Tujko koun puchhega books and stories free download online pdf in Hindi

तुझको कौन पूछेगा

एक दिन प्रतिभा रोज की तरह बच्चों को पढ़ाने गई और अपनी दिनचर्या को पूरा करते हुए ,वापस लौटते ही उसने घर में देखा, कि किसी बात पर वाद विवाद को रहा है ।थोड़ी देर बाद माजरा समझ में आया ।प्रतिभा की छोटी बहन अनन्या और उसकी मां के बीच कहासुनी हो गई उसी दौरान उसमें उसकी मासी तैयारी में लगी हुई थी क्योंकि उनको दिल्ली जाना था विवाह जिस बात का थ कि वह अनन्या को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी अनन्या की इच्छा नहीं थी क्योंकि वह इस बात से भलीभांति अवगत थी की वहां जाते ही उसकी मां तुल्य मौसी पहुंचते ही पक्षपात करना शुरू कर देगी इसी में प्रतिभा बोल पड़ी अगर उसका जाने का मन नहीं है तो दबाव क्यों डाल रही हो मुझे अच्छे से पता की वहां पर यह माता समान मौसी का असली चेहरा क्या है वह मोहरा की तरह किसी को भी इस्तेमाल करना शुरू कर देती है स्वयं को बहुत बुद्धिमान समझती थी और कहीं ना कहीं उनकी धूर्तता की जानकारी प्रतिभा को भली-भांति थी लेकिन उस रात उसको कुछ नकाबपोश चेहरों से नकाब हटते देखा मेरा इतना ही बोलने में वह औरत तनतना उठी क्योंकि मेरे सीधे शब्द कहीं ना कहीं उसकी पोल खोल रहे थे की या दुर्व्यवहार करती है फिर क्या था वह नागिन की तरह सीढ़ियों से ऊपर नीचे करने लगी प्रतिभा की मां तो बस वह मौसी की गुलाम कहूं या मोहरा उस दिन कुछ लोगों का दोहरा चेहरा प्रतिभा की सामने आया वह बोल पड़ी क्योंकि उसके शरीर में सांप लौट गए थे कि कहीं मेरे शब्दों ने उसकी छवि तो उसकी बहन के आगे बिगाड़ नदी वह अपने आपको स्वयं सही सिद्ध करने लगी इसी बीच उसने तपाक से बोला प्रतिभा तू किस बात का घमंड करती है तुझको क्या लगता है तू है क्या तुझ को कौन पूछेगा कुछ और भी शब्द थे शायद लेकिन उस औरत की दकियानूसी सोचने प्रतिभा के मन से कुछ रिश्तो की छवि को तार-तार कर दिया था उस दिन के स्वर प्रतिभा के कानों में लगभग 6 महीने तक गूंजे वह अपने आप में उपेक्षित महसूस करने लगी कि आखिर उसमें क्या कमी है उनके कहने का क्या अभिप्राय है प्रतिभा तो अपने उत्तरदायित्व का पालन भली-भांति करती है इसके बावजूद इतना गलत क्यों बोली फिर क्या था उस दिन से वह औरत प्रतिभा के चि त्त से उतर गई प्रतिभा ने फिर मुड़कर नहीं देखा क्योंकि वह उसी छत के नीचे रहती थी तो समय-समय पर प्रतिभा की मां के कान भर्ती रहती क्योंकि उसे अपना स्वार्थ सिद्ध करना था उसे अपने दोनों बेटों के स्थान दिला कर अनन्या और प्रतिभा का रास्ते से हटाना था वह साजिश पर साजिश चलती रही प्रतिभा भी अब कहीं ना कहीं इन सब चीजों से अवगत थी वह मन ही मन इनके पूरे परिवार सिरसा करने लगी और किनारा भी कर लिया लेकिन प्रतिभा को एक बात समझ में नहीं आ रही थी कोई कैसे किसी के साथ ऐसा कर सकता है आखिर प्रतिभा ने क्या बिगाड़ा था यह तो नियति का खेल था कि उसके घर में कोई बड़ा भाई एवं पिता होकर भी उनकी कोई भूमिका नहीं थी और इस बात का फायदा हर दूसरा व्यक्ति उठाना चाह रहा था ऐसे में बिचारी प्रतिभा की जिंदगी बद से बदतर होती जा रही थी वह अपने आप में घुटन महसूस कर रही थी

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