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शहीद उधमसिंह

मित्रों मे आप सभी को आज इतिहास के एक एसे वीर की बात करने वाला हू जो शायद इतिहास के पन्ने मे कही दबे पडे है कई लोगों को तो उनका नाम भी शायद पता नहीं होगा,

दोस्तों उस वीर का नाम है सरदार उधम सिंह.

सरदार उधम सिंह का नाम भारत की आजादी की लड़ाई में पंजाब के क्रांतिकारी के रूप में दर्ज है.

एसा माना जाता है कि उनका असली नाम शेर सिंह था और कहा जाता है कि साल 1933 में उन्होंने पासपोर्ट बनाने के लिए 'उधम सिंह' नाम अपनाया था.


उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में चमार परिवार में हुआ था.

सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया और इतनी कम उम्र में ही सर से माँ - बाप का साया उठ जाने की वज़ह से उधम सिंह को कई कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ा था और उसको अमृतसर के अनाथाश्रम का सहारा लेना पड़ा था जहा उनके साथ उनके भाई मुक्ता सिंह भी थे और एसा माना जाता है कि आश्रम मे ही दोनों भाइयों को शेर सिंह को उधम सिंह और मुक्ता सिंह को साधु सिंह नाम दिया गया था

और एसा भी माना जाता है कि किसी इतिहासकार के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है। हालाकि इस बात की कितनी सच्चाई है उसकी कहीं पर भी पुष्टि नहीं की गई है.

अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी और वो पढ़ाई भी कर रहे थे कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। और वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।

मित्रों उधम सिह के साथ कई इसी घटनाये घटी जिसके चलते वो अंदर से बिल्कुल टूट सकते थे लेकिन उन्होने सबी कठिनाईयों का सामना किया और देश की आजादी के लिए अपना योगदान दिया.

और 13 April 1919 को rowlatt act के विरोध के लिए करीब 20,000 स्थानीको ने जलीयावाला बाग मे विशाल सभा का आयोजन किया था और उसमे उधम सिंह सब को पानी पिलाने का काम कर रहे थे पर तभी पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ'डायर को इस बात का पता चला तो और उन्होंने बिना किसी पूर्व सूचना के जलीयावाला बाग मे इकट्ठा हुए लोगों पे अंधाधुंध गोलीबारी का आदेश दे दिया और जलीयावाला बाग मे 20 मिनिट तक गोलीबारी चलती रही जिसमें 1650 राउन्ड्स फायर हुए थे और ना जाने कितने बेकसूर लोग उसमे मारे गए थे लेकिन सौभाग्य की बात है कि उधम सिंह उसमे बच गए थे और उन्होने उस हत्याकांड को देखकर कसम खाई थी कि जिसने मेरे बेकसूर देश वासीओ को मरवाया है मे उसको मे जीने नहीं दूँगा.

और इस कसम को पूरी करने के लिए आजादी की इस लड़ाई में वे 1924 मे 'गदर' पार्टी से जुड़े और उस वजह से बाद में उन्हें 5 साल की जेल की सजा भी हुई. जेल से निकलने के बाद उन्होंने अपना नाम बदला और पासपोर्ट बनाकर विदेश चले गए. लाहौर जेल में उनकी मुलाकात भगत सिंह से भी हुई थी.

1934 मे वे अपने लक्ष्य को सिद्ध करने हेतु लंदन चले गए और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे और वहां पे उसने 6 गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीदी

लंदन मे रहते हुए उधम सिंह के पास इसे कई मौके आए जिसमें वो डायर को आराम से मार सकते थे लेकिन उन्होने सोचा इसने मेरे देश वासीओ की हत्या भरी सभा मे कि है मे भी उसको भरी सभा मे ही मारूंगा.

आखिर कार 21 साल बाद 13 मार्च 1940 के दिन उनके हाथ वो मौका आ ही गया लंदन के एक शहर के काकस्टन होल मे एक बैठक थी जिसमे माइकल ओ'डायर मुख्य वकता थे, वहा पर उधम सिंह एक किताब मे अपनी रिवाल्वर छुपा के अंदर चले गए थे, और बैठक खत्म होते ही उधम सिंह ने माइकल ओ'दायर पे गोलियां दाग दीं। तीन गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई।

दोस्तों गोली चलाने के बाद वीर उधम सिंह वहां से भाग सकते थे लेकिन वो भागे नहीं और अपनी गिरफ्तारी दे दी

और उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया
और तब कोर्ट ने उधम सिंह से पूछा कि तुम डायर को गोली मारने के बाद वहा से भाग सकते थे लेकिन तुम भागे क्यु नहीं? तब उधम सिंह ने कहा कि "मुजे फांसी होने पर मेरे देश मे मेरे जैसे ही हज़ारों उधम सिंह जन्म लेंगे"

और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।





कईयों ने फांसी तो कईयों ने गोली देश के लिए खाई थी,

नहीं भूले उन हरामिओ को जिसने जलियांवाला मे सेंकड़ों लाशे बिछाई थी.

कुछ ना-मर्दो ने बंदूक के साथ अपनी मर्दानगी दिखाई थी,

लाखो निर्दोषों ने इस धरती पे.. अपने खून की नदिया बहाई थी.

हत्याकांड को देख कर एक मर्द ने (उधम सिंह ने) कसम खाई थी,

जरनल डायर को उसीके देश मे तीन गोली घुसाई थी.

-HK

Never Forget 13 April 1919 Jalliyawala Hatiyakand

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