अनिच्छा - 1 Ajad Anand द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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अनिच्छा - 1

'भोला, माँ किधर है ?' रामविलास ने खेत से आते ही अपने बेटे से पूछा।

'मुझे नहीं पता, मैं तो यहाँ सुबह से खेल रहा हूँ'

'आठ बज गए लेकिन चूल्हे के पास वो दिखाई ही नहीं दे रही है फिर गई कहाँ ?' रामविलास सोचने लगता है और ढूंढ़ते हुए घर के अंदर कमरे में जाता है।

'तुम अभी तक सो ही रही हो...सावित्री, सावित्री' रामविलास उसे झकझोर कर उठता है।

सावित्री उठकर बिस्तर पर बैठ जाती है 'रात को अच्छे से सो नहीं पाई थी इसलिए सुबह जल्दी उठने की इच्छा नहीं हुई '

'वाह! कमाल है, हम तीन बजे उठकर खेतों से घूम कर आ गए और तुम हमें बता रही हो कि तुम्हें उठने की इच्छा ही नहीं हुई।'

'थक गई थी बहुत'

'तुम महिलाओं को कभी सुबह उठने में देर नहीं करनी चाहिए चाहे तुम्हारी इच्छा हो या ना हो। अब हमारे खाने का क्या होगा ? तुम्हारे कारण देर होगी अब दुबारा खेत जाने में'

'तुरंत बन जायेगा खाना' कहकर सावित्री झटपट बिस्तर से उठकर चूल्हे के पास जाती।

'जब देखो मनमानी करती रहती हो, महिला हो तो जल्दी उठकर महिलाओं वाहले सारे काम कर लो' रामविलास बड़बड़ाते हुए चूल्हे के पास जा कर बोला।

'रोज-रोज थोड़े न देर होता है, आज हो गया बस' सावित्री ने धीरे से नर्म लहज़े में कहा।

'जबान लड़ाती हो हमसे, लगता है तुम्हारे महिलाओं वाले सारे गुण मिटते जा रहे हैं और ये क्या बोला तुमने कि रोज-रोज नही होता है तो इतना सुन कर गांठ बांध लो कि तुम्हें रोज सूर्योदय से पहले ही उठना होगा, यहाँ तुम्हारी कोई मर्ज़ी या इच्छा मायने नहीं रखती है। हमें खेत से आने के बाद खाना मिल जाना चाहिए... समझी।'
कहते हुए रामविलास दरवाजे से बाहर चला जाता है।

सावित्री बुझे मन से खाना बनाने लगती है। कुछ देर में भोला बाहर से खेल कर आया बोला 'मम्मी भूख लगी है'

'कुछ देर रुको, खाना अभी बना नहीं है'

'नहीं, मुझे खाना चाहिए' भोला ने जिद करते हुए कहा।

'बनने तो दो पहले, मैं क्या मशीन हूँ जो तुरंत कहना बना दूँगी'

रामविलास दरवाजे से अंदर आते हुए सावित्री की बात सुन लेता है। वह गुस्से से सावित्री के पास जाता है और बोलता है 'बच्चे को ऐसे डाँटते हैं, उसे भूख लगी है तो वह क्या करेगा, सब तुम्हारी ही गलती है। सुबह जल्दी उठती तो अभी तक खाना बन चुका होता'

सावित्री सोचती है अभी बोलने से वापस उसी को डांट पड़ेगी वह चुप हो जाती है।

रामविलास फिर पूछता है ' खाना में क्या बना रही हो?'

'खिचड़ी'

'क्यों? चावल- दाल क्यों नहीं बनाई ?'

'मैंने सोचा कि...'

तभी रामविलास गुस्से से सावित्री की बातों को बीच में काटते हुए बोलता है ' अब तुम जो सोचोगी, तुम्हारी जो इच्छा होगी वही करोगी तुम इस घर में, तुमने क्या सोचा कि खिचड़ी जल्दी बन जाएगी और तुम मेरी डांट से बच जाओगी। तुम्हें पता है ना कि भोला को खिचड़ी अच्छी नहीं लगती है फिर भी।'

'मुझे जल्दबाजी में याद नहीं रहा'

'तुम्हें याद ही क्या रहता है, ना सुबह जल्दी उठना, ना ही किसी की पसंद का खाना बनाना...बताओ'

सावित्री सुबह से रामविलास की डांट सुन-सुन कर पक चुकी थी। उसने मौन धारण करने का विकल्प ही बेहतर समझा।

Continue.....