ब्याह ??? - 2 - अंतिम भाग Vandana Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ब्याह ??? - 2 - अंतिम भाग

ब्याह ???

(2)

“ मौसी, आज सारी दुनिया के लिए मैं ही गुनहगार बना दी गयी मगर यदि आप सत्य जानतीं तो कभी ऐसा न कहतीं बल्कि उस पूरे परिवार से घृणा करतीं ऐसे लोग समाज पर बोझ हुआ करते हैं मगर जाने इनके झूठ कैसे परवान चढ जाया करते हैं और एक स्त्री के सच भी जाने किन कब्रों में दफ़न कर दिये जाते हैं कि वो सच कहना भी चाहे तो उसे झूठ का लिबास पहना दिया जाता है और कलंकित सिद्ध कर दिया जाता है । “

“मौसीस दिन मैने डोली से नीचे पाँव रखा उस दिन मुझे लग रहा था संसार की सबसे खुशनसीब स्त्री हूँ मैं मगर मुझे नहीं पता था कि ईश्वर ने मुझे रूप देकर मेरी नसीब से मेरा सबसे बडा

“मौसी, जिस दिन मैने डोली से नीचे पाँव रखा उस दिन मुझे लग रहा था संसार की सबसे खुशनसीब स्त्री हूँ मैं मगर मुझे नहीं पता था कि ईश्वर ने मुझे रूप देकर मेरी नसीब से मेरा सबसे बडा सुख ही मुझसे छीन लिया है । जाने किस कलम से विधाता ने मेरा भाग्य लिखा था जब सुहागरात को मुझे पता चला कि अविनाश नपुंसक हैं । यूँ लगा जैसे आस्माँ में जितनी बिजली है वो सब एक साथ मुझ पर गिर पडी हो । मैने उनसे पूछा, आप जानते थे ये सत्य तो क्यों मेरा जीवन बर्बाद किया ? आपको ये शादी करनी ही नहीं चाहिए थी ?”

“तुम सही कह रही हो मगर घरवालों के दबाव के कारण मुझे ऐसा करना पडा । उनका कहना था, “तुम ऐसे अकेले कैसे सारी ज़िन्दगी गुजारोगे तुम्हें? कोई ऐसा भी तो हो जो हमारे बाद तुम्हारा साथ दे, समझे तुम्हारे दुख सुख में तुम्हारे काम आए और जहाँ तक वो बात है तो एक बार शादी हो जाए तो कौन स्त्री अपने मुख से ऐसी बातें कहती है ।“

“मैने उनसे कहा भी कि मैं किसी को धोखा नहीं देना चाहता बल्कि इस तरह तो मैं किसी का जीवन ही बर्बाद कर दूँगा बल्कि उसकी जगह किसी बेसहारा को जीवनसाथी बना लूँ जो मेरी तरह ही हो तो उनका कहना था कि ऐसा मिलना कहाँ संभव है और आज कोई इश्तिहार नहीं दिये जाते कि ‘एक नपुंसक के लिए दूसरे नपुंसक साथी की आवश्यकता है ताकि दोनो एक दूसरे का सहारा बन जीवन बिता सकें’ और फिर हम उसे सब सुख देंगे तो क्यों नहीं निर्वाह करेगी आजकल की लडकियों को और चाहिए ही क्या होता है जहाँ पैसा देखती हैं खिंची चली आती हैं क्योंकि उन्हें सब सुख सुविधायें चाहिये होती हैं और वो तुम उसे मुहैया करवाओगे ही तो वो इन बातों को इग्नोर कर देती हैं । “ मेरे मना करने पर मुझे अपनी कसम और प्यार का वास्ता देकर जबरदस्ती मेरी शादी तुमसे करवा दी है मगर मेरी तरफ़ से तुम स्वतंत्र हो सुनयना चाहो तो आज और अभी इसी वक्त मुझे छोडकर जा सकती हो ।

मौसी मैं एक –एक शब्द के साथ अंगारों पर लोटती रही. मुझे समझ नहीं आ रहा था इन हालात में मुझे क्या करना चाहिए ? मैं रोटी रही सिसकती रही और सुबह का इंतज़ार करती रही. सुबह होते ही इनकी माँ मेरे पास आयीं और बोलीं, देख बहू, तू सारा सच तो जान ही गयी होगी, बेटी हम तुझे कोई तकलीफ नहीं होंगे देंगे, तुझे पूरी स्वस्तंत्र होगी अपने मर्ज़ी से जेने की. जैसे अपने घर में करती थी वैसे ही यहाँ भी रहेगी मगर ये सच किसी इ मत कहना वर्ना समाज में हमारी कोई इज्जत नहीं रह जायगी. हम ही जानते हैं हमने कैसे दिल पर पत्थर रखकर ये शादी की है ताकि अविनाश को हमारे बाद कोई तो हो जिसे वो अपना कह सके और हाथ जोड़कर मेरे पैरों पर गिर गयीं और मैं भौंचक्क सी रह गयी.

“ये क्या कर रही हैं आप माँजी, ऐसा करके मुझे शर्मिंदा मत करिए. मैं तो आपकी बेटी जैसी हूँ, मेरे पैरों में मत गिरिये.”

“न बेटी मुझे हो सके तो माफ़ कर दे । पुत्रमोह में मैने तेरे जीवन की आहुति दे दी है ईश्वर मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा तू एक माँ के दिल को यदि समझती है तो तू ये सच किसी से नहीं कहेगी। “

मुझे असमंजस में छोड वो रोती बिलखती चली गयीं और मैं किंकर्तव्यविमूढ सी बैठी रही ये सोचते मुझे क्या करना चाहिए ?

यूँ तो मेरे परिवार में यदि ये बात किसी को पता चलती तो एक पल न छोडते बेशक बहुत ज्यादा पैसे वाले नहीं हैं मगर अपनी बेटी का जीवन बर्बाद होते तो नहीं देख सकते थे मगर मुझे उनके साथ अपनी छोटी बहनों की भी चिंता होने लगी ।

कल को मैं यदि वापस चली गयी तो लोग क्या कहेंगे ? कौन मेरी बहनों का कल को हाथ थामेगा ? कोई इस सच को जल्दी से नहीं स्वीकारेगा, जितनी जुबान होंगी उतनी ही बातें बनेंगी आखिर कितना पैसा लगा है मेरी शादी में. अब पापा फिर से एक नए सिरे से मेरी ज़िन्दगी को आकार देना चाहेंगे और फिर इतना पैसा लगायेंगे तो कैसे संभव होगा मेरी दोनों बहनों का ब्याह ? मैं सोचते सोचते बेचैन हो गयी और उसी बेचैनी में अपने परिवार और उसके भविष्य के लिए मैंने ये निर्णय लिया कि अगर मेरा जीवन बर्बाद हो गया है तो कम से कम अपनी बहनों और अपने परिवार को तो उस दोजख में न धकेलूँ, इसलिए मैंने अपनी किस्मत से समझौता करने की ठान ली और मुख पर जरा सा भी गिला शिकवा न लाते हुए ज़िन्दगी जीने लगी.

अविनाश तो मेरे इस त्याग से जैसे बेमोल बिक गए । मैं जो कहती वो हर वक्त करने को तैयार रहते । मेरी छोटी से छोटी बात का ऐसे ख्याल रखते कि मुझे अहसास नहीं होता कि मेरे पास एक शरीर भी है जिसकी भी कोई जरूरतें होती हैं ।

ज़िन्दगी एक ढर्रे पर चलने लगी थी मैंने अपनी किस्मत के लिखे को स्वीकार लिया था मगर मुझे नहीं पता था कि किस्मत अभी मेरे साथ और खेल खेलने वाली है जो मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी एक दिन वो हुआ ।

मैं सो रही थी तभी मुझे अपने शारीर पर किसी हाथ के रेंगने का अहसास हुआ तो देखा मेरी साडी पैरों से उघडी पड़ी है और मेरा श्वसुर मेरे पैरों पर हाथ फेर रहा है. मैं उसे धकियाते हुए चीखती हुई कड़ी हुई तो सब लोग कमरे में आ गए और मैं रो पड़ी सब बतलाते हुए तो मेरी सास बोली, “ अरे तो क्या हुआ ? तुझे ही तो जरूरत होती होगी किसी मर्द की. पिघले सीसे से उसके शब्द मेरे कानों में गिरे और मैं हैरान हो उसे देखने लगी, भूल गयी कुछ पल को कि अभी मेरे साथ क्या घटा है.

मैं हैरान थी देखकर कि कैसे एक औरत अपनी सारी मान मर्यादा को दांव पर लगाकर अपने पति कैसे दूसरी औरत के पास बेझिझक भेज रही थी. मुझे उस दिन अपने निर्णय पर बेहद पछतावा हुआ जब सास ने कहा, “ आस पास वाले पूछते हैं कब खुशखबरी सुना रही हो तो मुझे चुप रह जाना पड़ता है. सच किसी से कह नहीं सकती और जो सब चाहते हैं वो हो नहीं सकता इसलिए हमने सोचा घर की बात घर में ही रहेगी और सबकी जुबान भी बंद हो जाएगी.बस एक बार तू इनके साथ सम्बन्ध बना ले. “

“ओह ! मौसी, मैं बता नहीं सकती उस एक पल में मैं कितनी मौत मग गयी जिन्हें पिता तुल्य स्थान दिया हो उनके साथ ऐसा सम्बन्ध मैं सोच नही नहीं सकती थी, सोचकर ही उबकाई आ रही थी. इतनी घृणित सोच ! ग्लानि से भर उठी मैं.”

उस दिन अविनाश घर पर नहीं थे तो मैंने उन्हें कहा, “ यदि उन्हें ये सब पता चलेगा तो आप सबके इस कुकृत्य पर सोचिये कितने शर्मिंदा होंगे वो.क्या आपका यही प्रेम है अपने बेटे से कि उसकी ब्याहता पर कुदृष्टि रखो? मैंने आज तक कुछ नहीं कहा चुप रही इसका ये मतलब नहीं कि आप सबकी सही गलत हर बात में साथ दूँगी. मैं ऐसा हरगिज नहीं करूंगी. यदि ऐसी ही चाहत है तो कोई बच्चा गोद ले लो, उसे एक घर दे दो, कम से कम एक तो नेक काम होगा मगर उनका कहना था उन्हें तो अपना ही खून चाहिए. पराया तो पराया होता है और अपना अपना. ये कैसा अपनापन था जहाँ अपना जो था वो ही अपना न था.

अभी हमारी ये जिरह चल ही रही थी कि अविनाश आ गये और जैसे ही उन्होने ये सब सुना तो उनकी तो जुबान पर ही जैसे लकवा मार गया और सबने समझा वो भी यही चाहते हैं इसलिए जबरदस्ती उन्होने श्वसुर के साथ मुझे कमरे में बंद कर दिया इधर जैसे ही ये संभले इन्होने प्रतिकार किया कि ये सब क्या कर रहे हो तुम लोग । उस पर क्यों इतना अन्याय कर रहे हो

वैसे ही तुम लोगों ने अपने प्यार का वास्ता देकर उसका जीवन बर्बाद कर दिया अब फिर क्यों तुम उसे जिंदा ही चिता पर धकेल रहे हो. वो जैसे ही दरवाज़ा खोलने को आगे बड़े मेरे देवर और जेठ ने उन्हें पकड़ लिया और दुसरे कमरे में बंद कर दिया इधर मैं अपने श्वसुर से बचने का प्रयास कर रही थी उधर उनकी आवाजें आ रही थीं :

माँ, मुझे बाहर निकालो वर्ना बहुत बुरा होगा. मैं आत्महत्या कर लूँगा. यहाँ मैंने तुम्हारे कमरे में रखी चूहे मरने की दवा खोज ली है, कमरा खोलो माँ.

तो उनकी माँ बाहर से बोली,, अविनाश हम जो कर रहे हैं सबके भले के लिए ही कर रहे हैं और तू बेकार की धमकी न दे ।

माँ, मैं धमकी नहीं दे रहा सच कह रहा हूँ ।

न बेटा मेरी उम्र यूँ ही नहीं गुजरी, तेरी गीदड भभकियों में मैं नहीं आने वाली ।

और थोडी देर तक जब उनकी कोई आवाज़ नहीं आयी तो इन लोगों को लगा कि कहीं सच में तो ………?

और जैसे ही दरवाज़ा खोला उन्होने तो मेरा संसार लुट चुका था । थोड़ी देर ये लोग कोशिश करते रहे मगर मात्रा इतनी ज्यादा थी कि तुरंत ही असर हो गया.न अस्पताल लेकर गए न डॉक्टर को ही बुलाया, जाने क्या सोच थी उन लोगों की.

क्योंकि ज़हर से शरीर नीला पडने लगा था इसलिए सुबह सारा दोष मेरे सिर मढ दिया गया ।

“अब बताओ मौसी, इस सबमें मेरा क्या दोष था ? क्या इस सबके बाद कोई किसी पर उसके आँसुओं पर विश्वास कर सकेगा जैसा मेरी सास ने मेरे साथ किया ? “

“मौसी, मैं अपने आंसुओं को पीती रही, सिसकती रही, मन में उठते अतृप्त ज्वार को अपने अश्रुओं की बूंदों से सींच-सींच कर आंच को धीमी करती रही, मेरे भीतर सुलगती हुई अतृप्त वासना मुझे हर क्षण झकझोरती रही, फिर भी बिना विचलित हुये एक गृहस्थ सन्यासन की तरह घर की मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा को ही अपनी धरोहर समझ किसी तरह जीती रही, लेकिन घर में भी क्या एक औरत सुरक्षित नहीं? क्या औरत आज भी एक वस्तु है, सिर्फ एक उपभोग की वस्तु ? इसके सिवा कुछ भी नहीं ?”

“या अपनी शारीरिक जरूरतों को नज़र अन्दाज़ करने के गुनाह की ये सज़ा मिली थी मुझे ?”

“ या स्त्री का स्त्री पर विश्वास करना आज के कालखंड की सबसे बडी त्रासदी है ?”

“ या प्रतिरोध न करने की यही सज़ा होती है कम से कम आज एक स्त्री के लिए ?”

“अंधेरे की ओट में भविष्य को दाँव पर लगा मुस्कुराना दोष था ?”

“अब तुम ही बताओ मौसी ………

क्या स्त्री होना दोष था या खूबसूरत होना या परिस्थितियों से समझौता करना ? “

ये कह वो तो चली गयी मगर तब से आज तक उसके शब्द मेरे जेहन में हथौडों की तरह बज रहे हैं ……… स्त्री के भाग्य में लिखे शून्य का विस्तार खोज रही हूँ तब से अब तक जीजी …………क्या है कोई जवाब तुम्हारे पास ?

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