मेरी बेटी कोई खिलौना नहीं है Shweta Sharma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मेरी बेटी कोई खिलौना नहीं है

" मैं शादी करूंगी, तो सिर्फ अमर से; नहीं तो मैं अपनी जान दे दूंगी, सुन लो आप दोनों।" चीखते हुए रोशनी ने कहा।

" हां, तो जा मर जा, ऐसी बेटी होने से अच्छा था, हमारी कोई औलाद ही ना होती।" रोशनी के पापा आलोक ने कहा।

" अरे! शांत हो जाओ आप, वो तो इस समय पागल हो रही है लड़के के पीछे, आप तो अभी समझो।" रोशनी की मम्मी दीपा ने पति को समझाया।

" क्या शांत हो जाऊं, हमारी इकलौती बेटी, उस रईस बाप के आवारा और बिगड़ैल लड़के के चक्कर में हमसे ऐसे बातें कर रही है, हमने इसकी खुशियों के लिए क्या क्या नहीं किया और ये उस गलत लड़के के चक्कर में पागल हुई जा रही है, अरे लड़का सही होता,तो मैं क्यों मना करता; पर वो लड़का बिगड़ा हुआ होने के साथ साथ लड़की बाज भी है; सारी कॉलोनी उसके बारे में जानती हैं, की वो कितना गलत है सिवाय इसके और पहले तो ये भी उसे गलत ही कहती थी, अब पता नहीं कौन सा पाठ पढ़ा दिया उसने, की उसके प्यार में ही पड़ गई।" गुस्से में आलोक ने कहा।

" कोई पाठ नहीं पढ़ाया, और लोगों का क्या है, वो तो कुछ भी बोलते हैं, हां मैं मानती हूं, की पहले वो ग़लत था, पर अब वो सुधर गया है और अब तो अपने पापा का काम भी संभाल रहा है, एक बार उससे मिलकर तो देखो।" रोशनी ने कहा

" एक बार उससे मिलकर देख लेते हैं, बात करने में हर्ज क्या है।" दीपा ने पति को समझाया।

" ठीक है, एक बार बुलाओ उस लड़के को, मैं भी तो देखूं; क्या है ऐसा उसमें; कल बुलाओ सुबह ग्यारह बजे उसे।" आलोक ने कहा।

रोशनी, दीपा और आलोक की इकलौती बेटी है, आलोक की एक गारमेंट की शॉप है और दीपा एक स्कूल में टीचर है, घर में सब खुश है, पर रोशनी अमर नाम के लड़के से प्यार करने लगी है, जो उसकी कॉलोनी के पीछे वाली कॉलोनी में रहता है और उसी के कॉलेज में पढ़ता है, अमर के पापा भी बहुत बड़े बिल्डर है और उनका बेटा अमर, बिगड़ा हुआ, शराबी और एक नंबर का लड़कीबाज है।

अगले दिन सुबह ग्यारह के आस पास अमर, रोशनी के घर आता है, उसकी बातों को सुनकर लगता ही नहीं है, की ये वो ही बिगड़ा हुआ अमर है।उसी दिन अमर के जाने के बाद आलोक, दीपा और रोशनी बात करते हैं

" पापा, अब बताओ; कैसा लगा अमर?" रोशनी ने पूछा।

" लग तो सब सही रहा था, पर बेटा इतनी जल्दी वो सुधर नहीं सकता, वो सब उसका नाटक होगा; समझने की कोशिश कर।" आलोक ने कहा।

" अब सब सही है, तो भी आपको सही नहीं लग रहा; मैं कुछ नहीं जानती, शादी तो मैं अमर से ही करूंगी बस।" रोशनी ने गुस्से में कहा

छह महीने कहने सुनने के बाद आखिरकर आलोक और दीपा रोशनी और अमर की शादी के लिए राजी हो गए, बेटी की खुशी के आगे उन्हें झुकना पड़ा और कहीं ना कहीं उन्हें भी लगने लगा था, की अमर सही हो गया है और धूमधाम से अमर और रोशनी की शादी हो जाती है, शादी के दस दिन बाद जब बेटी घर आती है, तो उसकी आंखों में खुशी की जगह मायूसी दिखती है, पूछने पर भी कुछ नहीं बताती, बस कह देती है, की आपकी याद आती है। इस बात के कुछ दिन बाद उन्हें मैड बताती है, की अमर, रोशनी को बेइंतहा पीटता है और ये बात उसे रोशनी के घर की मैड ने बताई। ये सुनते ही दोनों पति पत्नी रोशनी के ससुराल जाते हैं और रोशनी की हालत देख कर हैरान हो जाते हैं, क्यूंकि जगह जगह से आंखें सुजी हुई, पूरे चेहरे पर चोट के निशान पूरी गवाही दे रहे हैं, की कितना झेला है उसने यहां, रोशनी पापा के गले लग कर रोने लगती है।

" ये क्या हाल कर रखा है, मेरी बेटी का?" आलोक ने चीखते हुए अमर के पापा अनिल से पूछा।

" क्या हुआ, सही तो है, आपकी बेटी; इतना आप चिल्ला क्यों रहे हैं।" आलोक के पापा अनिल ने कहा।

" इसका चेहरा देखो, कितना मारा गया है इसे, फिर भी पूछ रहे हो; क्यों चिल्ला रहा हूं; सब जानता हूं मैं, की अमर इसे बुरी तरह मारता है, पता चल गया है मुझे।" आलोक ने गुस्से में कहा।

" हमने कुछ नहीं किया है, इससे पूछो; कोई काम तरीके से नहीं आता इसे; कभी कुछ नुकसान करती है, कभी कुछ और अरे पति है वो इसका, एक दो थप्पड़ लगा भी दिया; तो क्या हो गया, मेरी पत्नी पर भी मेरा हाथ उठ जाता है, कभी कभार, तो क्या वो लड़ती है मुझसे; पर इसको देखो ज़बान चला रही है।" अमर के पापा अनिल बोले।

" वाह! आपके बेटे का हाथ उठ जाता है, बहुत अच्छे संस्कार दिए है तुमने अपने बेटे को, खुद जैसे हो वो ही अपने बेटे को सीखा दिया, की औरतों की इज्जत नहीं करना, कहां है तुम्हारा वो महान बेटा?" गुस्से में आलोक ने कहा।

" वो फ़्री नहीं बैठा रहता है, काम करता है; आउट ऑफ इंडिया है; बिजनेस के सिलसिले में।" अनिल ने बोला।

" पापा, आप सही थे; अमर बहुत बिगड़ा हुआ, शराबी और लड़की बाज है, ड्रग्स, और ना जाने क्या क्या लेते हैं, मुझसे इन्हें कोई मतलब नहीं है; नाम के लिए शादी की है और बाकी अय्याशी बाहर चलती है और कुछ समझाने की कोशिश करो, तो जानवरों की तरह पीटते हैं मुझे और बाहर भी वो किसी काम से नहीं, बल्कि अपनी अय्याशी के लिए गए हैं।" रोशनी ने कहा।

" हां, तो क्या हो गया; लड़का है बहक जाता है; इस लड़की को किस चीज़ की कमी है; सब तो दिया है, अच्छा खाने को, पहनने को; जो तुम लोग इसे कभी नहीं दे पाते; इतने अमीर घर की बहू बनी है, नसीब की बात है; वरना तुम जैसे लोगों का हमारा साथ कहां उठना बैठना होता।" अकड़ते हुए अनिल बोला।

" जो हमने दिया है, वो तुम लोग कभी नहीं दे सकते, और वो है, प्यार, खुशी ; तुम तो सिर्फ दर्द दे सकते हो; खुश थी वो जब हमारे साथ थी, इस हालत में नहीं थी, ले जा रहा हूं अपनी बेटी, यहां रही, तो जीने नहीं दोगे तुम लोग और वैसे भी मेरी बेटी कोई खिलौना नहीं, जो खेलते रहो उसके भावनाओ के साथ।" आलोक ने कहा। और अपनी बेटी को घर ले आते हैं, घर पर आलोक रोशनी से पूछते हैं " इतने दिन तक ये सब चलता रहा तेरे साथ, हमारे इतने पास थी, फिर भी पता नहीं लगने दिया; क्यों नहीं बताया हमें ये सब होता है तेरे साथ?" आलोक ने पूछा।

" किस मुंह से बताती पापा, इस अमर के चक्कर में आप दोनों का कितना दिल दुखाया मैंने, कितना कुछ गलत सुनाया आप दोनों को; सजा तो मुझे मिलनी थी।" रोते हुए रोशनी ने कहा।

" ये कैसे सोच लिया बेटा, अगर तुझे कुछ हो जाता, तो हम कहां जी पाते; ये नहीं सोचा तूने और तेरी गलती सिर्फ इतनी थी कि तूने अंधो की तरह उससे प्यार किया और उसका गुनाह ये है, की उसने तेरा सिर्फ इस्तेमाल किया, तो एक बार हमसे कहती तो सही, मैं तुझे तभी वहां नरक से ले आता, उनके लिए तू कुछ नहीं है; पर हमारे लिए तू अनमोल है ये बात हमेशा याद रखना और हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए और ना ही ऐसे गलत लोगों को सहन करना चाहिए।" आलोक ने समझाया।

" जी पापा।" और रोशनी अपने पापा और मम्मी के गले लग जाती है।

समझ नहीं आता, की कुछ लोगों को दूसरों को दुख देकर क्या मिलता है; कितनी आसानी से दूसरे की बेटी की भावनाओ के साथ खेलते हैं; जैसे वो कोई खिलौना हो; शर्म नहीं होती ऐसे लोगों को, कैसी लगी आपको मेरी कहानी प्लीज बताइएगा जरूर।