बॉलीवुड लीजेंडस
Part 1 .
दादा साहब फाल्के
जन्म 30 अप्रैल - 1870 , त्रयम्केश्वर ( नासिक ) , बॉम्बे ब्रिटिश इंडिया
मृत्यु -16 फ़रवरी 1944 , नासिक
जन्म का नाम - धुंडीराज गोबिंद फाल्के
फ़िल्मी नाम - दादा साहब फाल्के
प्रारम्भिक जीवन -
दादा साहब फाल्के ने 1890 में बॉम्बे के जे . जे . स्कूल ऑफ़ आर्ट्स से शिक्षा लेने के बाद बड़ौदा के कला भवन से शिल्पकला , ड्राइंग , पेंटिंग और फोटोग्राफी की शिक्षा ली . उन्होंने कैरियर की शुरुआत फोटोग्राफी से की , फिर वे कुछ समय तक भारतीय पुरात्तव विभाग में ड्राफ्ट्समैन रहे . फाल्के साहब ने अपना प्रिंटिंग प्रेस खोला जिसे पार्टनर से विवाद के चलते बंद कर दिया .
फ़िल्मी सफर
प्रेस बंद होने के बाद उनका ध्यान फिल्मों की ओर गया . उन्होंने 1912 में पहली फिल्म “ राजा हरिश्चंद्र “ बनायी जो 1913 में प्रदर्शित हुई थी . उस समय मूक फिल्म बनती थी . यह भारतीय फिल्म जगत की शुरुआत थी और इसीलिए उन्हें भारतीय सिनेमा का पिता कहा जाता है .
फाल्के साहब का झुकाव धार्मिक फिल्मों की ओर रहा था . फाल्के ने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान फिल्म कंपनी खोली . यहाँ भी विवादों के चलते हिन्दुतान फिल्म उन्हें छोड़ना पड़ा था .
सिने जगत में तकनीक बदलने लगी थी . मूक फिल्मों का जमाना समाप्त हो रहा था और बोलती फ़िल्में बनने लगी थीं . कोल्हापुर के महाराजा के निमंत्रण पर उन्होंने एकमात्र बोलती फिल्म “ गंगावतारण “ का निर्देशन किया . नये तकनीक के आने के बाद वे फिल्मों से रिटायर हो गए . उन्होंने करीब 95 फ़िल्में बनायीं .
पुरस्कार
दादा साहब के सम्मान में भारत सरकार ने फिल्म जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार - दादा साहब फाल्के अवार्ड -
उन्हीं के नाम पर रखा है . इस पुरस्कार का आरम्भ 1969 में हुआ था और देविका रानी पहली विजेता थीं . भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था .
1944 में नासिक में उनकी मृत्यु हो गयी . कहा जाता है कि अंतिम समय में वे कौड़ियों के मोहताज रहे थे और लगभग भुला दिए गए थे .
उनकी प्रमुख फ़िल्में -
मोहिनी भस्मासुर -1913 कालिया मर्दन -1919
सत्यवान सावित्री -1914 बुद्धदेव - 1923
लंका दहन -1917 सेतुबंधन - 1932
श्री कृष्ण जन्म -1918 गंगावतरण -1937
Part 2 . वी . शांताराम
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जन्म - 18 नवम्बर 1901, कोल्हापुर , बॉम्बे ब्रिटिश इंडिया
मृत्यु - 30 अक्टूबर 1990 , मुंबई
जन्म नाम - शांताराम राजाराम वांकुदरे
फ़िल्मी नाम - वी . शांताराम
प्रारम्भिक जीवन
शांताराम का जन्म एक मराठी जैन परिवार में कोल्हापुर में हुआ था . उनकी तीन शादियां हुईं थीं . उनकी दूसरी पत्नी जयश्री से हुई बेटी राजश्री एक सफल अभिनेत्री रही हैं . उनकी तीसरी पत्नी संध्या थी . संध्या उनकी फिल्मों में नायिका भी रही हैं .
फ़िल्मी सफर
उन्होंने कोल्हापुर के बाबूराव पेंटर की एक फिल्म कंपनी में छोटा मोटा काम शुरू किया . 1921 की मूक फिल्म
“ सुरेखा हरन “ में शांताराम ने पहली बार अभिनय किया . उन्होंने खुद बहुत ज्यादा फिल्मों में काम नहीं किया , पर वे अनेकों फिल्मों के निर्माता और निर्देशक रहे हैं . डॉ कोटनिस की अमर कहानी , दो आँखें बारह हाथ , नवरंग , झनक झनक पायल बाजे , स्त्री उनकी बहुचर्चित फ़िल्में रही हैं . शांताराम ने 12 फिल्मों में काम किया है .
1929 में उन्होंने अन्य मित्रों के साथ मिलकर प्रभात फिल्म कंपनी खोला . शांताराम के निर्देशन में प्रभात कंपनी ने पहली मराठी फिल्म बनायीं . 1942 में उन्होंने प्रभात कंपनी छोड़ कर अपनी कंपनी राजकमल कलामंदिर बनायीं .
पुरस्कार
झनक झनक पायल बाजे और दो आँखें बारह हाथ के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिला था . उन्हें पद्मविभूषण और दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है .
शांताराम की फिल्म दो आँखें बारह हाथ को दो अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे . झनक झनक पायल बाजे के लिए बेस्ट निर्देशक का फिल्मफेयर अवार्ड भी उन्हें मिला है
शांताराम की प्रमुख हिंदी फ़िल्में - .
अभिनय के लिए - दो आँखें बारह हाथ , स्त्री , डॉ कोटनिस की अमर कहानी , सुबह का तारा , परछाईयाँ आदि
निर्माता - तीन बत्ती चार रास्ता , सेहरा , दो आँखें बारह हाथ ,नवरंग , गीत गाया पत्थरों ने , जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली आदि
निर्देशक - उन्होंने करीब 51 फिल्मों का निर्देशन भी किया है जिनमें पिंजरा , बूँद जो बन गयी मोती , शकुंतला ,दहेज़ , सुबह का तारा , सेहरा , तूफ़ान और दिया , नवरंग आदि फ़िल्में हैं .