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सांकल - 1

सांकल

ज़किया ज़ुबैरी

(1)

क्या उसने अपने गिरने की कोई सीमा तय नहीं कर रखी?

सीमा के आंसुओं ने भी बहने की सीमा तोड़ दी है...। इंकार कर दिया रुकने से....। आंसू बेतहाशा बहे जा रहे हैं....।

वह चाह रही है कि समीर कमरे में आए और एक बार फिर अपने नन्हें मुन्ने हाथों से सूखा धनिया मुंह में रखने को कहे, ताकि उसके आंसू रुक सकें I बचपन में ऐसा ही हुआ करता था कि समीर माँ की आँखों से बहते हुए आंसू देखकर बेचैन हो उठता और लपक कर मसालों की अलमारी के पास पहुंच जाता, उचक उचक कर मसाले की बोतलें खींचने लगता; पंजों के बल खड़े खड़े जब थक जाता तो कुर्सी खींच कर लाता और ऊपर चढ़ कर बोतल में से धनिये के बीज निकाल कर माँ के मुंह में डाल देता कि माँ की आंखों से प्याज़ काटने से जो आंसू बह रहे है वे धनिया मुंह में रखने से रुक जाएंगे।

सीमा मुस्करा देती समीर की मासूमियत भरी मुहब्बत पर I वो शरमा जाता I माँ की टांगों से लिपटते हुए कहता मैंने सूज़ी आंटी को कहते हुए सुना था जब आपके साथ आपके बाल बनवाने गया था I माँ खो गई है वक़्त के उन सुहाने सपनों में जब समीर हर समय सीमा के साथ ही रहना चाहता था I

“माँ ! मैं डरता हूँ कहीं आपको कुछ हो ना जाए इसी लिए मैं आपके साथ साथ आता हूँ I” ये कहकर वो अपने प्यारे प्यारे हाथों से सीमा के मुंह को पकड़ कर अपनी तरफ मोड़ लेता I

आज उन्ही हाथों ने उसके बदन....उसके दिलो दिमाग़ को चूर चूर कर दिया है I नील के निशान ने उसकी तीस वर्षों की तपस्या को तार तार कर दिया है। नील का निशान तो समय के साथ धुंधला होकर मिट जाएगा पर मन पर लगा ये झटका... ये ज़ख्म कैसे भरेगा....। रिसता रहेगा I क्या यह मेरे दिये हुए संस्कार हैं? सीमा कुछ समझ नहीं पा रही - बिल्कुल ब्लैंक हो गई थी I

समीर घर में केवल अपने पिता से डरता था। बच्चों को डराना सीमा की प्रकृति में शामिल नहीं था। बस यही जी चाह्ता था कि हरदम दिल में समाय रक्खे अपने बच्चों को....। ख़ासतौर से समीर को....एक ही तो बेटा था, वो भी बीच का, निग्लेक्टेड.... सैंड्विच बना हुआ .... बहनें तंग करतीं तो जवाब में उनसे बढ़ चढ़ कर वो परेशान करता I बड़ी वाली तो सह लेती पर छोटी इतना चिल्लाती के सम्भालना मुश्किल हो जाता और फिर समीर की धुनाई तो पक्की होती I वो भी....पक गया था मार खा खा कर I मार तो उसको पड़ती पर चोट —चोट हमेशा सीमा को लगती। धड़ाधड़ शीशे के बरतन जब बरसना शुरू होते तो....कभी हाथों और दुपट्टे के पल्लू से समीर का सिर छुपाती तो कभी कोहनियां ऊंची करके उनके पीछे अपना मुंह बचाती।

समीर को अपनी छांव में लेकर भागती तो पीछे से एक जूता उसकी कमर पर पड़ता। वह जूते की चोट को सह जाती। उसे संतोष इस बात का होता कि जूता उसके पुत्र के शरीर तक नहीं पहुंच पाया।

“माँ आप कॉन्फ़रेंस में जाएंगी ना? ”

“हाँ, सोच तो रही हूँ ”

“कब से शुरू है कॉन्फ़्रेंस ? ”

“२४ सितम्बर से। ”

“आप कितने दिनों के लिए जाएंगी ? ”

“हमेशा के तरह तीन रातें चार दिन। मगर मैंने अभी फैसला नहीं किया है कि जाउंगी या नहीं। ” सीमा ने जवाब दिया

“माँ आपको अवश्य जाना चाहिए अगर एक बार सिलसिला टूट गया तो फिर आप आइन्दा भी नहीं जाना चाहेंगी। ” समीर ने इतने अपनेपन से कहा कि सीमा ने उसी समय फ़ैसला कर लिया कि समीर ठीक ही तो कह रहा है। उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचकर बहुत से काम समय से पहले ही छोड़ दिए जाते हैं । सीमा वक़्त से पहले बूढ़ी नहीं होगी....।वो हमेशा कहती थी कि उम्र को रोकना और आगे बढ़ाना बहुत कुछ अपने ही हाथ में होता है । उसने फैसला कर लिया कि वह कॉन्फ़्रेंस में अवश्य भाग लेगी।

सीमा की समझ में नहीं आ रहा था कि वह लेबर पार्टी की कॉन्फ़्रेंस में आई थी या अमीरों की पार्टी में ....! हर पॉलिसी ओल्ड लेबर से हट कर न्यू लेबर को छूती हुई टोरी पार्टी की गोद में जा बैठी थी। सीमा उकताने लगी थी....। आख़िर क्यों आ गई ? क्या सब कुछ बदल जाएगा.... क्या हर अच्छी चीज़ इसीलिये बदल जाएगी क्योंकि बदलाव जीवन की सच्चाई है ?....।

“अरे माँ आप वापिस भी आ गईं? अभी तो कॉन्फ़्रेंस चल रही है। सुबह टी.वी. पर दिखा भी रहे थे। ” समीर उस दिन काम से आया तो माँ घर में मौजूद थी ।

मां ने देखा...। पुत्र के साथ एक युवती भी थी। ज़ाहिर है उसकी आंखों में एक सवाल उभरा जो ज़बान तक नहीं आया। मगर पुत्र को सवाल समझ में आ गया।

“माँ इससे मिलो ये... नीरा है। ”

“हेलो नीरा....! ” माँ ने पूछा, “कुछ खाओ पियोगे तुम लोग, या फिर बाहर से खा कर आ गए हो? ” सीमा को बाहर खाना बिलकुल पसंद नहीं था। वह स्वास्थय की ख़राबी के लिए हमेशा बाहर के खाने को ही दोष देती थी। खाना घर का और ताज़ा पका होना ज़रुरी है। वह स्वयं तो शाकाहारी थी। पर दूसरों को केवल रेड मीट खाने से रोकती थी। मगर उसकी सुनता कौन था? पति देव तो दोनों समय रेड मीट ही खाते थे। बीफ़ के बहाने अपनी अम्मां को भी याद किया करते थे कि क्या कबाब बनाती थीं बस मज़ा आ जता था.... उफ़....बीफ़....! सीमा अपने होठों को भींच लेती....सांस रोक लेती कि कहीं उसको बीफ़ की महक ना आ जाये?

“येस मामा डार्लिंग हम खा ही कर आए हैं क्योंकि आप तो थीं नहीं इसी लिए बाहर ही खा लिया था...। ”

सीमा आज की पीढ़ी के मिज़ाज को समझती थी इसी लिए प्रश्न हमेशा सोच समझ कर पूछा करती थी। अब ते ज़माना ही बदल गया था। पहले बच्चे अपने मां बाप से प्रश्न पूछते डरते थे। आजकल मां बाप एहतियात बरतते हैं।

फिर भी सीमा ने समीर को करीब बुलाकर मालूम करना चाहा ये नीरा कौन है और रात को घर में क्यों लाया है। क्या उसे अभी वापिस भी ले जाना है...?

“माँ रात को यहीं सो जाएगी...।” समीर ने थोड़ा झिझकते और आवाज़ को काफ़ी गंभीर बनाते हुए उत्तर दिया।

सीमा उसके और करीब आ गई और तकरीबन सरगोशी करते हुए बोली, “मुझे ये पसंद नहीं है और अगर वापस आकर तुम्हारे पिता सुनेंगे तो मुझ पर बहुत नाराज़ होंगे।”

“वो आएँगे तो ये चली जाएगी.....।”

“नहीं बेटे हमारा यह कल्चर नहीं है। यहाँ तुम्हारी बहन के सात आठ वर्ष के बच्चे आते हैं वो क्या समझ पाएंगे इस रिश्ते को उनको क्या बताया जाएगा। ”

“माँ दिस इज़ नॉट माई प्रॉब्लम ...! ”

सीमा ने उसी समय समीर की आवाज़ और चेहरे के भाव पढ़ लिए थे 37 वर्ष से झेल रही थी समीर के दोहरे उसूलों को।

जहाँ माँ और बहनों का मामला होता फ़ौरन देसी बन जाता और अपने मामले में पश्चिमी मूल्य रखता।

सीमा सब सह लेती .... उसके दिमाग़ में समीर के बचपन की पिटाई की यादें छपी हुई हैं.... उसको दया आ जाती और वो चुप हो जाती पर उसने कभी ये नहीं सोचा था कि उसके ये फ़ैसले समीर के लिए कितने हानिकारक हो सकते हैं वो तो माँ के स्नेह से लबालब थी.... पुत्र की कमज़ोरियां भी स्नेह के आगे दब जातीं।

सीमा ऊपर पहुँची तो मालूम हुआ के उसके कम्पयूटर पर तो नीरा का राज है। इसके मतलब हुए जिस दिन वो गई उसी दिन नीरा आ गई होगी....तो फिर क्या....नहीं नहीं समीर ऐसा नहीं है....। उसने नीरा को दूसरे कमरे में शिफ़्ट करना चाहा तो समीर आ पहुंचा ।

“माँ इसे रात को नींद नहीं आती तो आपका कंप्यूटर यूज़ करती है। ”

“बेटे मेरा कंपनी का कंप्यूटर है मैं नहीं चाहती इसको कोई और भी हाथ लगाए। ”

“कम ऑन माँ....। ”

सीमा ने कहा, “अच्छा आज रहने दो मैं भी थकी हुई हूँ और कल तो यह चली ही जाएगी। ”

“नहीं माँ इसका रहने का कोई बंदोबस्त नहीं है। ”

“अरे तो फिर कहाँ से उठा लाए हो? ” सीमा ने नाराज़ होते हुए पर आवाज़ को बिना ऊंचा किये पूछा । सीमा को हमेशा से नफ़रत थी ऊंची आवाज़ में ग़ुस्सा करने से। उसका ख़्याल है जब कोई ग़लत बात को सही बात साबित करना चाहता है तभी ज़ोर ज़ोर से बोलने लगता है। और फिर आगे वाले की भी तो कोइ इज्ज़त होती है चाहे बड़ा हो या छोटा...! अक्सर उसका पति सोचता कि सीमा चिल्लाकर एक्सप्लेन नहीं कर रही तो इसके मतलब हैं झूट बोल रही है। सीमा सोचती इस बात में अवश्य परवरिश का हाथ होता है। कैसे माहौल में कौन पला है ऐसे ही क्षणों में असलियत मालूम हो पाती है ।

वो अपने कमरे में सोने चली गई।

तीन दिन की कॉन्फ़्रेंस ने थका दिया था कुछ तो दुखी कर देने वाली नई राजनीति थी, बिलकुल दक्षिण पंथी दल होने का अनुभव होने लगता है। मैंने इस लिए तो नहीं इस पार्टी कि मेम्बरशिप ली थी...!!

वह बोर होकर पहले ही चली आई थी और यहाँ आकर भी उसे दुःख ही हुआ था। औरत जिधर जाती है उधर दुःख ही झेलने पड़ते हैं। समीर के बारे में सोचने लगी। कहता है की जब बाप आएगा तो नीरा यहाँ से चली जाएगी। तो क्या वो ये सोच रहा है कि उसकी माँ को ये तौर तरीके पसंद हैं। वो फिर घबराने लगी कि कल वीकेंड है। बिटिया और दोनों बच्चे आएँगे, दामादजी तो छुट्टी वाले दिन भी काम करते हैं। ससुर के ऊपर तो वो पड़ गए हैं । सीमा ने भी छुट्टी का दिन पति के साथ कभी नहीं बिताया था। वो वीकेंड घर में रुक जाते थे तो ऐसा लगता जैसे बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं। पूरे दिन टी वी के सामने आराम कुर्सी पर लेटे नख़रे दिखाते रहते और सीमा नख़रे उठाने की तो मशीन बन चुकी थी।

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