बच्चे के साथ कैसी दुश्मनी? क्यों मज़ाक बनायेंगीं उसका? बहुत दुखी हुआ था उनका मन उस दिन. और उसी दिन उन्होंने तय किया था कि अब वे गांव भी बहुत ज़रूरी होने पर ही आयेंगीं. दादाजी तो अब हैं नहीं, जिनके स्नेह के चलते आना ज़रूरी हो. छोटी काकी को भी उन्होंने बता दिया था. बच्चे के साथ किये गये दुर्व्यवहार से छोटी काकी भी कम दुखी न थीं. उन्हें भी सुमित्रा जी की बात ठीक ही लगी थी.
पिटते, मुंह काला पुतवाते, दिन भर को कोने में खड़े किये जाते, लुढ़कते-पुढ़कते कुन्ती के दोनों बेटे भी बड़े हो गये थे. एक अज्जू के बराबर था, दूसरा अज्जू से दो साल छोटा. अब तो उन दोनों की भी शादी हो गयी थी. सरकारी नौकरियों में थे दोनों. लेकिन दोनों ने बचपन में कम अत्याचार नहीं सहे कुन्ती के...... सुमित्रा के बाद ये दोनों ही तो असली शिकार हुए हैं. कुन्ती ने इन्हें इस क़दर पीटा है, जैसे अपने नहीं किसी पराये बच्चे को पीट रही है वो भी इंसान के नहीं, जैसे किसी बेजान खिलौने को पीट रही हो. जी भर धुनकने के बाद रोने बैठ जाती. पता नहीं कौन सी कुंठा निकालती थी.... पता नहीं उसके मन में क्या चलता रहता था....! अपने बच्चों के लिये दूसरों से एक शब्द भी न सुनने वाली कुन्ती, खुद उन्हें रुई की तरह धुनकती थी. जो हाथ में आ जाये उसी से पिटाई शुरु, वो भी ज़रा-ज़रा सी बात पर. यदि किशोर ने एक बार में कुन्ती की आवाज़ नहीं सुनी, तो अगली आवाज़ थप्पड़ की ही सुनाई देती थी. लेकिन तब भी सुमित्रा खुश है, कि कुन्ती के दोनों बेटे उसे बहुत मानते हैं. भरपूर सुख देने की कोशिश करते हैं. लेकिन तब भी कुछ न कुछ हो ही जाता है . कुन्ती को संतुष्ट कर पाना ही अपने आप में मुश्किल काम है. कब किस बात से कुन्ती नाराज़ हो जायेगी ये तो परमात्मा भी नहीं जानता. मन ही मन ये वाक्य कहते हुए सुमित्रा जी ने प्रत्यक्षत: ऊपर परमात्मा की ओर आंखें उठा के अपनी बात पूरी की.
“मम्मी, देखो, किशोर भैया ने कितना अच्छा विडियो पोस्ट किया है. गांव में भागवत हो रही क्या? उसी की कलश-यात्रा है शायद. तुमने देखा क्या वीडियो?”
अज्जू मोबाइल लिये उनके पास आ गया था.
’अभी तो नहीं देखा बेटा. दिखाओ तुम.’ सुमित्रा जी वीडियो देखने लगीं. गांव की गलियों से कलश-यात्रा गुज़र रही थी. सुमित्रा जी वापस गांव के गलियारे में पहुंचतीं, उसके पहले ही अज्जू की आवाज़ सुनाई दी-
“मम्मी, ये किशोर भैया का बायां पैर थोड़ा डिफ़ेक्टिव है क्या? अभी वीडियो में चलते देखा, तो ध्यान गया...”
“ नहीं डिफ़ेक्टिव नहीं है. बचपन से ही थोड़ी सी लचक है बस.” सुमित्रा जी ने बात बनाई. लेकिन बात बनाते-बनाते वे उस घटना के भीतर पहुंच गयीं थीं, जिस ने किशोर के पैर में लचक ला दी थी. गर्मियों की ही बात है. रमा रोटियां सेंक रही थी, पसीना-पसीना होते हुए. सुमित्रा जी बेलतीं, और रमा सेंकतीं. किशोर उस समय साल भर का भी नहीं था. रसोई के ठीक आगे की छत पर छोटी काकी उसे छोटे से खटोले पर लिटा के हवा कर रही थीं. इसी बीच कुन्ती रसोई में पहुंची और रमा को दूध गरम करने का आदेश दिया-
(क्रमशः)