कीमत पांच रुपये की Vishesh Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कीमत पांच रुपये की

" कीमत पांच रुपये की"

मुझे याद है आज भी वो दिवाली का दिन।

शाम का वो वक़्त था

लोगों के घर तो रोशन थे इतने कि आंखें चुंधिया जाए।।

ओर दूसरी तरफ था मेरा घर जिसमें अँधेरा छाया हुआ था।।

एक अजीब सी उदासी थी मेरे मन में कि शायद ये दिवाली का त्यौहार मुझे बस नीचा दिखने ही आया है

इसीलिए तो आज रौशनी के इस दिन भी ,मेरे घर में इतना अँधेरा छाया है।।

मैं उठ कर गया , डिब्बों को खंगाला भी ।।

पर उस वक़्त मेरे घर में दिए जलाने के लिए तेल तक नहीं था।।

एक कोने में बैठा मैं अपनी जेब टटोल ही रहा था।।

तो एक जेब में मुझे पांच रुपये का सिक्का मिळा।

उस सिक्के को पाते ही मेरी आँखों में एक ऐसी चमक आयी मानो मुझे खज़ाना मिल गया हो।।

वो पाँच का सिक्का नही था वो मेरे लिए उस वक़्त अपने घर का अँधेरा दूर करने का जरिया था।।।

मैने तभी एक गिलास लिया

ओर तेल लेने चल पडा।।

तेल लेकर लौट ही रहा था कि रस्ते में एक घर दिखा जो बेहद सुन्दर प्रतीत हो रहा था

मानो कि जैसे कोई विशाल महल हो

जिसकी दीवारें क्रत्रिम रौशनी से रोशन हो रहीं थी और ऑखों को सुकून दे रही थी।।

मन में बस यही ख्याल था कि जो बाहर से इतना सुन्दर है तो अंदर से कितना अालीशान होगा।।

उस वक़्त लालसा भी हुई अंदर जाने की..

मैं अपनी उम्मीद भरी नजरों से देख ही रहा था की..

एक विदेशी युवक ने मेरी उस घर को तांकतें हुए उस लम्हे को कैमरा मैं कैद कर लिया और

वो छोटी सी तस्वीर मुझे थमा दी और मुस्कुराते हुए अभिवादन किया।

उसके बाद मैं भी उस बात को मन में छुपा वहां से वापस घर कि और चल पडा़ ।।

घर पहुंच कर।।

उस पांच रुपये के तेल को लाकर मैंने दीया भी जलाया और एक वादा भी किया अपने आप से ।

की आज ये भी एक वक़्त है जब मेरे पास दिया तक जलाने के पैसे नही है पर मुझे अपना वक़्त बदलना है।

ओैर इसी के साथ शुरू हुआ मेरा आजीविका कमाने का लम्बा सफर।।

जीस्मे मुझे बहुत मुसीबतें भी आयी खूब निराशा भी मिली और धक्के भी बहुत खाए ।।

उस संघर्ष के दौर मैं जब भी मैं थकता या हारता था माँ यही कहकर दिलासा देतीं थी बेटा।।

"जिंदगी मैं कामयाबी का उसूल ही कुछ ऐसा है।।

इंसान जब तक बिखरता नहीं ।।

तब तक निखरता नहीं ।

समय बीतता गया मैं मेहनत करता गया

आर कभी मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा समय का पहिया घूमता गया

और मैं बहुत आगे बड़ा पर कभी अपने उस वक़्त को नहीं भूला ।।

यूँही कुछ दिनों पहले कुछ ढूँढ़ते ढूँढ़ते वो पुरानी तस्वीर हाथ लगी।।

उसे गौर से देखा तो चेहरे पर मुस्कुराहट भी आयी और अचम्बा भी हुआ।।।

क्यूँ......?

क्यूँकि उस तस्वीर मैं जिस घर को मैं निहांर रहा हूं आज मैं उसी घर का मालिक हूं।।।