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कोर्ट के भुत

कोर्ट के भुत

लेखक : श्री.मिलिंद गीता रामदास राणे

शाम को काम खत्म करके मै घर के लिए निकलही रहा था। तभी पड़ोसी सहयोगी राजीव ने मुझे पूछा कि पाटिल आज देर रात तक रुक के डाटा बैकअप का काम पूरा करें क्या ? मैंने राजीव की तरफ देखा और कहा नहीं मैं देर रात तक ऑफिस में नहीं रुकता। चाहिए तो मै कल सुबह थोड़ा जल्दी आ के काम पूरा करता हु। जैसे ही मैंने ऐसे बोला वैसे मेरे और एक सहयोगी ने हसते हुए राजिव से कहा , पाटिल थोड़ा डरपोक है। इसलिए रुकना नहीं चाहता।

राजीव ने मेरी तरफ देखा। मैंने उन दोनों की तरफ देखा और मुस्कुराया और घाडी को कहा, यदि आप लोग ऐसा समझ रहे है तो मुझे कोई दिककत नहीं है। दोनों को निकलते वक्त मैंने बाय किया। कोर्ट के बाहर आ के चाय की टपरी पे चुस्किया लेते हुए मै कोर्ट की बड़ी वास्तु को देख रहा था। ऑफिस में काम के लिए देर रात तक नहीं रुकने के पीछे मुझे १५ साल पुराणा आया हुआ एक डरावना अनुभव था।

हुआ ऐसे था की उस वक्त मेरी उम्र २५ साल थी। मै कोंकण इलाके के जिला न्यायलय के ऑफिस में कंप्यूटर विभाग में काम करता था। मेरे विभाग में , सावंत सर , विकास, संजय , और मै ऐसे चार लोग काम करते थे।

हमारे चारो जन का एक अच्छा ग्रुप हो गया था। खाना , पीना , मजाक , मस्ती करते हम काम करते थे। सावंत सर को छोड़ के हम तीनो बैचलर थे। सावंत सर की बीवी पेट से थी और वो अपने मायके गई थी। इसलिए वो भी हमारे साथ थोड़ा लेट ऑफिस में काम करते रुकते थे। हम चारो रोज ५ बजे ऑफिस छूटने के बात शाम को एक घंटा ज्यादा ६ बजे तक रुक के काम करते थे। उसके बाद चाय की टपरी पे चाय पीके घर के लिए निकलते थे। ये हमारा रोज का दिनक्रम हो गया था।

दिसंबर की ठण्ड शुरू हो गयी थी। गांव में तो ज्यादा ठण्ड होती है। दो दिन के बाद हमे क्रिसमस की छुटिया लगने वाली थी। इसलिए सावंत सर हम सबको बोले हम आज रात को देरतक रुक के डेटा बैकअप का काम खत्म करते है। तो कल हम लोग घर के लिए जल्दी निकल सकते है। हम सब इसके लिए राजी हो गए।

हम काम करते बैठे। शाम के सात बज चुके थे। सुरक्षा विभाग के परब आ गए। हमें देख के बोले आप लोग अभी तक गए नहीं ? हमने उनसे कहा हम लोग आज ज्यादा देर बैठ ने वाले है। शायद १०-११ बज सकते है। उन्होंने हमसे कहा इतने देर तक मत रुकिए। ८-९ बजे तक बैठिये और कल सुबह जल्दी आइये।

हमने उन्हें ठीक है करके कहा। वो निकल गए। ८ बजे वापस सुरक्षा व्यवस्थापक बागवे साहब आये। उन्होंने हम लोगो से कहा अभी आप सब लोग घर जाइये। कल सुबह चाहिए तो जल्दी आकर काम कीजिये। सावंत सर ने उन्हें कहा थोड़ा काम बाकी है। हम लोग और दो घंटे बैठने वाले है। बागवे साहब हमें बार बार बोलने लगे ज्यादा समय मत रुकिए। हमने उन्हें हम लोग जल्द ही निकलेंगे कहा। वो निकल गए।

हम लोग हमारा काम कर रहे थे। रात के दस कब बजे पता ही नहीं चला। तभी मै जहा पे बैठा था उसी बाजु का अंदर , बहार जाने वाला मोटा काच का दरवाजा धकेल के कोई अंदर आया ऐसे मुझे लगा। मुझे लगा बागवे सर वापस आये क्या ? पर मुझे कोई दिखा नहीं। मैंने उसके ऊपर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। पर वापस थोड़ी देर बाद वही दरवाजा धकेल के कोई बाहर गया ऐसे मुझे लगा। मैंने सहजतासे संजय को पूछा कौन बाहर गया। उसने सभी को देखा। और मुझे कहा कोई नहीं। हम वापस काम में जुड़ गए। वापस दो बार थोड़े थोड़े वक्त के बाद पहले जैसे ही हुआ। दरवाजा धकेल के कोई आया और वापस बाहर गया। अभी सब लोगो का दरवाजे की तरफ ध्यान गया। सावंत सर ने विकास को पूछा कौन अंदर बाहर आ जा रहा है। देखो दरवाजे के बहार अब कौन गया है। विकास ने दरवाजे के बाहर दोनों तरफ देखा। पैसेज में कोई नहीं था। हम सब अचंबित हो गए। २-३ बार अंदर बाहर कोई गया पर अब पैसेज में कोई नहीं। ये कैसे ? दरवाजा इतना भी हल्का नहीं था की हवा के कारण खुल जाए , और बंद हो सके । उसे बिना किसी ने जोर लगाए खुल नहीं सकता था ?

हम इसके बारे में बात कर ही रहे थे तभी सामने वाली विभाग से प्रिंटर में से प्रिंट देने की आवाज सुनाई देने लगी। हमने देखा कि सामने वाले विभाग के दरवाजे को ताला था। तो प्रिंटर का आवाज कैसे आ रहा है। प्रिंटिंग कौंन देता रहे गा, मैंने बोला। सावंत सर बोले किसी ने गलती से प्रिंटर चालु रखा रहेगा। उन्होंने अपने कंप्यूटर के सिस्टम में सभी डिपार्टमेंट के कंप्यूटर प्रिंटर चालु है क्या देखा। पर हमारे डिपार्टमेंट के कंप्यूटर प्रिंटर के अलावा बाकी डिपार्टमेंट के कंप्यूटर प्रिंटर बंद दिखा रहे थे। तो प्रिंटर का आवाज कैसे आ रहा है। सावंत सर सोच में पड़ गए।

तभी दो डिपार्टमेंट छोड़ के अकाउंट डिपार्टमेंट में से टाइपराइटर का आवाज आने लगा। अकाउंट डिपार्टमेंट में अभी तक कौन बैठा है ? संदीप ने पूछा। हम सब लोग अकाउंट डिपार्टमेंट के पास गए। हमने देखा डिपार्टमेंट को ताला था। तभी डिपार्टमेंट के अंदर से कोई टाइपराइटर पे टाइप करने की आवाज आने लगी। सब से बड़ी बात ये थी की टाइपराइटर पे टाइप करने के बाद उसका हैंडल धकेलने का आवाज भी आ रहा था।

अब हम सब हैरान हो गए। काच का मोटा दरवाजा कोई धकेल के अंदर, बाहर आ जा रहा था। फिर भी पैसेज में कोई दिख नहीं रहा था। सभी विभाग बंद होके भी कुछ डिपार्टमेंट में से प्रिंटर और टाइपराइटर के आवाज आ रहे थे। इन सब घटनाओ से हम सभी डर गए थे। रात के ११ बज गए।

सावंत सरने हम सब से कहा "पांच मिनट में सबके कंप्यूटर बंद करो और जल्दी से यहाँ से निकलो”। हम सबने हमारे कंप्यूटर जल्दी से बंद किये। हमारे विभाग का दरवाजा बंद किया। मैंने जल्दी जल्दी में दरवाजा बंद किया उसकी वजह से दरवाजे पे बांधा हुआ एक पुराना फूलो का हार तभी सीधे मेरे गले में ही गिरा। मै डरके मारे चिल्लाया। मेरे गलेमे गिरा हुआ हार देख के बाकी के भी डर के चिलाये। मैंने कैसे वैसे दरवाजे को ताला लगाया। सावंत सर चिलाये भागो जल्दी से। कोई भी पीछे मूड के नहीं देखेगा। हम सब वहा से चीख़ते चिलाते हुए भागे।

दूसरे दिन सुबह मुझे सिक्योरिटी डिपार्टमेंट के बागवे सर मिले। उन्होंने मुझे बोला कल आपलोग चिलाते हुए भागते जाते हुए मैंने देखा। मैंने कल रात का पूरा क़िस्सा उनको बताया। उन्होंने मुझे बोला इसीलिए मैंने आप लोगो को ज्यादा वक्त नहीं बैठने के लिए बोला।

ऐसे कई अनुभव हम लोगो को आते है। पर मैंने ऐसा कुछ आप लोगो को बताया होता तो आपने मेरा मजाक उड़ाया होता या जान बुज के मै आप को डरा रहा हूँ ऐसे आप को लगता। हम लोग भी ८-९ बजे के बाद कोर्ट के अंदर नहीं जाते है। कल आप लोग बैठे थे इसलिए मै आया था। यहाँ के कुछ रिटायर्ड हुए कर्मचारी मृत्यु के बाद भी यहाँ आ के काम करते हुए मैंने देखा है। आप लोगो को आया हुआ अनुभव उसी में से एक है।

आगे उन्होंने कहा आप लोगो को सिर्फ आवाजे ही आयी। हम सिक्योरिटी वालोने कितनी बार आत्माओ को देखा है। कोर्ट के पीछे अँधेरे जगह पे हमने कुछ लोगो को रोते हुए देर रात को देखा है। लोग अपनी सुनवाई के लिए बहुत दूर दूर से आते है। उन्होंने उसके लिए बहुत दखलीफ़े झेली रहती है। उनकी सारी जमा पूंजी उन्होंने लगाई रहती है। और जब फैसला उनके खिलाफ जाता है तब वो हार्ट अटैक या बीमारी से मर जाते है। और बाद में उनके आत्मा मुक्ति मिलने तक भटकते रहते है।

ऐसे आत्मा हमे कभी देर रात को या अमावस , पूर्णिमा को दीखते है। हम ये सब स्टाफ को नहीं बता ते है। हम लोग जान बुज के डराते है ऐसा सब को लगेगा। अगर कोई काम के लिए रुकता है, तो हम उसे सिर्फ ज्यादा देर नहीं रुकने की सलाह देते है। इसीलिए मैंने हमारे अनुभव के बारे में कल आप को कुछ नहीं बोला।

मुझे अगर वो उनके अनुभवों के बारे में पहले बताते तो मै भी उनके ऊपर भरोसा नहीं रखता। पर कल रात के अनुभव के कारण मुझे उनके ऊपर भरोसा हो गया था। और मेरा भी भुत होने पर विश्वास हो गया।

बागवे सर ने कहा था "अगर भगवान है ये सच है तो आत्मा, भुत भी है ये मानना चाहिए ना ? अपना अपना अनुभव होता है।

आपको क्या लगता है ?

***समाप्त ***