी थी . 1946 की फिल्म “ इन्साफ “ उनकी पहली फिल्म थी . इसी वर्ष की फिल्म “धरती का लाल “ में उनकी पत्नी नायिका थीं . उनका अभिनय बहुत दमदार और स्वाभाविक होता था . सामजिक एवं पारिवारिक फिल्मों में उनका अभिनय उत्कृष्ट होता था .


आरम्भ में फिल्मों में वे तत्कालीन मशहूर अभिनेत्रियों - नरगिस , पद्मिनी , मीना कुमारी , वैजयंतीमाला , लीला नायडू , नूतन के साथ लीड रोल में रहे थे . उसके बाद अनेकों फिल्मों में उन्होंने सफल चरित्र अभिनेता का रोल अदा किया है . बलराज साहनी ने करीब 103 फिल्मों में अभिनय किया है . उनकी फिल्म “ दो बीघा जमीन “ को कांन्स अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार मिल चुका है .


13 अप्रैल 1973 को हृदय गति रुक जाने से उनका निधन हो गया था .


प्रमुख फ़िल्में - बलराज साहनी की प्रमुख फ़िल्में हैं - राही , दो बीघा जमीन , गरम हवा , परदेसी , भाभी , लाजवंती , घर संसार ,छोटी बहन , सीमा , सट्टा बाजार , अनुराधा , काबलिवाला , हकीकत , अनपढ़ , वक़्त , भाभी की चूड़ियाँ , आये दिन बहार के , एक फूल दो माली ,हमराज , नीलकमल , इज्जत , तलाश , दो रास्ते , घर घर की कहानी , हिदुस्तान की कसम , बंटवारा , शादी आदि


सम्मान - भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से पुरस्कृत किया है और उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया है . बलराज साहनी को सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया है .


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PART 7 - ललिता पवार


जन्म - 18 अप्रिल 1916 , नासिक महाराष्ट्र

मृत्यु - 24 फ़रवरी , 1998 , औंध ( पुणे के निकट )

बर्थ नेम - अम्बा लक्ष्मण राव सगुन

स्क्रीन नेम - ललिता पवार

प्रारम्भिक जीवन


ललिता पवार के पिता सिल्क और सूती कपड़ों के व्यापारी थे . ललिता पवार ने नौ साल की उम्र में 1928 में फिल्म “ राजा हरिश्चंद्र “ में पहली बार अभिनय किया था . पहले पति के ललिता पवार की बहन के साथ रिश्ते के चलते यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली . बाद में उन्होंने निर्माता राज प्रकाश गुप्ता से शादी की थी .


फ़िल्मी सफर


ललिता 1932 की मूक फिल्म ” कैलाश “ की सहनिर्माता और 1938 की टॉकिंग फिल्म “ दुनिया क्या है “ की निर्माता रही हैं .


कहा जाता है कि 1942 में “ जंग ए आज़ादी “ की शूटिंग के दौरान एक्टर मास्टर भगवान को उन्हें एक दृश्य में चाँटा मारना था . उस समय भगवान नए थे , उन्होंने गलती से ललिता के गाल पर इतनी जोर से चांटा मारा कि उनके चेहरे में लकवा मार दिया और एक आँख में काफी चोट आयी थी . करीब तीन साल के उपचार के बाद वे ठीक हुईं , पर उनकी बायीं आँख में स्थायी खराबी आ गयी थी . इसके चलते उन्हें लीड रोल मिलना संभव न था . पर सपोर्टिंग रोल , चरित्र रोल या खलनायिका के रूप में उन्हें काफी रोल मिले जिनमें उन्हें काफी सफलता और प्रशंसा मिली . उन्हें बॉलीवुड की सास भी कहा जाता था क्योंकि उन्होंने सास का रोल अनेकों फिल्मों में किया था .


ललिता पवार ने अपने फ़िल्मी कैरियर में 700 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है . हिंदी के अतिरिक्त उन्होंने मराठी और गुजराती फिल्मों में भी अभिनय किया है . “ अनाड़ी “ , “ श्री 420 “ , “ मिस्टर एंड मिसेज 55 “ और रामानंद सागर के “ रामायण “ टी वी सीरियल में उनका मंथरा का रोल अविस्मरणीय हैं .


1982 की “ उत्तर दक्षिण “ उनकी अंतिम फिल्म थी . 24 फ़रवरी 1998 को उनका निधन हो गया था .


पुरस्कार -उन्हें एक फिल्मफेयर अवार्ड और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है .


ललिता की कुछ अन्य प्रमुख फ़िल्में - दहेज़ , दाग ( पुरानी ) , नौ दो ग्यारह , सुजाता , हमदोनों , प्रोफ़ेसर , गृहस्थी , जिस देश में गंगा बहती है , दूरी , , मालामाल , शेरनी , घर संसार , खानदान , नसीब , सौ दिन सास के , तपस्या , बहूरानी , ज़लज़ला , आईना , गोपी आदि

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PART 8 - प्राण


जन्म - दिल्ली , 12 फ़रवरी 1920

मृत्यु - मुंबई , 12 जुलाई 2013

बर्थ नेम - प्राण कृष्ण सिकंद

स्क्रीन नेम - प्राण


प्राण का जन्म दिल्ली , तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया दिल्ली , में हुआ था . 1940 से 1990 तक ज्यादातर खल नायक या चरित्र रोल में उनका काफी दबदबा रहा था . 40 के दशक में कुछ फिल्मों में नायक की भी भूमिका अदा की थी . उन्होंने 1990 से 2007 के बीच में कुछ फिल्मों में सहनायक या चरित्र अभिनेता का रोल किया है .


प्रारंभिक जीवन


प्राण का जन्म एक धनी परिवार में हुआ था .उनके पिता एक सिविल इंजीनियर और सरकारी ठेकेदार थे .इसलिए उनका काम अलग अलग जगहों पर होता था . प्राण की स्कूली पढ़ाई उत्तर प्रदेश और पंजाब के शहरों में हुई .दिल्ली की एक कंपनी में उन्होंने फ़ोटोग्राफ़र की नौकरी ज्वाइन की थी .एक बार शिमला में हुए रामलीला में उन्हें सीता का रोल मिला था जबकि मदनपुरी को राम का रोल था .


फ़िल्मी सफर

1940 में दलसुख पंचोली की एक पंजाबी फिल्म “ यमला यट “ में उन्हें पहला ब्रेक मिला था .इसमें उन्हें नूर जहाँ और दुर्गा खोटे के साथ काम किया है . पंचोली ने 1942 में प्राण को पहली हिंदी फिल्म “ खानदान “ में कास्ट किया था .

देश के विभाजन के पहले लाहौर में उन्होंने 22 फिल्मों में काम किया था .विभाजन के दौर में उनकी कुछ फ़िल्में खटाई में लटक गयी थीं . तराश ( 1951 ) और खानाबदोश ( 1952 ) में सिर्फ पकिस्तान में प्रदर्शित हुई थीं .बँटवारे के बाद वे बॉम्बे ( अब मुंबई ) चले आये जहाँ कुछ दिनों तक मैरीन ड्राइव के होटल में काम करना पड़ा था .


1948 में उन्हें बॉलीवुड में पहला काम देव आनंद और कामिनी कौशल की फिल्म “ जिद्दी “ में मिला . यह फिल्म हिट रही थी .इसके बाद बतौर खलनायक उन्होंने बॉलीवुड में अपना स्थान बना लिया था , उसी समय की .उनकी फिल्म “ गृहस्थी “ ने डायमंड जुबिली मनाई थी .

प्राण ने अपने जीवन काल में अनेकों प्रसिद्द कलाकारों के साथ खलनायक या चरित्र अभिनेता का रोल अदा किया है .अपने ज़माने के दिग्गज हीरो रहे राज कपूर , देव आनंद , दिलीप कुमार , राजेंद्र कुमार , शम्मी कपूर के साथ उन्होंने काम किया है और उनका कद किसी हीरो से कम नहीं रहा था .कुछ फिल्मों में प्राण ने खलनायक के साथ कॉमेडी भी की है - “ कश्मीर की कली “ और “ पूजा के फूल “ . पीपली साहब और हलाकू में तो वे मुख्य भूमिका में रहे थे . कहा जाता है कि फिल्म “ जंजीर “ में अमिताभ बच्चन को रोल उनके कहने पर मिला था . इस फिल्म ने अमिताभ को स्टार बना दिया और प्राण की भूमिका भी अविस्मरणीय रही थी . उन्होंने 1991 में स्वयं एक फिल्म “ लक्ष्मणरेखा “ का निर्माण किया था .

प्राण ने लगभग 350 फ़िल्में की हैं . उन्होंने एक बंगाली फिल्म “सोनाये दीघे “ में भी काम क्या है .

प्राण की प्रमुख फ़िल्में

,प्राण की प्रमुख फ़िल्में रही हैं - 40 के दशक में बड़ी बहन , खानदान , ज़िद्दी ; 50 के दशक में , कुंदन , मुनीमजी , आज़ाद, चोरी चोरी ,हलाकू , देवदास , मधुमती , 60 के दशक में जिस देश में गंगा बहती है , काश्मीर की कली , राजकुमार , मेरे सनम , शहीद , गुमनाम , दिल दिया दर्द लिया और लव इन टोक्यो , पत्थर के सनम , राम और श्याम , उपकार , मिलन , सफर , ब्रह्मचारी आदि , 70 के दशक में डॉन , अमर अकबर एंथोनी , जॉनी मेरा नाम , पूरब पश्चिम , जंजीर , बॉबी आदि , 80 के दशक में दोस्ताना , कालिया , नसीब , सौतन , शराबी आदि, 90 के दशक में मृत्युदाता , 1942 ए लव स्टोरी आदि .

पुरस्कार

प्राण अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया है जिनमें पांच फिल्मफेयर अवार्ड , और दादा साहब फाल्के अवार्ड मुख्य हैं . भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा है . इनके अतिरिक्त दर्जनों अवार्ड्स उन्हें विभिन्न संस्थाओं से मिले हैं .


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PART . 9 - शंकर जयकिशन

नाम - शंकर सिंह राम सिंह , जन्म - 15 अक्टूबर 1922 , स्थान - हैदराबाद

मृत्यु - 26 अप्रैल 1987 , मुंबई

नाम - जयकिशन दयाभाई पंचाल , जन्म - 4 नवंबर 1929 , स्थान - वंशदा , गुजरात

मृत्यु - 12 सितम्बर 1971 , मुंबई


बॉलीवुड के महान और सदाबहार संगीतकार की जोड़ी शंकर - जयकिशन को कौन भूल सकता है . 50 से 70 तक के दो दशकों में उनके गाने लाखों नहीं बल्कि करोड़ों की पसंद थी .इस दौरान इन्होंने सैकड़ों सदाबहार अमर गानों की धुन बनाई थी जो आज भी सभी उम्र के लोगों की जबान पर हैं .हालांकि इसके बाद भी इस जोड़ी की फ़िल्में आती रहीं थी , पर 1971 में जयकिशन की मृत्यु के बाद यह उतना कामयाब नहीं रही .


शंकर सिंह रघुवंशी का जन्म 1922 में हैदराबाद ( आज का तेलंगाना )राज्य में हुआ था जाबकि जयकिशन दयाभाई पांचाल का जन्म वांसदा , गुजरात में 1929 में हुआ था . .दोनों ने संगीत की शिक्षा ली थी .शंकर तबला और जयकिशन हारमोनियम में माहिर थे . दोनों काम और अच्छे भविष्य की खोज में मुम्बई पहुँचे थे . शंकर ने कुछ दिन सत्यनारायण और हेमावती के थिएटर में काम किया . फिर पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर में तबलावादक थे , वहां उन्हें नाटक में कुछ छोटे मोटे रोल्स भी मिले .तब संगीतकार हुस्नलाल भगतराम के सहायक का काम भी किया .

पृथ्वी थिएटर में ही शंकर की मुलाकात जयकिशन से हुई थी . उनकी मदद से जयकिशन को थिएटर में हारमोनियम बजाने का काम मिल गया था . दोनों ने संगीत के अतिरिक्त कुछ नाटक में भी काम किया जिसमें उस समय का मशहूर नाटक " पठान " भी था .पृथ्वी थिएटर में ही उनकी मुलाक़ात राज कपूर से हुई जो उस समय निर्देशक केदार शर्मा के सहायक के रूप में काम करते थे . पर राज खुद ऐक्टर , डायरेक्टर बनना चाहते थे . जब राज कपूर ने 1948 में अपनी पहली फिल्म " आग " बनाई तो उसमें शंकर जयकिशन को संगीतकार राम गांगुली के सहायक का काम मिला था . यहीं से इस जोड़ी ने फिल्मों में संगीत निर्देशन का काम शुरू किया था .

पर राज कपूर जब अपनी अगली फिल्म " बरसात " बनाने जा रहे थे तो किन्ही कारणों से वे गांगुली को संगीतकार न चुन कर शंकर जयकिशन को यह काम दिया .इस फिल्म के गीत जबरदस्त सुपरहिट हुए थे . यहाँ से अब शंकर जयकिशन को पीछे मुड़ कर देखने की जरुरत नहीं रही .बल्कि फिल्म इंडस्ट्री में राज कपूर , शंकर जयकिशन , गायक मुकेश व गीतकार शैलेन्द्र एवं हसरत जयपुरी का नाम एक साथ जुट गया था .

कहा जा सकता है कि शंकर जयकिशन की जोड़ी ने ही फिल्मों में ऑर्केस्ट्रा की शुरुआत की .गाने के आरम्भ में ऑर्केस्ट्रा द्वारा गीत के मुताबिक एक वातावरण तैयार करते थे . दोनों अपने अपने गीतों के धुन अलग तैयार करते थे .शंकर ज्यादातर नृत्य , टाइटल और थीम सॉन्ग पर काम करते थे जबकि जयकिशन बैकग्राउंड और रोमांटिक गाने .पर दोनों के बीच एक मौखिक एग्रीमेंट था कि कोई भी धुन हो नाम दोनों की जोड़ी का ही होगा .इस संगीत निर्देशक की जोड़ी ने लगभग दो सौ से ज्यादा फिल्मों में संगीत दिया और ज्यादातर गाने सुपरहिट हुए .

1949 -1959 के दशक और उसके बाद भी कुछ साल तक ब्लैक एंड वाइट का ज़माना था. इस काल में शंकर जयकिशन ने दर्जनों फिल्मों में संगीत दिया था - बरसात , आवारा ,आह , पतिता , शिकस्त , श्री 420 , बसंत बहार, ,राजहठ ,नई दिल्ली , चोरी चोरी , अनारी, दाग ,छोटी बहन, ,सीमा , उजाला , असली नक़ली ,जिस देश में गंगा बहती है ,जब प्यार किसी से होता है ,दिल अपना और प्रीत पराई आदि .पर सब का नाम लेना कठिन होगा .रंगीन फिल्मों के दौर में भी उनकी सफलता बरक़रार रही थी .जंगली ,प्रोफेसर , लव इन टोक्यो ,सूरज ,राजकुमार , संगम ,ब्रह्मचारी ,अंदाज़, पहचान ,मेरा नाम जोकर आदि फिल्मों में उनके संगीत की प्रसंशा हुई थी .इनके संगीत की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगी .इनके कुछ गीत ' मेरा जूता है जापानी ...., आवारा हूँ ...." तो रूस में आज भी लोकप्रिय हैं . उनदिनों अमीन सायनी द्वारा प्रस्तुत लोकप्रिय प्रोग्राम " बिनाका गीतमाला " में उनके गीत छाये रहते थे .शंकर जयकिशन की जोड़ी को नौ फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था .इन फिल्मों के नाम हैं - चोरी चोरी , अनारी , दिल अपना और प्रीत पराई ,प्रोफेसर , सूरज , ब्रह्मचारी ,पहचान ,मेरा नाम जोकर और बेईमान .इस रिकॉर्ड को हॉल ही में ए .आर .रहमान तोड़ सके हैं .इसके अतिरिक्त भी उन्हें और पुरस्कार मिले हैं जैसे सुर श्रृंगार , बंगाल फिल्म एसोसिएशन अवार्ड आदि .भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था .

कुछ लोगों का कहना था कि यह जोड़ी सिर्फ रोमांटिक गाने की धुन बनाती है .पर उनके संगीत में शास्त्रीय संगीत और पश्चिमी ऑर्केस्ट्रा का मिश्रण भी था .उनकी कोशिश होती थी कि फिल्म में एक शास्त्रीय धुन पर आधारित गीत हो और जहाँ इसकी गुंजाइश हो वे ऐसा मौका नहीं छोड़ते थे . ऐसे गीतों की भी सूची लम्बी है मसलन
झनक झनक तोरी बाजे .......फिल्म मेरे हुज़ूर
छम छम बाजे रे पायलिया. ...फिल्म जाने अनजाने
राधिके तूने बंसरी बजाई ........फिल्म बेटी बेटे
मनमोहना बड़े झूठे ................फिल्म सीमा
कोई मतवाला आया मेरे .........फिल्म लव इन टोक्यो
अजहू ना आये बालमा ...........फिल्म सांझ और सवेरा
रे मन सुर में गा ....................फिल्म लाल पत्थर
आदि अनेक ऐसे गाने हैं .


इसके अलावा भी बूट पॉलिश ,जिस देश में गंगा बहती है , मयूर पंख , बसंत बहार ,मेरा नाम जोकर ,आम्रपाली आदि फिल्मों में भी अच्छे शास्त्रीय धुनें हैं .

भारत में जाज ( jazz ) म्यूजिक के प्रयोग में उनका उल्लेखनीय योगदान है .उनका एक एल्बम " राग जाज स्टाइल " इंडो जाज म्यूजिक का एक उत्तम उदाहरण है .

कुछ लोगों का कहना है कि शंकर और जयकिशन के बीच आगे चल कर कुछ मतभेद हो गए थे . पर कुछ इसे मीडिया की देन बताते हैं तो कुछ विरोधी खेमे की चाल .1971 में जयकिशन की मृत्यु हो गयी थी . ज्यादा शराब पीने से उनका लिवर ख़राब हो गया था . इसके बाद भी शंकर ने शंकर जयकिशन जोड़ी के नाम से फिल्मों में संगीत दिया है .इस जोड़ी की लोकप्रियता का अंदाज़ इस बात से लगा सकते हैं .

जयकिशन प्रायः मुंबई के गेलॉर्ड रेस्टोरेंट में जा कर एक टेबल पर बैठते थे .उसके मालिक ने उनकी मृत्यु के एक महीने बाद पर उस टेबल पर " रिजर्व्ड फॉर जयकिशन " 8बोर्ड लगा रखा था .

बाद में 1987 में शंकर की भी मृत्यु हो गयी थी .पर विडंबना यह कि फिल्म इंडस्ट्री या मीडिया का ध्यान शायद ही इस घटना पर गया हो .उनको अंतिम विदाई देने वाले गिने चुने लोग थे- उनके सम्बन्धी और कुछ मित्र .शंकर जयकिशन तो नहीं रहे , पर उनके बनाए पुराने धुन आजकल भी लोकप्रिय हैं और आने वाले लम्बे समय तक भी लोगों की पसंद होगी .

नोट - बॉलीवुड में और भी दर्जनों संगीतकार हुए हैं - नौशाद , सी रामचंद्र , सचिन और उनके पुत्र राहुल बर्मन, चित्रगुप्त , ओ पी नैय्यर , मदन मोहन , रवि ,खैय्याम , सलिल चौधरी आदि . फिलहाल इस श्रृंखला में उनके बारे में नहीं लिखा जा सका है .

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PART 10 - मुकेश

जन्म - 22 जुलाई 1923 , दिल्ली

मृत्यु - 27 अगस्त 1976 , डेट्रॉयट , अमेरिका

बर्थ नेम - मुकेश चंद माथुर

स्क्रीन नेम - मुकेश

मुकेश का जन्म दिल्ली के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था . वे आगे चलकर लोकप्रिय पार्श्व गायक बने और उनके गाने आज भी उतने ही प्रिय हैं .


प्रारम्भिक जीवन - अपने दूर के रिश्तेदार व तत्कालीन मशहूर अभिनेता मोतीलाल की नज़र में मुकेश पहली बार आये जब उन्होंने मोतीलाल की बहन की शादी के अवसर पर गीत गाया या था .मोतीलाल उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए.उन्होंने मुकेश को मुंबई ( तब बॉम्बे ) आने को कहा .मोतीलाल ने उन्हें तत्कालीन गायक जगन्नाथ प्रसाद के पास गायन सीखने के लिए भेजा .


फ़िल्मी सफर


मुकेश ने पहले अभिनय में भाग्य आजमाना चाहा और फिल्म " निर्दोष " में 1941 में उन्होंने अभिनय किया , पर यह फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हुई थी . इसके बाद 1945 में बनी फिल्म " पहली नज़र " में मोतीलाल पर उनका एक गीत " दिल जलता है तो ...." अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में फिल्माया गया था .इस गाने को अपार सफलता मिली और मुकेश सुर्ख़ियों में आये .पर इस गाने को उन्होंने के .एल .सहगल के अंदाज़ में गया था फिर भी उसे काफी मिलती थी .


1946 में अपनी 23 वीं जन्म दिन के अवसर पर एक मंदिर में सरला त्रिवेदी के साथ उनकी शादी संपन्न हुई थी .सरला के पिता काफी धनी थे , वे इस शादी के विरुद्ध थे क्योंकि मुकेश के पास उस समय न घर था न आय के निश्चित श्रोत .


मुकेश ने अपनी खुद की पहचान 1949 की फिल्म " अंदाज़ " में बनायीं .वे अपना पाँव बॉलीवुड में गायक के रूप में जमा चुके थे .मुकेश के कैरियर बनाने में शोमैन राज कपूर का भी योगदान रहा है .1948 की राज कपूर की फिल्म " आग " से लेकर 1978 की फिल्म " सत्यम शिवं सुंदरम " तक उन्होंने आर .के .फिल्म्स में अपनी आवाज दी .


इस बीच एक बार फिर मुकेश ने अभिनय में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश की थी - 1953 में " माशूका " और 1956 में " अनुराग " में .भाग्य ने इस बार भी उन्हें बुरी तरह निराश किया .इन फिल्मों की असफलता के चलते वे आर्थिक रूप से बुरी तरह से टूट चुके थे .इस बीच गायन से दूर रहने से उनके पास गाने के ऑफर भी नहीं थे .स्थिति इतनी बुरी थी कि उनके बच्चों की फीस न दे सकने के कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था .


मुकेश ने सात फिल्मों में एक्टिंग की थी .राज कपूर की फिल्म " आह " के अंतिम दृश्यों में वे तांगेवाले के

रूप में नज़र आये थे .दो फिमों " अनुराग " और " मल्हार " का निर्माण भी किया था .अनुराग में वे संगीतकार भी थे . पर इन क्षेत्रों में उन्हें सफलता नहीं मिली थी .


1958 की फ़िल्में " यहूदी "और " मधुमती " के सुपरहिट गानों ने उन्हें शीर्ष गायक बना दिया .मुकेश ने 300 से अधिक फिल्मों में करीब 1300 गाने गाये हैं .इसके अतिरिक्त उनके कुछ गैर फ़िल्मी गीत , भजन और ग़ज़ल भी काफी लोकप्रिय रहे हैं .उनकी आवाज में एक अजीब सी गहराई और दर्द था .मुकेश ने अपने समय के सभी शीर्ष कलाकारों के लिए टॉप संगीतकारों के निर्देशन में आवाज दी है .22 जुलाई 1976 को मुकेश और सरला ने शादी की 30 वीं वर्षगांठ मनायी .इसके चार दिन बाद ही मुकेश एक कॉन्सर्ट के लिए लता मंगेशकर और अन्य कलाकारों के साथ अमेरिका रवाना हो गए .


27 अगस्त 1976 को अमेरिका के मिशिगन राज्य के डेट्रॉयट शहर में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था . उनकी मृत्यु के चलते बॉलीवुड के पार्श्व गायन में एक शून्य सा हो गया जिसकी पूर्ति करना अत्यंत कठिन था . मुकेश के पुत्र नितिन मुकेश ने कुछ प्रयास किया पर पिता की ऊंचाई तक का सफर उसके लिए सम्भव नहीं था .


पुरस्कार


मुकेश को छः बार सर्वश्रेष्ठ गायक के लिए फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया था जिनमें चार बार उन्हें ये अवार्ड मिले थे .उन्हें 1974 में " रजनीगंधा " के गाने " कई बार यूँ ही देखा है . ..." के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक (पुरुष ) का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था .

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PART 11 - देव आनंद


जन्म -26 सितंबर 1923 ,

शकरगढ़ , गुरुदासपुर , पंजाब ( ब्रिटिश इंडिया )

मृत्यु - 3 दिसम्बर 2011 , लंदन

बर्थ नेम - धरम देवदत्त पिशोरीमल आनंद

स्क्रीन नेम -देव आनंद


शुरूआती सफर - हिंदी फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड में देव आनंद को कौन नहीं जानता है , नए पुराने सभी कालाकार उन्हें जानते हैं. वे बॉलीवुड में देव साहब के नाम से जाने जाते थे . देव साहब का जन्म पंजाब में 26 सितम्बर 1923 को हुआ था . फिल्म में आने के पहले धर्म देवदत्त पिशोरीमल आनंद उनका नाम था .उनके पिता और बड़े भाई वहीँ वकालत करते थे .उन्होंने लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से इंग्लिश में बी .ए . किया था . उसके बाद लाहौर से बॉम्बे जाने वाली फ्रोंटियर मेल पकड़ कर बॉम्बे ( आज का मुंबई ) आ गए थे .देव साहब ने चर्चगेट में मिलिट्री सेंसर ऑफिस में नौकरी शुरू की थी .यहाँ विश्व युद्ध के समय पत्रों को पढ़ना पड़ता था .बाद में कुछ दिनों तक एक कंपनी में क्लर्क का भी काम किया था .पर उनका मन सिनेमा में अपनी किस्मत आजमाने को बेचैन था .उनके बड़े भाई चेतन आनंद पहले से ही फिल्म इंडस्ट्री में थे .

नौकरी छोड़ने के बाद उनके शुरूआती कुछ दिन काफी संघर्षमय और भाग दौड़ से भरे थे .1946 में प्रभात फिल्म्स के " हम एक हैं " में उन्हें पहला मौका मिला था . उसी दौरान उनकी मुलाकात गुरु दत्त से हुई थी. अपनी किताब " रोमांसिंग विथ लाइफ " में देव साहब ने लिखा है कि वे इस फिल्म की शूटिंग के लिए अपनी सबसे अच्छी शर्ट पहन कर जाने वाले थे .पर धोबी की गलती से उनकी और गुरु दत्त की शर्ट बदल गयी थी . गुरु दत्त फिल्म में कोरिओग्राफी कर रहे थे . दोनों एक दूसरे की कमीज को बहुत गौर से देर तक देखते रहे थे . बाद में दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे .देव साहब ने कहा अगर वे फिल्म बनाते हैं तो उन्हें अपनी फिल्म का निर्देशक बनाएंगे और गुरु दत्त ने भी वादा किया था कि अगर वे फिल्म बनाते हैं तो देव साहब को हीरो रखेंगे .देव साहब ने आगे चल कर अपनी फिल्म ' बाजी ' में उन्हें फिल्म निर्देशन का अवसर दिया था .गुरु दत्त ने भी 1956 में अपनी फिल्म C . I . D . में देव साहब को हीरो रखा था .

40 का दशक और रोमांस

40 के दशक के अंत में उस समय की मशहूर अभिनेत्री सुरैया के साथ देव साहब को कुछ फ़िल्में करने का मौका मिला था . इन फिल्मों की सफलता का श्रेय सुरैया को मिलता था जबकि वे खुद अपनी पहचान बनाना चाहते थे .इसी दौरान फिल्म ' विद्या ' की शूटिंग के समय एक नौका में वे सुरैया के साथ सवार थे .वह नाव डूबने लगी थी .देव साहब ने सुरैया को डूबने से बचाया था .तभी से दोनों एक दूसरे को बहुत चाहने लगे थे . यहाँ तक कि उन्होंने सुरैया को प्रपोज करते हुए हीरे की एक कीमती अंगूठी दी थी .उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सुरैया भी उनको उतना ही चाहती थी .उसकी माँ भी दोनों के रिश्ते के लिए तैयार थी , पर सुरैया की नानी की ज़िद के आगे सुरैया को झुकना पड़ा था . नानी गैर मुस्लिम से शादी के पक्ष में नहीं थी .अंत में सुरैया ने उस अंगूठी को अरब सागर में फेंक दिया था . इसके बाद दोनों कभी एक साथ फिल्म में नहीं दिखे और सुरैया ने आजीवन शादी नहीं की थी .

देव आनंद को मिला ब्रेक

1948 में लीजेंड अशोक कुमार ने बॉम्बे टॉकीज की “ ज़िद्दी " में कामिनी कौशल के हीरो के रूप में देव आनंद को एक बड़ा ब्रेक दिया था .इस फिल्म की अपार सफलता के बाद उन्होंने मुड़ कर कभी पीछे नहीं देखा था . इसी फिल्म में किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने पहली बार एक साथ गाया था .इसके बाद किशोर कुमार से भी उनकी अच्छी दोस्ती हो गयी थी और उनके काफी गाने किशोर ने गाये थे .

अपनी कंपनी नवकेतन फिल्म्स की स्थापना

1949 में देव साहब ने अपने बड़े भाई चेतन आनंद के साथ अपनी प्रोडक्शन कंपनी " नवकेतन " बनाई थी.

चेतन द्वारा निर्देशित पहली फिल्म ' नीचा नगर ' को 1946 में फ्रांस के " कांस " फिल्म फेस्टिवल में सर्वोत्तम विदेशी फिल्म का पुरस्कार भी मिला था . नवकेतन ने 1951 में फिल्म ' बाजी ' बनाई जिसमें देव आनंद की नायिका नयी अभिनेत्री कल्पना कार्तिक थी .अपने वादे के अनुसार फिल्म का निर्देशन देव साहब ने गुरु दत्त को दिया था . दरअसल चेतन आनंद शिमला में एक ब्यूटी कांटेस्ट् की विजेता मोना सिंह से मिले और उसको फिल्म की ऑफर दी थी .यही मोना सिंह फिल्मों में कल्पना कार्तिक बन कर आई थी .कल्पना के साथ देव साहब ने छः फ़िल्में की थी , लगभग सभी हिट थीं .1954 में उन्होंने कल्पना कार्तिक से शादी कर ली थी जो आजीवन उनकी पत्नी रही थी .

50 और 60 के दशक

50 वें और 60 वें दशक में उन्होंने एक से बढ़ कर एक हिट फ़िल्में दीं थी .इस दौरान मीना कुमारी , नूतन , वहीदा रहमान , मधुबाला , साधना, आशा पारिख ,माला सिन्हा ,वैजयंती माला, गीता बाली , नंदा आदि अभिनेत्रियों के साथ सुपरहिट फिल्म्स देते रहे थे . डायलॉग बोलने के अपने अलग अंदाज़ और अपने हेयर स्टाइल के लिए वे मशहूर थे .उनकी टोपी का और टाई बांधने का स्टाइल भी कुछ हट के था . उनकी फ़िल्में रोमांटिक हुआ करतीं थीं . वे अपने जमाने के सब से ज्यादा कीमती स्टार रहे थे . इस दौरान उनको दो फिल्मों के लिए सर्वोत्तम अभिनय का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था - 1958 की “ काला पानी “ और 1965 की “ गाइड “ के लिए . दोनों ही फ़िल्में नवकेतन की थीं और सुपरहिट हुईं थीं .

70 और 80 के दशक

इस दौरान भी देव साहब अनेक सफल फिल्मों में हीरो रहे थे .नयी नयी अभिनेत्रियों के साथ काम करते रहे

थे - ज़ीनत अमान , हेमा मालिनी , मुमताज , टीना मुनीम , राखी , शर्मिला टैगोर , सायरा बानो के साथ अनेकों हिट फिल्मों के वे नायक थे .कल्पना कार्तिक के अतिरिक्त देव साहब ने अनेक नए कलाकारों को लांच किया है और ब्रेक भी दिया है जो आगे चल कर काफी मशहूर हुईं - ज़ीनत अमान ,,मुमताज ,ज़रीना वहाब , टीना मुनीम , एकता ,तब्बू ,शत्रुघ्न सिन्हा , जैकी श्रॉफ आदि . इसी बीच 1984 में अपने बेटे सुनील आनंद को फिल्म 'आनंद और आनंद ' में लांच किया था जो असफल रही थी . इसके बाद सुनील ने एक्टिंग नहीं की और वह नवकेतन का काम देखने लगा था . आजकल वह आनंद रिकार्डिंग स्टूडियो का प्रमुख है .

1975 में इमरजेंसी के विरुद्ध देव साहब ने आवाज उठाई थी .1977 में लोक सभा के चुनाव में उन्होंने इमरजेंसी के समर्थकों का विरोध किया था .अपनी एक पार्टी " नेशनल पाटी ऑफ़ इंडिया " भी बनाई थी जिसे बाद में भंग भी कर दिया था .

90 और उसके बाद का दशक

देव साहब इतनी उम्र हो जाने पर भी वे हीरो ही रहना चाहते थे जबकि तब तक उनके समकालीन कलाकार बाप दादा के रोल में आने लगे थे . उन्होंने 1955 में दिलीप कुमार के साथ ' इंसानियत ' और 1996 में धर्मेंद्र के साथ ' रिटर्न ऑफ़ ज्युवेल थीफ' में काम किया है . इस दौरान उनकी काफी फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई थीं .पर देव साहब ने न एक्टिंग छोड़ी और न फ़िल्में बनाना . उनका कहना था ' चलना ही ज़िन्दगी है '. नए नए विषयों पर फिल्म्में बनाते रहे थे , हालांकि वे फ्लॉप होती थीं . पर उनकी ज़िन्दगी का फलसफा उनकी गीतों में झलकता है " जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया ......" और " हर फ़िक्र को धुंए में उड़ाता चला गया ..."

2011 में ' चार्जशीट ' उनकी आखिरी फिल्म थी . देव साहब ने लगभग 114 फिल्मों में काम किया है .एक्टिंग के अतिरिक्त वे प्रोड्यूसर ( 35 फ़िल्में ) , डायरेक्टर ( 19 फ़िल्में ) और लेखक ( 13 फ़िल्में ) भी रहे थे .कुछ लोग उनकी तुलना उस समय के मशहूर हॉलीवुड अभिनेता ग्रेगोरी पेक से करते थे , खास कर सुरैया . वे ग्रेगोरी पेक से तीन चार बार मिल भी चुके थे .

पुरस्कार

1959 में फिल्म काला पानी में बेस्ट एक्टर और 1967 में फिल्म गाइड के लिए बेस्ट फिल्म और बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड देव साहब को मिले हैं . इसके अलावा अनेकों राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार उन्हें मिले हैं . 1965 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 2001 में पद्म भूषण और 2002 में फिल्म जगत का सर्वोच्च पुरस्कार “ दादा साहब फालके से सम्मानित किया गया है . इसके अतिरिक्त अनेकों राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट आदि अवार्ड्स भी उन्हें मिले हैं .


बॉलीवुड का सितारा अस्त हो गया

भारतीय सिनेमा का यह सदा बहार सितारा लगभग छः दशकों तक रौशन रहने के बाद 3 दिसंबर 2011 को (भारतीय तिथि 4 दिसंबर ) को लंदन में अस्त हो गया था . दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गयी थी . उनके सम्मान में भारत सरकार ने 2013 में डाक टिकट भी जारी किया था . इस सदाबहार अभिनेता देव आनंद की फिल्में और उनके लोकप्रिय गाने लाखों दिलों पर आज भी राज करते हैं .

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PART 12 - राज कपूर

जन्म -14 दिसंबर 1924 पेशावर , ब्रिटिश इंडिया ( अब पाकिस्तान )

मृत्यु - नयी दिल्ली , 2 जून 1988

बर्थ नेम - रणधीर राज कपूर

स्क्रीन नेम - राज कपूर


राज कपूर पृथ्वी राज कपूर के छः बच्चों में सबसे बड़े थे . राज ने अपने फ़िल्मी कैर्रिएर में अभिनय के अतिरिक्त फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया है . वे भारत के ग्रेटेस्ट शोमैन के नाम से आज भी मशहूर हैं .


प्रारंभिक जीवन


1930 के बाद पृथ्वी राज को अपने कैरियर के चलते एक शहर से दूसरे शहर शिफ्ट करना पड़ा था . इसी कारण राज कपूर की पढ़ाई अलग अलग शहरों -देहरादून , कलकत्ता और मुंबई में हुई .


फ़िल्मी सफर


पहली बार राज ने 1945 में फिल्म “ इंक़लाब “ में अभिनय किया था . पहली कामयाबी उन्हें 1947 की फिल्म “ नीलकमल “ से मिली जिसमें मशहूर अभिनेत्री मधुबाला उनकी नायिका थीं .


1948 में उन्होंने अपना स्टूडियो “ आर. के. स्टूडियो “ खोला और और सबसे कम उम्र के निर्देशक बने . उन्होंने फिल्म “ आग “ का निर्माण किया जिसमें नरगिस , कामिनी कौशल और प्रेमनाथ भी थे . 1949 में महबूब खां की फिल्म “ अंदाज़ “ में दिलीप कुमार और नरगिस के साथ दिखे . उन्होंने कुछ फ़िल्में सामाजिक मुद्दे पर बनायीं थी . आर . के . फिल्म की “ बूट पॉलिश “ और “ अब दिल्ली दूर नहीं “अच्छी सामाजिक फ़िल्में थीं .


आर . के . बैनर के तले बनीं फिल्मों - आग ,बरसात , आह ,आवारा , श्री 420 , जागते रहो में नरगिस उनकी नायिका रही थीं . इसके बाद संगम ( वैजयंतीमाला ) , जिस देश में गंगा बहती है ( पद्मिनी ) , कल आज और कल ,मेरा नाम जोकर ( सिमी , पद्मिनी और रूसी अभिनेत्री ) और धरम करम का निर्माण किया था . राज ने अन्य फ़िल्में बनायीं जिनमें स्वयं उनका अभिनय तो नहीं था -“ बॉबी “ फिल्म में अपने बेटे ऋषि कपूर को डिंपल कपाड़िया के साथ बतौर हीरो लांच किया था . “ सत्यं शिवं सुंदरम ” में ( जीनत अमान ) , प्रेम रोग ( पद्मिनी कोहलपुरी ) . राम तेरी गंगा मैली ( मंदाकिनी ) फ़िल्में भी राज ने अन्य अभिनेत्रियों को ले कर बनायी थी .


राज ने मधुबाला , मीना कुमारी , वहीदा रहमान , पद्मिनी , नूतन राजश्री , हेमा मालिनी , माला सिन्हा , सायरा बानो , साधना आदि अभिनेत्रियों के साथ अनेकों सफल फिल्मों में काम किया है . उनकी ज्यादतर फ़िल्में सफल रही थीं . राज कपूर के 20 फिल्मों में शंकर जयकिशन संगीतकार रहे हैं . अच्छे गीत और संगीत उनकी फिल्मों की विशेषता रहे हैं.


राज ने “ दो जासूस “ और “ गोपी चंद जासूस “ में काम किया है जो जासूसी के साथ कॉमेडी फ़िल्में थीं . 1982 में बनी फिल्म वकील बाबू उनकी अंतिम फिल्म थी . उन्हें भारत का चार्ली चैप्लिन भी कहा जाता है . 1984 में बनी ब्रिटिश अंग्रेजी टेली फिल्म “ किम “ में उनकी केमीओ अपीयरेंस थी .


राज कपूर के तीनों बेटे रणधीर कपूर , ऋषि कपूर और राजीव कपूर भी बॉलीवुड के अभिनेता रहे हैं .


राज की फिल्म “ आवारा “ रूस में काफी लोकप्रिय हुई थी और उसका गाना “ आवारा हूँ . . “ “ मेरा जूता है जापानी . . “ आज भी वहां उनकी पहचान है .


1988 में आस्थमा के चलते लम्बे समय तक नयी दिल्ली के AIIMS में वे भर्ती रहे और 2 जून को उनका निधन हो गया था . अस्वस्थता के चलते वे फिल्म ” हिना “ ( ऋषि कपूर और पाकिस्तानी अभिनेत्री ज़ेबा बख्तियार ) का निर्माण , निर्देशन नहीं कर सके थे .

पुरस्कार


राज कपूर को अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया है . उन्हें तीन राष्ट्रिय पुरस्कार , 11 फिल्मफेयर अवार्ड्स के अतिरिक्त अनेकों राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है . इनके अलावा भारत सरकार की ओर से पद्म भूषन और दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी उन्हें मिले हैं .


प्रमुख फ़िल्में


उपरोक्त लिखे फिल्मों के अतिरिक्त राज कपूर की अन्य प्रमुख फ़िल्में हैं - वकील बाबू , अब्दुल्लाह , खान दोस्त ,दीवाना , सपनों का सौदागर , अराउंड द वर्ल्ड ,तीसरी कसम , दूल्हा दुल्हन , एक दिल सौ अफ़साने , नज़राना , दिल ही तो है , छलिया , जिस देश में गंगा बहती है , आशिक़ , मैं नशे में हूँ , परवरिश , दो उस्ताद , कन्हैया , शारदा , फिर सुबह होगी , अनहोनी , दास्तान आदि


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PART 13 - गुरुदत्त


जन्म - 9 जुलाई 1925 , बैंगलोर , मैसूर राज्य ( ब्रिटिश इंडिया )

मृत्यु - 10 अक्टूबर 1964 , मुंबई

बर्थ नेम - वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोणे

स्क्रीन नेम - गुरुदत्त


प्रारम्भिक जीवन

गुरुदत्त का जन्म बैंगलोर में हुआ था और बचपन की र्घटना के बाद उनका नाम बदल कर गुरुदत्त रख दिया गया था . . गुरुदत्त बचपन में भवानीपुर , कलकत्ता ( आज का कोलकाता ) में काफी समय तक रहे थे , इसलिए उन्हें बंगाली भी अच्छी तरह आती थी . कुछ दिनों तक उन्होंने कलकत्ता की एक कंपनी में टेलीफोन ऑपेरटर की नौकरी की . उनका मन इस नौकरी में नहीं लग रहा था . 1944 में वे बॉम्बे ( आज का मुंबई )चले आये .


फ़िल्मी सफर

बॉम्बे में एक रिश्तेदार की मदद से पूना ( आज का पुणे ) में प्रभात फिल्म कंपनी में उन्हें तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर एक नौकरी मिली . यहाँ गुरुदत्त की मुलाकात देव आनंद और रहमान से हुई और वे आजीवन उनके दोस्त बने रहे . देव ने गुरुदत्त से कहा “ अगर मैं अपनी फिल्म बनाऊंगा तो तुम उसके निर्देशक होंगे . “

गुरुदत्त ने उसी लहजे में जबाब दिया “ और अगर मैंने फिल्म बनाया तो तुम उसमें हीरो रहोगे . “


1944 में एक फिल्म “ कृष्णा “ में उन्हें एक छोटा सा रोल मिला . 1945 की फिल्म “ लाखारानी “ में उन्हें एक्टिंग के अलावा सहायक फिल्म निर्देशक बनने का अवसर मिला . 1946 की फिल्म “ हम एक हैं “ में वे सहायक निर्देशक और कोरिओग्रफर रहे . तब तक उनके कॉन्ट्रैक्ट की अवधि समाप्त हो चुकी थी .


कुछ महीनों तक उनके पास कोई काम नहीं था . इस बीच गुरुदत्त ने तत्कालीन मशहूर अंग्रेजी पत्रिका “ इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया “ के लिए कहानियां लिखीं .गुरुदत्त मुंबई आ गए थे . यहाँ उन्हें उस समय के दो मशहूर निर्देशकों के साथ “ गर्ल्स स्कूल “ और “ संग्राम “ फिल्म में काम करने का अवसर मिला . उसी समय देव आनंद अपने नवकेतन फिल्म्स के लिए फिल्म “ बाज़ी “ का निर्माण करने जा रहे थे . वादे के अनुसार देव आनंद की फिल्म का निर्देशन का काम गुरुदत्त को मिला . 1951 में इस फिल्म के गीत रिकॉर्डिंग के समय उनकी मुलाकात गायिका गीता राय से हुई थी . बाद में गुरुदत्त ने गीता से शादी कर ली .


देव आनंद और गुरुदत्त की दूसरी फिल्म “ जाल “ रही थी . बाज़ी तो सुपरहिट थी , पर जाल बॉक्स ऑफिस पर कुछ सफल नहीं रही थी . इस बीच 1954- 55 में बतौर हीरो गुरुदत्त की दो फ़िल्में “ आर पार “ और “ मिस्टर एंड मिसेज 55 “ सुपरहिट हुई थीं .


1956 में गुरुदत्त ने भी अपनी फिल्म “ C . I . D . “ में देव आनंद को हीरो बना कर अपना वादा पूरा किया .


गुरुदत्त क्रिएटिव थे . उन्होंने लीक से अलग हट कर 1957 में फिल्म “ प्यासा “ बनाई जिसमें वे नायक भी थे . फिल्म हिट थी . पर इसके बाद 1959 की उनकी क्लासिक फिल्म “ कागज़ के फूल “ बुरी तरह फ्लॉप रही थी , हालांकि इसमें उन्होंने अपना तन , मन धन सब लगा दिया था . उन्हें घोर निराशा हुई थी . वे शराब का सेवन करने लगे थे . इसके बाद जो फ़िल्में उन्होंने बनाई उनमें वे हीरो तो थे पर निर्देशन स्वयं नहीं किया था . “ चौदवीं का चाँद “ , “साहब बीबी और गुलाम “ दोनों सुपरहिट रहीं थीं और “ साहब बीबी और गुलाम “ पुरस्कृत भी हुई थीं .


1964 में उनकी फिल्म “ बहारें फिर भी आएँगी “ का निर्माण चल रहा था . अचानक 10 अक्टूबर की सुबह को पेड्डर रोड के अपने किराये के अपार्टमेंट में गुरुदत्त मृत पाए गए . कहा जाता है कि अत्यधिक शराब और स्लीपिंग पिल्स के सेवन से उनकी मौत हुई थी . संदेह किया जाता है कि शायद यह आत्महत्या थी और इसके पूर्व भी वे आत्महत्या की असफल कोशिश कर चुके थे . मात्र 39 वर्ष की आयु में गुरुदत्त चल बसे . उन्होंने 16 फिल्मों में काम किया था .आठ फिल्मों के वे निर्माता भी रहे थे और कुछ में निर्देशक भी थे .


2010 में CNN ने एशिया के 25 सर्वोत्तम निर्देशकों में उनका नाम शामिल किया था . उनकी कुछ फिल्मों - प्यासा , कागज़ के फूल , चौदवीं का चाँद , साहब बीबी और गुलाम को टाइम्स मैगजीन ने “ ऑल टाइम 100 बेस्ट मूवीज “ में शामिल किया है . काफी बाद में भी प्रदर्शित किये जाने पर भी उनकी फिल्मों को जापान , फ्रांस और जर्मनी में काफी सराहा गया था .


पुरस्कार


साहब बीबी और गुलाम को फिल्मफेयर का सर्वोत्तम फिल्म के अतिरिक्त तीन और श्रेणियों में पुरस्कार मिला था . गुरुदत्त की स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने डाक टिकट भी जारी किया था


गुरुदत्त की कुछ प्रमुख फ़िल्में -


सांझ और सवेरा (1964), शगुन -(1964), बहुरानी -(1963), भरोसा -(1963), साहब बीबी और गुलाम (1962) , सौतेला भाई -(1962), चौदवीं का चाँद -(1960) कागज़ के फूल -(1959) , 12 ओ क्लॉक (1958), प्यासा -(1957), मिस्टर & मिसेज .55, (1955 आर पार (1954), बाज़ -(1953), हम एक हैं -(1946) ,लाखा रानी -(1945) ,चाँद -(1944)

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PART 14 - राज कुमार


जन्म -8 अक्टूबर 1926 , लोरलाई , बलूचिस्तान ब्रिटिश इंडिया ( अब पाकिस्तान

मृत्यु - 3 जुलाई 1996 मुंबई

बर्थ नेम -कुलभूषण पंडित

स्क्रीन नेम -राज कुमार

प्रारम्भिक जीवन


1940 में राज कुमार बॉम्बे ( अब मुंबई ) आये . यहाँ उन्हें मुंबई पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी मिली . एक हवाई सफर में उनकी मुलाकात एक एंग्लो इंडियन लड़की जेनिफर से हुई और दोनों ने शादी कर ली . राज ने जेनिफर का हिन्दू नामकरण किया- गायत्री .


फ़िल्मी सफर


1952 में फिल्म “ रंगीली “ से उनका फ़िल्मी सफर सफर शुरू हुआ . 1957 में सोहराब मोदी की फिल्म

“ नौशेरवां ए आदिल “ में उनकी भूमिका दमदार रही थी . इसके तुरंत बाद 1959 में वे नरगिस के साथ ” मदर इंडिया “में सुर्खियों में आये .


राज कुमार के संवाद बोलने की स्टाइल सबसे अलग थी और यह उनकी विशेष पहचान रही थी . फिल्म वक़्त का उनके दो डायलॉग अभी तक लोगों को याद होगा -

चिनाई सेठ , जिनके अपने घर शीशे के हों . . वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते

जानी , छुरी बच्चों के खेलने की चीज नहीं है . . . हाथ कट जाए तो खून निकल आता है


उन्होंने दिलीप कुमार , सुनील दत्त , शशि कपूर , राजेंद्र कुमार , मीना कुमारी , माला सिन्हा , हेमा मालिनी , साधना , वहीदा रहमान जैसे तत्कालीन शीर्ष कलाकारों के साथ काम किया है . 1995 की “ गॉड एंड गन “ उनकी अंतिम फिल्म रही थी . राज कुमार ने 60 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है . करीब चार दशक तक हिंदी फिल्मों में राज कुमार ने अलग अलग तरह के किरदार अदा किया है .

69 वर्ष की आयु में करीब दो साल तक कैंसर से संघर्ष करने के बाद 1996 में उनकी मृत्यु हो गयी .


पुरस्कार


राज कुमार को दो फिल्मफेयर अवार्ड मिले हैं - वक़्त और दिल एक मंदिर फिल्मों के लिए

उनकी प्रमुख फ़िल्में रही हैं -

50 के दशक में मदर इंडिया , “ नौशेरवां ए आदिल “, पैगाम , अर्धांगिनी , उजाला ; 60 के दशक में - दिल एक मंदिर , दिल अपना और प्रीत परायी , ज़िन्दगी , गोदान , वक़्त , काजल , ऊँचे लोग , नयी रोशनी ,हमराज , मेरे हुज़ूर , नील कमल आदि ; 70 के दशक में हीर रांझा , पाकीज़ा , लाल पत्थर , मर्यादा आदि ; 80 के दशक में बुलंदी , इतिहास , धरम काँटा , कुदरत , राज तिलक आदि ; 90 के दशक में सौदागर , तिरंगा , पुलिस पब्लिक , पुलिस और मुजरिम , जबाब आदि .


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PART 15 - जॉनी वाकर


जन्म -11 नवंबर 1926 , इंदौर ( तत्कालीन सेंट्रल प्रोविंस , ब्रिटिश इंडिया )

मृत्यु -29 जुलाई 2003 , मुंबई

बर्थ नेम -बदरुद्दीन जमालउद्दीन काज़ी

स्क्रीन नेम - जॉनी वाकर


प्रारम्भिक जीवन - जॉनी वाकर के पिता इंदौर की एक मिल में काम करते थे . उनकी दस संतानों में जॉनी वाकर दूसरे नंबर पर थे . मिल के बंद हो जाने पर नौकरी के लिए जॉनी बॉम्बे ( अब मुंबई ) आये . यहाँ उन्हें BEST कंपनी में बस कंडक्टर की नौकरी मिली . इसके अतिरिक्त वे फल , आइस कैंडी आदि बेचा करते थे .


फ़िल्मी सफर


जॉनी अक्सर बस में यात्रियों को अपनी अदाओं से हंसाया करते थे . एक बार बलराज साहनी की नजर जॉनी पर पड़ी . उस समय वे बाज़ी फिल्म के स्क्रिप्ट लिख रहे थे जिसका निर्देशन गुरुदत्त कर रहे थे . जॉनी को एक शराबी की एक्टिंग कर के दिखाने को कहा गया . उनकी एक्टिंग से गुरुदत्त इतने प्रसन्न हुए कि विश्वविख्यात व्हिस्की के नाम पर उनका फ़िल्मी नाम जॉनी वाकर रख दिया . और गुरुदत्त अपनी फिल्मों में अक्सर उन्हें रोल देते .


जॉनी वाकर ने बॉलीवुड में कॉमेडी को एक नया अंदाज दिया . उनकी कॉमेडी दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय थी . जॉनी ने स्वयं भी फिल्म “ पहुंचे हुए लोग “ का निर्देशन भी किया है . कॉमेडी के अलावा उन्होंने चरित्र अभिनेता के रोल भी वे निभाए हैं .


1997 में “ चाची 420 “ जॉनी वालकर की अंतिम फिल्म थी . उन्होंने 180 से अधिक फिल्मों में काम किया है .


2003 में मुंबई में उनका निधन हो गया था . वे खुद तो 6 ठी कक्षा तक पढ़े थे , पर उन्होंने अपने बेटों को पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा था .


पुरस्कार -जॉनी वाकर को दो बार फिल्मफेयर अवार्ड मिले हैं - फिल्म “ मधुमती “ और “ शिकार” के लिए


प्रमुख फ़िल्में -


जॉनी वाकर की कुछ प्रमुख फ़िल्में - हम दोनों ( 1985 ) , मज़दूर , शान , संतान , प्रतिज्ञा , गंगा की कसम , जख्मी , मदहोश , राजा जानी , संजोग , मेम साहब , दुश्मन , हंगामा , आनंद , दो रास्ते , मेरे हुजूर , शिकार , हसीना मान जाएगी , जाल , तक़दीर , बहू बेगम , दिल दिया दर्द लिया ,सूरज , मेरे महबूब , चौदवीं का चाँद , मुग़ल ए आज़म , भाई बहन , सट्टा बाज़ार , पैगाम , कागज़ के फूल , मधुमती , नया दौड़ , प्यासा आदि

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PART 16 - नरगिस दत्त


जन्म - 1 जून 1929 , कलकत्ता तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया ( अब कोलकाता )

मृत्यु- 3 मई 1981 , बॉम्बे ( अब मुंबई )

बर्थ नेम - फातिमा रशीद

स्क्रीन नेम - नरगिस


प्रारम्भिक जीवन


नरगिस अब्दुल रशीद ( शुरू में मोहन बाबू -रावलपिंडी , पाकिस्तान ) और जद्दनबाई ( मशहूर शास्त्रीय गायिका ) की बेटी थीं . उनका परिवार पश्चिमी पंजाब से इलाहाबाद आया . फिर वहां से वे लोग मुंबई पहुंचे .


फ़िल्मी सफर


छः साल की उम्र में बेबी नरगिस पहली बार फिल्म “ तलाश ए हक़ “ में नजर आईं . इसके बाद 1943 में 14 साल की उम्र में मोतीलाल की नायिका के रूप में महबूब खान की फिल्म “ तक़दीर “ ने नरगिस की तक़दीर बदल दी . वे एक कामयाब एक्ट्रेस बन गयीं .


इसके बाद से उन्होंने राज कपूर , दिलीप कुमार , सुनील दत्त , प्रदीप कुमार , बलराज साहनी और अन्य कलाकारों के साथ एक से बढ़ के एक हिट फिल्मों में काम किया . 1957 की फिल्म “ मदर इंडिया “ ,जो बॉलीवुड की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में गिनी जाती हैं , के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था . इस फिल्म को भारत की ओर से ऑस्कर के लिए भी भेजा गया था . इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान नरगिस आग में फंस गयी थीं . तब सुनील दत्त ( जो उनके बेटे के रोल में थे ) ने उन्हें आग की लपटों के बीच से सुरक्षित निकाला था .


मदर इंडिया के निर्माण के दौरान नरगिस और सुनील दत्त दोनों काफी करीब आये और 1958 में दोनों ने शादी कर ली . शादी के बाद नरगिस ने फिल्मों में काम करना छोड़ कर अपने परिवार को प्राथमिकता दिया . 1967

की फिल्म “ रात और दिन “ उनकी अंतिम फिल्म थी . इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था और उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामांकित भी किया गया था . नरगिस ने लगभग 55 फिल्मों में काम किया है .


नरगिस 1980 -81 में राज्य सभा की मनोनीत सांसद थीं . इसी दौरान 1981 में कैंसर से उनकी मृत्यु बी हो गयी थी .


पुरस्कार एक फिल्मफेयर अवार्ड ( बेस्ट एक्ट्रेस - मदर इंडिया ) और एक राष्ट्रिय पुरस्कार ( रात और दिन ) उन्हें मिले हैं . भारत सरकार ने उन्हें “ पद्म श्री “ से सम्मानित किया है . इनके अतिरिक्त अन्य संस्थाओं द्वारा भी उन्हें सम्मान प्राप्त हुआ है .


नरगिस की प्रमुख फ़िल्में हैं - 30 के दशक में तलाश ए हक़ , मैडम फैशन ; 40 के दशक में तक़दीर , मेंहदी , मेला , आग , बरसात , अंदाज़ आदि ; 50 के दशक में जोगन , बाबुल , हलचल , दीदार , आवारा , आह , श्री 420 , अनहोनी , चोरी चोरी , जागते रहो , परदेसी , मदर इंडिया , लाजवंती आदि ; और 60 के दशक में रात और दिन

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PART 17 - गीता बाली


जन्म - 1930 , सरगोधा , पंजाब तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया ( पाकिस्तान )

मृत्यु - 21 जनवरी 1965 , बॉम्बे ( अब मुंबई )

बर्थ नेम - हरिकीर्तन कौर

स्क्रीन नेम - गीता बाली


प्रारम्भिक जीवन - गीता बाली का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के सरगोधा में हुआ था , जो अब पाकिस्तान में है . उनका परिवार 1947 में अमृतसर आ गया था . गीता ने कुछ समय तक फ़िरोज़पुर के स्कूल में पढ़ाई की . जब उन्हें फिल्मों में काम करने का अवसर मिला तो उनका परिवार बॉम्बे ( अब मुंबई ) आ गया था .

फ़िल्मी सफर


गीता बाली का फ़िल्मी सफर 12 साल की आयु में फिल्म “ कॉबलर “ में बाल कलाकार के रूप में शुरू हुआ था . 1946 में फिल्म “ बदनामी “ में पहली बार उन्हें नायिका की भूमिका मिली थी . 1950 में राज कपूर के साथ

“ बाँवरे नैन “ और पृथ्वीराज कपूर के साथ ” आनंदमठ “ में उन्होंने काम किया है .


उनके बड़े भाई फिल्म निर्देशक थे . 1952 में गीता को अशोक कुमार के साथ कास्ट किया था . 1955 में वे शम्मी कपूर के साथ फिल्म “ कॉफ़ी हाउस “ में काम कर रही थीं . उसी समय दोनों में निकटता बढ़ी और दोनों ने शादी कर ली .


गीता बाली ने गुरु दत्त , देव आनंद , भारत भूषण , अशोक कुमार , राज कपूर आदि समकालीन अभिनेताओं के साथ फिल्मों में काम किया है .


1965 में एक पंजाबी फिल्म “ रानो “ ( जो राजेंद्र सिंह बेदी की उपन्यास “ एक चादर मैली सी ” पर आधारित थी ) की शूटिंग के दौरान पंजाब में वे चेचक की चपेट में आयीं और उनकी मृत्यु हो गयी . लगभग 35 की उम्र तक उन्होंने करीब 75 फिल्मों में काम किया था .


पुरस्कार - 1955 में फिल्म “ वचन “ और 1954 में “ कवि “ के लिए फिल्मफेयर अवार्ड के लिए उनका नामांकन हुआ था .


प्रमुख फ़िल्में


गीता बाली की प्रमुख फ़िल्में हैं - बाज़ , कवि , वचन , पॉकेटमार , अलबेला , अजी बस शुक्रिया , बारादरी , जवाब , सैलाब , इंस्पेक्टर , सपने सुहाने , बड़े घर की बहू , मोहर ,होटल , जेलर , जाल , फेरी , मिस्टर इंडिया , जब से तुम्हें देखा है , बाज़ी , आनंदमठ आदि


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PART 18 - सुनील दत्त



जन्म - 6 जून 1930 , झेलम - पंजाब , ब्रिटिश इंडिया ( अब पाकिस्तान )

मृत्यु - 25 जून 2005 , मुंबई

बर्थ नेम - बलराज दत्त

स्क्रीन नेम - सुनील दत्त


प्रारंभिक जीवन - सुनील दत्त का जन्म झेलम , ( पकिस्तान ) में हुआ था . पांच साल की उम्र में उनके पिता का देहांत हो गया था . जब वे करीब 18 वर्ष के थे विभाजन के चलते एक मुस्लिम मित्र की सहायता से यमुनानगर ( अब हरयाणा ) में आये . वहां से लखनऊ आये फिर कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने मुंबई के जय हिन्द कॉलेज से की . इस के बाद उन्होंने BEST बस सर्विस में कुछ समय तक नौकरी किया .


फ़िल्मी सफर


सुनील दत्त ने तत्कालीन रेडियो सीलोन की हिंदी सेवा में नौकरी की जहाँ वे बहुत लोकप्रिय हुए थे . वहां उन्हें ग्लेमर की दुनिया के मशहूर लोगों के इंटरव्यू लेने का मौका मिला . 1955 की फिल्म “ रेलवे प्लेटफार्म “ में उन्हें पहला ब्रेक मिला . फिल्म सफल रही थी . इसके बाद 1957 की फिल्म “ मदर इंडिया “ में उनका रोल काफी धमाकेदार रहा था . इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान नरगिस ( जो फिल्म में उनकी माँ का रोल कर रही थीं ) आग की लपटों के बीच फंस गयी थीं . दत्त ने उनको आग से बचा कर सुरक्षित बाहर निकाला . कुछ ही दिनों बाद 1958 में दोनों ने शादी कर ली थी .


50 और 60 के दशकों में सुनील दत्त काफी लोकप्रिय अभिनेता बने . उन्होंने अनेकों प्रमुख अभिनेता और अभिनेत्रियों के साथ अभिनय किया है . दत्त ने अनेकों सुपरहिट फिल्मों में रोल किया है . उसके बाद भी 90 के दशक तक कुछ फ़िल्में की हैं . 2003 की फिल्म “ मुन्ना भाई MBBS “ उनकी अंतिम फिल्म थी जिसमें वे अपने पुत्र संजय दत्त के पिता की रोल में नजर आये थे .


सुनीत दत्त ने 104 फिल्मों में काम किया है . उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया है जिनमें “ मुझे जीने दो “ .” रेशमा और शेरा “ , “ दर्द का रिश्ता “ , “ ये रास्ते हैं प्यार के “ प्रमुख हैं . दत्त 6 फिल्मों के निर्देशक भी रहे है जिनमें .” रेशमा और शेरा “ , “ दर्द का रिश्ता “ , रॉकी भी हैं .


1981 में उनकी पत्नी नरगिस की कैंसर से मृत्यु हो गयी थी . नरगिस के नाम पर उन्होंने कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए एक संस्था खोली . छोटे बच्चों के लिए भी उन्होंने एक संस्था खोली जो ऐसे बच्चों को मदद करती है जिनके चेहरे बिगड़े होते हैं . एक्टर के अतिरिक्त दत्त एक सामाजिक कार्यकर्त्ता और राजनीतिज्ञ भी थे .


सुनील दत्त 1984 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और उन्होंने राजनीति में कदम रखा . वे मुंबई के सांसद भी रहे थे . 2004 - 2005 में वे भारत सरकार के युवा एवं खेल मंत्री भी रहे थे .


25 मई 2005 को दिल का दौरा पड़ने से मुंबई के अपने घर में उनका निधन हुआ .


पुरस्कार -


सुनील दत्त को तीन फिल्मफेयर अवार्ड और एक राष्ट्रिय पुरस्कार मिले हैं . इसके अलावा दादा साहब फाल्के पुरस्कार और पद्मश्री से उन्हें सम्मानित किया गया है . अनेकों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा भी उन्हें पुरस्कृत किया गया है .


सुनील दत्त की प्रमुख फ़िल्में हैं - 50 के दशक में रेलवे प्लेटफार्म , कुंदन , मदर इंडिया , साधना , एक ही रास्ता ,इंसान जाग उठा आदि ; 60 के दशक में छाया ,मैं चुप रहूंगी , गुमराह , मुझे जीने दो , यादें , खंडन , वक़्त , मेरा साया , आम्रपाली , हमराज़ , मेहरबान , मिलन , पड़ोसन , 70 के दशक में ज्वाला ( मधुबाला की अंतिम फिल्म ) , ज़मीन आसमान , ज़ख़्मी , रेशमा और शेरा , नागिन , पापी आदि , 80 के दशक में शान , दर्द का रिश्ता , राज तिलक , फासले , कुर्बान , परंपरा , क्षत्रिय आदि और 2003 में उनकी अंतिम फिल्म “ मुन्ना भाई MBBS “


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PART 19 - शम्मी कपूर


जन्म - 21 अक्टूबर 1931 , मुंबई ( तब बॉम्बे )

मृत्यु -14 अगस्त 2011 , मुंबई

बर्थ नेम - शमशेर राज कपूर

स्क्रीन नेम - शम्मी कपूर

प्रारम्भिक जीवन


शम्मी कपूर पृथ्वी राज कपूर के दूसरे पुत्र और राज कपूर के छोटे भाई थे . यद्यपि उनका जन्म मुंबई ( तब बॉम्बे ) में हुआ था उनका ज्यादा बचपन पेशावर ( पाकिस्तान ) और कोलकाता ( तब कलकत्ता ) . उनकी प्राथमिक शिक्षा कोलकाता में हुई थी .शम्मी ने इसके बाद मुंबई के सेंट जोसेफ कान्वेंट स्कूल , डॉन बॉस्को स्कूल और न्यू एरा स्कूल में पढ़ाई की . फिर वे कुछ वर्ष रामनारायण रुईया कॉलेज में पढ़े थे .


फ़िल्मी सफर - आरम्भ में शम्मी कपूर ने पिता का पृथ्वी थियेटर ज्वाइन किया था . 1948 में एक जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर सिने जगत में उनका आगमन हुआ था . 1953 की फिल्म “ जीवन ज्योति “ उनकी पहली फिल्म थी . कहा जाता है कि 1953 में मिश्र की बेली डांसर नाडिया गमाल से उनकी मुलाक़ात श्री लंका ( तब सीलोन ) में हुई और दोनों में 1955 तक सम्पर्क रहा था . नाडिया के मिश्र लौट जाने के बाद यह सम्पर्क टूट गया . 1953 - 57 के बीच उन्होंने कुछ फ़िल्में की थीं .


1957 की उनकी फिल्म “ तुमसा नहीं देखा “ सुपरहिट हुई . इसके बाद आशा पारीख के साथ 1959 में उनकी फिल्म “ दिल दे के देखो “ भी सफल रही . इसके बाद शम्मी ने बॉलीवुड में स्टाइलिश प्लेबॉय के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली थी . शम्मी कपूर को नयी नयी उभरती अभिनेत्रियों के साथ काम करने के अवसर मिले जिनमें - आशा पारीख , सायरा बानो , शर्मीला टैगोर और कल्पना प्रमुख हैं . सायरा के साथ “ जंगली “ में उनका याहू और सुकू सुकू काफी समय तक लोगों की जुबान पर रहा था .


शम्मी ने तत्कालीन मशहूर अभिनेत्रियों- श्यामा , मीना कुमारी , गीता बाली , नूतन और सुरैया , माला सिन्हा आदि के साथ भी अच्छे अभिनय का परिचय दिया है . 1955 में गीता बाली से उनकी दोस्ती एक फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई और उसी वर्ष दोनों ने शादी भी कर ली थी . बाद में 1965 में गीता बाली की मौत हो गयी . उन्होंने 1965 में बचपन की दोस्त नीला देवी से दूसरी शादी की .


60 के दशक में शम्मी कपूर ने अनेकों हिट फ़िल्में की हैं जिनमें जंगली , काश्मीर की कली , प्रोफ़ेसर , चाइना टाउन , जानवर , ब्लफ मास्टर , तीसरी मंजिल , राजकुमार और ब्रह्मचारी प्रमुख हैं . उन्होंने करीब 142 फिल्मों में काम किया है . 1971 की फिल्म “ अंदाज़ “ में अंतिम बार लीड रोल में थे . इसके बाद अनेकों फिल्मों में चरित्र अभिनेता या सहायक अभिनेता का रोल किया है .-विधाता , प्रेम ग्रंथ , परवरिश , ज़मीर आदि ऐसी कुछ फ़िल्में हैं . 2011 में आखिरी बार “ रॉकस्टार “ में अपने बड़े भाई राज कपूर के पोते रणवीर कपूर के साथ अभिनय किया है . शम्मी कपूर को एल्विस प्रिसले ऑफ़ इंडिया कहा जाता था .


14 अगस्त 2011 को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में शम्मी ने अपनी अंतिम सांस ली थी . उन्हें किडनी की बीमारी थी .


पुरस्कार -


फिल्म “ ब्रह्मचारी “ के लिए बेस्ट एक्टर ; “ विधाता “ के लिए बेस्ट सपॉर्टिंग एक्टर और एक लाइफटाइम अचीवमेंट का फिल्मफेयर अवार्ड उन्हें मिले हैं . इसके अलावा भी अनेकों संस्थाओं द्वारा उन्हें अवार्ड्स मिले हैं .


प्रमुख फ़िल्में -उपरोक्त चर्चित फिल्मों के अतिरिक्त शम्मी कपूर की प्रमुख फ़िल्में हैं - बादल , हम सब चोर हैं , कॉफ़ी हाउस , मुजरिम , उजाला , दिल तेरा दीवाना , सिंगापुर ,बॉय फ्रेंड ,एन इवनिंग इन पेरिस , लाट साहब , प्रिंस , बद्तमीज , पगला कहीं का , प्रेम रोग ,नसीब , रॉकी अजूबा आदि

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PART 20 - मधुबाला


जन्म - 14 फरवारी 1933 , दिल्ली

मृत्यु - 23 फरवारी , 1969 , मुंबई

जन्म का नाम - मुमताज़ जहाँ बेगम देहलवी

फ़िल्मी नाम - मधुबाला


आरंभिक जीवन


मधुबाला के माता पिता अफगानिस्तान से निर्वासित हो कर बॉम्बे में आये थे . 14 अप्रैल 1944 के बॉम्बे डॉक में हुए भीषण विस्फोट में उनका पूरा घर नष्ट हो चुका था . मधुबाला के पिता अपनी छः बेटियों के साथ कष्टप्रद जीवन व्यतीत कर रहे थे . मधुबाला छोटी उम्र से ही पिता के साथ बॉम्बे ( अब मुंबई ) के फिल्म स्टुडिओज में काम पाने की आशा में वहां जाया करती थी .


फ़िल्मी सफर -1942 में फिल्म “ बसंत “ में उन्हें एक लड़की का रोल मिला था . फिल्म हिट हुई थी . उन्हीं दिनों उनकी हमउम्र महजबीन ( मीना कुमारी ) भी फिल्मों में काम के लिए स्टूडियो के चक्कर लगाया करती थी . मधुबाला को पहली बार 1947 में केदार शर्मा ने फिल्म “ नील कमल “ के लिए राज कपूर की नायिका के लिए कास्ट किया था . इसके बाद 1949 में अशोक कुमार के साथ फिल्म “ महल “ में नायिका बनीं . इस फिल्म की अपार सफलता ने मधुबाला को बॉलीवुड की ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया . इसके बाद अगले दो वर्षों में उन्होंने दुलारी , बेक़सूर और तराना जैसी तत्कालीन सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया .


मधुबाला अपने समय की सबसे खूबसूरत अभिनेत्री मानी जाती थीं . उनकी बढ़ती लोकप्रियता से उनका नाम अमेरिका तक पहुंचा और 1952 के अगस्त अंक में हॉलीवुड की पत्रिका “ थियेटर आर्ट्स ने उन्हें “ बिगेस्ट स्टार ऑफ़ वर्ल्ड “ कहा था . उस समय ऑस्कर अवार्ड विजेता निर्देशक फ्रैंक काप्रा ने उन्हें हॉलीवुड के लिए ऑफर भी दिया था . पर मधुबाला के पिता को यह स्वीकार न था .


मधुबाला ने समकालीन शीर्ष कलाकारों के साथ अभिनय किया है - अशोक कुमार , देव आनंद , राज कपूर , गुरु दत्त , शम्मी कपूर , प्रदीप कुमार , दिलीप कुमार , भारत भूषण , किशोर कुमार . उन्होंने तत्कालीन सफल अभिनेत्रियों के साथ भी अभिनय किया है - निम्मी , गीता बाली , सुरैया , श्यामा , कामिनी कौशल आदि .

1951 की फिल्म “ तराना “ में दिलीप के साथ काम करते समय दोनों करीब हुए . वे दोनों एक दूसरे को चाहने लगे थे . मदुबाला के पिता को यह रिश्ता मंजूर नहीं था . वह पिता की आज्ञा आदर करती थीं . फिल्म नया दौर में पहले मधुबाला की हीरोइन थीं . कुछ शूटिंग्स भी हो चुकी थी . पर मधुबाला के पिता ने उन्हें आउटडोर शूटिंग में जाने से मना कर दिया था . निर्माता बी आर चोपड़ा ने फिल्म में मधुबाला की जगह वैजयंतिमाला ले कर फिल्म की शूटिंग षुरू की . मधुबाला के पिता ने कोर्ट में केस किया . उस केस में दिलीप ने मधुबाला के खिलाफ गवाही दी थी . इस घटना ने दोनों के रिश्ते को पूर्ण विराम दे दिया .


मधुबाला को दिल की बीमारी थी , उनके ह्रदय में छिद्र था . 1954 -55 के समय से उनका स्वास्थ्य पहले ऐसा नहीं रहा था . 1956 में ढ़ाके की मलमल फिल्म के दौरान वे किशोर कुमार के सम्पर्क में आयीं . किशोर उनके रोग से वाकिफ थे , फिर भी 1960 में दोनों ने शादी की .


1958 की फिल्म “ हावड़ा ब्रिज “ में अशोक कुमार के साथ काम किया है. उन पर फिल्माया गया गाना “ आईये मेहरबां . . . “ आज भी उतना ही लोकप्रिय है .


1960 में रिलीज हुई उनकी फिल्म “ मुग़ल ए आजम “ को बॉक्स ऑफिस पर बेशुमार सफलता मिली थी . इस रिकॉर्ड को 15 साल बाद “ शोले “ ही तोड़ सका था .


मधुबाला ने 1964 तक फिल्मों में काम किया है . उन्होंने लगभग 70 फिल्मों में काम किया है , हालांकि बाद में बनी उनकी फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही थीं . 23 फ़रवरी 1969 को उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली थी .


पुरस्कार


उनको 1960 की फिल्म मुगल ए आज़म के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस के लिए नामांकित किया गया था . पर उन्हें यह अवार्ड नहीं मिल सका था , हालांकि फिल्म को उस वर्ष का बेस्ट फिल्म अवार्ड मिला था .


मधुबाला की प्रमुख फ़िल्में - नील कमल , दुलारी , तराना , महल , दौलत , निराला , बादल , काला पानी , चलती गाड़ी , इंसान जाग उठा , अमर , आराम , संगदिल , राजहठ , फागुन , हावड़ा ब्रिज , मुगल ए आज़म , Mr and Mrs 55 , बरसात की रात ,जाली नोट आदि

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PART 21 - मीना कुमारी


जन्म - 1 अगस्त 1933 , दादर , मुंबई ( तब बॉम्बे )

मृत्यु - 31 मार्च 1972 , मुंबई

बर्थ नेम - महजबीं बानो

स्क्रीन नेम - मीना कुमारी


प्रारम्भिक जीवन


मीना कुमारी का जन्म एक गरीब रंगमंच कलाकर के परिवार में हुआ था . उनके पिता अली बक्स और माँ इक़बाल बेगम थीं , जो डांसर भी थीं . कहा जाता है कि उनके जन्म के बाद डॉक्टर की फीस भी अली बक्स नहीं दे सके थे . बक्स ने मीना को एक मुस्लिम अनाथालय में छोड़ दिया था , पर कुछ ही घंटों बाद जा कर वापस भी ले आये .


ऐसा भी कहा जाता है कि मीना कुमारी का संबंध रवींद्र नाथ टैगोर के परिवार से था . पहले यह परिवार शांतिनिकेतन के पास बोलपुर में रहता था . टैगोर के छोटे भाई की लड़की हेम सुंदरी टैगोर थीं , जो कम उम्र में ही विधवा हो गयी थीं . सम्पत्ति विवाद के चलते उन्हें परिवार से अलग होना पड़ा था . सुंदरी ने मेरठ आकर एक क्रिश्चन से शादी कर ली जिससे उन्हें दो बेटियां हुई . इनमें से एक प्रभावती थी जो मीना कुमारी की माँ थी . अली बक्स से शादी के बाद प्रभावती इक़बाल बेगम बनी थी .


इस बात का संकेत एक पुस्तक से भी मिलता है जिसे राँची यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के अवकाशप्राप्त प्रोफ़ेसर डॉ रतन प्रकाश ने लिखी है . उनके अनुसार उनकी माँ और प्रभावती ( मीना की माँ ) में मित्रता थी . डॉ रतन जब भी मुंबई जाते तो मीना कुमारी से मिलते और अक्सर उनके यहाँ रुकते थे . वे उन्हें दीदी कहा करते थे . जब कभी मीना का मन फ़िल्मी दुनिया से उदास हो जाता तो वे कहीं शांति से रहना चाहती थीं . शायद इसी कारण उन्होंने राँची के टैगोर हिल्स ( मोराबादी ) में एक बड़ा सा प्लाट भी ख़रीदा था .इसकी बॉउंड्री वॉल के लिए उन्होंने डॉ प्रकाश को रूपये भी दिए थे .डॉ रतन के अनुसार यह जमीन उनके पिता के नाम थी और अब उसका काफी भाग बिक चुका है . डॉ रतन ने उन्हें अपनी एक कहानी “ फिर मिलेंगे “ दिखाई जो मीना कुमारी को पसंद भी आई थी . शायद वे इस कहानी पर कोई फिल्म बने सोचते हों . उनके अनुसार मीना ने उन्हें कहा कि पहले अपनी पढ़ाई पूरी करो . मीना कुमारी की मृत्यु के करीब तीन सप्ताह पूर्व डॉ रतन उनसे मिले भी थे . उनकी मृत्यु के बाद डॉ रतन ने अपनी पुस्तक छपवाई थी जिसकी कवर पेज पर मीना कुमारी की तस्वीर थी .

फ़िल्मी सफर


अली बक्स का परिवार मुंबई के एक स्टूडियो के पास ही रहता था . चार साल की उम्र से वह मीना को ले कर अक्सर काम पाने की उम्मीद में स्टूडियो के चक्कर काटा करता था . एक दिन मीना कुमारी को निर्माता विजय भट्ट ने फिल्म “ लेदरफेस “ ( 1939 ) में बाल कलाकार के लिए चुना गया . मीना कुमारी को पहले दिन 25 रूपये मिले थे . इसके बाद भट्ट ने 1939 में ही “ अधूरी कहानी “ के लिए फिर 1940 में ” पूजा ” और “ एक ही भूल “ के लिए लिया था . एक ही भूल में उन्हें बेबी मीना नाम मिला था , इसके पहले बेबी महजबीं से जानी जाती थीं .


मीना तो अन्य बच्चों की तरह पढ़ने के लिए स्कूल जाना चाहती थीं , पर परिवार के पोषण के लिए उन्हें अक्सर स्टूडियो जाना पड़ता था . उनकी पढ़ाई स्कूल में नहीं हो सकी थी . बाद में मीना कुमारी ने बताया कि उन्हें पढ़ने का बहुत शौक़ था और उन्होंने उर्दू , हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान प्राइवेट ट्यूशन से घर पर ही प्राप्त किया था .


पहली बार लीड रोल उन्हें 13 साल की उम्र में 1946 में फिल्म “ बच्चों का खेल “ में मिला . इसके लिए उन्हें काफी सराहा गया था . 1946 से 1951 तक मीना ने काफी फ़िल्में की और हर फिल्म में उनकी एक्टिंग की प्रशंसा की गयी . 1952 की फिल्म “ बैजू बावरा “ उनके कैरियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ था . यह फिल्म भी उनके फ़िल्मी गुरु विजय भट्ट की थी . मीना कुमारी अब बॉलीवुड में स्टार बन चुकी थीं .


इसी दौरान फिल्म “ तमाशा “ के सेट पर अशोक कुमार ने मीना कुमारी का परिचय निर्देशक कमाल अमरोही से कराया जो उन दिनों ऐतिहासिक फिल्म “ अनारकली “ बनाने जा रहे थे . अमरोही ने मीना को फिल्म के लिए साइन कर लिया . पर महाबलेश्वर से मुंबई लौटते समय मीना कुमारी कार दुर्घटना में घायल हो गयी थीं . उन्हें पूना (अब पुणे ) के अस्पताल में भर्ती कराया गया . उनका बायां हाथ बुरी तरह जख्मी था . चार महीने के सघन उपचार के बाद वे ठीक तो हुईं पर उन्हें बाएं हाथ की कनिष्ठा को खोना पड़ा था . इसी कारण वे फिल्मों में इस अंगुली को दुपट्टे या साड़ी में छुपाते मिलती हैं . कहा जात्ता है इस दौरान कमाल अमरोही उनका ख्याल रखते थे . दोनों में नजदीकियां बढ़ी थीं . दोनों ने चुपके से निकाह कर लिया था , हालांकि उम्र में अमरोही मीना से काफी बड़े थे और पहले से शादी शुदा , बच्चेदार थे . इस निकाह की खबर करीब एक साल बाद उनके पिता अली बक्स को मिली तो वे बहुत नाराज हुए . बक्स तो इस रिश्ते को तोडना चाहते थे , पर मीना को यह मंजूर नहीं था . बक्स के मना करने के बावजूद मीना ने कमाल अमरोही की फिल्म “ दायरा “ में काम किया . इसके चलते उन्हें पिता का घर छोड़ कर अमरोही के यहाँ जान पड़ा .कमाल प्यार से मीना कुमारी को मंजू कहते थे और मीना उन्हें चंदन .


फिल्म “ बैजू बावरा “ के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड मिलने के बाद मीना को 1953 की बिमल राय की फिल्म “ परिणीता “ के लिए भी वही अवार्ड मिला . बिमल राय की ही दूसरी फिल्म “ दो बीघा जमीन “ में भी उनका रोल था . इस फिल्म को कांन्स फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड मिला था . किसी भारतीय फिल्म के लिए यह पहला अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड था .


इसके बाद मीना कुमारी ने 1962 तक अनेक सुपरहिट फ़िल्में की थीं . बलराज साहनी , अशोक कुमार , राज कुमार , राज कपूर , सुनील दत्त , देव आनंद , दिलीप कुमार , किशोर कुमार सहित अन्य अभिनेताओं के साथ लीड रोल में रही थीं . ट्रैजडी रोल में उनका अभिनय बेमिसाल था , इसी कारण उन्हें बॉलीवुड की ट्रैजडी क्वीन भी कहा जाता था . पर “ मिस मेरी “ में दक्षिण के मशहूर अभिनेता जैमिनी गणेशन के साथ उनका बेहतरीन कॉमेडी रोल भी देखने को मिला था .


1962 में गुरुदत्त की फिल्म “ साहब बीबी और गुलाम “ में वे छोटी बहू के रोल में थीं . इस फिल्म में उनके अभिनय की भरपूर प्रशंसा हुई . आकाशवाणी के एक इंटरव्यू में 1967 में उन्होंने इस रोल को अपना सर्वोत्तम रोल माना था . कहा जाता है कि यह अभिनय उनके रील और रियल लाइफ से मिले अनुभव से ही संभव हुआ था . इस फिल्म के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया था .


कमाल अमरोही ने शादी के बाद मीना को फिल्मों में काम करने की अनुमति तो दी थी पर सख्त शर्तों और बंदिशों के साथ .उनके कमलिस्तान स्टूडियो और ” दायरा “ एवं “ पाकीज़ा “ फिल्मों में ज्यादातर पैसा मीना कुमारी का ही लगा था .


शुरू में तो मीना ने पति की शर्तों का पालन किया था पर धीरे धीरे अपने काम के चलते यह संभव न हो सका था . तब मीना को उनसे अलग रहना पड़ा था हालांकि दोनों का औपचारिक तलाक नहीं हुआ था . कहा जाता है कि कमाल ने भी महसूस किया कि वे मीना के प्रति कुछ ज्यादा ही सख़्त थे . कुछ दिन मीना अपनी बहन महलिका ( मधु ) के पति मशहूर कॉमेडियन महमूद के घर में रही थीं . उसके बाद वे जुहू के अपने निवास “ जानकी कुटीर “ में रहने लगीं . पर पति से अलगाव के चलते वे टूट चुकी थीं . काफी उदास रहने लगी थीं . उन्हें सोने के लिए काफी मात्रा में नींद की गोली लेनी होती थी . उनके निजी डॉक्टर ने पिल्स से छुटकारा दिलाने के लिए थोड़ी मात्रा में ब्रांडी पीने की सलाह दी . मीना ने थोड़ी मात्रा से पीना शुरू किया , पर धीरे धीरे ये मात्रा काफी बढ़ गयी थी . ज्यादा शराब पीने से उनका लीवर ख़राब हो चला था .


उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था . फिर भी उन्होंने फिल्मों में काम करना जारी रखा था और “ काजल “ .” फूल और पत्थर “ , “ मझली दीदी “ , बहारों की मंजिल “ , “ भीगी रात “, “ बहू बेगम “ , “ नूरजहां “ , “ चित्रलेखा “ आदि अनेक सफल फिल्मों में अभिनय किया था . 1968 में उनकी तबियत काफी बिगड़ गयी थी . वे उपचार के लिए स्विट्ज़रलैंड और इंग्लैंड गयीं . लगभग चार महीने के बाद वे भारत लौटीं और उसके बाद उन्होंने पीना छोड़ दिया था . वहां से लौटने के बाद ही उन्होंने कार्टर रोड के “ लैंडमार्क “ में अपना फ्लैट ख़रीदा था . इसके बाद 70 के दशक में भी मीना कुमारी ने कुछ फिल्मों में काम किया है जिनमें दुश्मन , मेरे अपने , जबाब , गोमती के किनारे आदि प्रमुख हैं . मीना कुमारी ने करीब 100 फिल्मों में अभिनय किया है .


कमाल अमरोही से अलगाव के दौरान उनकी फिल्म पाकीज़ा अधूरी लटकी हुई थी . कमाल ने मीना कुमारी से पत्र लिख कर आग्रह किया कि मीना इस फिल्म को जरूर पूरा करें क्योंकि इसके न बनने से हजारों लोगों का भविष्य खतरे में है . अगर वो फिल्म पूरा कर लेंगीं तो उन्हें तलाक भी मिल सकता है . मीना तैयार हो गयीं और पूरी फिल्म में काम करने के लिए बस एक गिन्नी की मांग की . हालांकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था , फिर भी मीना ने पाकीज़ा पूरी की .


लंबे इंतजार के बाद पाकीज़ा बन कर तैयार थी . 3 फ़रवरी 1972 को मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमा हॉल में उसका प्रीमियर शो था .मीना कुमारी अपनी जिंदगी के अंतिम प्रीमियर शो में शामिल हुई थीं .फिल्म देखने के बाद उन्होंने कमाल की काफी तारीफ़ की थी .


कुछ ही दिनों बाद 28 मार्च 1972 को वे मुंबई के एलिज़ाबेथ अस्पताल में भर्ती हुईं . उन्हें लिवर सिरोसिस था . कमाल साहब के अनुसार मीना ने कोमा में जाने से पहले उन्हें कहा था “ चंदन , अब मैं ज्यादा समय जिन्दा नहीं रहूंगी . मेरी इच्छा है कि मेरी मौत आपकी बाहों में हो .”


31 मार्च 1972 को मात्र 38 वर्ष की आयु में मीना कुमारी ने दुनिया को अलविदा कहा . भारत ने एक बेहतरीन कलाकार खो दिया था . उनकी मौत पर सिर्फ भारत नहीं अन्य देशों ने में भी काफी दुःख प्रकट किया था .


वे उर्दू में “ नाज़ “ नाम से ग़ज़ल और कविता भी लिखती थीं . उन्होंने अपनी कविताओं की डायरी गुलज़ार को दिया था . उनकी कविता संग्रह “ तन्हा चाँद “ को गुलजार ने छपवाई है .


पुरस्कार


उन्हें चार फिल्मफेयर अवार्ड्स मिले हैं - फिल्म बैजू बावरा , परिणीता , काजल और साहब बीबी और गुलाम के लिए .इसके अलावा अनेकों बार उन्हें नामांकित किया गया था .


मीना कुमारी की प्रमुख फ़िल्में


वैसे तो उनकी सभी फ़िल्में खास होती थीं , पर उनकी बहुचर्चित फ़िल्में हैं- बैजू बावरा , परिणीता , मधु , यहूदी , हलाकू , ग़ज़ल , चाँद , शारदा , सांझ और सवेरा , साहब बीबी और गुलाम , काजल , आज़ाद , कोहिनूर ,सहारा, एक ही रास्ता , चिराग कहाँ रौशनी कहाँ , मैं चुप रहूंगी ,दिल एक मंदिर , प्यार का सागर , किनारे किनारे , फूल और पत्थर , दिल अपना और प्रीत पराई , गोमती किनारे , चित्रलेखा , आरती आदि ,सहारा, एक ही रास्ता , चिराग कहाँ रौशनी कहाँ , मैं चुप रहूंगी ,दिल एक मंदिर , प्यार का सागर , किनारे किनारे , फूल और पत्थर , दिल अपना और प्रीत पराई , गोमती किनारे , चित्रलेखा , आरती आदि

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PART 22 - नूतन


जन्म दिन - 4 जून 1936 , मुंबई

मृत्यु - 21 फ़रवरी 1991 , मुंबई

बर्थ नेम - नूतन समर्थ

स्क्रीन नेम - नूतन

प्रारम्भिक जीवन


नूतन का जन्म एक मराठी परिवार में हुआ था . उनके पिता कुमारसेन समर्थ एक गीतकार और निर्दर्शक थे और माँ शोभना समर्थ एक्ट्रेस थीं . चार भाई बहनों में सबसे बड़ी थीं . उनकी छोटी बहन तनूजा भी बॉलीवुड की जानी पहचानी एक्ट्रेस हैं . पंचगनी के जोसेफ कान्वेंट स्कूल में पढ़ने के बाद वे पढ़ाई के लिए स्विट्ज़रलैंड भी गयी थीं


फ़िल्मी सफर


1950 में 14 साल की उम्र में अपनी माँ की फिल्म “ हमारी बेटी “ से उनका बॉलीवुड सफर शुरू हुआ . इसके बाद 1954 तक नूतन ने कुछ फ़िल्में कीं - नगीना , परबत , शबाब आदि . 1955 की फिल्म “ सीमा “ में उनका अभिनय काफी अच्छा रहा और उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड भी मिला था . इसके कुछ ही दिनों के बाद सदाबहार एक्टर देव आनंद के साथ उनकी 1957 की फिल्म “ पेइंग गेस्ट “ सुपरहिट रही थी . अब तक फिल्म जगत में उनकी अपनी अच्छी पहचान बन चुकी थी .

1959 में नेवी ऑफिसर रजनीश बहल के साथ नूतन की शादी हुई . इसके बाद भी उन्होंने फिल्मों में अभिनय जारी रखा था .


1959 की दो फ़िल्में राज कपूर के साथ “ अनाड़ी “ और सुनील दत्त के साथ बिमल राय की पुरस्कृत फिल्म “ सुजाता “ सुपरहिट थीं . इसके बाद तो उनके कैरियर ग्राफ में काफी उछाल आ गया था . सुजाता के लिए उन्हें दूसरा फिल्मफेयर अवार्ड मिला . अब उन्हें पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं थी . इसके चंद वर्षों के अंदर ही उन्हें दो और फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड फिल्म “ बंदिनी “ और “ मिलन “ के लिए मिले . इसके अतिरिक्त कुछ अन्य फिल्मों में अच्छी एक्टिंग के लिए उनका नामांकन किया गया था .


उन्होंने अपने समय के सभी मशहूर एक्टर्स के साथ रोल किया . इसके बाद भी कुछ नए अभिनेताओं अनिल कपूर , अमिताभ बच्चन आदि के साथ भी काम किया है . जब हीरोइन की उम्र नहीं रही , इसके बाद भी अनेकों फिल्मों में चरित्र रोल में प्रशंसा की पात्र रही थीं . इस रोल में भी उन्हें दो फिलमेयर अवार्ड मिले हैं .


नूतन की फ़िल्में 1994 तक रिलीज हुई थीं . उन्होंने करीब 90 फिल्मों में काम किया है .1994 की “ इंसानियत ” उनकी अंतिम फिल्म थी . उन्होंने अलग अलग तरह के रोल किये हैं . सुजाता और बंदिनी में लीक से हट कर अलग प्रकार के रोल किये हैं .


फ़ोर्ब्स मैगजीन ने भी नूतन को इंडियन सिनेमा की तत्कालीन बेस्ट लीडिंग एक्ट्रेस माना था . शायद बहुत कम लोगों को मालूम हो कि उनकी आवाज भी मधुर थी , पर उन्होंने एक्टिंग को अपना कैरियर बनाया . उन्होंने खुद “ छबीली “ फिल्म में गाया भी है .


1990 में उनके स्तन कैंसर का उपचार किया गया था . फ़रवरी 1991 में ब्रीच कैंडी अस्पताल में नूतन ने अपनी अंतिम सांस ली थी . उस समय भी वे एक फिल्म “ गर्जना “ के लिए काम कर रही थीं .


पुरस्कार


भारत सरकार ने नूतन को पद्मश्री से सम्मानित किया है .


फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड फिल्म्स -सीमा , सुजाता , बंदिनी , मैं तुलसी तेरे आंगन की ,और मिलन के लिए जो वर्षों तक एक रिकॉर्ड रहा था . इसके अलावा बेस्ट सपॉर्टिंग एक्ट्रेस अवार्ड फिल्म “ मेरी जंग “ के लिए भी मिला है . बंदिनी , मिलन और सौदागर में सर्वोत्तम एक्ट्रेस के अवार्ड से BFJA ( बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन ) ने सम्मानित किया है .


प्रमुख फ़िल्में -


उपरोक्त पुरस्कृत फिल्मों के अतिरिक्त उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं - छबीली , छलिया, मैं तुलसी तेरे आंगन की , अनुराग , शबाब , बारिश , कन्हैया , दिल ही तो है , तेरे घर के सामने , मंज़िल , खानदान , मेहरबान, देवी , दिल ने फिर याद किया , दुल्हन एक रात की , सौदागर , कर्मा आदि 20

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PART 23 - संजीव कुमार


जन्म - 9 जुलाई 1938 , सूरत ,

(तत्कालीन बॉम्बे प्रेसिडेंसी , ब्रिटिश इंडिया )

मृत्यु - 6 नवंबर 1985 , मुंबई

बर्थ नेम - हरिहर जेठालाल जरीवाला

स्क्रीन नेम - संजीव कुमार

प्रारम्भिक जीवन


सूरत के एक गुजराती पटेल परिवार में उनका जन्म हुआ था . उन्हें हरिभाई के नाम से भी जाना जाता था . उनका परिवार बाद में मुंबई आ गया था . उन्हें एक्टिंग और फिल्मों का शौक शुरू से ही था .


फ़िल्मी सफर - मुंबई में संजीव ने नाटकों में भाग लेना शुरू किया . पहले उन्होंने मुंबई में IPTA ( इंडियन पीपुल्स थियेटर असोसिएशन ) ज्वाइन किया और इसके बाद इंडियन नेशनल थियेटर . युवावस्था में भी वे बूढ़े का रोल स्टेज पर किया करते थे .


उनका फ़िल्मी सफर 1960 में “ हम हिंदुस्तानी “ की छोटी सी भूमिका से शुरू हुआ . पहली बार 1965 में वे फिल्म “ निशान “ में नायक की भूमिका में नजर आये . 1968 में दिलीप कुमार के साथ फिल्म “ संघर्ष “ में अभिनय किया था . 1966 - 68 के बीच संजीव ने दो गुजराती फिल्मों में भी अभिनय किया . उनके अभिनय की सही पहचान 1970 की फिल्म “ खिलौना “ से हुई थी . गीतकार और निर्देशक गुलज़ार उनके अभिनय से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने संजीव को “ कोशिश “ , “ आंधी “ और “ मौसम “ में कास्ट किया था . इनमें प्रौढ़ आदमी के रोल में संजीव कुमार का प्रशंसनीय अभिनय था .


संजीव सभी प्रकार के रोल सहजता से निभा लेते थे . नया दिन नयी रात में नौ प्रकार के किरदार में थे ,


“ दस्तक “ , “ अंगूर “ ( डबल रोल में ) ,” शोले “ का ठाकुर या “ सीता और गीता “ , “ अर्जुन पंडित , “ शिकार “, “ शतरंज के खिलाड़ी “ , “ नमकीन “ , “ पति पत्नी और वो “ आदि फिल्मों में उनका अभिनय काफी सराहनीय रहा था .


संजीव ने सुपरस्टार राजेश खन्ना , दिलीप कुमार और अभिताभ बच्चन के साथ भी काम कर अपने अभिनय प्रतिभा को दर्शाया है . 1980 के बाद से वे चरित्र अभिनेता के रूप में भी निखर कर आये . हिंदी के अलावा संजीव ने गुजराती , तमिल , पंजाबी , मराठी , तेलगु और सिंधी फिल्मों में भी अभिनय किया है . वे एक बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार थे .


संजीव कुमार की शादी नहीं हुई थी . उन्हें अनुवांशिक हृदय रोग था . पहले हार्ट अटैक के बाद अमेरिका में उनकी बाई पास सर्जरी भी हुई थी . 6 नवंबर 1985 को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था . बुजुर्ग का रोल करने वाला संजीव 47 साल की उम्र में चल बसा . लगभग दस फ़िल्में उनकी मृत्यु के बाद रिलीज हुई थीं . 1993 की फिल्म “ प्रोफ़ेसर की पड़ोसन “ उनकी अंतिम फिल्म थी . संजीव कुमार ने करीब 168 फिल्मों में अभिनय किया है .


पुरस्कार


फिल्म “ दस्तक “ और “ कोशिश “ के लिए संजीव कुमार बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था . “ आंधी “ , “ अर्जुन पंडित “ के लिए बेस्ट एक्टर और “ शिकार “ के लिए बेस्ट सपॉर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड से वे सम्मनित हुए थे . उन्हें 11 बार फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामांकित भी किया गया था . इनके अतिरिक्त अन्य संस्थाओं द्वारा अनेकों पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया था .


प्रमुख फ़िल्में - उपरोक्त चर्चित फिल्मों के अतिरिक्त संजीव कुमार की प्रमुख फ़िल्में हैं - आप की कसम , विधाता , सिलसिला , श्रीमान श्रीमती , खुद्दार , काला पत्त्थर , स्वर्ग नरक , नौकर ,देवता , दासी , त्रिशूल , पापी , फरार , विश्वासघात , उलझन ,ईमान , राजा और रंक , मनोरंजन , अनामिका , परिचय , अनुभव , देवी , सत्यकाम , अनोखी रात , नौनिहाल , जीने की राह , आशीर्वाद , देवी आदि


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PART 24 - नंदा


जन्म - 8 जनवरी 1939 , कोल्हापुर , महारष्ट्र

मृत्यु - 25 मार्च 2014 , मुंबई

बर्थ नेम - नंदा

स्क्रीन नेम - बेबी नंदा और नंदा


प्रारम्भिक जीवन


नंदा के पिता मास्टर विनायक स्वयं एक कलाकार थे .नंदा का जन्म एक मराठी परिवार में 1939 में मुंबई में हुआ था . सात भाई बहनों में वह तीसरे नंबर पर थी . वह वी शांताराम की भतीजी भी थी .


फ़िल्मी सफर


नंदा का फ़िल्मी सफर 40 के दशक से ही शुरू हो गया था .पिता के देहांत के कारण परिवार की आर्थिक सहायता के उद्देश्य से आठ साल की आयु में वह बाल कलाकार बनीं .


1948 में “ मंदिर “ फिल्म में उन्होंने बाल कलाकार के रूप में एक लड़के का रोल किया था .बेबी नंदा के नाम से 1952 की फिल्म “ जग्गू “ में काम किया था . एक बार किसी पारिवारिक शादी में शांताराम ने उन्हें साड़ी पहन कर आने को कहा .साड़ी में नंदा उन्हें इतनी जँची कि उन्होंने 1956 में अपनी मशहूर फिल्म “ तूफ़ान और दिया “ में एक अहम रोल दिया और साथ ही बेबी नंदा की जगह बतौर नंदा लांच किया . उनके रोल की काफी तारीफ की गयी . इसके बाद 1957 की बहुचर्चित और सुपरहिट फिल्म “ भाभी “ के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के फिल्मफेयर अवार्ड के लिए उनका नामांकन हुआ था . 1959 की सुपरहिट फिल्म “ छोटी बहन ” में उनके टाइटिल रोल की काफी प्रशंसा की गयी .अब तक नंदा ने बॉलीवुड में अपनी खास जगह बना ली थी . 1960 में फिल्म ” आँचल ” के लिए एक बार उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का अवार्ड मिला .


इसके बाद तो उन्होंने बॉलीवुड के टॉप हीरो देव आनंद के साथ “ हमदोनों “ , ” काला बाज़ार “ और “ तीन देवियाँ “ में और राज कपूर के साथ “ आशिक़ “ में काम किया. अपने ज़माने के सभी टॉप स्टार्स के साथ उन्होंने काम किया है .50 से 70 के दशक की सुपर तिकड़ी देव आनंद , राज कपूर और दिलीप कुमार के साथ उन्होंने काम किया है .शशि कपूर को बॉलीवुड में पैर ज़माने का मौका नंदा ने 1961 की फिल्म “ चार दीवारी “ में दिया .उन्होंने शशि कपूर के साथ आठ फ़िल्में कीं .यहाँ तक कि सुपर स्टार राजेश खन्ना ने भी 1969 में उनके साथ

“ इत्तफाक “ में काम किया है .यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट रही थी .. . 60 के दशक के उत्तरार्द्ध और 70 के शुरू में नंदा की गिनती बॉलीवुड की सर्वाधिक महंगी अभिनेत्रियों में भी थी. उनकी अन्य बहुचर्चित फिल्मों में कुछ “ धूल का फूल “ , गुमनाम , हरियाली और रास्ता , “ जब जब फूल खिले “ , “ द ट्रेन “ ,” कानून “, “ नर्तिकी “ , “ आज और कल “ हैं .


नंदा ने करीब 70 फिल्मों में काम किया है .बतौर हीरोइन 1974 में “ नया नशा “ में नशे की आदी लड़की का रोल किया था .इसके बाद 80 के दशक में उन्होंने माँ के रोल किये .1983 की फिल्म” मजदूर “ में दिलीप कुमार के साथ काम किया था .90 के दशक में भी दो फिल्मों में काम किया था .” दिया और तूफ़ान “ उनकी अंतिम फिल्म थी .


वह स्वाभाव से हँसमुख , शर्मीली और अन्तःमुखी थीं .वह पब्लिक अपीयरेंस से परहेज करती थीं . देव आनंद ने रंगीन फिल्म “ हम दोनों “ के प्रीमियर में उन्हें निमंत्रित किया , पर वे नहीं गयी थीं . वहीदा रहमान , आशा पारेख , हेलेन , सायरा बानो से उनकी अच्छी दोस्ती थी .काफी देर बाद 1992 निर्माता निर्देशक मनमोहन देसाई से उनकी सगाई भी हुई , पर देसाई की दुखद मृत्यु हो जाने से शादी नहीं हो सकी थी . 25 मार्च 2014 को हार्ट अटैक से नंदा दुनिया को अलविदा कह चली गयीं .


पुरस्कार


नंदा को 1961 की फिल्म “ आँचल “ के लिए बेस्ट सपॉर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था . इसके अतिरिक्त चार बार उनका नामांकन बेस्ट सपोटिंग एक्ट्रेस के लिए हुआ था .


प्रमुख फ़िल्में


उपरोक्त चर्चित फिल्मों के अतिरिक्त उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं -आहिस्ता आहिस्ता , बंदिश , अंगारे , दुल्हन , धूल का फूल , उसने कहा था , अपना घर , मेंहदी लगी मेरे हाथ , धरती कहे पुकार के , आकाशदीप , मोहब्बत इसको कहते हैं , परिवार , जुआरी , अभिलाषा , रूठा न करो , शोर , , क़ातिल कौन , जुर्म और सजा आदि


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PART 25 - राजेश खन्ना


जन्म - 29 दिसंबर 1942 , अमृतसर , पंजाब ( उस समय ब्रिटिश इंडिया )

मृत्यु -18 जुलाई 2012 , मुंबई

बर्थ नेम - जतिन खन्ना

स्क्रीन नेम - राजेश खन्ना

राजेश खन्ना लाला हीरानंद और और चन्द्रानी खन्ना के पुत्र थे .उनके माता पिता के करीबी रिश्तेदार चुन्नीलाल खन्ना और लीलावती खन्ना ने उन्हें गोद लिया और उनका लालन पोषण किया था . उन्हें काका नाम से भी जाना जाता है .


प्रारम्भिक जीवन


मुंबई के सेंट सेबस्टियन गोअन स्कूल में उनकी शिक्षा हुई थी . स्कूल में उनकी दोस्ती राजीव कपूर ( फिल्म अभिनेता जितेंद्र ) से हुई . उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई वाडिया कॉलेज पुणे से की .राजेश का रूझान शुरू से ही रंगमंच की तरफ रहा था . उन्होंने स्कूल और कॉलेज के दिनों में नाटकों में भाग लिया और अनेकों बार पुरस्कार भी जीते थे .


फ़िल्मी सफर - 1965 में यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स एंड फिल्मफेयर द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में 10000 प्रतियोगियों में राजेश खन्ना विजेता रहे थे . 1966 में “ आखिरी खत “ उनकी पहली फिल्म थी . इस फिल्म को भारत की ओर से ऑस्कर के लिए भी भेजा गया था . बॉलीवुड में पहला ब्रेक उन्हें 1967 की फिल्म “ राज़ “ से मिला . वे इतने लोकप्रिय हो गए थे कि जनता के दबाव के चलते 1967 की फिल्म “ बहारों के सपने “ को रिलीज के एक सप्ताह बाद ही ट्रैजडी से कॉमेडी में बदलना पड़ा था .


शुरू में वे यूनाइटेड प्रोडूसर्स के अनुबंध में थे जिसके अंदर उन्होंने “ औरत “ , “ डोली “ और “ इत्तफाक “ फ़िल्में की . 1967 की फिल्म “ आराधना “ की अपार सफलता के बाद वे बहुत मशहूर हुए . राजेश खन्ना बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार बन गए थे .इस फिल्म में उनके लिए गाये हुए किशोर कुमार के गाने भी अत्यंत लोकप्रिय हुए थे .इसके बाद से 1987 तक जब तक किशोर जीवित रहे , राजेश खन्ना के ज्यादार गाने किशोर ने ही गाये थे .


1969 -71 के बीच राजेश खन्ना की लगातार 15 फिल्में सुपरहिट थीं जो आज तक एक रिकॉर्ड है . उन्होंने अनेकों एक्टर्स और एक्ट्रेस के साथ 168 फ़िल्में और 12 लघु फिल्मों में काम किया है . मुमताज़ के साथ उन्होंने आठ फ़िल्में कीं हैं , जो सफल रही हैं .इसके अतिरिक्त हेमा मालिनी , शर्मीला टैगोर , स्मिता पाटिल , शबाना आज़मी , ज़ीनत अमान , तनूजा , आशा पारीख आदि के साथ अनेकों हिट फिल्मों में काम किया है . राजेश ने 74 गोल्डन जुबिली हिट्स ( जिसमें 48 प्लेटिनम हिट्स , 26 गोल्डन जुबिली हैं ) फ़िल्में की हैं . इसके अलावा 22 सिल्वर जुबिली हिट्स और 9 हिट्स दिए हैं . कुछ फिल्मों के वे प्रोड्यूसर या सह प्रोड्यूसर भी रहे हैं . 2014 में रिलीज हुई फिल्म “ रियासत “ उनकी आखिरी फिल्म थी .


1968 से 1972 तक अंजू महेन्द्रू उनकी गर्ल फ्रेंड रही थी . कहा जाता है कि अंजू के शादी से इंकार करने के बाद 1973 में राजेश खन्ना और डिंपल कपाडिया की शादी हुई थी .


90 के दशक में खन्ना ने राजनीति में कदम रखा . 1992 - 96 तक वे लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के सांसद रहे थे .

18 जुलाई 2012 को मुंबई में कैंसर से उनकी मौत हो गयी थी .


पुरस्कार - भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है .


राजेश खन्ना को अभिनय के लिए छः बार फिल्मफेयर अवार्ड्स मिले हैं -आविष्कार , अनुराग ,आनंद , सच्चा झूठा फिल्मों के अतिरिक्त एक लाइफ टाइम अचीवमेंट और एक स्पेशल अवार्ड फिमों में 25 साल पूरा करने के लिए . इसके अतिरिक्त अन्य संस्थाओं द्वारा भी उन्हें पुरस्कार दिए गए हैं .


प्रमुख फ़िल्में


उपरोक्त कहे गए फिल्मों के अलावा उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं - आ अब लौट चलें , घर परिवार , बेगुनाह , दुश्मन , स्वर्ग , घर का चिराग , नज़राना , अधिकार , अमृत , नसीहत , बाबू ,आखिर क्यों , मास्टरजी , आज का MLA , सौतन , अगर तुम ना होते , अवतार , कुदरत , , थोड़ी सी बेवफाई , महबूबा , प्रेम कहानी , रोटी , अजनबी , आप की कसम , नमक हराम ,दाग , मेरे जीवन साथी , हाथी मेरे साथी , बावर्ची , अमर प्रेम ,सफर , कटी पतंग दो रस्ते , द ट्रेन आदि


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PART 26 - स्मिता पाटिल


जन्म - 17 अक्टूबर 1955 , पुणे

मृत्यु - 13 दिसंबर 1986 , मुंबई


प्रारम्भिक जीवन


स्मिता पाटिल का जन्म एक मराठी परिवार में हुआ था . उनके पिता एक राजनितज्ञ थे और माता सामाजिक कार्यकर्ता . रेणुका स्वरुप स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की .इसके बाद पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीच्यूट से डिप्लोमा लिया .आरम्भ में 1970 में मुंबई दूरदर्शन पर उन्होंने समाचार पढ़ने का काम शुरू किया था .


फ़िल्मी सफर


1975 में सर्वप्रथम श्याम बेनेगल ने स्मिता को फिल्म “ चरणदास चोर “ में अवसर दिया था . आगामी कुछ वर्षों में सामानांतर सिनेमा वाली फिल्मों - मंथन , भूमिका , चक्र , आक्रोश , मिर्च मसाला, अर्थ , बाज़ार , मंडी , निशांत आदि में उनकी भूमिका काफी सराहनीय रही . सामानांतर सिनेमा से हट कर “ शक्ति “ और “ नमक हलाल “ दोनों फिल्मों में अमिताभ बच्चन के साथ उनका ग्लैमरस रोल भी सराहनीय था .


राज बब्बर के साथ उनकी शादी हुई थी .


इसके बाद स्मिता ने कमर्शियल फिल्मों में भी अपने अभिनय का अच्छा प्रदर्शन किया है . अमिताभ बच्चन , राजेश खन्ना , राज बब्बर आदि अभिनेताओं के साथ उन्होंने काम किया है . स्मिता पाटिल ने करीब 78 फिल्मों में अभिनय किया है .

13 दिसम्बर 1986 को मात्र 31 वर्ष की आयु में प्रसव की जटिलताओं के चलते उनका निधन हो गया था .


पुरस्कार - भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है .


फिल्म चक्र और भूमिका के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है . तीन बार उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिले है , और पांच बार नामांकित भी किया गया था .


उपरोक्त फिल्मों के अतिरिक्त उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं - अमृत , आखिर क्यों , शक्ति , नमकहलाल , जवाब , गुलामी , आज की आवाज , बदले की आग , घुँघरू , हादसा , दिल ए नादान , मेरा घर मेरे बच्चे , दहलीज , दिलवाला , नज़राना आदि .


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PART 27 - शशि कपूर


जन्म - 18 मार्च 1938 , कलकत्ता ( बंगाल प्रेजिडेंसी , ब्रिटिश इंडिया -अब कोलकाता )

मृत्यु - 4 दिसंबर 2017 , मुंबई

बर्थ नेम - बलबीर पृथ्वीराज कपूर

स्क्रीन नेम - शशि कपूर

प्रारंभिक जीवन - शशि कपूर पृथ्वी राज कपूर के सबसे छोटे बेटे और राज कपूर और शम्मी कपूर के छोटे भाई थे . कहा जाता कि बचपन में उन्हें बोर्डिंग स्कूल पढ़ने के लिए भेजा गया था . पर वहां का खाना उन्हें इतना नापसंद आया कि उन्होंने वह स्कूल छोड़ दिया था . इसके बाद माटुंगा , मुंबई के डॉन बॉस्को से स्कूल की पढ़ाई की .


फ़िल्मी सफर - 40 के दशक और 50 दशक के आरम्भ में कुछ फिल्मों में शशि ने बाल कलाकार के रूप में काम किया था . दो फ़िल्में ¨ आग ¨ तो उनके बड़े भाई राज कपूर की थीं और ए फिल्म ¨ संघर्ष ¨ अशोक कुमार की थी जिनमें उन्होंने नायक के बचपन का रोल किया था .


अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के ¨ पृथ्वी थियेटर ¨ के साथ वे देश के विभिन्न भागों में रंगमंच में भाग लिया करते . वे नाटकों में भाग लेते थे और पृथ्वी थियेटर के मैनेजर भी थे . 50 के दशक में कुछ फिल्मों में उन्होंने सह निर्देशक का भी काम किया जिनमें दो फिल्मों ΅ दूल्हा दुल्हन ¨ और श्रीमान सत्यवादी ¨ में राज कपूर हीरो थे .


कोलकाता में एक थियेटर शो के दौरान शशि का दिल जेनिफर केंडॉल पर आ गया . जेनिफर शेक्सपीयर के नाटक द टेम्पेस्ट की नायिका थीं . कुछ दिनों बाद दोनों की शादी हुई .


पहला लीड रोल उन्हें 1961 में बी . आर . चोपड़ा की फिल्म ¨ धर्मपुत्र ¨ में मिला था .कुल मिला कर शशि ने लगभग 160 फिल्मों में काम किया है . 148 हिंदी फिल्मों के अतिरिक्त 12 ब्रिटिश और हॉलीवुड की अंग्रेजी फिल्मों में भी काम किया है - 61 फिल्मों में वे स्वयं लीड रोल में रहे हैं और 53 मल्टीस्टार फिल्मों में , कुछ में बाल कलाकार या अतिथि कलाकार रहे हैं . 60 और 70 के दशक और 80 के दशक के मध्य तक वे बॉलीवुड में काफी लोकप्रिय रहे .


शशि ने अनेकों अभिनेत्रियों के साथ काम किये हैं . सबसे ज्यादा दिलमें उन्होंने नंदा के साथ की हैं - 8 फ़िल्में , इनमें कुछ सुपरहिट भी रही हैं तो कुछ औसत और कुछ फ्लॉप भी . सदी के महानायक के साथ भी शशि ने 12 फ़िल्में की है जिनमें अधिकतर सुपरहिट या हिट रही हैं जैसे - दीवार , सुहाग , त्रिशूल , काला पत्थर , नमक हलाल , कभी कभी , सिलसिला आदि . कुछ फ़िल्में शशि ने पत्नी जेनिफर के साथ भी की है . वे छः फिल्मों के निर्माता रहे हैं जिनमें एक फिल्म ¨ जूनून ¨ को 1979 में सर्वोत्तम फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है और दूसरी फिल्म ¨ अजूबा ¨ में अमिताभ बच्चन हीरो रहे थे . अजूबा के अलावा छः अन्य हिंदी फिल्मों और एक रूसी फिल्म के वे निर्देशक या सह निर्देशक रहे हैं .


1984 में उनकी पत्नी का देहांत हो गया था . शशि के दो बेटे और एक बेटी है .

पुरस्कार - शशि कपूर को अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है . 2011 में उन्हें पद्म भूषण और 2015 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया .


उन्हें तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं - एक सर्वोत्तम फिल्म जूनून के लिए , एक सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए फिल्म न्यू दिल्ली टाइम्स में , एक सर्वोत्तम जूरी के लिए मिले हैं .


इसके अतरिक्त तीन फिल्मफेयर पुरस्कार दो सर्वश्रेष्ठ फिल्म जूनून और कलयुग के लिए और एक बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर फिल्म दीवार के लिए . अनेकों अन्य संस्थाओं द्वारा भी उन्हें पुरस्कृत किया गया है .


4 दिसंबर 2017 को मुंबई के एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हुई . उनकी मृत्यु का कारण लिवर की बीमारी बताया गया है . कहा जाता है कि वे अस्पताल में भी अन्य मरीजों की मदद किया करते थे .


प्रमुख फ़िल्में


शशि कपूर की प्रमुख हिंदी फ़िल्में फ़िल्में हैं - धर्मपुत्र , चार दीवारी , घर बाज़ार , अकेला , क्लर्क , सिन्दूर , प्यार की जीत , स्वाति , उत्सव , ज़मीन आसमान , घुँघरू , बेनज़ीर , नमक हलाल , कभी कभी , शर्मीली , सिलसिला , बसेरा , क्रांति , शान , काला पत्थर , काली घटा , सत्यं शिवं सुंदरम , ईमान धरम , प्रेम पत्र , जब जब फूल खिले , मेहँदी लगी मेरे हाथ ,रोटी कपड़ा और मकान ,प्यार का मौसम , प्यार किये जा , कन्यादान , वक़्त आदि


शशि की अंग्रेजी फ़िल्में हैं - द हाउस होल्डर , शेक्सपीयरवाला , ए मैटर ऑफ़ इन्नोसेंस , हीट एंड डस्ट , डीसीवर्स , साइड स्ट्रीट , बॉम्बे टॉकीज आदि . ज़्यदातर अंग्रेजी फ़िल्में इस्माईल मर्चेंट और जेम्स आइवरी की होती थीं .


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PART - 28 साधना

बर्थ नेम - साधना शिवदासानी


जन्म - 2 सितंबर 1941 , कराची , ब्रिटिश इंडिया ( अब पाकिस्तान )

मृत्यु - 25 दिसंबर 2015 , मुंबई

स्क्रीन नेम - साधना


प्रारम्भिक जीवन


साधना का परिवार बंटवारा के समय कराची से बॉम्बे ( अब मुंबई ) आया . साधना ने स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई वहीँ की . पर उनका मन बचपन से ही एक्ट्रेस बनाने का था और वे नूतन से प्रभावित थीं .


उनके पिताजी ने उनका साथ दिया . 1955 की राज कपूर की फिल्म श्री 420 के एक गाने ‘ मुड़ मुड़ के ना देख . . . ‘ में उनको देखा जा सकता है . पहली बार एक्टिंग करने का मौका उन्हें एक सिंधी फिल्म ‘ अबाना ‘ में 1958 में मिला .


बॉलीवुड का सफर


1960 में फिल्म ‘ लव इन शिमला ‘ में साधना के साथ साथ जय मुखर्जी को भी पहली बार मौका मिला . फिल्म हिट हुई और उस साल के टॉप 10 फिल्मों में थी . फिर क्या था , साधना ने बॉलीवुड में अपनी जगह पक्की कर ली . इसके तुरंत बाद फिल्म ‘ परख ‘ में उन्हें गाँव की सीधी साधी लड़की का रोल मिला जिसे उन्होंने बखूबी अदा किया .


स्टारडम - 1961 की देव आनंद की फिल्म ‘ हम दोनों ‘ में उन्हें लीड रोल मिला . फिल्म सुपरहिट हुई और साथ ही साधना स्टार बन गयीं . उस दौर में उनके हेयर कट ने धूम मचा दिया जिसकी देश की हजारों लड़कियां भी दीवानी थीं . इस हेयर स्टाइल का नाम ही ‘ साधना कट ‘ था . दरअसल यह हेयर स्टाइल ब्रिटिश एक्ट्रेस ऑड्रे हेपबर्न की नकल थी .


इसके बाद साधना ने लगातार काफी हिट फ़िल्में दी .वे अपने समय की सर्वाधिक पेड एक्ट्रेस थीं . 1960 और 1969 के बीच उनकी फ़िल्में धूम मचा रहीं थीं . इस बीच उनकी तबीयत खराब हुई और वे इलाज़ के लिए अमेरिका गयीं . वहां से लौटने के बाद भी उन्होंने कुछ फ़िल्में की , जिनमें कुछ तो सफल रहीं . उनकी मांग अब पहले जैसी नहीं रही . साधना को सपोर्टिंग एक्ट्रेस बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने फिल्मों से सन्यास ले लिया हालांकि उनकी कुछ फ़िल्में डिलेड ( delayed ) रिलीज के कारण 90 के दशक में भी आई हैं

. उन्होंने करीब 35 फ़िल्में की हैं .


उन्होंने पति के साथ अपनी प्रोडक्शन कंपनी भी बनाई और एक फिल्म ‘ पति परमेश्वर ‘ बनाया जिसमें डिंपल कपाडिया थीं . पर साधना का स्वास्थ्य भी उनका साथ नहीं दे रहा था . 25 दिसम्बर 2015 को साधना ने अंतिम सांस ली .


पुरस्कार - उन्हें दो बार फिल्म ‘ वो कौन थी ‘ और ‘ वक़्त ‘ के लिए बेस्ट एक्ट्रेस के लिए नॉमिनेट किया गया पर उन्हें मिला नहीं . 2002 में साधना को IFA ने ‘ लाइफ टाइम एचीवमेंट ‘ अवार्ड से सम्मानित किया .


साधना की प्रमुख फ़िल्में हैं ( उपरोक्त कही फिल्मों के अतिरिक्त ) - प्रेम पत्र , मनमौजी, एक मुसाफिर एक हसीना , असली नकली , मेरे महबूब , राज कुमार , दूल्हा दुल्हन , आरज़ू , मेरा साया , गबन , बदतमीज , अनीता , एक फूल दो माली , आप आये बहार आयी , गीता मेरा नाम आदि


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PART 29 - विनोद खन्ना


जन्म - 6 अक्टूबर 1946 , पेशावर , ब्रिटिश इंडिया ( अब पाकिस्तान )

मृत्यु - 27 अप्रैल 2017 , मुंबई


प्रारंभिक जीवन- विनोद खन्ना का परिवार बंटवारा के समय पेशावर से मुंबई आया . खन्ना ने स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली और मुंबई से की . वे क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी भी थे और बुद्धि कुंदरन और एकनाथ सोलकर जैसे टेस्ट प्लेयर्स के साथ खेल चुके हैं .


फ़िल्मी सफर - 1968 में सुनील दत्त की फिल्म ‘ मन का मीत ‘ में खन्ना ने फ़िल्मी सफर की शुरुआत खलनायक के रूप में किया . इसके बाद भी उनको सच्चा झूठा , पूरब और पश्चिम , आ न मिलो सजना और मेरा गाँव मेरा देश जैसी हिट फिल्मों में सपोर्टिंग रोल ही मिले .


1971 में पहली बार उन्हें सोलो लीड रोल फिल्म ‘ हम तुम और वो ‘ में मिला और उसी साल गुलज़ार की मल्टी स्टार फिल्म ‘ मेरे अपने ‘ में भी लीड रोल मिला . इसके बाद 1973 में गुलज़ार की ‘ अचानक ‘ और 1974 की फिल्म ‘ इम्तिहान ‘ के सोलो रोल्स में उन्हें काफी सफलता मिली . इसके बाद ‘ मुक़्क़दर का सिकंदर ‘ और ‘ अमर अकबर एंथनी ‘ भी ब्लॉकबस्टर रही . फिर तो 70 और 80 के दशक में उन्हें काफी फ़िल्में मिलीं और वे टॉप स्टार्स में गिने जाते थे हालांकि इस बीच करीब चार साल रजनीश के ओशो से जुड़े रहने के कारण फिल्मों से दूर रहे थे . वहां से वापसी के बाद भी खन्ना ने फिल्मों में जोरदार अभिनय दिखाया .


खन्ना ने अपने जीवन काल में करीब 150 फ़िल्में की . उन्होंने एक पाकिस्तानी फिल्म ‘ गॉडफादर ‘ में भी काम किया . वे स्मृति ईरानी की एक टीवी सीरियल में भी छोटे पर्दे पर आये .


राजनीति - खन्ना ने 1998 , 1999 , 2004 और 2014 में चार बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर लोक सभा चुनाव जीते और मंत्री भी रहे थे . 2009 का चुनाव वे हार गए थे .


27 अप्रैल 2017 को मुंबई के एक अस्पताल में ब्लाडर कैंसर के कारण उनका निधन हुआ .


पुरस्कार - उन्हें दो बार फिल्म फेयर अवार्ड मिला है . 2017 में उनके मरणोपरांत उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया .


उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं ( उपरोक्त कही फिल्मों के अतिरिक्त ) - जाने अनजाने , मस्ताना , रेशमा और शेरा , परवरिश , हाथ की सफाई ,हंगामा , परवरिश , अनुराग , परछाईयाँ , आरोप , कुंवारा बाप , ज़मीर , कैद , हेरा फेरी , खून पसीना , प्रेम कहानी , मैं तुलसी तेरे आंगन में , इंकार, क़ुदरत , बॉम्बे 405 माइल्स , मीरा आदि


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PART - 30 . किशोर कुमार


बर्थ नेम - आभास कुमार गांगुली

जन्म - 4 अगस्त 1929 , खण्डवा , मध्य प्रदेश ( तत्कालीन सेंट्रल प्रोविंस , ब्रिटिश इंडिया )

मृत्यु - 13 अक्टूबर 1987 , मुंबई

स्क्रीन नेम - किशोर कुमार


प्रारम्भिक जीवन


किशोर कुमार चार भाई बहनों में सबसे छोटे थे , उनके सबसे बड़े भाई अशोक कुमार और दूसरे भाई अनूप कुमार भी अभिनेता थे . जब वे छोटे थे तब तक दोनों बड़े भाई बॉम्बे ( मुंबई ) में फिल्म जगत में आ चुके थे . उन्होंने इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया .


फ़िल्मी सफर


अशोक कुमार बॉम्बे टॉकीज में काम करते थे . किशोर कुमार ने फ़िल्मी सफर कोरस गायक के रूप में शुरू किया . 1946 की फिल्म ‘ शिकारी ‘ उनकी पहली फिल्म थी . 1948 की फिल्म ’ ज़िद्दी ‘में गाये गाना “ मरने की दुआ क्यों मांगू “ से वे काफी प्रसिद्ध हुए . 1955 तक उन्होंने 22 फिल्मों में एक्टिंग की जिनमें 16 फ्लॉप रहीं , एक्टिंग से ज्यादा रूचि उन्हें गाने में थी . इसके बाद की कुछ फ़िल्में - लड़की , नौकरी , बाप से बाप - की सफलता के बाद 1966 तक उन्होंने काफी फिल्मों में अभिनय किया . उन्होंने तत्कालीन शीर्ष अभिनेत्रियों के साथ काम किया जिनमें मधुबाला , मीना कुमारी , वैजयंतीमाला , नूतन , माला सिन्हा और साधना भी हैं . परन्तु उन्होंने गायक के रूप में अपना सफर जारी रखा और बहुत मशहूर हुए .


उनके तीनों भाइयों की 1958 की एक फिल्म “ चलती का नाम गाड़ी “ जो उनका होम प्रोडक्शन भी था प्रसिद्ध कॉमेडी फिल्म थी . किशोर कुमार ऑल राउंडर थे - हीरो एक्टर , कॉमेडियन , गायक , निर्माता , निर्देशक , संगीत निर्देशक , पट कथा लेखक और लेखक यानि वन इन आल . 1964 की उनकी फिल्म “ दूर गगन की छाँव में “ में इसकी मिसाल मिलती है .


किशोर कुमार के गाने में “ योडलिंग “ उनकी एक विशेषता रही है . उन्होंने राजेश खन्ना के लिए 245 , जितेंद्र के लिए 202 , अमिताभ बच्चन के लिए 131 और देव आनंद के लिए 119 सहित 2678 गाने गाये हैं . फिल्म झुमरू में उन्होंने एक डुएट सांग सिर्फ अपनी ही आवाज़ में गाया है .


उनके बारे में कहा जाता है कि पैसा मिलने के बाद ही वे गाते थे . उन्होंने चार शादियां की थी जिनमें एक प्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला भी थीं . अभिनेत्री लीना चंदवरकर उनकी अंतिम पत्नी थीं .


प्रमुख फ़िल्में - उन्होंने करीब 92 फिल्मों में अभिनय किया है जिनमें कुछ प्रमुख हैं - लड़की , नौकरी , बाप से बाप , दूर गगन की छाँव में , न्यू दिल्ली , चलती का नाम गाड़ी , नया अंदाज़ , Mr X इन बॉम्बे , झुमरू , मनमौजी , आशा , भाई भाई , पड़ोसन , शरारत , रागिनी , ढ़ाके की मलमल आदि हैं .


पुरस्कार


उन्हें 12 पुरस्कार मिले हैं जिनमें सर्वश्रेष्ठ गायक के लिए 8 फिल्म फेयर अवार्ड हैं .

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PART 31 - सुरैया


जन्म - 15 जून 1929 , लाहौर , पंजाब , ब्रिटिश इंडिया ( अब पाकिस्तान )

मृत्यु - 31 जनवरी 2004 , मुंबई

बर्थ नेम - सुरैया ज़माल शेख

स्क्रीन नेम - सुरैया

प्रारम्भिक जीवन - सुरैया एक साल की उम्र में ही अपने परिवार के साथ बॉम्बे ( अब मुंबई ) आ गयी थीं . यहीं पर उन्होंने स्कूल की शिक्षा प्राप्त किया . 1936 में पहली बार ‘ मैडम फैशन ‘ फिल्म में बाल कलाकार बन कर परदे पर आयीं . वे बचपन से ही अच्छा गाती थीं . वे आल इंडिया रेडियो पर बच्चों के कार्यक्रम में गाती थीं . संगीतकार नौशाद ने उनकी आवाज़ सुनकर 1942 में फिल्म’ शारदा ‘ में उन्हें गाने का मौका दिया . इसी समय उन्हें तीन और फिल्मों में बाल कलाकार का रोल मिला .


फ़िल्मी सफर - 14 साल की उम्र में ‘ फूल ‘ में उन्हें पृथ्वी राज कपूर की नायिका का रोल मिला . सुरैया देखने में भी बहुत सुन्दर थीं और अपने गाने खुद गाती थीं . इसके बाद उन्हें काफी रोल मिलने लगे .


फिल्म ‘ विद्या ‘ की शूटिंग के समय तत्कालीन मशहूर हीरो देव आनंद के करीब आयीं और दोनों ने एक साथ सात फ़िल्में कीं - विद्या , जीत, शायर , अफसर , नीली , दो सितारे और सनम . दोनों शादी करना चाहते थे पर कहा जाता है कि सुरैया की नानी की ज़िद के चलते ये शादी न हो सकी .


1954 की फिल्म ‘ मिर्ज़ा ग़ालिब ‘ में उनकी एक्टिंग और गाने दोनों को बहुत पसंद किया गया जिसकी प्रशंसा तत्कालीन प्रधान मंत्री तक ने की थी . इस फिल्म को उस साल का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था . सुरैया अपने समय की सर्वाधिक पेड़ ( paid ) एक्टर थीं , उन्हें हीरो से भी ज्यादा रकम मिलती थी .


सुरैया ने करीब 70 फिल्मों में काम किया है . 1967 की ‘ रुस्तम सोहराब ‘ उनकी आखिरी फिल्म थी जिसमें वे पृथ्वी राज कपूर के साथ थीं . उन्होंने करीब 400 गाने गाये . उन्होंने एक फिल्म का निर्माण भी किया था - शगुन .


31 जनवरी 2004 को बीमारी के कारण मुंबई के एक अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ा था .


पुरस्कार - 1996 में सुरैया को स्क्रीन लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड मिला था . 2003 में फिल्म जगत का सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के अवार्ड से उन्हें सम्मानित किया गया .


उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं ( उपरोक्त कही फिल्मों के अतिरिक्त ) - शमां , दीवाना , वारिश , कंचन , गूँज , खूबसूरत , राजपूत , बड़ीबहन , दास्तान , दुनिया , गजरे , डाक बंगला , अनमोल घड़ी , दर्द , दो दिल , रंग महल , परवाना आदि

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PART 32 - राजेंद्र कुमार


जन्म - 20 जुलाई 1929 , सियालकोट ( पंजाब , पकिस्तान ) ब्रिटिश इंडिया

मृत्यु - 29 जुलाई 1999 , मुंबई

बर्थ नेम - राजेंद्र कुमार तुली

स्क्रीन नेम - राजेंद्र कुमार

प्रारम्भिक जीवन - देश के बंटवारा के समय राजेंद्र कुमार अपने परिवार के साथ बॉम्बे ( अब मुंबई ) आये . उन्होंने फिल्म जगत में अपना किस्मत आज़माना चाहा . निर्देशक रवैल के साथ 5 वर्षों तक सहायक निर्देशक का काम किया , फ़िल्में थीं - पतंगा , सगाई और पॉकेटमार .


एक्टर कुमार का उदय - 1950 की मशहूर फिल्म ‘ जोगन ‘ में दिलीप और नरगिस के साथ उन्हें एक छोटा सा रोल मिला .इसके बाद 1955 की फिल्म ‘ वचन ‘ में उन्हें अच्छा रोल मिला . फिल्म सुपरहिट रही और सिल्वर जुबिली मनायी और कुमार को ‘ अ स्टार इज बोर्न ‘ की उपाधि मिली . इसके बाद 1957 की अमर फिल्म ‘ मदर इंडिया ‘ ने उन्हें एक नयी ऊंचाई पर पहुंचा दिया .फिर तो तत्कालीन शीर्ष अभिनेत्रियों मीना कुमारी , माला सिन्हा , वैजयंतीमाला , साधना , वहीदा रहमान , शर्मीला टैगोर आदि के साथ 1970 के आरम्भ तक एक के बाद एक लगातार हिट फ़िल्में दीं और उनको ‘ जुबिली कुमार ‘ का खिताब मिला .


70 दशक में राजेश खन्ना और अन्य एक्टर्स के आने के बाद कुमार को लीड रोल मिलने बंद हो गए और वे एक सफल चरित्र अभिनेता भी बने . कुमार ने टीवी सीरीज में भी काम किया है .


उन्होंने 88 फिल्मों में अभिनय किया है . 1995 की फिल्म ‘ फूल ‘ उनकी अंतिम फिल्म थी . इसके अतिरिक्त वे सात फिल्मों के निर्माता / सह निर्माता रह चुके हैं जिनमें हिट फिल्मे ‘ नाम ‘ और ‘ लव स्टोरी ‘ में उनका बेटा कुमार गौरव हीरो रहा था .


29 जुलाई 1999 को कैंसर के चलते मुंबई में उनका निधन हुआ .


पुरस्कार - उन्हें तीन बार फिल्म फेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था पर तीनों बार वे चूक गए .


उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं ( उपरोक्त कही फिल्मों के अतिरिक्त ) - गूँज उठी शहनाई , गीत , पैगाम , संगम , तूफ़ान और दिया , धूल का फूल , ससुराल , घराना , तलाक़, चिराग कहाँ रौशनी कहाँ , क़ानून , प्यार का सागर , मेरे महबूब , हमराही , दिल एक मंदिर , सूरज , आरज़ू , ज़िंदगी , आयी मिलन की बेला , पालकी , अमन , साथी , तलाश , अनजाना , मेरा नाम जोकर , आपआये बहार आयी आदि .

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PART - 33 - महमूद

जन्म - 29 सितम्बर 1932 , मुंबई

मृत्यु - 23 जुलाई 2004 , पेंसिलवानिया , अमेरिका

प्रारम्भिक जीवन - महमूद का प्रारम्भिक जीवन संघर्षमय था . उन्होंने पोल्युट्री प्रोडक्ट्स भी बेचे थे . बचपन में वे पिता के साथ अक्सर स्टूडियो जाते थे , उनकी बहन मीनू मुमताज़ अच्छी डांसर और चरित्र अभिनेत्री थीं . पहली बार बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘ किस्मत ‘ में उन्हें बाल कलाकार का रोल मिला था . 1950 के दशक की कुछ फिल्मों - CID , प्यासा , दो बीघा ज़मीन में उन्हें नाममात्र के रोल मिले .


ब्रेक मिला - 1958 की फिल्म ‘ परवरिश ‘ में उन्हें राज कपूर के छोटे भाई का अहम रोल मिला . इसके बाद 60 की दशक की फिल्मों - ससुराल , गृहस्थी , ज़िद्दी , लव इन टोक्यो आदि में उन्हें अच्छे कॉमेडियन के रोल मिले .फिल्म दो फूल में उनका डबल रोल काफी अच्छा रहा था . मीना कुमारी की छोटी बहन मधु उनकी पत्नी थी . फिर भी वे अपनी कला के बल पर ही उस समय के वे टॉप कॉमेडियन बन कर उभरे .


महमूद बड़े नेक दिल इंसान थे और इंडस्ट्री में संघर्षशील कलाकरों की मदद भी करते थे . संगीतकार आर डी बर्मन को अपनी फिल्म ‘ छोटे नवाब ‘ में उन्होंने ही ब्रेक दिया था . सदी के महानायक को शुरुआत में अपने घर में ही ठहराया था .


फिल्मों में महमूद और शुभा खोटे की कॉमेडियन जोड़ी उन दिनों खूब चली थी . उनकी अपनी फिल्म ‘ पड़ोसन ‘ एक सदाबहार कॉमेडी फिल्म थी .


महमूद ने 240 फिल्मों में काम किया है . उन्होंने फिल्मों में करीब 20 गाने भी गाये हैं . महमूद ने आठ फिल्मों का निर्देशन भी किया है जिनमें - भूत बंगला , कुंवारा बाप और बॉम्बे टू गोवा भी शामिल हैं . इसके अलावा 5 फिल्मों का निर्माण भी किया है- जिसमें सुपरहिट फिल्म ‘ पड़ोसन ‘ भी है . भूत बंगला और जनता हवलदार की कहानी भी लिखी है . 1998 में ‘ बरसात की रात ‘ उनकी अंतिम फिल्म थी


उनका स्वास्थ्य थी नहीं रहता था , उन्हें दिल की बीमारी थी . उसकी इलाज़ के लिए वे अमेरिका गये थे . 23 जुलाई 2004 को वहीँ उनका निधन हुआ .


पुरस्कार- उन्हें पांच बार फिल्म फेयर का अवार्ड बेस्ट कॉमेडियन / सपोर्टिंग एक्टर के लिए मिला है .

उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं ( उपरोक्त कही फिल्मों के अतिरिक्त ) - बारिश , फागुन , हावड़ा ब्रिज , फरिश्ता , छोटी बहन , कानून , धूल का फूल , मंज़िल , दिल तेरा दीवाना , आरती , भरोसा , बिन बादल बरसात ,आरज़ू , चित्रलेखा , बेटीबेटे , गुमनाम , प्यार किये जा , दादी माँ , पत्थर के सनम , मेहरबान , दो कलियाँ , औलाद , साधू और शैतान आदि


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PART 34 - मोहम्मद रफ़ी


जन्म - 24 दिसंबर 1924 , कोटला सुल्तान सिंह , अमृतसर

मृत्यु - 31 जुलाई 1980 , मुंबई

आरम्भिक जीवन - रफ़ी 1935 में अपने पिता के साथ लाहौर ( अब पाकिस्तान में ) गए . वहां उन्होंने शास्त्रीय गायन की शिक्षा ली . 1941 में लाहौर में ही कुंदन लाल सहगल के सामने उन्हें पहली बार गाने का मौका मिला . फिर 1944 की पंजाबी फिल्म ‘ गुल बलूच ‘ में पहला फ़िल्मी गाना - सोनिये नी हीरिये नी , गाया जो डुएट था .


बॉलीवुड में कदम - 1944 में रफ़ी साहब बॉम्बे ( अब मुंबई ) आये और 1945 की फिल्म ‘ गाँव की गोरी ‘ में पहला हिंदी गाना गाया . यह भी एक डुएट था . पहली बार 1949 में नौशाद ने उन्हें सोलो गाना गाने का मौका दिया , फ़िल्में थीं - चांदनी रात , दिल्लगी और दुलारी . इसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत ही नहीं पड़ी .


रफ़ी सभी प्रकार के गाने आसानी से गा लेते थे - शास्त्रीय , कॉमेडी , सैड सांग , भजन या कव्वाली सभी में उन्हें महारथ हासिल थी . उन्होंने अपने जीवन काल में करीब 28000 गाने विभिन्न भाषाओं में गाये . अपने समय के सभी अभिनेताओं के लिए रफ़ी ने गाया है .


पुरस्कार - उन्हें 10 अवार्ड्स मिले हैं जिनमें 6 फिल्म फेयर अवार्ड्स भी हैं . इसके अतिरिक्त 1967 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था .


रफ़ी के समकालीन लोकप्रिय गायक थे मुकेश , तलत महमूद और मन्ना डे .

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PART 35 - सोहराब मोदी


जन्म - 2 नवंबर 1897 , बॉम्बे ( अब मुंबई )

मृत्यु - 28 जनवरी 1984 , मुंबई


प्रारम्भिक जीवन - स्कूल की पढ़ाई के बाद मोदी 16 साल उम्र में ग्वालियर के टाउन हॉल में फिल्म प्रोजेक्शन करते थे . उनकी रूचि थियेटर में थी . अपने भाई की पारसी थियेटर कम्पनी के साथ देश भर में भ्रमण करते रहे . 26 साल की उम्र में उन्होंने अपनी थियेटर कम्पनी ‘ आर्य सुबोध ‘ बनायी .


बॉलीवुड का सफर - साइलेंट मूवी और टॉकिंग फिल्मों के आने के बाद स्टेज में लोगों की रूचि बहुत कम हुई और उन्होंने अपनी फिल्म कम्पनी मिनर्वा मूवीटोन बनायीं . उनकी आवाज़ काफी दमदार थी . ज्यादातर उनकी फ़िल्में ऐतिहासिक या सामाजिक होती थीं . शुरू में उनकी फ़िल्में शेक्सपीरियन स्टाइल की थीं . एक्टिंग के अलावे उन्होंने फिल्मों का निर्माण और निर्देशन भी किया है .


उनकी प्रमुख फ़िल्में - उन्होंने 32 फिल्मों में काम किया है जिनमें कुछ प्रमुख हैं - जेलर , झाँसी की रानी , मिर्ज़ा ग़ालिब , मीठा ज़हर , पुकार , शीशमहल ,राज हठ , कुंदन , यहूदी, पहली रात, ज्वाला , रज़िया सुल्तान .


पुरस्कार - मोदी को ‘ मिर्ज़ा ग़ालिब ‘ के लिए नेशनल अवार्ड और फिल्म जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के मिला है .

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खलनायक एवं चरित्र अभिनेता

PART 36 - के . एन . सिंह


जन्म - 1 सितंबर 1908 , देहरादून

मृत्यु - 31 जनवरी 2000 , मुंबई

बर्थ नेम - कृष्ण निरंजन सिंह

स्क्रीन नेम - के . एन . सिंह


के . एन . सिंह को 1938 के पहले कोई सफलता नहीं मिल सकी थी . 1938 की फिल्म बागबान में निगेटिव रोल में उनके दमदार अभिनय से बतौर खलनायक उनकी एक सही पहचान बनी . उस ज़माने में इस फिल्म ने गोल्डन जुबिली मनायी थी . तब से लेकर 60 के दशक के अंत तक उन्होंने अनेकों फिल्मों में विलेन का रोल किया . उन्होंने 1996 की फिल्म ‘ दानवीर ‘ तक फिल्मों में काम किया है .


एक खिलाड़ी - अभिनय के अलावा वे जैवलिन और शॉटपुट के अच्छे खिलाड़ी भी थे . 1936 के बर्लिन ओलिम्पिक के लिए उन्हें चुना गया था पर कुछ निजी कारणों से वे नहीं जा सके थे .


प्रमुख फ़िल्में - के . एन . सिंह ने करीब 200 फिल्मों में काम किया है , उनकी कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं - बागबान , सिकंदर , हुमायूं , ज्वार भाटा , बरसात , आवारा , हावड़ा ब्रिज , एन इवनिंग इन पेरिस , CID , जाल , चलती का नाम गाड़ी , आम्रपाली .

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PART - 37 . अमरीश पुरी


जन्म - 22 जून 1932 , नवांशहर, जालंधर

मृत्यु - 12 जनवरी 2005 , मुंबई

प्रारम्भिक जीवन


अमरीश पुरी अपने बड़े भाई मदन पुरी की तरह फिल्मों में काम करना चाहते थे पर 1954 में वे स्क्रीन टेस्ट में फेल हो गए . मदन पुरी एक अच्छे खलनायक और चरित्र अभिनेता थे . तब उन्होंने स्टेट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन में नौकरी शुरू की . पुरी ने अभिनय का शौक था तो पृथ्वी थियेटर के नाटकों में अभिनय शुरू किया जिसके लिए उनकी काफी प्रशंसा हुई और आगे चल कर संगीत नाटक अकादमी अवार्ड भी मिला .


फ़िल्मी सफर


1967 में ‘ पहली बार रूफ ऑफ़ द एविल ‘ नामक टीवी सीरियल में काम करने का मौका मिला .इसके बाद 1970 में प्रेम पुजारी में उन्हें काम करने का मौका मिला .इसके बाद 70 और 80 के दशक में उन्हें काफी फ़िल्में मिलीं , चरित्र और खलनायक की रोल में .दोनों रोल में उन्हें काफी ख्याति मिली और उन्होंने बॉलीवुड में अपना वर्चस्व बनाया और वे लगभग आजीवन सक्रिय रहे . उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी फ़िल्में 2008 तक रिलीज होती रहीं . पुरी ने 300 से ज्यादा फ़िल्में की हैं जिनमें हिंदी के अतिरिक्त , अंग्रेजी, मराठी , पंजाबी और सभी दक्षिण भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी की फ़िल्में भी हैं . उनका फिल्म मिस्टर इंडिया का एक डायलॉग ‘ मोकाम्बो खुश हुआ ‘ आज भी बच्चे बूढ़े सभी की जुबान पर होता है .

12 जनवरी 2005 को मुंबई के एक अस्पताल में कैंसर से उनकी मृत्यु हुई .

पुरस्कार - पुरी को 6 बार फिल्म फेयर अवार्ड मिले हैं .


पुरी की प्रमुख फ़िल्में - मिस्टर इंडिया , घातक , करण अर्जुन, दामिनी , दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे , विरासत , त्रिदेव , सौदागर , ग़दर एक प्रेम कथा , मुस्कराहट , हम पांच , भूमिका , रेशमा और शेरा , कोयला, गांधी , विधाता , अंधा कानून , मशाल आदि हैं


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PART 38 - अमज़द खान


जन्म - 12 नवंबर 1940 , हैदराबाद , ह्यदेरबाद स्टेट ब्रिटिश इंडिया

मृत्यु - 27 जुलाई 1992 , मुंबई

प्रारंभिक जीवन- अमज़द खान की स्नातक तक की पढ़ाई मुंबई में हुई . शुरू से उन्हें एक्टिंग का शौक था और वे थियेटर में एक्टिंग करते थे . वे फिल्म अभिनेता जयंत के पुत्र थे .


फ़िल्मी सफर - पहली बार उन्हें 1951 की फिल्म ‘ नज़ीम ‘ में रोल मिला , इसके बाद 1957 की फिल्म अब दिल्ली दूर नहीं में उन्होंने काम किया . अपने पिता के फिल्मों में छोटे मोटे रोल भी वे करते पर अभी तक वे बाल कलाकार थे . 1973 की फिल्म ‘ हिनुस्तान की कसम ‘ में पहली बार उनके रोल से उनकी पहचान बनी .


ब्रेक मिला - 1975 की मूवी ‘ शोले ‘ में उन्हें विलेन का रोल मिला . इस फिल्म को आशातीत और अपार सफलता मिली और बॉलीवुड को सुपर विलेन मिला . शोले के गब्बर सिंह के किरदार ने एक नया कीर्तिमान बनाया और गब्बर के साथ अमज़द भी अमर हो गया . उनके डायलॉग बोलने का अलग अनदेखा और अनसुना अंदाज़ था . उनके डायलॉग ‘ सो जा नहीं तो गब्बर आ जायेगा ‘ और ‘ तेरा क्या होगा कालिया ‘ आज तक लोगों की जुबान से सुनने को मिलते हैं .


अमज़द ने विलेन के अतिरिक्त चरित्र अभिनेता का किरदार भी अच्छा निभाया है . उनकी प्रतिभा को देखते हुए मशहूर निर्माता निर्देशक सत्यजीत रे ने उन्हें ‘ शतरंज के खिलाड़ी ‘ में कास्ट किया था . गुलज़ार ने भी फिल्म ‘ मीरा ‘ में अकबर के रोल के लिए उन्हें चुना था .


1976 में फिल्म ‘ द ग्रेट गैम्बलर ‘ की शूटिंग के लिए गोवा जाते समय एक रोड एक्सीडेंट में वे बुरी तरह जख्मी हो गए थे और कुछ समय तक कोमा में रहे हालांकि कोमा से वे उबर कर लगभग ठीक हो गए . पर इलाज़ के दौरान दिए दवाओं के असर से उनका वजन काफी बढ़ गया था . वे आगे भी कुछ वर्षों तक फिल्मों में सक्रीय रहे पर उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था .


अमज़द ने करीब 217 फिल्मों में काम किया है . हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी , तमिल , तेलगु , कन्नड़ और मलयालम फिल्मों में भी अभिनय किया है .


27 जुलाई 1992 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया .


पुरस्कार - उन्हें तीन बार बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्म फेयर अवार्ड मिला है . इसके अतिरिक्त BFJA अवार्ड भी उन्हें मिला है .


अमज़द खान की कुछ प्रमुख ( उपरोक्त कही फिल्मों के अतिरिक्त ) हैं - चरस , हम किसी से कम नहीं , चक्कर पर चक्कर , परवरिश , लावारिश , मुक़्क़दर का सिकंदर , देश परदेस , कस्मे वादे , गंगा की सौगंध , बरसात की एक रात , राम भरोसे , मिस्टर नटवरलाल , सुहाग , क़ुर्बानी , यारांना , लूट मार , चेहरे पे चेहरा , कालिया , लव स्टोरी , नसीब , रॉकी , सत्ते पर सत्ता , महान , नास्तिक , अमीर आदमी गरीब आदमी आदि

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बॉलीवुड मदर्स


PART 39 - निरुपा राय


नाम - कोकिला किशोरचंद्र बलसारा

जन्म - 4 जनवरी 1931 , वलसाड , गुजरात बॉम्बे रेजीडेंसी ( अब मुंबई )

मृत्यु - 13 अक्टूबर 2004 , मुंबई

फ़िल्मी नाम - निरुपा राय


निरुपा राय की शादी कम उम्र में ही हो गयी थी . पति पत्नी दोनों फिल्मों में जाना चाहते थे . 1946 में एक्टिंग करने के लिए वे अपने पति कमल राय के साथ बॉम्बे आयीं , परन्तु सफलता सिर्फ निरुपा को मिली . गुजराती फिल्म रणकदेवी के साथ उनका फ़िल्मी सफर शुरू हुआ .


हिंदी सिनेमा की शुरुआत


1946 में निरुपा राय को पहली हिंदी फिल्म मिली ‘ अमर राज . 1948 की हिंदी गुजराती मूवी ‘ गुणसुन्दरी ‘ में उनके लीड रोल की बहुत सराहना हुई . इसके बाद 40 और 50 के दशक में उन्हें लीड रोल मिले - रानी रूपमती , सम्राट चन्द्रगुप्त , काली दास , दो बीघा जमीन . इसके अतिरिक्त भी दर्जनों धार्मिक फिल्मों में वे लीडरोल में रहीं . 1955 में पहली बार देव आनंद की फिल्म ‘ मुनीमजी ‘ में उन्हें माँ का रोल मिला जिसके लिए उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला . नए युवा अभिनेता भी आने लगे थे , इसके बाद उन्हें एक के बाद एक माँ के रोल मिलते गए और उसे बड़ी बखूबी से निभाया . गरीब , लाचार और असहाय औरत के रोल में उनका अभिनय नेचुरल होता था .


निरुपा राय करीब 60 वर्षों तक के फ़िल्मी सफर में करीब 300 फिल्मों में काम किया है .


पुरस्कार - उन्हें 4 बार फिल्म फेयर अवार्ड ‘ बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस ‘ का मिला है .


निरुपा की कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं - दो बीघा जमीन , भाई भाई , मुनीमजी , रानी रूपमती , सम्राट चन्द्रगुप्त , जनम जनम के फेरे , मुनीमजी , चालबाज़ , हीरा मोती , धर्मपुत्र , मुझे जीने दो , छाया , शहनाई , पूरब और पश्चिम , दीवार , खून पसीना , मुक्कदर का सिकंदर , सुहाग , क्रंति , अमर अकबर एंथोनी , बेताब , मर्द आदि

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PART 40 - लीला चिटनीस


जन्म - 9 सितम्बर 1909 , धारवाड़ , कर्नाटक

मृत्यु - 14 जुलाई 2003 , डेंबरी , केनेटिकट , USA


प्रारम्भिक जीवन - लीला फिल्म इंडस्ट्री की तत्कालीन गिनी चुनी पढ़ी लिखी एक्ट्रेस में एक थीं . ग्रेजुएशन के बाद लीला ने एक मराठी थियेटर ज्वाइन किया . स्टेज पर उन्होंने कॉमेडी और ट्रेजेडी दोनों तरह के रोल अदा किया .


फ़िल्मी सफर - वैसे तो लीला ने हिंदी फिल्मों में काम 1935 - 36 में शुरू किया था पर 1939 में बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘ कंगन ‘ में लीड रोल में उन्हें अच्छा ब्रेक मिला . इसके बाद अशोक कुमार और देविका रानी के साथ ‘ आज़ाद’ ‘ झूला’ और ‘ बंधन ‘ से उन्हें काफी ख्याति मिली .


40 के दशक में नयी अभिनेत्रियों के आने के बाद उन्हें लीड रोल मिलने बंद हो गए . उन्होंने हालात से समझौता करते हुए बार 1048 की हिट फिल्म ‘ शहीद ‘ में दिलीप कुमार की माँ का किरदार निभाया . उसके बाद 22 वर्षों तक अनेक हीरो की माँ का रोल किया . उन्होंने करीब 50 वर्षों तक फिल्मों में काम किया . वे दिलीप कुमार , राज कपूर , देव आनंद , शशि कपूर , राजेंद्र कुमार आदि तत्कालीन टॉप स्टार्स की माँ पर्दे पर बनीं .


लीला लक्स साबुन की ऐड फिल्म में काम करने वाली पहली एक्ट्रेस थीं .


लीला ने 107 फिल्मों में काम किया , दो का निर्देशन किया और एक फिल्म का निर्माण भी किया .


लीला चिटनीस की प्रमुख कुछ फ़िल्में हैं - कंगन , बंधन , झूला , शहीद , आज़ाद , आवारा , नया दौर , साधना , हम दोनों , कोहिनूर , काला बाजार , बसंत बहार , उजाला , धूल का फूल , मैं नशे में हूँ , परख , गंगा जमुना , आस का पंछी , धर्मपुत्र , असली नकली , आशिक़ , दिल ही तो है , दोस्ती , गाइड , वक़्त , इंतक़ाम , सत्यं शिवं सुंदरम आदि


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बीते दिनों की खल और चरित्र नायिकाएं

PART 41 - कुलदीप कौर , फर्स्ट फीमेल विलेन ऑफ़ इंडियन सिनेमा


जन्म - 1927 , लाहौर , पंजाब ( अब पाकिस्तान )


मृत्यु - 3 फ़रवरी 1960 , मुंबई


कुलदीप की शादी 14 वर्ष की अवस्था में हो गयी थी और 16 साल की उम्र में वे माँ भी बनीं . देश के बंटवारा के दौरान हिंसा की आशंका को देखते हुए प्राण और कुलदीप बंटवारा से पहले ही बॉम्बे आ गये थे . कहा जाता है कि बाद में हिंसा के बावजूद वे लाहौर लौट कर गयीं , वह भी प्राण की कार वापस लाने के लिए . इसीलिए उन्हें पंजाबी फायर क्रैकर कहा जाता था .


फर्स्ट फीमेल विलेन - कुलदीप ने अपना फ़िल्मी सफर 1948 की पंजाबी फिल्म ‘ चमन’ से शुरू किया . वे बाद में हिंदी फिल्मों में भी आईं . उन्होंने ज्यादातर निगेटिव रोल किये और उसी में काफी शोहरत मिली . उन्हें इंडियन सिनेमा की पहली फीमेल विलेन या वैम्प कहा जाता है .


उनका फ़िल्मी सफर छोटा रहा 1948 से 1960 . इसी बीच उन्होंने करीब 100 फ़िल्में कीं . फ़रवरी 1960 में पैर में काँटा चुभने से टिटनस होने से उनकी मृत्यु हुई थी .


कुलदीप की कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं - ज़िद्दी , एक थी लड़की , अफसाना , समाधि , एक नज़र , नयी ज़िंदगी , बैजू बावरा , अनारकली , बाज़ , मिस कोकोकोला , सहारा , माँ बाप , सुनहरी रातें आदि .

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PART 42 - मनोरमा


बर्थ नेम - एरिन आइजैक डेनियल

जन्म - 16 अगस्त 1926 , लाहौर ( पाकिस्तान )

मृत्यु - 15 फ़रवरी 2008 , मुंबई

स्क्रीन नेम - मनोरमा


प्रारम्भिक जीवन - मनोरमा ने बचपन में शास्त्रीय गायन और वे नृत्य सीखा और स्टेज शो करती थीं . 1941 में उन्हें फिल्म ‘ खजांची ‘ में बाल कलाकार के रूप में काम करने का मौका मिला . आगे चल कर वे लाहौर में एक अच्छी एक्ट्रेस बनीं .


बॉलीवुड सफर - बंटवारा के समय वे मुंबई आ गयीं . शुरू में पंजाबी फिल्म ‘ लच्छी ‘ में उन्होंने काम किया और फिल्म सुपरहिट थी . 1948 में दिलीप कुमार की हिंदी फिल्म ‘ घर की इज्जत ‘ में उन्हें रोल मिला . आरम्भ में वे चरित्र अभिनेत्री के रोल में रहीं . बाद में वे कॉमेडी और खलनायिका का रोल करने लगीं जिसमें उन्हें काफी रोल मिले और सफलता भी . ‘ सीता और गीता ‘ , ‘ दस लाख ‘ , ‘ दो कलियाँ ‘ , ‘ एक फूल दो माली ‘, कारवां ‘

‘ लावारिश ‘ आदि फिल्मों में उनका अभिनय काफी अच्छा था .


हालांकि मनोरमा बाद में दिल्ली आ गयीं और उन्होंने कुछ टीवी सीरियल भी किये .उनकी अंतिम हिंदी फिल्म 1983 में ‘ हादसा ‘ थी इसके बाद आखिरी बार 2005 में दीपा मेहता की फिल्म ‘ वाटर ‘ थी . उन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है .


2007 में उन्हें स्ट्रोक हुआ पर वे कुछ हद तक ठीक भी हो गयी थीं . 15 फ़रवरी 2008 में मुंबई में उनका निधन हुआ .

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PART 43 - टुनटुन ( कॉमेडियन और गायिका )

बर्थ नेम - उमा देवी

जन्म - 11 जुलाई 1923 , अमरोहा , यूनाइटेड प्रोविंस , ब्रिटिश इंडिया

मृत्यु - 24 नवंबर 2003 , मुंबई

स्क्रीन नेम - टुनटुन


प्रारम्भिक जीवन - उनका बचपन और किशोरावस्था गरीबी में बीता . उन्हें बचपन से ही गाने का शौक था और वे संगीतकार नौशाद से बहुत प्रभावित थीं . इसी सिलसिले में उमा देवी मुंबई आयीं और नौशाद से मिलीं .


फ़िल्मी सफर - नौशाद ने उनका ऑडिशन टेस्ट लिया जिसमें वे सफल हुईं . 1946 की फिल्म ‘ वसीम अज़रा ‘ में पहली बार उन्हें गाने का मौका दिया . उस ज़माने में नूर जहाँ और राजकुमारी आदि गायिकाओं की कतार में उनकी गिनती हुई .


1947 की फिल्म ‘ दर्द ‘ के गानों से उमा सुर्ख़ियों में आयीं , कुछ गाने - अफ़साना लिख रही हूँ दिल ए बेक़रार का . . . ; ये कौन चला मेरी आँखों में समा कर . . . . ; आज मची है धूम . . . .

ये गाने इतने हिट हुए कि इसके बाद उन्हें काफी गाने मिलने लगे . इसके तुरंत बाद ‘ अनोखी अदा ‘ ; ‘ चंद्रलेखा ‘ आदि कुछ फिल्मों में गाने का अवसर मिला .

पर कुछ वर्ष बाद लता मंगेशकर और आशा भोसले के आने के बाद उमा को गाने मिलने लगभग बंद हो गए क्योंकि उमा की सिंगिंग स्टाइल पुरानी थी और उनका वोकल रेंज का दायरा बहुत सीमित था . तब नौशाद ने उन्हें एक्टिंग में जाने की सलाह दी और दिलीप कुमार की मदद से उन्हें 1950 की फिल्म ‘ बाबुल ‘ में टुनटुन नाम से पहली बार एक्टिंग का अवसर मिला .


अपने भारी भरकम शरीर के कारण भी टुनटुन सहज ही हंसी का पात्र बन जाती थीं . उन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है . टुनटुन ने समकालीन सभी मेंल कॉमेडियंस के साथ काम किया है . 1990 की फिल्म ‘ कसम धंधे की ‘ उनकी आखिरी फिल्म थी .


फिफ्टी फिफ्टी , श्री 420 , कोहिनूर , जागते रहो , CID , सत्यं शिवं सुन्दरं आदि फिल्मों में उनकी भूमिका की सराहना हुई .


24 नवंबर 2003 में मुंबई में उनका निधन हुआ .


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PART 44 - नादिरा


बर्थ नेम - फरहत एजीकिएल नादिरा

जन्म - 5 दिसम्बर 1932 , बग़दाद , इराक

मृत्यु - 9 फ़रवरी 2006 , मुंबई

स्क्रीन नेम - नादिरा

प्रारम्भिक जीवन - नादिरा एक बगदादी यहूदी थीं . 19 वर्ष की आयु में तत्कालीन मशहूर निर्देशक महबूब खान की पत्नी की मदद से वे बॉलीवुड में आयीं . अपने गोरे ग्लोइंग स्किन के चलते नादिरा को 1952 की दिलीप कुमार की फिल्म ‘आन ‘ में काम करने का मौका मिला . महबूब खान इस फिल्म को अंग्रेजी में भी बनाना चाहते थे जिसके लिए उन्हें यूरोपियन चेहरे की जरूरत थी . फिल्म सुपरहिट हुई और नादिरा को पहली बार ही अच्छा ब्रेक मिला .


फ़िल्मी सफर - 1955 में राज कपूर की फिल्म श्री 420 में भी उन्हें अच्छा रोल मिला . इसके बाद उन्हें रोल मिलते गए . नादिरा ने अक्सर निगेटिव किरदार निभाया पर कुछ फिल्मों में चरित्र अभिनेत्री का काम भी किया . इसके लिए 1975 की फिल्म ‘ जुली ‘ में उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला .


उन्होंने 2000 तक लगभग 98 फिल्मों में काम किया है .


पुरस्कार - एक फिल्मफेयर अवार्ड .


नादिरा की कुछ प्रमुख फ़िल्में हैं - आन , नग्मा , श्री 420 , काला बाज़ार , दिल अपना और प्रीत पराई , तलाश , सपनों का सौदागर , सफर , चेतना , पाकीज़ा , राजा जानी , धर्मात्मा , पापी , जुली , अमर अकबर एंथोनी , सागर , चालबाज़ , आसपास , तमन्ना , जोश आदि

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कुछ अन्य गायक

PART 45 . तलत महमूद-


जन्म - 24 फरवरी 1924 , लखनऊ

मृत्यु - 9 मई 1998 , मुंबई


तलत अपने समय के बेहतरीन गायक रहे हैं . उनके ग़ज़ल गाने आज भी सुनने से सुकून मिलता है . उनकी आवाज बहुत सॉफ्ट थी जिसके चलते सिल्कन वॉइस या वेल्वेट वॉइस भी कहा जाता है . फिल्म दाग , टैक्सी ड्राइवर , देवदास , रूप की रानी चोरों का राजा आदि के दर्जनों हिट गाने तलत ने गाये हैं . उन्होंने करीब 150 गाने गाये हैं .


उनके कुछ गाने - जाएँ तो जाएँ कहाँ . . . . ; ऐ मेरे दिल कहीं और चल . . . .; इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा . . ; तस्वीर बनाता हूँ . . . . आज भी उतने ही अच्छे लगते हैं .

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तलत एक एक्टर - तलत ने 1945 - 58 तक 13 फिल्मों में अभिनय भी किया है , उनकी कुछ फ़िल्में हैं - लाला रुख , सोने की चिड़ियाँ , एक गाँव की कहानी ,मालिक , वारिश आदि हैं .

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पार्ट 46 . मन्ना डे -


जन्म - 1 मई 1919 , कोलकाता

मृत्यु - 24 अक्टूबर 2013 , बंगलुरु

बर्थ नेम - प्रबोध चंद्र डे

स्क्रीन नेम - मन्ना डे


मन्ना डे बहुमुखी प्रतिभा के गायक थे . वे कॉमेडी गाने , सैड गाने , शास्त्रीय गायन सभी बहुत आसानी से गा लेते थे .बंगाली तो उनकी मातृभाषा थी , इसके अतिरिक्त हिंदी , सिंधी , नेपाली और लगभग सभी भारतीय भाषाओं में सुगमता से गाते थे . इसके अलावा भी भोजपुरी , मगधी , मैथिलि आदि क्षेत्रीय भाषाओं में गाते थे .


उन्होंने 550 से ज्यादा गाने गाये हैं . उन्हें बेस्ट गायक का चार पुरस्कार मिले हैं - दो फिल्म फेयर , एक नेशनल और एक इंटरनेशनल .


भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री , पद्मभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया है .


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PART -47 . महेंद्र कपूर


जन्म - 9 जनवरी 1934 , अमृतसर

मृत्यु -27 सितम्बर 2008 , मुंबई

महेंद्र कपूर 1958 से 99 तक हिंदी के अलावे गुजराती , मराठी , पंजाबी और भोजपुरी फिल्मों में गाते रहे .

उनके गायन का स्टाइल रफ़ी से मिलता जुलता था . उन्होंने लोकप्रिय टीवी सीरियल महाभारत और विष्णु पुराण के लिए भी गाया है .


पहली बार शांताराम की फिल्म ‘ नवरंग ‘ में उन्होंने गाया था जिसका गाना - आधा है चन्द्रमा रात आधी . . . बहुत पॉपुलर हुआ . इसके बाद 1959 में ‘ धूल का फूल ‘ का गाना - तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ . . . . . ; और आगे चलकर गुमराह आदि फिल्म के गाने हिट रहे थे .


महेंद्र कपूर ने 1150 से भी अधिक गाने गाये हैं .


पुरस्कार - उन्हें तीन बार बेस्ट गायक का फिल्म फेयर अवार्ड मिला है , एक बार नेशनल अवार्ड मिला है . इसके अतिरिक्त उन्हें पद्मश्री और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है .

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चलते चलते - Last but not the least


PART - 48 - के . एल . सहगल


जन्म - 11 अप्रैल 1904 , जम्मू

मृत्यु - 18 जनवरी 1947 , जालंधर

बर्थ नेम - कुंदन लाल सहगल

स्क्रीन नेम - के . एल . सहगल


सही मायने में सहगल भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे . वे एक अच्छे गायक और एक्टर थे . उन दिनों भारतीय सिनेमा का मुख्यालय कलकत्ता ( अब कोलकाता ) हुआ करता था . उनके गाने की शैली बिलकुल अलग थी और उनके बाद भी आने वाले कुछ गायकों ने शुरुआत उसी शैली में किया था .


सहगल ने करीब 32 फिल्मों में अभिनय किया है और फिल्मों में अपने गाने खुद गाते थे . उन्होंने हिंदी के अतिरिक्त कुछ बंगाली फिल्मों में भी अभिनय किया है . पुरानी फिल्म ‘ देवदास ‘ के हिंदी और बंगाली दोनों भाषाओं में काम किया है .


उनकी प्रमुख फ़िल्में हैं - तानसेन , शाहजहां , परवाना , देवदास , दीदी , स्ट्रीट सिंगर , धरती माता , दुश्मन , माय सिस्टर , भक्त सूरदास , चंडीदास , जीवन मरण ,कुरुक्षेत्र आदि .


उनके कुछ गाने - जब दिल ही टूट गया . . . . . ,; एक बंगला बने न्यारा . . . ; गम दिए मुश्तकिल . . . ; बाबुल मेरा . . . . ; सो जा राजकुमारी . . . . . ; दो नैना मतवारे . . . . ; दुनिया रंग रंगीली . . . . आदि अविस्मरणीय हैं .


जब तक रेडिओ सीलोन से सुबह में हिंदी गाने का प्रोग्राम आता रहा , पुराने गीतों के प्रोग्राम के अंत में उनका एक गाना अवश्य होता था .

===================== END ============================